देहरादून में रिस्पना और अल्मोड़ा में कोसी नदी के पुनर्जीवीकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत एफ.आर.आई., एन.एच.आई., ईको टास्क फोर्स और अन्य विशेषज्ञ संस्थाओं का मार्गदर्शन लेकर नदी को इसकी पूर्व स्थिति में लाया जाएगा। रिस्पना नदी में पास के सौंग डैम से भी इसमें पानी लाने का प्रयास किया जाएगा। नदियों के पुनर्जीवीकरण के लिये अभियान शुरू किया गया है। जिसके तहत अल्मोड़ा में भी अभियान की शुरुआत की गई है। नदियों के किनारे वृक्षारोपण भी किया जाएगा।
कभी रिस्पना नदी की जलधारा सुर-सरिता गाती हुई, मसूरी की पहाड़ियों से निकलकर दूर लगभग 40 कि.मी. के फासले पर दूधली और बिन्दाल नदी से संगम बनाती हुई सुसवा में मिल जाती है। कभी यह नदी का रूप था, अब गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है। अंग्रेजों के जमाने से पूर्व की ऋषिपर्णा अब की रिस्पना नदी का यह बहाव ही सौन्दर्य का बोध कराता था। कभी ना घटने व बढ़ने वाला ऋषिपर्णा नदी का पानी लोगों को बरबस अपनी ओर यूँ ही आकर्षित करता था। यही नहीं इस नदी के आस-पास की खेती बहुत ही उपजाऊ होती थी। सो, यह अब बीते जमाने की बात हो गई है। आजादी के बाद से इस नदी को लोगों ने गन्दे नाले में तब्दील कर दिया।
स्वतंत्र भारत में उत्तराखण्ड राज्य के आठवें मुख्यमंत्री ने रिस्पना नदी को पुनर्जीवित करने का सपना देखा है। यह सपना कब साकार होगा यह तो समय केे गर्त में है। इतना स्पष्ट है कि यदि मुख्यमंत्री के सपने को प्रशासनिक पलीता ना लगे तो सपने को साकार होने में कोई देर नहीं लगेगी। बता दें कि आजकल उत्तराखण्ड राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत अपनी भाषण की शुरुआत नदी बचाओ और संरक्षण की बात से करते हैं। इसमें कितनी सच्चाई है यह भी समय के गर्त में है। मगर इतना कहना गलत नहीं होगा कि उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री ने रिस्पना और कोसी को बचाने की सौगन्ध खाई है तो निश्चित तौर पर कोसी और रिस्पना के दिन बहुरेंगे। यह संकल्प भी उन्होंने किसी और के सामने नहीं बल्कि जल पुरूष राजेन्द्र सिंह के सामने एक भव्य आयोजन में लिया है। कहने का तात्पर्य यह है कि मुख्यमंत्री श्री रावत का यह संकल्प स्पष्ट कर रहा है कि उत्तराखण्ड में नदियों पर भारी संकट आ चुका है।
उल्लेखनीय हो कि मसूरी की पहाड़ियों से निकलने वाली रिस्पना नदी की जलधारा किसी जमाने में शिखर फॉल (राजपुर) देहरादून में आगन्तुकों को अपने प्राकृतिक सौन्दर्य से बोध कराती थी। यहीं से आगे निकलकर रिस्पना का स्वरूप इसलिए और बढ़ जाता था कि सहस्त्रधारा से निकलने वाली जलधारा से रिस्पना संगम बनाती हुई एक नहर के रूप में आगे बढ़ती है और रायपुर मालदेवता सहित बालावाला, तुनुवाला, थानों, बड़कोट और डोईवाला यानि 28 कि.मी. के फासले तक लगभग 20 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित करती है। जबकि रिस्पना नदी का अधिकांश पानी सुसवा नदी से मिलकर हरिद्वार स्थित गंगा में समा जाता है। लेकिन जहाँ-जहाँ से रिस्पना की धारा गुजरती है वहाँ-वहाँ पर मौजूदा समय में खेती नहीं बल्कि कंक्रीट का जंगल उग आया है।
बताया जा रहा है कि रिस्पना को उसके पुराने स्वरूप में लौटाने के लिये इस नदी के किनारे बसे हजारों परिवारों को भी विस्थापित होना पड़ेगा। अब सरकार के सामने चुनौती है कि एक तरफ रिस्पना के पुराने स्वरूप को लौटाए और दूसरा रिस्पना के किनारे बसे परिवारों को दूसरी जगह बसाए।
काबिलेगौर तो यह है कि राज्य बनने के 17 वर्षों बाद रिस्पना नदी के पुनर्जीवीकरण का कार्यक्रम जो आरम्भ हुआ है वह कब रंग लाएगा यह कौतुहल का विषय बना हुआ है। एक तरफ मुख्यमंत्री श्री रावत रिस्पना नदी के पुनर्जीवीकरण के लिये लोगों को शपथ दिला रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ देहरादून के पर्यावरण कार्यकर्ता नदी संरक्षण के काम को सरकारी स्तर से सफल नहीं मान रहे हैं। लोगों का मानना है कि नदी संरक्षण के काम को सरकारी योजना से नहीं बल्कि लोक सहभागिता से सफल बनाया जा सकता है। हालांकि नदियों के पुनर्जीवीकरण में आमजन की भागीदारी को सरकारें महत्त्वपूर्ण मान रही हैं। पर अब तक देहरादून में रिस्पना नदी के पुनर्जीवीकरण के लिये लोक समाज में कोई कार्रवाई आगे नहीं बढ़ाई गई।
जब से मुख्यमंत्री ने रिस्पना के पुनर्जीवीकरण का शिगूफा फूँका तब से स्थानीय लोग रिस्पना नदी के संरक्षण में सरकार के साथ मुख्य सहयोगी बनने के लिये आतुर दिख रहे हैं। मुख्यमंत्री रावत का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छता को एक अभियान बना दिया है। कम-से-कम वे लोग उनका अनुसरण करते हुए राज्य में ऐसा संकल्प तो ले सकते हैं कि प्रदेश की नदियों का पुनर्जीवीकरण किया जाये। साथ ही उनका सुझाव है कि रिस्पना नदी के जलागम क्षेत्र में जो आठ जलस्रोत हैं उनकी पहचान की जाये और उन्हें चिन्हित कर नदी संरक्षण अभियान में शामिल किया जाये। इस सन्दर्भ में मुख्यमंत्री रावत स्वीकार करते हैं कि देहरादून की जनसंख्या दोगुनी हो गई है, परन्तु पानी का डिस्चार्ज आधा रह गया है। इसको सन्तुलित बनाने के लिये पहली कसौटी नदियों के पुनर्जीवन की होगी। इसलिये देहरादून की रिस्पना नदी को यदि पुनर्जीवित कर दिया गया तो यहाँ के लोगों के पास एक तो पानी की कोई समस्या नहीं होगी और दूसरे यह कि रिस्पना का सौन्दर्य लौटेगा और यहाँ पर्यटन व्यवसाय को भी मजबूती मिलेगी। वे मानते हैं कि पूरे विश्व के वैज्ञानिक पानी के लिये चिन्तित हैं।
फिर भी हम कुछ प्रयास तो कर ही सकते हैं कि जल संरक्षण के लिये एक दूजे से हाथ मिलाएँ। मुख्यमंत्री रावत, जल पुरूष राजेन्द्र सिंह के नदी संरक्षण के कार्यों को आदर्श मानते हैं, जिन्होंने राजस्थान में 11 नदियों को पुनर्जीवित कर डाला और सरकारी मदद भी नहीं ली। राजेन्द्र सिंह ने ग्रामीण लोगों का विज्ञान इस जल संरक्षण में जोड़ा। इसी प्रकार हम सभी की सहभागिता इसमें चाहिए, हर किसी को यह लगना चाहिए कि रिस्पना नदी के पुनर्जीवीकरण श्री रावत का ही नहीं बल्कि उनका भी सपना है। तभी इस नदी का पुनर्जीवीकरण हो सकेगा।
दूसरी तरफ मुख्यमंत्री के नदी संरक्षण के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को लेकर विभिन्न संगठन व स्वयंसेवी उनके समर्थन में आ रहे हैं। यूसैक के वैज्ञानिक दुर्गेश पंत एवं ईको टास्क फोर्स के कर्नल आर.एच.एस. राणा ने इस हेतु बकायदा जूनियर ईको टास्क फोर्स का गठन भी करवा दिया। उन्होंने विद्यार्थियों और युवाओं को इस कार्य के लिये शामिल किया है। जल पुरूष राजेन्द्र सिंह ने इण्डिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) को फोन पर बताया कि उत्तराखण्ड सरकार और जनता को वे बधाई देते हैं। क्योंकि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने नदी संरक्षण के लिये जो राज, समाज और संतों को एक साथ संकल्प दिलाया है यह अप्रतिम है। क्योंकि समाज के ये सभी लोग जुड़कर नदियों के संरक्षण के काम को सरल बनाते हैं। उनका कहना है कि भविष्य में प्रकृति प्रदत्त इस नदी का पुनर्जीवीकरण संस्कृति, प्रकृति, प्यार एवं सम्मान के साथ करना होगा। हमें संकल्प भी लेना होगा कि उत्तराखण्ड की नदियों का पुनर्जीवीकरण उत्तराखण्ड के लोग मिलकर करेंगे।
रिस्पना से ऋषिपर्णा की यात्रा में परमार्थ निकेतन सरकार का हमेशा साथ देगी। नदी के पुनर्जीवीकरण के लिये आवश्यक वृक्षारोपण कार्य हेतु पौधों की व्यवस्था परमार्थ निकेतन द्वारा की जाएगी। स्वामी चिदानंद सरस्वती ने नदियों के पुनर्जीवीकरण अभियान के लिये परमार्थ निकेतन द्वारा एक करोड़ रुपए दिये जाने की घोषणा की। मुख्य सचिव उत्पल कुमार का कहना है कि विश्व की जितनी भी मानव सभ्यताएँ पनपी हैं, उन सभी का नदियों के साथ गहरा सम्बन्ध रहा है। नदियों को बचाना कोई सरकारी योजना नहीं है, यह जनसामान्य की योजना है। राज्य की 17वीं वर्षगाँठ पर उन्होंने मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार नदियों के पुनर्जीवीकरण के लिये रिस्पना और कोसी दो नदियों का चुनाव किया है।
ज्ञातव्य हो कि देहरादून में रिस्पना और अल्मोड़ा में कोसी नदी के पुनर्जीवीकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत एफ.आर.आई., एन.एच.आई., ईको टास्क फोर्स और अन्य विशेषज्ञ संस्थाओं का मार्गदर्शन लेकर नदी को इसकी पूर्व स्थिति में लाया जाएगा। रिस्पना नदी में पास के सौंग डैम से भी इसमें पानी लाने का प्रयास किया जाएगा। नदियों के पुनर्जीवीकरण के लिये अभियान शुरू किया गया है। जिसके तहत अल्मोड़ा में भी अभियान की शुरुआत की गई है। नदियों के किनारे वृक्षारोपण भी किया जाएगा।
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