अंबरीश कुमार/ जनसत्ता/ देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का सपना अब टूटता नजर आ रहा है। रिहंद बाँध ( रेनुकूट ) का उद्घाटन करते हुए नेहरू ने कहा था,”यह क्षेत्र भारत का स्विटजरलैंड बनेगा।“ विंध्य क्षेत्र में ऊर्जांचल के नाम से मशहूर यह इलाका स्विटजरलैंड तो नहीं बना, बदहाली का शिकार जरूर हो गया। इस क्षेत्र के लाखों लोग प्रदूषित हो रहे हवा और पानी का शिकार हो गए।
करीब 70 वर्ग मील में फैले गोविंद वल्लभ पंत सागर का पानी इस कदर जहरीला हो रहा है कि अब यहाँ पर आंध्रप्रदेश से मंगाकर मछली खाई जा रही है। हवा में खतरनाक रासायनिक तत्वों की मात्रा बढ़ती जा रही है। नतीजतन जंगल में लाख के जरिए अपनी जीविका चलाने वाले आदिवासी बदहाल हो चुके हैं तो दूसरी तरफ फ्लोराइड की वजह से कईं गाँवों में लोगों के हाथ पांव टेढ़े-मेढ़े हो चुके हैं। बिजली बनाने वाले कारखानों की फ्लाईऐश आने वाले समय में पारिस्थितिकी संतुलन बिगाड़ सकती है। पर यहां के क्लेक्टर हीरामणि सिंह यादव इस सबसे अंजान हैं। यादव ने कहा, प्रदूषण के बारे में हमारे यहां एक विभाग है जो जानकारी रखता है। फिलहाल मेरी इस बारे में जानकारी कुछ खास नहीं है।
इस क्षेत्र में 1954 में स्थापित वनवासी सेवा आश्रम शिक्षा, स्वास्थ्य, कुटीर उद्योग, पशुपालन के साथ पर्यावरण को लेकर भी काम कर रहा है। आश्रम की सर्वेसर्वा रागिनी बहन ने जनसत्ता से कहा,”कईं साल पहले ही हमने प्रदूषण की जाँच पड़ताल के लिए एक प्रयोगशाला बनाई थी। इस प्रयोगशाला में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सौजन्य से एक अध्ययन भी हुआ जिससे पता भी चला कि गोविंद वल्लभ पंत सागर का पानी बिजली कारखानों की फ्लाई ऐश के चलते बुरी तरह प्रदूषित हो चुका है। बड़ी़- बड़ी कंपनियाँ फ्लाई ऐश को सीधे पानी में बहा रही हैं। इनके लिए जो फ्लाई ऐश पौंड बनाए गए थे, वे बांध के जलशय के काफी करीब हैं, इससे पर्यावरण के प्रति लोगों की नीयत भी साफ हो जाती है। काफी समय से तो आसपास के जंगलों में फ्लाई ऐश फेंका जाने लगा है।“
इस क्षेत्र में जो बड़े कारखाने हैं, उनमें रेनु सागर पावर कंपनी, हिंडाल्को अल्युमीनियम, एनटीपीसी की तीन इकाईयां, शक्तिनगर, रिहंद नगर और विंध्य नगर शामिल हैं। इसके अलावा कनौजडिया केमिकल्स अपने उत्पादों के अलावा निजी उपयोग के लिए तापीय विद्युत का उत्पादन करता है। ये कारखाने इस क्षेत्र का पर्यावरण बिगाड़ने में पूरा योगदान दे रहे हैं। एनटीपीसी के डिप्टी मैनेजर जनसम्पर्क राहुल घोष ने कहा, हम लोग पर्यावरण का जितना ख्याल रखते हैं, निजी क्षेत्र उतना नहीं रख सकता। हमने 13 लाख पेड़ इस क्षेत्र में लगाए हैं। अनपरा में पत्रकार शहरयार खान ने कहा कि पूरे क्षेत्र के पर्यावरण को बिगाड़ने में कोई पीछे नहीं है।
इस क्षेत्र में रिहंद बाँध बनने के बाद से ही विस्थापन से लेकर स्वास्थ्य व प्रदूषण का मुद्दा उठता रहा है। पर खनन क्षेत्र से उगाही करने में हर वर्ग जुटा है। राजनीतिक पर्यावरण की कीमत पर वसूली कर रहे हैं तो पुलिस प्रशासन खनन से लेकर कोयले तक में अपना हाथ काला किए हुए है। मीडिया की भूमिका भी सवालों में है। जिले के पत्रकारों को छोड़ दीजिए, लखनऊ और दिल्ली के नामचीन खबरनवीसों के भी खनन के पट्टे हैं। इन पट्टों से हर महीने दो लाख से लेकर तीन लाख की आमदनी होती है। यही वजह है कि सोनभद्र में खनन विभाग के सामने खबरनवीसों की ज्यादा भीड़ होती है।
सोनभद्र से जनसत्ता संवाददाता के मुताबिक बढ़ते प्रदूषण के चलते म्योरपुर और चोपन ब्लाक के दो दर्जन गाँवों में महामारी की स्थिति है। रोहनिया डामर और पढ़नरवा गाँव में बच्चे से लेकर बूढ़े तक फ्लोराइड के चलते विकलांग हो चुके हैं। किसी के हाथ-पैर टेढ़े हैं तो किसी की गर्दन। डाला, बिल्ली, चोपन और ओबरा के दो सौ क्रेशर प्लांट के चलते लोग सांस की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। डॉक्टर अरविंद सिंह ने कहा-पिछले दस सालों में इस क्षेत्र में वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण की वजह से लोग सांस से लेकर पेट तक की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। गोविंद वल्लभ पंत सागर का पानी पीने लायक नहीं है लेकिन लोगों के सामने उसके अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है। जरूरत है इस बड़े जलाशय में बिजली कारखानों की फ्लाई ऐश और कैमिकल कारखानों के घातक रसायनों का उत्सर्जन फौरन रोका जाए।
करीब 70 वर्ग मील में फैले गोविंद वल्लभ पंत सागर का पानी इस कदर जहरीला हो रहा है कि अब यहाँ पर आंध्रप्रदेश से मंगाकर मछली खाई जा रही है। हवा में खतरनाक रासायनिक तत्वों की मात्रा बढ़ती जा रही है। नतीजतन जंगल में लाख के जरिए अपनी जीविका चलाने वाले आदिवासी बदहाल हो चुके हैं तो दूसरी तरफ फ्लोराइड की वजह से कईं गाँवों में लोगों के हाथ पांव टेढ़े-मेढ़े हो चुके हैं। बिजली बनाने वाले कारखानों की फ्लाईऐश आने वाले समय में पारिस्थितिकी संतुलन बिगाड़ सकती है। पर यहां के क्लेक्टर हीरामणि सिंह यादव इस सबसे अंजान हैं। यादव ने कहा, प्रदूषण के बारे में हमारे यहां एक विभाग है जो जानकारी रखता है। फिलहाल मेरी इस बारे में जानकारी कुछ खास नहीं है।
इस क्षेत्र में 1954 में स्थापित वनवासी सेवा आश्रम शिक्षा, स्वास्थ्य, कुटीर उद्योग, पशुपालन के साथ पर्यावरण को लेकर भी काम कर रहा है। आश्रम की सर्वेसर्वा रागिनी बहन ने जनसत्ता से कहा,”कईं साल पहले ही हमने प्रदूषण की जाँच पड़ताल के लिए एक प्रयोगशाला बनाई थी। इस प्रयोगशाला में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सौजन्य से एक अध्ययन भी हुआ जिससे पता भी चला कि गोविंद वल्लभ पंत सागर का पानी बिजली कारखानों की फ्लाई ऐश के चलते बुरी तरह प्रदूषित हो चुका है। बड़ी़- बड़ी कंपनियाँ फ्लाई ऐश को सीधे पानी में बहा रही हैं। इनके लिए जो फ्लाई ऐश पौंड बनाए गए थे, वे बांध के जलशय के काफी करीब हैं, इससे पर्यावरण के प्रति लोगों की नीयत भी साफ हो जाती है। काफी समय से तो आसपास के जंगलों में फ्लाई ऐश फेंका जाने लगा है।“
इस क्षेत्र में जो बड़े कारखाने हैं, उनमें रेनु सागर पावर कंपनी, हिंडाल्को अल्युमीनियम, एनटीपीसी की तीन इकाईयां, शक्तिनगर, रिहंद नगर और विंध्य नगर शामिल हैं। इसके अलावा कनौजडिया केमिकल्स अपने उत्पादों के अलावा निजी उपयोग के लिए तापीय विद्युत का उत्पादन करता है। ये कारखाने इस क्षेत्र का पर्यावरण बिगाड़ने में पूरा योगदान दे रहे हैं। एनटीपीसी के डिप्टी मैनेजर जनसम्पर्क राहुल घोष ने कहा, हम लोग पर्यावरण का जितना ख्याल रखते हैं, निजी क्षेत्र उतना नहीं रख सकता। हमने 13 लाख पेड़ इस क्षेत्र में लगाए हैं। अनपरा में पत्रकार शहरयार खान ने कहा कि पूरे क्षेत्र के पर्यावरण को बिगाड़ने में कोई पीछे नहीं है।
इस क्षेत्र में रिहंद बाँध बनने के बाद से ही विस्थापन से लेकर स्वास्थ्य व प्रदूषण का मुद्दा उठता रहा है। पर खनन क्षेत्र से उगाही करने में हर वर्ग जुटा है। राजनीतिक पर्यावरण की कीमत पर वसूली कर रहे हैं तो पुलिस प्रशासन खनन से लेकर कोयले तक में अपना हाथ काला किए हुए है। मीडिया की भूमिका भी सवालों में है। जिले के पत्रकारों को छोड़ दीजिए, लखनऊ और दिल्ली के नामचीन खबरनवीसों के भी खनन के पट्टे हैं। इन पट्टों से हर महीने दो लाख से लेकर तीन लाख की आमदनी होती है। यही वजह है कि सोनभद्र में खनन विभाग के सामने खबरनवीसों की ज्यादा भीड़ होती है।
सोनभद्र से जनसत्ता संवाददाता के मुताबिक बढ़ते प्रदूषण के चलते म्योरपुर और चोपन ब्लाक के दो दर्जन गाँवों में महामारी की स्थिति है। रोहनिया डामर और पढ़नरवा गाँव में बच्चे से लेकर बूढ़े तक फ्लोराइड के चलते विकलांग हो चुके हैं। किसी के हाथ-पैर टेढ़े हैं तो किसी की गर्दन। डाला, बिल्ली, चोपन और ओबरा के दो सौ क्रेशर प्लांट के चलते लोग सांस की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। डॉक्टर अरविंद सिंह ने कहा-पिछले दस सालों में इस क्षेत्र में वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण की वजह से लोग सांस से लेकर पेट तक की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। गोविंद वल्लभ पंत सागर का पानी पीने लायक नहीं है लेकिन लोगों के सामने उसके अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है। जरूरत है इस बड़े जलाशय में बिजली कारखानों की फ्लाई ऐश और कैमिकल कारखानों के घातक रसायनों का उत्सर्जन फौरन रोका जाए।
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