रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून

उत्तरांचल के पहाड़ों में देश के अन्य हिस्सों की तरह सामुदायिक जल प्रबंधन का एक लम्बा इतिहास रहा है। यहां नौला, धारा, मंगरा, ताल, खाल, चाल, बावड़ी, कुंडी इत्यादि जैसे पानी के स्रोत आज भी यहां की भव्य जल परम्परा के परिचायक हैं।

परन्तु कालांतर में पहाड़ों के जल प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप करने और जल संस्थान, जल निगम,स्वजल तथा जल आपूर्ति की अन्य सरकारी योजनाएं लाने से यहां के समुदायों में इन पारंपरिक ढांचों की उपेक्षा होने लगी। इससे यहां पेयजल के संकट के साथ- साथ कृषि का उत्पादन भी घटने लगा।

अत: हिमालय के बिगड़ते पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने और काम करने के लिए पहाड़ों के ग्रामीण युवाओं, स्वतंत्र पत्रकारों, महिला विकास कार्यकर्ताओं, शोधकों ने मिलकर 5 दिसंबर 1997 को `सोसायटी फॉर कम्युनिटी इन्वॉल्वमेंट इन डेवलपमेंट´ (एसएफसीआईडी) का गठन किया, जिसका लक्ष्य प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग और प्रबंधन में जन-सहभागिता सुनिश्चित करते हुए ग्रामीण समुदायों का विकास करना है।

यूँ तो इस संस्था के सदस्य हिमालयी जल संसाधन, संरक्षण, संवर्धन और उपयोग को लेकर चलाए जा रहे विभिन्न जल आन्दोलन से जुड़े रहे हैं। 28 मार्च 1999 के चमोली भूकम्प के पश्चात संस्था ने जिला चमोली के वण्ड क्षेत्र में ग्रामीण युवाओं का संगठन `सोशलआर्मी´ बनाकर अपने कार्यों और प्रयासों की शुरुआत की।

इन्होंने सर्वप्रथम 1999 में 15 पंचायतों के 43 से अधिक गांवों में जागरूकता फैलाने के लिए अनेक कार्यक्रमों, कार्यशालाओं, गोष्ठियों, सेमिनार इत्यादि के आयोजन किए।

यह संस्था कपार्ट के सहयोग से सन् 2000 से चमोली के 9 विकास खण्डों के 135 गांवों में जन-जागरूकता कार्यक्रम, नुक्कड़ नाटक और संगोष्ठियों का संचालन कर रहा है।

अपने इन्हीं प्रयासों में संस्था ने चमोली के 5 विकास खंडों के 53 गांवों में पानी का सर्वेक्षण किया, जिनसे पता चला कि पिछले एक दशक से जल स्रोत के साथ-साथ जल स्तर में लगातार कमी आती जा रही है।

इसके अतिरिक्त इन्होंने 11 ग्राम स्तरीय बैठकों का आयोजन किया, जिनमें पानी संबंधी संकट के स्थायी समाधान के सुझावों के अलावा यह बात भी स्पष्ट हुई कि ग्रामीण समुदायों का प्राकृतिक संसाधनों पर पूर्ण नियंत्रण हो और इनका प्रबंधन ग्रामीण समुदाय के हाथ में हो।

संस्था ने अपने इन्हीं प्रयासों में नौरख पीपलकोटी ग्राम सभा की सबसे प्राचीन बामणी मंगरा जलस्रोत को पुनर्जीवित किया। इसी प्रकार सन् 2002 में पीपल कोटी में 100 वर्ष से भी ज्यादा पुराने जल स्रोत, छिन मंगरा, को पुनर्जीवित किया गया।

25 दिसम्बर 2002 को संस्था के सदस्यों ने वण्ड क्षेत्र की सबसे पहली सिंचाई नहर, कटारा पानी वचूठा नहर के पुनर्निर्माण को लेकर धरना और अनशन किया, जिससे आज नहर का 80 प्रतिशत निर्माण और मरम्मत कार्य पूरा हो चुका है। इसके अलावा इस संस्था ने जल जागरूकता के लिए पौराणिक जल स्रोतों, पेयजल योजनाओं, नहरों जल योजनाओं पर 100 से अधिक फोटोग्राफ तैयार कर लिए हैं और वे उनकी जगह-जगह प्रदर्शनी लगाते हैं।

यह संस्था वर्षाजल संग्रहण के प्रयास में राजमिस्त्रियों को तकनीकी प्रशिक्षण देती है, जैसे फैर्रोसीमेंट टैंक, पॉलिथीन टैंक निर्माण पर प्रशिक्षण। यह यहां आयोपार्जन के लिए मत्स्य पालन के टैंक और तालाब का भी निर्माण कर रही है।

इस संस्था ने भविष्य में जलागम प्रबंधन, घराट संवर्धन, पौराणिक और पारंपरिक जल स्रोतों का संरक्षण करने की दिशा में सतत रूप से काम जारी रखने का निर्णय लिया है।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें : जेपी मैठाणी/दीपा रावत सोसावयटी फॉर कम्युनिटी इन्वॉल्वमेंट इन डेवलपमेंट (एमएफसीआईडी) जिला चमोली- 266450 (उत्तरांचल) फोन: 01372-266450 ई-मेल: sfeidortpipalkotr@rediffmail.com वेब: www.biotourism-inhimalaya.com
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