रेवा सागर

पृष्ठ भूमि : एक परिदृश्य


कृषि प्रधान देश में कृषि की स्थिति क्या है जानने के लिए एक नजर डालते हैं कृषि से जुड़े कुछ तथ्यों पर –
1. प्रतिवर्ष भारत में लगभग 20 हजार किसान फसल खराब हो जाने और कर्ज नहीं चुका पाने के कारण आत्महत्या कर लेते हैं।
2. एक राष्ट्रीय सैंपल सर्वे के अनुसार 40 प्रतिशत किसान कृषि व्यवसाय को छोड़ना चाहते हैं।
3. भारत में प्रतिवर्ष 7.5 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि अन्य उपयोग के लिए परिवर्तित की जा रही है।
4. पिछले वर्षों में सिंचित क्षेत्रों में वृद्धि नगण्य रही।
5. कृषि के क्षेत्र में 1980 में विकास दर 5 प्रतिशत थी जबकि पिछले पांच वर्षों में यह दर घटकर मात्र 1.17 प्रतिशत रह गई है।
6. प्रति व्यक्ति अनाज का उत्पादन 207 किलोग्राम/प्रति व्यक्ति (1995) से घटकर वर्ष 2006 में 186 किलोग्राम/प्रति व्यक्ति रह गया है।
7. कृषि में निवेश की दर 3 प्रतिशत से घटकर 1.70 प्रतिशत रह गई है।
8. समस्त घरेलू उत्पाद में कृषि का मात्र 19 प्रतिशत योगदान है जबकि 68 प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर है।
9. मध्य प्रदेश में 150 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में फसल उत्पादन में निरंतर कमी आ रही है जिसके कारण किसानों को 10 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर कृषि आय का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
10. सिंचाई के लिए भूमिगत जल के सतत उपयोग के कारण देश के कई हिस्सों में भूमिगत जल स्तर में तेजी से गिरावट दर्ज की जा रही है।
11. म.प्र. में कृषि भूमि में सल्फर की मात्रा में निरंतर कमी और भूमिगत जल में नाइट्रोजन की वृद्धि चिंताजनक है। 12. सतही जल संरचनाओं की कमी के कारण जैवविविधता प्रभावित हो रही है।

उपरोक्त तथ्य सोचने पर मजबूर करते हैं यदि इस दिशा में शीघ्र ही स्थायी समाधान नहीं खोजे गये तो आने वाले समय में कृषि की स्थिति दयनीय होगी और यह परिस्थिति हमारे देश के आर्थिक ढांचे को कमजोर कर देगी।

यदि वास्तव में हमें कृषि स्थिति सुधारना है तो उत्पादकता, गुणवत्ता के साथ-साथ लाभ के गणित पर गंभीरता से विचार करना पड़ेगा। अभी तक कृषि के क्षेत्र में जितने भी प्रयास हुए हैं। उसमें सिर्फ ‘उत्पादन’ को केंद्र में रखा गया है, उत्पादन के साथ-साथ की “निरंतरता और लाभ” को केंद्र में रखकर समग्र एवं समन्वित प्रयासों की कमी उक्त तथ्यों में महसूस की जा सकती है।

समाधान और संभावना


कृषि क्षेत्र के इस राष्ट्रीय परिदृश्य से मालवा की स्थिति इतर नहीं कही जा सकती, मालवांचल के देवास जिले में वर्ष 2006 में अनेक समस्याओं से जूझ रहे किसानों के हित में स्थायी समाधान, नई संभावनाएं तलाशने के लिए तत्कालीन कलेक्टर श्री उमाकांत उमराव ने एक नई अवधारणा को विकसित कर उसे अभियान का रूप देने के लिए एक कारगर रणनीति तैयार की। पानी को कृषि के लिए एक Critical Input मानते हुए जल संरक्षण को पानी के अर्थशास्त्र के रूप में प्रतिपादित किया गया। देवास जिले में हुए इस प्रयोग से यह भी स्पष्ट हुआ कि लोगों ने जल संरक्षण की अवधारणा को पानी की अर्थशास्त्रीय अवधारणा के रूप में जल्दी स्वीकार किया। इस प्रयोग की सफलता को चिंताजनक राष्ट्रीय कृषि परिदृश्य के एक समाधान के रूप में देखा जा सकता है।

नवाचार की आवश्यकता


देवास जिला अपने उपजाऊ काली मिट्टी के लिए जाना जाता है लेकिन पानी की अनुपलब्धता के कारण यहां फसल सघनता मात्र 125 प्रतिशत या उससे कम है। यदि मिट्टी की गुणवत्ता की दृष्टि से इसकी क्षमता देखें तो फसल सघनता 200 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए। रबी की प्रतिशत 25 से 40 प्रतिशत ही रहता है जिले के ग्रामीण अंचल में ज्यादातर किसान ऐसे हैं जिन्होंने पिछले कई वर्षों से रबी की फसल या तो बोई ही नहीं है या नगण्य रूप से बोई है। पश्चिम मध्य प्रदेश में विगत 20 वर्षों में सिंचाई के लिए जल की आपूर्ति अनियंत्रित भूमिगत जल दोहन से की गई है परिणामस्वरूप भूमिगत जल स्तर 700 से 1000 फुट तक नीचे चला गया है। इस अनुक्रम में भूगर्भीय द्रव विज्ञान अध्ययन के अनुसार वर्तमान में जिले के छः में से दो विकासखंडों (देवास एवं सोनकच्छ) की स्थिति चिंतनीय है।

नवाचार : रेवासागर भागीरथ कृषक अभियान


इन चिंताजनक परिस्थितियों में तत्कालीन देवास कलेक्टर श्री उमाकांत उमराव ने पानी बचाओ आंदोलन को एक सामाजिक आंदोलन बनाने के लिए एक अवधारणा विकसित की जिसे समाज ने एक विचार के रूप में स्वीकार किया। इस विचार को नाम दिया गया-रेवासागर, भागीरथ कृषक अभियान।

अवधारणा-एक विचार


कृषि अर्थ व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करना हो तो पानी की Critical Input है। विशेष रूप से भू-जल के बजाय यदि सतही जल स्रोत हेतु पूंजी निवेश किया जाता है तो उत्पादकता एवं लाभ में कई गुना वृद्धि होने के साथ-साथ ज़मीन की गुणवत्ता में भी तेजी से सुधार होगा। विशेष रूप से ज़मीन की जो Biological Life रासायनिक उर्वकों एवं कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से खत्म हो गई है वह पुनर्जीवित हो सकती है। इसके अलावा सतही जल स्रोतों में कृषि के साथ-साथ आजीविका के वैकल्पिक स्रोत भी तलाशे जा सकते हैं।

अवधारणा के उद्देश्य


1. भूमिगत जल का संरक्षण एवं भूमिगत जल की निरंतरता को बनाये रखना।
2. जैव विविधता को बचाये रखना।
3. पर्यावरण संरक्षण।
4. जन सहभागिता से जल संरक्षण
5. कृषि में पानी को एक Critical Input मानते हुए घाटे में जा रही कृषि व्यवस्था को लाभ के सौदे में परिवर्तित करना।
6. कृषि में उत्पादन लागत अनुपात को लाभ परख बनाने के लिए सिंचाई हेतु उपयोग होने वाली विद्युत की खपत को कम करना।
7. सिंचाई के क्षेत्र में बढ़ोतरी करके रबी की सघनता में वृद्धि करना।
8. Biological life का संरक्षण।
9. आजीविका के साधनों में वृद्धि करना।
10. तालाब निर्माण की विलुप्त होती सांस्कृतिक परंपरा का पुनर्स्थापन।

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