शाहजहाँपुर। एक साधारण से पूर्व माध्यमिक विद्यालय की शिक्षिका ने शिक्षण के साथ रोजगार की धारा प्रवाहित कर मिसाल कायम की है। स्कूल में बनाई गई रेशम कीट पालन प्रयोगशाला ने उन्हें उप्र के शाहजहाँपुर जिले ही नहीं, उन्नाव से मेरठ तक रेशम वाली दीदी के रूप में अलग पहचान दे दी। यह पहचान बनाने वाली शिक्षिका हैं पारुल मौर्य।
पारुल ने अपनी लगन और समर्पण से रेशम कीट पालन की ऐसी बेहतर प्रयोगशाला विकसित कि कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक भी यहाँ से उन्नत लार्वा ले जाते हैं। शाहजहाँपुर निवासी रमेश चन्द्र मौर्य की पुत्री पारुल ने विज्ञान विषय से पढ़ाई की। बच्चों को पढ़ाने के प्रति लगाव ने प्रेरित किया और बेसिक शिक्षा विभाग में प्राइमरी अध्यापक बन गईं। लेकिन पारुल ने खुद हासिल की विज्ञान की शिक्षा से मिले ज्ञान को व्यावहारिक तौर पर जीवंत बनाए रखा।
साल 2008 में विज्ञान विषय की शिक्षिका के तौर पर पूर्व माध्यमिक विद्यालय में पदोन्नति मिली। यहीं से वह प्लेटफार्म मिला, जिससे नवाचार और अभिनव प्रयोग की गाड़ी चल पड़ी। कबाड़ और बेकार पड़ी वस्तुओं से बच्चों में विज्ञान की ललक जगाने को स्कूल में ही प्रयोगशाला विकसित की। अपने विद्यार्थियों के बीच रेशम वाली दीदी, लैब वाली मैडम के नाम से पहचानी जाने लगीं।
पारुल को रेशम कीट पालन का विचार 2016 में आया। हल्द्वानी, उत्तराखण्ड में भ्रमण के दौरान पहाड़ पर अरंडी के पत्तों पर पलने वाले रेशम कीट फिलोसेमिया रेसिनि के लार्वा के बारे में उन्हें जानकारी हुई। लार्वा को अपने साथ ले आईं। यहाँ उसी तरह का वातावरण विकसित किया।
डेढ़ साल के समय में अनुकूलन के बाद मिली अनुकूल स्थितियों में प्रजनन से लार्वा की संख्या 450 से अधिक हो चुकी है। 400 से अधिक कोकूल भी तैयार हो चुके हैं।
पारुल ने इस सफलता को स्थानीय किसानों की आय वृद्धि का साधन बनाने के लिये जतन शुरू कर दिया। वे किसानों को प्रेरित करने लगीं। उन्हें प्रयोगशाला में कीट पालन की विधि दिखाई। धीरे-धीरे क्षेत्र के दर्जन से अधिक लोग लघु स्तर पर रेशम कीट पालन से जुड़ चुके हैं।
पारुल कहती हैं कि वे कम लागत पर बेहतर आय अर्जित कर रहे हैं। ढाई एकड़ जमीन से सालाना 10 से 12 लाख रुपए तक की आमदनी होती है। मेरठ कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केन्द्र, गन्ना शोध परिषद के वैज्ञानिक युवा शिक्षिका पारुल मौर्य के नवाचार की तारीफ करते नहीं थकते हैं। वे प्रयोगशाला में भ्रमण करते रहते हैं। जिला प्रशासन, डायट और विज्ञान केन्द्र ने पारुल को नवाचार के लिये सम्मानित भी किया। इतना ही नहीं बेसिक शिक्षा विभाग ने 45 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि भी भेंट की।
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