रहस्य का विषय है सरौढ़ नाला


देवभूमि कुल्लू घाटी में दर्जनों ऐसे सरोवर, झीलें और तालाब हैं जो चर्चा में रहते हैं और जहां लोग अवसरानुकूल पुण्य स्नान भी करते हैं, परन्तु कितने ही ऐसे अनाम सर-सरोवर हैं जिनका स्थानीय लोगों के जीवन में बहुत महत्व है। शताब्दियों से अस्तित्व में आए ये सरोवर और झीलें उन अनाम अज्ञात पर्वत शृंखलाओं की ओट में हैं जहां पहुंचने के लिए बड़े कलेजे की आवश्यकता रहती है। कुल्लुवी लोकभाषा में इन ‘सर’ या सरोवरों को ‘सौर’ के नाम से जाना जाता है। ‘शेआ सौर’ दशौर, सरेउल सौर, डेहणा सौर जैसे सौर इन्हीं में से हैं। ऐसा ही एक सौर है खनपरी सौर। मनाली के पश्चिम की ओर खनपरी टिब्बा की ओट में स्थित यह प्राकृतिक झील एक प्रकार से कोठी बड़ागढ़ और कोठी मनाली के लगभग 40 छोटे-बड़े गांव का साझा सौर है। लगभग बारह हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित यह विशाल सरोवर मणिमहेश की पवित्र झील का-सा सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करता है। दुर्गम पर्वत शृंखलाओं से निकलने वाले छोटे-छोटे स्रोत अंत: इस कटोरीनुमा झील में समा जाते हैं और फिर यहां से यह पानी तीन ओर बहकर विभिन्न दिशाओं से बहता हुआ और फिर आगे चलकर बड़े नदी-नालों के रूप में बदलकर अंतत: ब्यास में समा जाता है। इनमें से एक तो दक्षिण की ओर कलाथ की ओर बहता है, जिसे कलाथ नाला कहते हैं और दूसरा घरशाड़ी नाला के रूप में जाना जाता है। तीसरा नाला इनमें से सबसे बड़ा है जो उत्तर-पूर्व की ओर बहते हुए मनाली के पास रांगढ़ी में ब्यास में समा जाता है। यह ‘सरौढ़ नाला’ कहलाता है। उद्गम स्थल एक ही होने के कारण जब कभी-कभी इस पर्वत शिखर पर भारी वर्षा या बादल फटने जैसी स्थिति पैदा होती है, तो तीनों नालों में एक साथ बाढ़ की स्थिति पैदा होती है।

सरौढ़ा-नाल सदियों से रहस्य का विषय बना हुआ है। कितनी ही किंवदंतियां जनश्रुतियां इसके साथ जुड़ी हैं। इसे जोगणियों का घर भी कहा जाता है। इसलिए जब कभी या बीस भादो के दौरान देवी-देवता रथ पर सवार होकर पवित्र स्नान के लिए सैर पर ले जाए जाते हैं तो सरौढ़ नाला मार्ग से कोई देवी-देवता रथ पर नहीं जाता। माना जाता है कि यह देव कन्याएं देवताओं की शक्ति का हरण कर लेती हैं। विश्वास के अनुसार एक बार ऐसा हुआ भी है। कडू, पतिश, दुणू, बेठर, बनक कढ़ी और गुगल जैसी दुर्लभ जड़ी-बूटियों से तो सरौढ़ घाटी भरी पड़ी है ही, साथ ही ये ट्रैकिंग के लिए आदर्श है। सौर से निकलकर सरौढ़ नाला डूम-डूमणी नामक दो विशालकाय चट्टानों के नीचे से गुजरता है। मनाल उझी घाटी से कहीं से भी खनपरी टिब्बा की इन दो सींगनुमा शिलाओं को देखा जा सकता है।

यहां से चलकर यह नाला ‘नौंऊढ़-नौऊढऩ’ नामक दो पहाडिय़ों की ओट से गुजरता है। दूर से तो ये पहाडिय़ां खनपरी टिब्बा पर्वत शिखर का ही हिस्सा लगती हैं परन्तु जब कभी इनके पीछे से धुंध उठती है तो ये दोनों पहाडिय़ां यूं एकदम उभर जाती हैं मानो एक-दूसरे का अभिवादन कर रही हों। खनपरी टिब्बा पर्वत की ओट में स्थित इन छोटे-छोटे नदी-नालों के संबंध में अनेक जनश्रुतियां लोकजीवन में प्रचलित हैं। इसी ‘नौऊढ़-नौऊढऩ’ पहाड़ी के एकदम नीचे ‘काहिका-रा-पौट’ नामक सुन्दर स्थान है जहां पर यह सरौढ़ नाला सलेटनुमा विशाल प्रस्तर शिला के ऊपर से बहता हुआ सप्तधरा के रूप में नीचे बहता है। यह दूधनीय धाराएं बहुत पवित्र मानी जाती हैं। जहां पर किसी भी प्रकार अशुचितापूर्ण कृत्य निषेध माना जाता है। हां, चरम रोग और इसी प्रकार की दूसरी व्याधियों से पीडि़त लोग यहां पर स्नान करना शुभ मानते हैं। इसी सरौढ़ की दूसरी धारा डूम-डूमणी से ठीक नीचे बहती हुई ‘छोल’ का रूप लेती है। इस प्रपात या ‘फाल’ या ‘छोल’ को दूर से ही देखा जा सकता है लगभग 100 मी. की ऊंचाई से गिर रहा यह प्रपात बहुत मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है जो नीचे आकर अपने से अलग हुए दूसरे नाले के साथ पुन: आ मिलता है।

इस स्थान को ‘कुन्धलै-री-बिहाल’ के नाम से जाना जाता है। इसी कुन्धलै-री-बिहाल के बायीं ओर लंबी-चौड़ी चरागाहें और विशाल प्रस्तर शिलाएं हैं। लोक विश्वास है कि सरौढ़ नाला निर्मित इस घाटी में किसी समय अनेक गांव बसे हुए थे। जिनके नाम ‘अंडा’, ‘नियालग’, ‘ख्यारग’, ‘तिचम’ आदि थे। एक बार भूकंप आने के कारण इन गांवों से ठीक ऊपर स्थित ‘हुंजरू दौग’ पर्वत टूट गया और सारा गांव धूलिसात हो गया। इन गांवों के खंडहर तो कहीं नहीं हैं, लेकिन पत्थर के डंगे खेतनुमा जंगल और पहाड़ से टूटे शिलाखंड अवश्य ही आज भी विद्यमान हैं। बड़े-बूढ़ों के मुख से इन गांवों की कहानियां आज भी सुनी जाती हैं। सरौढ़ नाला अवश्य ही इन गांवों के अस्तित्व का साक्षी रहा होगा। इसी सरौढ़ नाला के आसपास और भी मानव बस्तियां फली-फूलीं, जो आज कन्याल, मढ़ी, गधेरनी, सिमसा और देवधार नामक गांवों के नाम से जाने जाते हैं। सरौढ़ नाले का पानी भी पवित्र माना जाता है। इसके पानी में पशुओं की लाशैं फेंकना, गंदगी की निकासी और मुर्दे जलाना आदि निषेध हैं। सिऊसा स्थित देवता कार्तिक स्वामी के पिण्डा प्राण प्रतिमा का जलाभिषेक इसी नाले के जल से किया जाता है। युगों-युगों से बहते आ रहे सरौढ़ नाले की यह अविरल धारा दर्जनों गांवों की प्यास बुझाती हुई अनेक टुकड़ों में बंटकर अंतत: रांगड़ी और खाचा-रा-नाला जैसे स्थानों पर आकर ब्यास नदी का हिस्सा बनती है।ह
 
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