रिस्पना को भूमाफियाओं से बचाइए

अर्थ जस्टिस रिसर्च टीम

शिवालिक पर्वत माला की कई खूबसूरत घाटियों में से एक है दून घाटी। दून घाटी की हरियाली और सुंदरता में चार-चाँद लगाती नदियों की एक आकाशगंगा है। चंद्रभागा, सुसुवा, जाखन, सौंग, राही, गूलर, दुल्हनी, टौंस, तमसा, रिस्पना, बिंदाल, बाण गंगा, सूखी नदी, गौतम कुंड नदी, घंट्टे खोला, काली गाढ, आसन नदी; ये सभी अन्ततः गंगा की सहायक ही हैं। फिलहाल इन नदियों में से रिस्पना का पुनर्जीवन माननीय मुख्यमंत्री जी त्रिवेन्द्र सिंह रावत का ड्रीम प्रोजेक्ट है। इसलिए रिस्पना सभी का फोकस है। रिस्पना उद्गम से लेकर संगम तक भयानक अवैध कब्जों की जकड़ में है। मसूरी की तलहटी से निकलने वाली रिस्पना का शिखर-फ़ॉल के बाद जलस्तर नाममात्र का रह जाता है। शिखर-फॉल के बाद शहर के बीच तो बीमार रिस्पना को लोग मारने पर ही आमादा हैं। शहरी लोग रिस्पना को अब कूड़ा डंपिंग जोन से ज्यादा नहीं समझते। रिस्पना में कब्जा करके हजारों घर, शॉपिंग काम्पलेक्स और गाड़ियों का स्टैंड तक बना दिया गया है। रिस्पना की जमीनें बेचकर भू-माफिया करोड़ों बना रहे हैं। नदियों की जमीनें बेचकर भूमाफिया घोटालों की रोज एक नई इबारत लिख रहे हैं। वहीं सरकारें रश्मअदायगी में व्यस्त हैं।

बाबा केदारनाथ धाम के विधायक मनोज रावत कहते हैं कि यह देहरादून में एक तरह का व्यापम-घोटाला है। जो देहरादून में चारों तरफ व्याप्त है। लगभग 6000 करोड़ से ज्यादा की भूमि की बंदरबाँट तो अकेले गोल्डेन-फारेस्ट की जमीनों की देहरादून में हुई है, पिछले एक दशक के अंदर।

गोल्डेन-फारेस्ट की जमीनों की बंदरबाँट

मनोज रावत बताते हैं कि मैं चालांग गाँव के एक भूमि घोटाले पर काम कर रहा था, कुछ महीनों पहले। मैं तहेलका और गुल्लैल.कॉम में कई मामले खोल चुका था। पर इस मामले में सारे सबूतों के बाद भी कुछ नहीं हुआ। क्योंकि सब मिल जाते हैं। इस बार भी मामला उच्च न्यायलय में भी चल रहा था। इसलिए मैंने 4 जुलाई 2015 को पहले गढ़वाल के आयुक्त को फिर 6 जुलाई 2015 को मुख्यमंत्री को जनता दरबार मैं कागज़ी सबूतों के आधार पर अपराधिक मुक़दमा दर्ज करने की मांग की। मेरी मांग पर और आवेदन पर कोतवाली देहरादून में मुकदमा दर्ज हो पाया। पटवारी ने गोल्डन फारेस्ट की चालांग गाँव जो देहरादून का सबसे महँगा इलाका है की 225 बीघा जमीन को 15 अप्रैल 2007 को जिस दिन रविवार था, को फर्जी उपजिला अधिकारी की कोर्ट के आदेश पर अपने नाम करने वालों के विरुद्ध मुक़दमा कराया है।

पूरे देहरादून में ऐसे मामले 520 हेक्टेयर याने 6000 बीघा के हैं। ये सब फर्जी कागजातों के आधार पर हुआ है। याने आज के रेट पर 6000 करोड़ का घोटाला। इस-घोटाले को मैं पत्रकार के और उससे भी ऊपर उत्तराखंड वाशी के रूप में लड़ रहा हूँ। देहरादून के जमीन घोटालों में नेता, अधिकारी, पुलिस ऑफिसर्स सब शामिल हैं। इसलिए बड़ा खतरा भी है। पर मैं ख़तरों से नहीं डरता।

नदियों की जमीनों की बंदरबाँट

दून घाटी की हरियाली और सुंदरता में चार-चाँद लगाती नदियों चंद्रभागा, सुसुवा, जाखन, सौंग, राही, गूलर, दुल्हनी, टौंस, तमसा, रिस्पना, बिंदाल, बाण गंगा, सूखी नदी, गौतम कुंड नदी, घंट्टे खोला, काली गाढ, आसन नदी आदि की एक अनुमान के अनुसार लगभग 5000 बीघा से ज्यादा जमीनों पर कब्जा है।

एक उदाहरण से समझें

रिस्पना की एक सहायक नदी है, आमवाला-रौ। आमवाला-रौ नदी डांडा-लाखौण्ड के पास की पहाड़ियों से निकलकर रिस्पना में मिलती है। आमवाला-रौ जो कि नालापानी रौ में मिल जाती है, वह जाकर रिस्पना में मिलती है। रिस्पना के बचाने का काम तबतक पूरा नहीं होगा, जब तबकि उसकी सहायक नदियों को न बचाया जाए।

आमवाला-रौ पर बिल्डर द्वारा क़ब्ज़ा और नदी की धारा को मोड़ना एक तरफ पूरा प्रशासन रिस्पना के पुनर्जीवन के लिए कोशिश कर रहा है। रिस्पना नदी बचाओ के लिए जहां प्राकृतिक जल स्रोतों और उसकी सहायक नदियों को बचाने के लिए कई योजनाएं बनाई जा रही हैं, लेकिन इसके उलट रिस्पना की सहायक नदियों पर अवैध कब्जा करने की कोशिश लगातार जारी है।

गांव - डांडा लाखोंड, थाना रायपुर, तहसील - देहरादून, ज़िला - देहरादून की - ‘ग्राम का नाम : डांडालखौण्ड, परगना : (परवादून), तहसील : देहरादून, जनपद : देहरादून, फसली वर्ष : 1417-1422, भाग : 1, खाता संख्या : 00352’ के रिकार्ड के मुताबिक खसरा नंबर 437 जो कि नदी है, पर बिल्डर द्वारा अतिक्रमण करके उसकी प्लाटिंग हो रही है। जबकि हाईकोर्ट नैनीताल ने 10 अगस्त 2018 के आदेश में स्पष्ट किया था कि नदी श्रेणी (नाले-खाले, तालाब, जलमग्न भूमि आदि भी) पर से अतिक्रमण हटाया जाए। जिस ज़मीन को बिल्डर कब्जा कर रहा है, वह ज़मीन रिस्पना पुनर्जीवन अभियान के तहत सहायक नदी आमवाला-रौ की ज़मीन है, जब बिल्डर कब्जा कर लेगा, और लोगों को प्लाटिंग कर देगा। तब अतिक्रमण दस्ते की कार्यवाही से लोगों का काफी नुकसान होगा।

इस तरह के अतिक्रमण कार्य के चलते रिस्पना के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो सकता है, निर्माण कार्य के चलते नदी की आमवाला-रौ की जलधाराएं ब्लॉक हो सकती हैं। ऐसे में रिस्पना को कैसे रिवाइव किया जा सकता है। रिस्पना के कैचमेंट एरिया में इस अतिक्रमण से वाइल्डलाइफ को भी खतरा है और रिस्पना को पुनर्जीवित करने की योजना भी इससे प्रभावित हो सकती है। हाई कोर्ट ने 10 अगस्त 2018 के आदेश में स्पष्ट किया था कि नदी श्रेणी (नाले-खाले, तालाब, जलमग्न भूमि आदि भी) की भूमि पर जो भी आवंटन किए गए हैं, उन्हें निरस्त किया जाए। और जो भी कब्जे किए गए हैं, वह कब्जा हटना है। पर लगातार सूचना देने के बावजूद प्रशासन कोई कार्यवाही नहीं कर रहा है।

माननीय जिलाधिकारी को स्थानीय लोगों ने कई पत्र लिखे गए हैं। पर कार्रवाई तो दूर प्रशासन का अमला बिल्डर को ही सूचना देकर शिकायतकर्ताओं के खिलाफ धमकवाने का काम करता है। उपरोक्त सन्दर्भ में तो माननीय ज़िलाधिकारी को कई पत्र लिखे गए और कब्जा करते हुए जेसीबी मशीनों की फोटो तक उपलब्ध कराई गई, पर कुछ हुआ नहीं।

खसरा नंबर 438, 441-क जलमग्न भूमि पर बिल्डर द्वारा अतिक्रमण:

गांव - डांडा लाखोंड, थाना रायपुर, तहसील - देहरादून, ज़िला - देहरादून की - ‘ग्राम का नाम : डांडालखौण्ड, परगना : (परवादून), तहसील : देहरादून, जनपद : देहरादून, फसली वर्ष : 1417-1422, भाग : 1, खाता संख्या : 00351’ के रिकार्ड के मुताबिक खसरा नंबर 438 जो कि जलमग्न भूमि है, पर बिल्डर द्वारा अतिक्रमण करके उसकी प्लाटिंग हो रही है। जबकि हाईकोर्ट नैनीताल ने 10 अगस्त 2018 के आदेश में स्पष्ट किया था कि नदी श्रेणी (नाले-खाले, तालाब, जलमग्न भूमि आदि भी) पर से अतिक्रमण हटाया जाए। हाई कोर्ट ने 10 अगस्त 2018 के आदेश में स्पष्ट किया था कि नदी श्रेणी (नाले-खाले, तालाब, जलमग्न भूमि आदि भी) की भूमि पर जो भी आवंटन किए गए हैं, उन्हें निरस्त किया जाए। और जो भी कब्जे किए गए हैं, वह कब्जा हटना है। पर लगातार सूचना देने के बावजूद प्रशासन कोई कार्यवाही नहीं कर रहा है।

स्थानीय लोगों की मांग है कि

१ - एक संयुक्त जांच समीति बनाई जाए, जिसमें जंगल, राजस्व और आपदा विभाग के लोग हों। क्योंकि गधेरे की जमीन कब्जा करने से आपदा की आशंका भी है। २ - जंगल विभाग की तरफ से वहाँ चिन्हांकन कराकर पिलर लगवाये जाएं, जिससे बिल्डर का कब्जा रुक सके। ३ - नदी श्रेणी की जमीन की भी चिन्हांकन कराकर पिलर लगवाये जाएं, जिससे बिल्डर का कब्जा रुक सके।

देहरादून की शान रिस्पना को बचाने के लिए उसकी सहायक नदियों के भी कब्जों को रोका जाए, नदी, नालों और जल स्रोतों के जलग्रहण क्षेत्र को ठीक रखा जाए। सबसे ज्यादा जरूरी है कि दिल की नदी को ठीक रखा जाए ताकि जमीन की नदियाँ भी बहती रहें।

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Post By: RuralWater
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