सारांशः
जलधारा (नदी या नाले) के जल में घुलित ऑक्सीजन की सान्द्रता को धारा की जलगुणवत्ता सूचक के रूप में माना जाता है। सामाजिक रूप से यह एक महत्त्वपूर्ण समस्या है कि किस प्रकार प्रदूषण रोकने की विभिन्न तकनीकों द्वारा जल धाराओं में घुलित ऑक्सीजन सान्द्रता के स्तर को नियन्त्रण में रखा जाए। प्रस्तुत प्रपत्र में आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क तकनीक द्वारा उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर के यमुना नदी के निचले भाग पर घुलित ऑक्सीजन की सान्द्रताओं के आकलन किए गए। इन विश्लेषणों में अधिकतर सामान्य प्रकार से प्रयुक्त होने वाली फीड फॉरवर्ड एरर बैक प्रोपेगेशन न्यूरल नेटवर्क तकनीक का प्रयोग किया गया। यमुना नदी में मथुरा शहर के ऊपरी, मध्य व निचले तीन स्थलों से जल प्रवाह, तापमान, पीएच, जैवरासायनिक ऑक्सीजन माँग (बीओडी) व घुलित ऑक्सीजन के मासिक आँकड़ों का विश्लेषण में प्रयोग किया गया। फीड फॉरवर्ड एरर बैक प्रोपेगेशन एल्गॉरिथ्म द्वारा तीन प्रकार के ANN निदर्शों को विकसित करने हेतु विभिन्न प्रकार के इनपुट चरों तथा इनपुट स्थलों के संयोजनों का प्रयोग किया गया जोकि निम्नवत हैंः अ) मथुरा के ऊपरी, मध्य व निचले हिस्से के सभी आँकड़ों के सैट सिर्फ निचले हिस्से के घुलित ऑक्सीजन आँकड़ों को छोड़कर। ब) मथुरा के ऊपरी व मध्य स्थल के सभी आँकड़ों के सैट और स) मथुरा के ऊपरी हिस्से के सभी आँकड़ों के सैट। ANN तकनीक के व्यवहार को सांख्यकीय विधियों द्वारा परखा गया (रूट मीन स्कुव्यार व सहसम्बन्ध गुणांक)। निदर्श द्वारा घोषित घुलित ऑक्सीजन के मान व प्रेक्षित मानों में काफी उच्च सहसम्बन्ध (0.9 तक) प्राप्त हुये।
Abstract
Dissolved oxygen (DO) concentratons have been used as primary indicator of stream water quality. Aproblem of great social importance is determining how to best retain the quality of stream water and maintain DO concentrations using various pollution control activities. This paper presents the use of artificial neural network (ANN) technique to estimate the DO concentrations at the downstream of Mathura city, India, located at the bank of River Yamuna in the state of Uttar Pradesh, India. In the analysis, the most commonly used feed forward error back propagation neural network technique has been applied. Monthly data sets on flow discharge, temperature, pH, biochemical oxygen demand (BOD) and dissolved oxygen (DO) at three locations namely. Mathura (upstream), Mathura (central) and Mathura (downstream) have been used for the analysis. Feed forward error back propagation algorithm, the most commonly used ANN technique, was used to develop three types of ANN models using different combinations of input variables and input stations, namely: (a) All the data sets for stations Mathura (upstream), Mathura (central) and Mathura (downstream) except DO values at Mathura (downstream) (b) All data sets for the stations Mathura (upstream), and Mathura (central), and (c) All the data sets for the stations Mathura (upstream). The performance of the ANN technique has been evaluated using statistical tools (in terms of root mean square error and coefficient of correlation). The predicted values of DO showed prominent accuracy by producing high correlations (upto 0-9) between measured and predicated values.
परिचयः
जल प्रदूषण नियन्त्रण व नदी बेसिन नियोजन में जल गुणता प्रबंधन की समस्या महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। नगर पालिका का कचरा व औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों का सम्भावित रूप से नदियों में प्रदूषक के रूप में बहाया जाना लगभग स्थायी रूप से किया जाता है व इससे सम्बन्धित लोग नदियों के पानी की दिशा को अपनी आवश्यकतानुसार मोड़ लेते हैं व प्रयोग करते हैं। जल धारा (नदी या नाले) के जल में घुलित ऑक्सीजन की सान्द्रता को प्राथमिक तौर पर धारा की जलगुणवत्ता के सूचक के रूप में माना जाता है, इस तथ्य को पूर्व में वैज्ञानिक साहित्य में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है। नदी के किसी भी स्थान पर परिणामजन्य घुलित ऑक्सीजन की सान्द्रता नदी के ऊपरी भागों में होने वाले कई प्रक्रमों के कारण होती है जैसे कि deoxygenation, पुन; वातन, प्रकाश संश्लेषण, श्वसन, तलछट ऑक्सीजन माँग, जल का तापमान और जलधारा प्रवाह। यमुना नदी के तट पर स्थित दो शहर, ज्यादातर केसों में, उत्तर प्रदेश का मथुरा व दिल्ली बहुत बड़ी मात्रा में अपने शहर का कचरा व औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों को बिना कोई उचित उपचार के यमुना नदी में छोड़ देते हैं। यमुना नदी के जल की गुणवत्ता का स्तर पूर्व समय से दिन प्रतिदिन गिरता ही जा रहा है। जैसे-जैसे यमुना नदी से ज्यादा माँग बढ़ती जा रही है उसी प्रकार नदी में बढ़ते हुए सम्भावित प्रदूषण अनुकरणन (Simulate) की क्षमता महत्त्वपूर्ण होती जाती है। जल गुणता मानकों को लागू करने के लिये (जिसमें यह निश्चित करना होता है कि किसी भी जल निकाय में किसी तत्व कि सान्द्रता कि मात्रा उसके मानक मान से अधिक न हो) नदी जल गुणता निदर्शों का शोध कार्यों व अभिकल्पन में बहुतायत से प्रयोग होता है। हालाँकि, बहुत से निदर्श रैखिक फलनों कि परिकल्पना पर आधारित हैं।
किसी भी नदी कि जलधारा में दिलचस्पी के परिदृश्यों के अनुसार घुलित ऑक्सीजन के पूर्वानुमान के लिये पहले के समय में कई निश्चयात्मक निदर्शों को आजमाया गया। लेकिन, व्यव्हारात्मक रूप में इन निदर्शों कि सांखकीय शुद्धता प्रायः निम्न स्तर की पायी गयी क्योंकि प्रकृति के तंत्र अति जटिल है वे अच्छे से अच्छे निश्चयात्मक निदर्शों से बेहतर हैं। ए.एन.एन जलधारा कि गुणता आकलन हेतु एक द्रुत गतीय व लचीले तरीकों द्वारा निदर्श उपलब्ध करता है। पिछले वर्षों में ए.एन.एन द्वारा regression tool जैसी उच्च स्तरीय विधि का प्रदर्शन किया गया है, विशेषतयः फलनों के अनुमान व पद्धितियों की पहचान के लिये।
आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क एक गणना करने की विधि है जोकि जैविक मस्तिष्क व तंत्रिका तंत्र से प्रेरणा लेकर बनाई गई है। ए.एन.एन अत्यधिक आदर्श गणितीय निदर्श का प्रतिनिधित्व करता है जो हमारी आज की समझ के हिसाब से एक जटिल तंत्र है। सीखने की क्षमता न्यूरल नेटवर्क का एक महत्त्वपूर्ण गुण है। एक न्यूरल नेटवर्क को एक पारम्परिक कम्प्यूटर प्रोग्राम की तरह प्रोग्राम नहीं किया जाता, बल्कि इसको उदाहरणों की पद्धति के साथ प्रस्तुत करते है, प्रेक्षणों व संकल्पना अथवा किसी प्रकार के आँकड़े जिनको जानने के लिये माना जाता है। लर्निंग (जिसको ट्रेनिंग भी कहते हैं) प्रक्रिया के माध्यम से न्यूरल नेटवर्क अपने आप को व्यवस्थित कर विशेषताओं का एक आंतरिक सेट विकसित कर लेता है जोकि आँकड़ों या सूचना को वर्गीकृत करता है। पारम्परिक विधियों की तुलना में ए.एन.एन अस्पष्ट या अधूरी डेटा को सहन कर सकता है, अनुमानित परिणामों और outliers के लिये कम जोखिम रहता है। ए.एन.एन उच्च स्तर पर समानान्तर कार्य करते हैं, उनके कई स्वतंत्र ऑपरेशन एक साथ संचलित हो सकते हैं। व्यापक समानांतर प्रसंस्करण संरचना के कारण ए.एन.एन कठिन घटनाओं को प्रभावी रूप से करने में सक्षम है, इस कारण यह तकनीक आज के समय में तीव्र गति से आँकड़ों के विशाल संग्रह को प्रसंस्कारित (process) करने में सबसे अधिक पसंद की जाती है। इसके अतिरिक्त ए.एन.एन तकनीक के अन्य और कई लाभ भी हैं जो समस्या के हल प्राप्त करने में सहायक हैं। उदाहरणार्थ 1) ए.एन.एन के प्रयोग में अंतर्निहित प्रक्रिया के पूर्व ज्ञान का होना आवश्यक नहीं है। 2) कोई अनुसंधान के अन्तर्गत पूर्वस्थापित कठिन सम्बन्धों के मध्य चल रहे विभिन्न प्रक्रमों के पहलुओं को पहचान नहीं सकता है। 3) एक मानक अनुकूलन दृष्टिकोण या सांख्यिकीय मॉडल केवल जब एक समाधान प्रदान करता है जबकि पूरा करने के लिये चलाने की अनुमति मिलती है दूसरी ओर एक न्यूरल नेटवर्क हमेशा इष्टतम (उप इष्टतम) के लिये समाधान प्रस्तुत करता है और 4) न तो बाधाओं (constraints) को और न ही एक प्राथमिकता समाधानों की संरचना को सख्ती से ए.एन.एन विकास में जरूरी माना जाता है। इन विशेषताओं के कारण ANNs को विभिन्न हाइड्रोलॉजिकल मॉडलिंग की समस्याओं से निपटने के लिये बहुत उपयुक्त उपकरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। हालाँकि, ANNs के लिये उपयोग करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और हाल के वर्षों में वे सफलतापूर्वक आर्थिक, जल संसाधन, पानी की गुणवत्ता और जलीय समय श्रृंखला की भविष्यवाणी करने के प्रयोग में लाये जा रहे हैं (चक्रवर्ती एट अल, 1992; विंडसर और हार्कर, 1990; डैनियल 1991; डेसिलेट्स एट अल, 1992; लच्टेनेचर और फुलर, 1994; करुणानिधि एट अल, 1994; स्चिजस Schizas एट अल, 1994)।
पानी की गुणवत्ता प्रबंधन की समस्या जल प्रदूषण नियंत्रण और नदी बेसिन योजना बनाने में ए.एन.एन. एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रपत्र में, ANNs के प्रयोग से मथुरा शहर व उसके आस-पास के शहरी क्षेत्र और गैर बिन्दु स्रोत प्रदूषण से नगर निगम और औद्योगिक कचरे की भारी मात्रा के बहाव को यमुना नदी में होने वाले प्रभावों का पता करने के लिये घुलित ऑक्सिजन मानों के मूल्यों का अनुकरण के लिये प्रयोग मे लाया गया है।
2. ANNs पृष्ठभूमि
2.1 ANNs की वास्तुकला (Architecture)
ANN एक न्यूरॉन के अनुरूप सरल सूचना प्रोसेसिंग तत्वों का एक अत्यधिक परस्पर सेट से बनी एक कंप्यूटिंग प्रणाली को कहा जाता है, एक न्यूरॉन एक यूनिट है। न्यूरॉन दोनों एक एकल और कई स्रोतों से जानकारी एकत्र करता है और एक पूर्व निर्धारित गैर रेखीय फलन (function) के अनुसार निष्कर्ष प्रदान करता है। एक ए.एन.एन. मॉडल में कई न्यूरॉन्स के एक ज्ञात विन्यास में एक दूसरे से सम्बन्ध द्वारा बनाई गई संरचनाएँ होती है। ए.एन.एन. नेटवर्क के प्राथमिक तत्व वितरित जानकारियों का प्रतिनिधित्व, स्थानीय संचालन और गैर रेखीय प्रसंस्करण सम्मिलित हैं।
सीखने की प्रक्रिया अथवा प्रशिक्षण के दौरान न्यूरॉन्स के मध्य अन्तरसम्बन्ध स्थापित होते हैं। और यह प्रक्रिया आउटपुट व इनपुट के प्रयोग से पूर्ण होती है और इनको ए.एन.एन. के क्रमबद्ध तरीके में लगाया जाता है। इन अन्तरसम्बन्धों की सामर्थ्य को एक त्रुटि अभिसरण तकनीक द्वारा समायोजित किया जाता है जिससे कि ज्ञात इनपुट पैटर्न द्वारा वांछित उत्पाद प्राप्त किया जा सके। वैज्ञानिक साहित्य में कई प्रकार के ए.एन.एन. वास्तुकला उपलब्ध हैं जैसे कि रोसेन्ब्लात्त का पर्सेप्ट्रोन (1961), ADALINE (विड्रो व होफ्फ, 1960), Error-Back propagation (रुमेलहार्ट व अन्य, 1986), होपफील्ड का नेटवर्क (होपफील्ड व टैंक, 1985), सेल्फ ऑर्गनाइजिंग नेटवर्क (कोहोनेन, 1988), और अन्य अनेक।
प्रस्तुत अध्ययन में रुमेलहार्ट व अन्य (1986) के फीड फॉरवर्ड Error-Back propagation एल्गोरिथ्म का प्रयोग किया गया है। अधिकतर ए.एन.एन. अनुप्रयोगों में यह सबसे ज्यादा लोकप्रिय आर्किटेक्चर है। प्रस्तुत अध्ययन में प्रयुक्त ए.एन.एन. को चित्र संख्या 1 में दिखाया गया है।
इसमें आँकड़ों के प्रसंस्करण हेतु तीन इकाइयाँ हैं, इनपुट परत, हिडन परत व आउटपुट परत। इनमें से प्रत्येक परत में प्रोसेसिंग इकाइयाँ होती हैं जिनको न्यूरल नेटवर्क की नोड्स कहते हैं, विभिन्न नोड्स के मध्य अन्तरसम्बन्ध को न्यूरल नेटवर्क weights कहते हैं। इन weights को generalized delta रूल अथवा teepest gradient descent principle (ASCE T ask committee, 2000) द्वारा पुनः संशोधित किया जाता है।
2.2 ए.एन.एन. का अभ्यासः
ए.एन.एन. द्वारा weights व अन्तरसम्बन्धों की समस्याओं के ज्ञान का संग्रह किया जाता है। ए.एन.एन. weights के निर्धारण के प्रक्रिया को लर्निंग ऑफ ट्रेनिंग कहते हैं। ए.एन.एन. को इनपुट और ज्ञात आउटपुट आँकड़ों के द्वारा ट्रेंड किया जाता है। ट्रेनिंग की शुरुआत में weights की प्रारम्भिक मान को याद्रक्षिक रूप से या अनुभव के आधार पर दिया जा सकता है। लर्निंग एल्गॉरिथ्म द्वारा weights को योजनबद्ध तरीके से इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि वास्तविक आउटपुट व ए.एन.एन. आउटपुट के बीच का अंतर न्यूनतम रहे। बहुत से लर्निंग उदाहरण नेटवर्क के साथ इस प्रकार होते हैं की यह प्रक्रिया तब समाप्त हो जाती है जबकि यह अन्तर एक विशिष्ट मान से कम हो। इस अवस्था में ए.एन.एन. को ट्रेंड माना जाता है। उस ए.एन.एन. को बेहतर ट्रेंड माना जाता है जबकि उसमें ज्यादा से ज्यादा इनपुट आँकड़ों का प्रयोग किया गया हो।
इनपुट नोड, आउटपुट नोड व हिडन परत कि नोड की संख्या अध्ययन की जाने वाली समस्या पर निर्भर है। अगर हिडन नोड की संख्या कम है तो नेटवर्क की स्वतन्त्रता की सामर्थ्य कम होगी और वह प्रक्रिया को ठीक प्रकार समझ नहीं पाएगा, अगर यह संख्या अधिक है तो ट्रेनिंग एक लम्बा समय लेगी और कुछ बार नेटवर्क आँकड़ों को ओवर-फिट करेगा (करूणानिधि व अन्य, 1994)
ट्रेनिंग की समाप्ति पर, ए.एन.एन. के प्रदर्शन की पुष्टि की जाती है। अंतिम परिणामों की प्राप्ति पर या तो ए.एन.एन. को पुनः ट्रेंड किया जाता है या इसको लागू किया जाता है।
2.3 प्रदर्शन का मूल्यांकन:
किसी भी मॉडल के अच्छा होने या उसके उपयुक्त होने की तुलना करने हेतु बहुत सी सांख्यकीय विधियाँ उपलब्ध हैं। प्रस्तुत कार्य में रूट मीन स्कवेर एरर (आरएमएसई), सहसम्बन्ध गुणांक (आर) और निर्धारण गुणांक (डी सी) का उपयोग किया गया है। निम्नलिखित समीकरण का उपयोग इस प्रकरण में किया गया है। (न्यूरल पावर, 2003)
3. अध्ययन क्षेत्र व आँकड़ों का संग्रहणः
यमुना, गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है व इसका भारतवर्ष में जल संग्रहण क्षेत्र गंगा-बेसिन का लगभग 42 प्रतिशत है। यमुना का जल संग्रहण क्षेत्र 366223 वर्ग कि.मी. है। यमुना हिमाचल, उत्ताराखंड, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश व दिल्ली राज्यों से प्रवाहित होती है। लगभग 3 प्रतिशत क्षेत्र पर्वतीय है। यमुना का उद्गम बंदरपुंछ स्थान पर यमुनोत्री हिमनद से 6320 एमएसएल पर टिहरी गढ़वाल जि़ले में उत्तराखंड में होता है। चित्र संख्या 2 में यमुना का जल संग्रहण क्षेत्र व उसके किनारे के शहरों को प्रदर्शित किया गया है।
4. ए.एन.एन का प्रयोग एवं परिणामः
ए.एन.एन. को लागू करने से पहले इनपुट आँकड़ों का मानकीकरण करना डाटा-प्रकरमीकरण प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। प्रस्तुत अध्ययन हेतु variable x के लिये ए.एन.एन. द्वारा इनपुट डाटा का मानकीकरण किया गया (न्यूरल पावर, 2003)
किसी जलविज्ञानीय निदर्श में चरों के पूर्वाकलन के लिये उपलब्ध डाटा को दो भागों में बाँटा जाता है। एक भाग से मॉडल को जाँचा जाता है व दूसरे भाग से सत्यापन किया जाता है। इस अभ्यास को स्पिलीट-सैंपल टेस्ट कहते हैं। जाँचने वाले डाटा की लम्बाई आकलन किये जाने वाले चरों की संख्या पर निर्भर करती है। प्रायः 2/3 भाग जाँचने वाले डाटा का एवं 1/3 भाग सत्यापित करने वाले डाटा का रखा जाता है। यमुना नदी हेतु 72 प्रणालियाँ उपलब्ध थीं जिसमें प्रवाह, प्रवाह समय, तापमान, pH विद्युत चालकता, बीओडी व डीओ मुख्यतः शामिल हैं। आँकड़ों के समुच्चय से 48 patterns को जाँचने हेतु व 24 patterns को सत्यापन हेतु प्रयोग किया गया। ए.एन.एन. के विकास के लिये इनपुट चरों व इनपुट स्टेशनों को नाम द्वारा संचालित किया गया; (अ) मथुरा के ऊपरी हिस्से के सभी आँकड़े, मथुरा (मध्य) व मथुरा से नीचे, सिवाय डीओ आँकड़ों के (निचली मथुरा) (ब) मथुरा ऊपरी व मध्य के सभी डाटा सेट, और (स) ऊपरी मथुरा के सभी डाटा-सेट। गणना हेतु ए.एन.एन. में 14 इनपुट नोड, 10 इनपुट नोड व 5 इनपुट नोड क्रमवार के स, अ, ब, व, स के लिये थीं। आउटपुट परत में एक नोड था जोकि मथुरा के नीचे डीओ के लिये थी। ए.एन.एन. की ट्रेनिंग के 5000 चक्र थे। इस अध्ययन में केवल तीन परतीय नेटवर्क का प्रयोग किया गया है। यहाँ पर ये बताना जरूरी होगा कि परिणामतः weights का एक सेट प्राप्त किया गया जोकि ए.एन.एन. की नॉलेज को प्रदर्शित करता है। और एक कार्य की सुस्पष्ट समीकरण को नहीं दिखाता है।
तुलनात्मक रूप में रूट मीन स्कवेर एरर (आरएमएसई), सहसम्बन्ध गुणांक (आर) और निर्धारण गुणांक (डी सी) को सारणी सं. 1 में दिखाया गया है। अशोकन के समय RMSE, R o DC क्रमशः 1.71, 2-89, 0.852 से लेकर 0-907, 0-722 व 0-8226 पाये गए। यद्यपि सत्यापन के समय इन सभी के मान 1-52 से 6-91, 0-654 से 0-928 तथा 0-283 से 0-856 प्राप्त हुए। जैसा कि पिछले भाग में बताया गया है कि विभिन्न डाटा सेट व स्टेशनों के संयोजन से ए.एन.एन. मॉडल के तीन सेट बनाए गए ए.एन.एन.1: मथुरा के सभी डाटा-सेट सिवाय डीओ (निचली मथुरा); एएनएन2; ऊपरी मथुरा व मध्य मथुरा के सभी डाटा सेट; व एएनएन 3: ऊपरी मथुरा के सभी डाटा सेट। तीनों एएनएन मॉडल का प्रदर्शन अलग-अलग प्राप्त हुआ।
सर्वश्रेष्ठ मॉडल ए.एन.एन. 2 था जिसके रूट मीन स्कवेर एरर (आर.एम.एस.ई.) सहसम्बन्ध गुणांक (आर) और निर्धारण गुणांक (डी सी) जाँच के दौरान 1.71, 0.907 व 0.822 प्राप्त हुए व सत्यापन के दौरान इनके मान 1.52, 0.928 व 0.856 प्राप्त हुए। एएनएन2 मॉडल में 10 इनपुट चर थे जिसमें धारा प्रवाह, तापमान, पीएच, बीओडी, व मथुरा के ऊपरी व मध्य भाग के डीओ मान थे। ए.एन.एन.1 के सन्दर्भ में 14 इनपुट चर थे व इसका प्रदर्शन ए.एन.एन.2 कि तुलना में ज्यादा चर होने के कारण अधिक विषम था। ए.एन.एन.3 के केस में प्रदर्शन अति निम्न स्तर पर था क्योंकि बहुत कम चर प्रयोग किए गए थे। अतः यह प्राप्त हुआ कि 14 इनपुट चरों के साथ ए.एन.एन.2 अपने महत्तम प्रदर्शन पर पाया गया। जिसके परिणाम चित्र सं 3 में प्रदर्शित किए गए हैं जहाँ यह दिखाई देता है कि प्रेक्षित तथा निदर्श से प्राप्त डीओ के निष्कर्ष मैच करते हैं।
अ. (अशांकन)
5. निष्कर्ष:
भारतवर्ष में ए.एन.एन. का प्रयोग से जल-गुणता निदर्शन हेतु बहुत कम प्रयास व अध्ययन किए गए हैं। किसी भी स्थान पर नदी की जल-गुणता का अध्ययन करना अत्यन्त कठिन कार्य है क्योंकि जल-गुणता चरों का आरैखिक व्यवहार इसे बहुत दुष्कर बना देता है। अन्य कई जलविज्ञानीय अध्ययनों में ए.एन.एन. मॉडल को सफलता पूर्वक लागू किया गया है, प्रस्तुत अध्ययन हेतु ए.एन.एन. मॉडल का प्रयोग करने कि प्रेरणा का स्रोत यही है। ए.एन.एन. मॉडल के प्रदर्शन को आरएमएसई, आर, व डीसी के प्रयोग द्वारा टेस्ट किया गया। ये पाया गया कि ए.एन.एन. मॉडल जल-गुणता निदर्शन हेतु अत्यन्त उपयोगी है। अगर shorter टर्म डाटा जैसे कि 10-डेली या डेली डाटा का प्रयोग किया जाए तो परिणाम और भी अच्छे हो सकते हैं। यद्यपि इनपुट डाटा कोंसिस्टेंट होना चाहिए व ट्रेनिंग तथा टेस्ट डाटा के नियन्त्रक कारक एक से होने चाहिए।
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