सारांश
जलविज्ञानीय चक्र का एक प्रमुख घटक वाष्पोत्सर्जन होता है। अतः जल की आवश्यकता एवं उसकी उपलब्घता को आंकलित करने हेतु इसका विशुद्ध आकलन बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस अध्ययन में वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया के लिये सॉफ्ट कम्पयूटिंग तकनीक [1] का प्रयोग कर एक मॉडल विकसित किया गया। इस तकनीक की मुख्य विशेषता है कि इसमे मॉडल की अवसंरचना एवं इसके गुणक दोनों ही साथ-साथ इष्टतम बन जाते हैं।
इस अध्ययन का उद्देश्य सॉफ्ट कम्पयूटिंग तकनीक का प्रयोग कर बदलते वातावरण में सम्भावित वाष्पोत्सर्जन का विश्लेषण करना है। इसके लिये पूर्वी उत्तर प्रदेश के वाराणसी क्षेत्र के लिये सम्भावित वाष्पोत्सर्जन के पूर्वानुमान हेतु आँकड़ों पर आधारित मॉडल का विकास किया गया।
सम्भावित वाष्पोत्सर्जन को ज्ञात करने हेतु इनपुट के रूप में, वाष्पदाब, अवक्षेपण, मेघ आच्छादन, आद्र-दिवस बारम्बारता एवं औसत तापक्रम के आँकड़े प्रयोग किये गये। इनपुट एवं आउटपुट के बीच सम्बन्ध स्थापित करने हेतु सॉफ्ट कंप्यूटिंग टूल की एक फजी तकनीक का प्रयोग किया जाता है। मॉडलिंग के क्षेत्र मे फजी तकनीक, आने वाली नई तकनीकों में से एक है। मॉडल के विकास हेतु अडैप्टिव न्यूरो-फजी इन्फेरेंस सिस्टम (ANFIS) में ग्रिड पार्टीशनिंग एवं सबट्रैक्टिव क्लस्ट्ररिंग विधि का प्रयोग किया गया [2, 3, 4 & 5]। अध्ययन आँकड़े http://www.indiawaterportal से लिये गये। मॉडल के विकास के बाद बढ़ते तापक्रम का सम्भावित वाष्पोत्सर्जन पर प्रभाव का अध्ययन भी किया गया जो इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन को बताता है। अतः जलवायु परिवर्तन के लिये तापक्रम में वृद्धि के प्रभाव का भी अध्ययन किया गया।
विशिष्ट शब्द- वाष्पोत्सर्जन, फजी तकनीक, सबट्रैक्टिव, क्लस्ट्ररिंग एवं ग्रिड, पार्टिशनिंग।
Abstract
Evapotranspiration constitutes one of the major components of the hydrological cycle and hence its accurate estimation is of vital importance to assess water availability and requirements. This study explores the utility of soft computing techniques to develop the model for evapotranspiration process. An important characteristic of these techniques are that both the model structure and coefficients are simultaneously optimized.
The goal of this study is to analyze the potential evapotranspiration with changing environment using soft computing techniques. A data driven model has been developed to predict the Potential evapotranspiration of Varanasi (a part of Eastern Uttar Pradesh). The Eastern part of Uttar Pradesh includes sixteen districts namely Allahabad, Azamgarh, Ballia, Chandauli, Deoria, Ghazipur, Gorakhpur, Jaunpur, Kushinagar, Maharajganj, Mau, Mirzapur, Sant Kabir Nagar, Sant Ravidas Nagar, Sonbhadra and Varanasi. During this modeling, only data for Varanasi area is considered.
Vapour-pressure, precipitation, cloud-cover, wet day frequency and average temperature of the region are used as the input data while potential evapotranspiration is used as output of the model. A relationship between inputs and output has been developed through the Fuzzy based soft computing modeling. This model has been developed on the basis of Fuzzy Technique which is one of the emerging techniques in the field of modeling. Grid Partitioning and Subtractive Clustering Methods in Adaptive Neuro-Fuzzy Inference System (ANFIS) have been used to develop the models. During the study, data have been taken from the website http://www.indiawaterportal.org/. After developing the models, the effects of temperature increments have been studied over potential evapotranspiration which gives the climate change in this region. Thus the effect of temperature increment (Global Warming) has been studied for the climate change.
Keyword: Evapotranspiration, ANFIS, Fuzzy technique, Subtractive clustering, Grid Partitioning.
प्रस्तावना
अवक्षेपण एवं वाष्पोत्सर्जन दोनों ही जल उपलब्धता एवं कृषि उत्पादन के प्रमुख वाहक और यह तापक्रम में परिवर्तन से प्रभावित होते हैं। वाष्पोत्सर्जन से होने वाला जलवायु परिवर्तन, केवल वैज्ञानिक समुदाय के लिये ही नहीं अपितु नीति बनाने वालों के लिये भी सोच का विषय है। कृषि सम्भावना को ज्ञात करने के लिये समुचित जल आपूर्ति को ज्ञात करना अत्यन्त आवश्यक है। जल की उपलब्धता, अवक्षेपण की मात्रा एवं समय से प्रभावित होती है। सतह पर वाष्पोत्सर्जन से सम्बन्धित जलवायु परिवर्तन के सम्भावित प्रभाव को जाँचने हेतु एक ताकागी सुगेनो ग्रिड पार्टिशनिंग एवं सबट्रैक्टिव क्लस्टरिंग तकनीक को वाराणसी के डाटा के लिये प्रयोग किया गया।
वैश्विक तापक्रम वृद्धि का जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव
वैश्विक तापक्रम वृद्धि का जलवायु परिवर्तन पर पड़ने वाले प्रभाव से मानव जीवन एवं वातावरण दोनों ही प्रभावित होते हैं। उत्तरी गोलार्ध में तापमान के आँकड़े समुद्र का बढ़ता जल स्तर, घटते हिमाच्छादन इत्यादि जलवायु परिवर्तन के प्रतीक हैं। IPCC की चौथी रिपोर्ट के अनुसार-20वीं सदी के मध्य से वैश्विक तापक्रम के औसत तापमान में वृद्धि का कारण ग्रीन हाउस गैस के स्तर में वृद्धि होना है।
ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक माध्यमिक तापमान में वृद्धि के साथ-साथ समुद्र में जल स्तर में वृद्धि होने की सम्भावना है एवं चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि होगी क्योंकि पारिस्थितिकी तन्त्र जलवायु परिवर्तन के लिये अति संवेदनशील होता है। इस सबको देखते हुए बहुत सारे देशों ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने हेतु अनेक नीतियाँ लागू की है। पिछले 100 सालों में पाया गया है कि वैश्विक तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है। यदि वैश्विक पैमाने से क्षेत्रीय पैमाने पर जलवायु परिवर्तन का आकलन करें तो इसमें काफी अनिश्चितता है।
फजी लॉजिक सिद्धान्त
फजी लॉजिक ‘डिग्री ऑफ मेम्बरशिप’ के समावेशन के साथ क्लासिक लॉजिक का उच्च समुच्चय है। डिग्री ऑफ मेम्बरशिप इनपुट को क्रिस्प समुच्चय के बीच प्रक्षेपण की अनुमति देता है। दोनों ही लाॉजिक में संचालकों में समानता है केवल उनकी व्याख्या अलग है। फजी लाॉजिक कृत्रिम प्रज्ञा के क्षेत्र में एक दूसरा क्षेत्र है जिसे विभिन्न विनियोगों में सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा चुका है। फजी लाॉजिक सिद्धान्त के पीछे मुख्य विचार है कि यह किसी भी घटना को पूर्ण रूप से ‘यह’ या पूर्ण रूप से ‘वह’ होने के स्थान पर उसके आंशिक रूप से ‘यह’ आंशिक रूप से ‘वह’ होने की अनुमति देता है। किसी समुच्चय या श्रेणी के अपनेपन (सम्बन्धों) की डिग्री को मेम्बरशिप क्रम 0 एवं 1 के बीच के मान द्वारा निरूपित कर सकते हैं (2, 4)।
फजी इंफरेंस तन्त्र (FIS)
यह दिए हुए इनपुट से आउटपुट प्रतिचित्रण को तैयार करने की प्रक्रिया है। इसमें फजी लॉजिक प्रयोग किया जाता है। यह प्रतिचित्रण एक आधार तैयार करता है। जिस पर कोई भी निर्णय निर्धारित किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में मेम्बरशिप फंक्शनस, लॉजिकल ऑपरेशन एवं if then नियम आदि शामिल होते हैं। यह तन्त्र विभिन्न क्षेत्रों जैसे स्वचालित नियन्त्रण, आँकड़ा वर्गीकरण, निर्णय विश्लेषण, रिजरवायर ऑपरेशनस, एक्सपर्ट सिस्टम एवं कम्प्यूटर विजन (3, 5) आदि में सफलता पूर्वक प्रयोग हो चुका है। अपने बहुविषयक स्वभाव के कारण यह प्रक्रिया विभिन्न नामों से सम्बन्धित है जैसे फजी-नियमों पर आधारित तन्त्र, फजी एक्सपर्ट तन्त्र, फजी एसोसिएटिव मेमोरी, फजी लाॉजिक कन्ट्रोलर एवं सरल फजी तन्त्र, इत्यादि।
if then नियम के मानदंड इनपुट स्पेस के फजी क्षेत्र को परिभाषित करते हैं एवं आउटपुट स्पेस के मानदण्ड सम्बन्धित आउटपुट को उल्लेखित करते हैं। इस प्रकार FIS की कार्य-क्षमता अगणित मानदण्डों पर निर्भर करती है। फजी इन्टरफेस सिस्टम का प्रवाह सचित्र, चित्र 1 में दिया गया है।
ऐसे दो प्रकार के फजी इंफरेंस तन्त्र है जो लागू किये जा सकते हैं मामदानी एवं सुगेनो; दोनो में केवल आउटपुट को ज्ञात करने के लिहाज से ही भिन्नता है।
ताकागी-सुगेनो (TS) फजी इंफरेंस तन्त्र (2)
यह तन्त्र बहुत से मायनों में ममदानी विधि (4) के समरुप है। इसमें पहले दो भाग की प्रक्रिया इनपुट को फजीफाई करना एवं फजी संचालकों को प्रयोग करना आदि, मामदानी की तरह है। बस इसमें केवल आउटपुट मेम्बरशिप फलन लीनियर या स्थिर हैं (जिम्मेरमन 1991 [1])।
एक फलन Y = f (x) को लेते हैं जो TS मॉडल द्वारा प्रतिचित्रित हो रहा है इसमें Y निर्भर चर है x - विनिमय वाला अनिर्भर चर है एवं y के साथ सम्बन्ध रखता है। प्रचालन के अनुमान के लिये x एवं y के जोड़े के n नमूने लेते हैं। m नियमों को ध्यान में रखते हुए TS मॉडल का गणितीय फलन निम्न है-
(1) अनुगामी भाग का ग्रिड पर आधारित प्राचल चिन्ह करना।
(2) सभी इनपुट डाटा के स्पेस की यथोचित क्लस्टरिंग करना।
सब्ट्रैक्टिव क्लस्टरिंग विधि (SCM)
फजी क्लस्टरिंग का उद्देश्य विशाल आँकड़ा समूह से प्राकृतिक समूहीकरण की पहचान करना एवं प्रणाली के व्यवहार का संक्षिप्त प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करना है। साहित्य में विभिन्न प्रकार के फजी क्लस्टरिंग तरीके जैसे कि फजी C - मीन क्लस्टरिंग, माउन्टेन क्लस्टरिंग, सब्सट्रैक्टिव क्लस्टरिंग एवं गुस्टाफसोन केशल (GK) फजी क्लस्टरिंग प्रतिवेदित किये गए हैं।
फजी SCM एक आँकड़ा क्लस्टरिंग तकनीक है जहाँ पर प्रत्येक आँकड़ा इकाई एक क्लस्टर से कुछ मात्रा तक सम्बन्धित होती है जो सदस्यता कोटि द्वारा स्पष्ट रूप से बताया जाता है। संख्यात्मक आँकड़ो का गुच्छन बहुत से वर्गीकरणों एवं तंत्र प्रतिदर्श कलन विधि (system modeling algorithms) हेतु आधार बनाता है। इस पद्धति में संगणन आँकड़ा इकाईयों की संख्या के अनुपात एवं विचारार्थ समस्या के विस्तार से स्वतंत्र होते हैं। (6, 7,) में SCM प्रतिदर्श संरचना पहचान का वर्णन किया है, प्रत्येक क्लस्टर केन्द्र को P- डाइमेंशनल स्पेस में N आँकड़ा इकाईयों के सेट में प्रत्येक आँकड़ा इकाई को निर्दिष्ट सामर्थ्य मान Pj द्वारा पहचाना जाता है।
क्लस्टर विश्लेषणों द्वारा नियमों का एक ढाँचा एवं पूर्ववर्ती सदस्यता फलन निर्धारित किया जाता है जो आँकड़ो के व्यवहार को प्रतिरूप देते हैं। ग्लोबल लीस्ट स्कायर ऐस्टीमेशन का प्रयोग कर प्रत्येक नियम के लिये तर्कसंगत समीकरण निर्धारित की जाती हैं। इस पद्धति का यह फायदा है कि यह गौसियन मेम्बरशिप फंकशन को फजी सेट के रूप में उत्पन्न करती हैं। जो प्रत्येक इनपुट वेक्टर के लिये अनंत आधार रखती हैं।
प्रत्येक फजी सेट के लिये सदस्यता मूल्य की गणना की जाती है एवं इस वजह से नियम आधार का प्रत्येक नियम कार्य करता है। इनपुट एवं आउटपुट चैनलों के सम्बन्धों को ठीक-ठीक व्याख्या करने वाले केवल एक जोड़ा नियमों के पैदा करने की सम्भावना रहती है।
अध्ययन क्षेत्र
बनारस शहर उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में मध्य गंगा घाटी में गंगा के समीप बसा है। बनारस शहरी संकुलन में 7 शहरी उप इकाई है जो 112.26 वर्ग कि.मी. के दायरे में फैली हैं। यह संकलन 820 56’ पू. से लेकर 830 03’ पू. देशान्तर तथा 250 14’ उत्तर से लेकर 250 23.5’ उत्तर के अक्षांश के मध्य स्थित है। उत्तर भारत के भारतीय गंगा मैदानीय भाग में स्थित होने के कारण यहाँ की भूमि बहुत उपजाऊ है। क्योंकि गंगा नदी में निम्न स्तर की बाढ़ यहाँ की मिट्टी को पोषित करती रहती है। चित्र-2 में पूर्वी उत्तर प्रदेश में वाराणसी शहर को दिखाया गया है।
वाराणसी शहर गंगा एवं यमुना नदी के उच्च मैदानों में 80.71 मीटर की माध्यमिक ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ पर सहायक नदियो एवं नहरों की कमी होने के कारण मुख्य भूमि सतत एवं सूखी है। प्राचीन काल में यह भौगोलिक स्थिति रहने के लिये उत्तम थी। परन्तु मूल भौगोलिक स्थिति जोकि पुराने ग्रन्थों में उल्लेखित है अब नहीं है।
कहा जाता है कि वाराणसी शहर गंगा और वरुणा तथा गंगा और असि नदियों के मुहानों के बीच स्थित था। और इन दो मुहानों की दूरी 2.5 मील अर्थात 4.0 कि.मी. की लगभग थी एवं हिन्दू इन दो स्थानों का वृत्ताकार चक्कर लगाते थे जिसे पंचकोसी यात्रा (8.00 कि.मी.की) कहा जाता था जो साक्षी विनायक मन्दिर के समीप पूरी होती थी।
जलवायु
वाराणसी की जलवायु आद्र उपोष्णकटिबंधीय है जिसमें गर्मियों एवं सर्दियों के तापक्रम में बहुत ज्यादा फेरबदल होता है। गर्मियाँ अप्रैल महीने से लेकर अक्टूबर तक चलती हैं। इसमें मॉनसून का मौसम भी शामिल रहता है तथा गर्मियों में दिन गर्म होते हैं। गर्मियों का तापक्रम 300’ से लेकर 460’ तक रहता है। सर्दियों में दिन गर्म एवं रातें ठण्डी होती है तथा इसमें बहुत अधिक दैनिक फेरबदल रहता है। सर्दियों के समय हिमालय क्षेत्र से आने वाली ठण्डी हवाएँ दिसम्बर से लेकर फरवरी तक शहर को ठण्डा रखती है। सर्दियों का तापक्रम कभी-कभी 50’ तक पहुँचना कोई अनोखी बात नहीं। इस क्षेत्र की औसत वर्षा 1110 मि.मी. (41 इंच) के लगभग है। सर्दियों में कोहरा साधारण सी बात है एवं गर्मियों में लू भी चलती है।
जल प्रदूषण, उपरी स्ट्रीम में बाँध बनने से एवं स्थानीय तापक्रम में वृद्धि के कारण गंगा का जल स्तर घट रहा है। तथा नदी के बीच में छोटे - छोटे उपद्वीप से दिखने लगे हैं।
आँकड़ो की उपलब्धता
इस स्टडी के लिये जलवायु प्राचलों में से 6 प्राचल (तापक्रम, मेघ-आच्छादन, सम्भावित वाष्पोत्सर्जन, अवक्षेपण, वाष्पदाब, नम दिवस आवृत्ति) को आकलन के लिये किया गया है। इन सब प्राचलों में पाँच प्राचल तापक्रम, मेघ आच्छादन, अवक्षेपण, वाष्पदाब नम दिवस बारम्बारता आदि इनपुट प्राचल है तथा सम्भावित वाष्पोत्सर्जन आउटपुट प्राचल है। इसके लिये आँकड़े भारत की एक वेबसाइट http://indiawaterportal.org से प्रत्येक माह के लिये 50 वर्षों के लिये वर्ष 1951 से लेकर 2000 तक के आँकड़े लिये गए तथा उपलब्ध आँकड़ों को दो भागों में बाँटा गया। इसमें 75 प्रतिशत को मॉडल के अंशाकन के लिये प्रयोग किया गया तथा 25 प्रतिशत को मॉडल के सत्यापन के लिये प्रयोग किया। पाँच इनपुट एवं एक आउटपुट के लिये 12 महीनों के हिसाब से डाटाबेस बनाया गया।
मॉडल विकास
ग्रिड पार्टिशनिंग एवं सबट्रैक्टिव क्लस्टरिंग विधि हेतु दो मॉडल का विकास किया गया। मॉडल को ANFIS एडिटर का प्रयोग कर विकसित किया गया है। इसके लिये MATLAB (8), सॉफ्टवेयर के फजी लॉजिक बॉक्स का प्रयोग किया गया।
सबट्रैक्टिव क्लस्टरिंग विधि द्वारा FIS फाइल के उत्पादन के लिये मानदंड सारणी 2 में दिखाए गए हैं।
ANFIS में ऑप्टमाइज्ड सबट्रैक्टिव क्लस्टर मॉडल द्वारा FIS फाइल के उत्पादन के लिये मानदंड की सभी सूचनाएं सारणी 3 में दी गई है।
अन्तिम दो पंक्तियों में मॉडल के अंशाकन एवं सत्यापन की त्रुटि को दिखाया गया है।
ग्रिड पार्टिशनिंग विधि की FIS फाइल के उत्पादन के लिये मानदंड (सारणी-4) इस्तेमाल किए गए हैं।
परिणाम एवं चर्चा
उच्चतम लाभ हेतु अंशाकन डाटा की सभी 540 वेल्यू हेतु दोनों विधियों द्वारा मॉडल का विकास किया गया तथा सभी 60 चेकिंग डाटा समूहों का इस्तेमाल कर विकसित मॉडल द्वारा वाष्पोत्सर्जन का मान ज्ञात किया गया। दोनों ही मॉडल के नतीजे संतोषजनक पाए गए। परिणाम को चित्र 4 के माध्यम से दर्शाया गया है।
निष्कर्ष
मॉडल का ग्राफिक यूजर इन्टरफेस किसी भी क्षेत्र के किसी भी प्रकार के आँकड़ो के जलवायु परिर्वतन के अध्ययन हेतु बहुत आसान है। मॉडल से प्राप्त परिणाम एवं देखे गए मानों में सतता पाई गई। R2 (.9781 SCM मॉडल के लिये एवं .9133 GCM मॉडल के लिये) का मान बताता है कि SCM मॉडल GCM मॉडल की अपेक्षा ज्यादा अच्छा है। इसके अतिरिक्त GPM मॉडल में नियम बहुत अधिक है जो मॉडल को जटिल बनाते हैं। जबकि दोनों ही मॉडल की क्षमता 95 प्रतिशत पाई गई अतः यही निष्कर्ष निकलता है कि ANFIS सबट्रैक्टिव क्लस्टर विधि से परिणाम कम त्रुटि वाले एवं उत्तम प्राप्त होते हैं।
सन्दर्भ
1. जिम्मरमैन एच जे (1991) फजी सेट थ्योरी एण्ड इट्स एप्लीकेशन, क्लूवर एकेडमिक द नीदरलैंड।
2. ताकागी, टी. एण्ड सुजेनो, एम. (1985) फजी आईडेन्टीफिकेशन ऑफ सिस्टम एण्ड एप्लीकेशन टू मॉडलिंग एण्ड कन्ट्रोल आई.ई.ई.ई. ट्रांस सिस्टम मेन साइबर, (15) : 116-132
3. मेहता आर., एस.के. जैन एण्ड विपिन कुमार : (2005) फजी टेक्नीक फॉर रिजरवायर ऑपरेशन -इफेक्ट ऑफ मेम्बरशिप फंकशन विद डिफरेन्ट नम्बर ऑफ कैटेगरिस; हाइड्रोलॉजी जरनल, वोल्युम. 28, नं. 3-4, सितम्बर-दिसम्बर
4. मामदनी, ई. एच. : (1974); एप्लीकेशन ऑफ फजी एलगोरिथम्स फॉर सिम्पल डायनिमिक प्लांट. परोक. आई. ई.ई. 121, 1585-1588.,
5. मेहता आर. एण्ड शरद के. जैन, : (2009) ऑपटीमल ऑपरेशन ऑफ ए मल्टी-परपज रिजरवायर यूजिंग न्यूरो फजी टेक्नीक; इन्टरनेशनल जरनल ऑफ वाटर रिसोरसिस मैनेजमेन्ट; 23:509-529.
6. जादेह एल ए, 1965, ‘‘फजी सैट्स इन्फॉरमेशन एण्ड कण्ट्रोल’’, 8, 338-353.
7. कर्लि जार्ज एवं युआन बने ‘‘फजी सैट्स एण्ड फजी लॉजिक,’’ प्रैन्टिस हॉल ऑफ इंडिया, 2008
8. मैटलैब (R 2007b) फजी लॉजिक टूल-बॉक्स, द मैथवर्क, यू एस ए।
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, कॉलेज आफॅ इंजिनियरिंग, रुड़की
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