रियल एस्टेट सेक्टर में एक अनुमान के अनुसार करीब 5 लाख से 10 लाख अभिकर्ता काम करते हैं, विदेशों में ये एजेंट पंजीकृत होते हैं पर भारत में इन असंगठित अभिकर्ताओं को अभी तक किसी नियमन में बाँधा नहीं जा सका था। पंजीकृत अभिकर्ता से काफी हद तक धोखाधड़ी, झूठे दावों पर बिक्री आदि की समस्या से निपटा जा सकेगा, इससे निवेशकों में सेक्टर के प्रति विश्वास बढ़ेगा जिससे भवन निर्माता और अभिकर्ता दोनों को ही फायदा मिलेगा। रियल एस्टेट सेक्टर आजादी के बाद से ही बड़ा अपारदर्शी सेक्टर माना जाता रहा है। ऐसा माना जाता है कि काले धन का सबसे बड़ा निवेश रियल एस्टेट सेक्टर में ही होता है। यह सेक्टर ना केवल लाखों की तादाद में बेनामी सम्पत्तियों की समस्या से जूझ रहा है बल्कि नित नए प्रारम्भ होने वाली भवन निर्माण की परियोजनाओं के खत्म होने की लम्बी प्रक्रिया इस सेक्टर को पीछे की तरफ धकेले हुए थी। परियोजनाओं में विलम्ब, क्षेत्रफल वृद्धि जमीन अधिग्रहण की अपूर्ण प्रक्रिया से कीमतों में वृद्धि, जरूरी सुविधाओं के अभाव, नियमों के पूर्ण ना होने की वजह से बैंक द्वारा ऋण देने से इनकार आदि की समस्याओं के खिलाफ आवंटी यत्र-तत्र प्रदर्शन करते रहते थे। कुल मिलाकर कहें तो इस सेक्टर के नियामक के आने से पहले इसको अनेक विसंगतियों ने घेर रखा था।
आवंटियों को हो रही असुविधा के चलते मई, 2008 में आवास मंत्रालय ने रियल एस्टेट के नियमन हेतु एक प्रारूप तैयार किया, जिसको साल 2011 में राज्यों के आवास मंत्रियों द्वारा केन्द्रीय कानून की शक्ल में लाने का अनुरोध किया गया। इसी वर्ष प्रारूप को कानून मंत्रालय के पास नियम-कानून की बारीकियों पर काम करने के लिये भेज दिया गया। साल 2013 में इसे राज्यसभा में ‘रियल एस्टेट विधेयक 2013’ के रूप में पेश किया गया, जहाँ से उसे स्थायी समिति के पास भेज दिया गया। दिसम्बर 2015 में कुछ संशोधनों के साथ यह रियल एस्टेट विधेयक 2015 के रूप में पुनः राज्यसभा की सेलेक्ट कमेटी और फिर केन्द्रीय कैबिनेट के अनुमोदन हेतु भेज दिया गया। उसके तकरीबन तीन माह के बाद रियल एस्टेट (नियमन एवं विकास) विधेयक (रेरा) को मार्च 2016 में राज्यसभा में पारित कर दिया गया। उसके तुरन्त बाद मार्च 2016 में ही लोकसभा और महामहिम राष्ट्रपति ने भी इसको अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। अप्रैल 2016 में 59 प्रावधानों के साथ रेरा की अधिसूचना जारी कर दी गई। उसके साल भर बाद अप्रैल 2018 में इसके 32 अन्य प्रावधानों को जोड़कर रेरा को 1 मई 2017 से लागू कर दिया गया।
रियल एस्टेट नियमन प्राधिकरण (रेरा) के मूल में जो उद्देश्य हैं उसमें रियल एस्टेट के असंख्य निवेशकों के हितों की रक्षा के साथ-साथ निवेश का ऐसा पारदर्शी माहौल तैयार करना है जिससे मकान-दुकान के निर्माण करने वाले उद्यमी पूँजी निवेश कर सकें। इसके साध ही कोशिश की गई कि कायदे साफ-सुथरे हों, समय सीमा में चीजें तय की जा सकें, पूँजी का विभिन्न गतिविधियों में इस्तेमाल ना हो, ग्राहकों, निवेशकों की समस्याओं का समाधान एक मंच से हो सके आदि आदि। केन्द्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार रेरा की जो भूमिका रखी गई है उसके तहत भवन निर्माण की परियोजनाओं और भवन निर्माण के अभिकर्ताओं (एजेंट) का पंजीकरण, भवन निर्माताओं के लिये बाध्यकारी नियम जिसमें जमीन या भवन का बीमा, जमीन या भवन के स्वामित्व विलेख (टाइटल) की जाँच, परियोजना के विलम्ब होने पर मुआवजा और रेरा आवंटियों के अधिकार एवं जिम्मेदारी आदि नियामक की होगी।
इस केन्द्रीय रेरा के तहत ना केवल नई भवन निर्माण परियोजनाएँ अपितु ऐसी समस्त चल रहीं परियोजनाओं को भी शामिल किये जाने का प्रावधान है जहाँ परियोजना को पूर्णता प्रमाणपत्र नहीं मिला है। भवन निर्माताओं को 1 मई से 31 जुलाई 2017 की 3 महीने की अवधि के दौरान अपनी परियोजनाएँ पंजीकृत करवानी थी। इसके लिये केन्द्र ने सभी 29 राज्यों से रेरा को 31 जुलाई 2017 तक लागू करने का निवेदन किया जिसके बाद करीब 15 राज्यों और सभी केन्द्र शासित प्रदेशों ने इसको 31 जुलाई तक लागू कर दिया जबकि 14 राज्य इसको लागू कर पाने में असफल रहे। हालांकि जिन 14 राज्यों में यह लागू नहीं हो पाया है उनमें से भी अधिकतर राज्य इसकी अधिसूचना जारी कर चुके हैं। रेरा को जिन 15 राज्यों ने लागू भी किया है उनमें केन्द्रीय रेरा कानूनों को थोड़ा हल्का करके पुनर्व्याख्यायित किये जाने की आशंका नजर आ रही है।
इसकी प्रक्रिया को बेहद ही सामान्य किया गया है, रेरा के तहत भवन निर्माता अपने दस्तावेज प्राधिकरण के पास जमा करवाकर अपनी परियोजना को पंजीकृत करवाएँगे। इस पंजीकरण के लिये सभी राज्यों में अन्तिम तारीख 31 जुलाई 2017 तय की गई थी, इस दौरान करीब 8 हजार से ज्यादा परियोजनाओं का पंजीकरण निवेदन रेरा की राज्य इकाइयों को प्राप्त हो चुका है। गौरतलब है कि जो परियोजनाएँ पंजीकृत नहीं होंगी या जिस पर ब्याज या जुर्मान या मुआवजा आदि के विवाद तैयार होंगे ऐसी स्थिति में रेरा के फैसलों पर न्यायिक समीक्षा केवल प्रथम श्रेणी के न्यायिक अधिकारी द्वारा ही की जा सकेगी।
रेरा के तहत 500 वर्गमीटर से ऊपर समस्त भवन निर्माण योजनाओं का नियमन किया जाएगा जिसमें भवन निर्माताओं को आवंटियों से प्राप्त भुगतान का 70 फीसदी पैसा अलग बैंक खाते में रखना होगा, जहाँ पर प्रोजेक्ट निर्माणाधीन हैं और निर्माण या विकास पर जहाँ खर्च किया जा चुका है वहाँ बची हुई भुगतान की राशि का 70 फीसद अलग बैंक खाते में रखना होगा। रेरा के तहत यह प्रावधान किया गया है कि भवन निर्माता भवन अथवा जमीन का सबसे पहले बीमा करवाएँगे। बीमा करने वाली कम्पनियाँ जाहिर है कि माप जोख, जमीन के टाइटल आदि की अच्छे से तफ्तीश करके ही बीमा करेंगी इस प्रकार रेरा के अधिकारी भवन निर्माता द्वारा जमीन के दस्तावेजों का पुनर्निरीक्षण की प्रक्रिया से बच जाएँगे। रेरा के प्रावधानों के तहत यह भी सुनिश्चित किया गया है कि सारे नक्शे आर्किटेक्ट द्वारा अनुलेखित किया जाये, छोटे-से-छोटे बदलाव को भी आर्किटेक्ट के द्वारा सत्यापित करने पर ही भवन निर्माताओं की परियोजनाएँ पंजीकृत की जाएँगी। इस तरह रेरा के तहत भवन निर्माण की परियोजनाओं के लिये भवन निर्माताओं, इंजीनियरों एवं आर्किटेक्टों को पूर्ण रूप से जिम्मेवार बनाया गया है।
रेरा के तहत आवंटियों को कई सारे अधिकार मिल जाएँगे, उन्हें परियोजना की चरणबद्ध, समयबद्ध प्रगति की सूचना राज्य की रेरा इकाइयों की वेबसाइट अथवा निर्माता से मिल जाएगी, उसी प्रकार परियोजना के आधिकारिक दस्तावेज जिसमें स्वीकृत नक्शा एवं स्वीकृत योजना, पानी-बिजली-सड़क-सीवर की योजना के विषय में जानकारी मिल सकेगी। नियम शर्तों के अनुरूप काम ना होने की वजह से कोई अपनी राशि वापस चाहता होगा, तो उसे ब्याज सहित उसकी राशि लौटाने का प्रावधान भी इस नियामक के तहत दिया जाएगा। हालांकि इसमें एक-एक समस्या हो सकती है, मान लीजिए जमीन या अपार्टमेंट के दाम गिर जाएँ और निवेशक अपना निवेश वापस माँगकर किसी अन्य सस्ती हो चुकी परियोजना में लगाना चाहे तो यह इस नियम का दुरुपयोग होगा, रिफंड के इस प्रावधान पर बेहद ध्यान से चलना होगा। इन सब अधिकारों के बाद आवंटियों की कुछ जिम्मेवारियाँ भी तय की गई हैं, जिसमें समय-समय पर भुगतान के अलावा पूर्णता प्रमाण-पत्र के प्राप्त होने के 2 महीने के अन्दर उन्हें सम्पत्ति का कब्जा लेकर उसे जल्द-से-जल्द हस्तान्तरण विलेख पंजीकृत कराना होगा, उन्हें अन्य आवंटियों के साथ मिलकर एक संस्था या मण्डली या ऐसी ही कोई समकक्ष समिति बनाकर भवन के सार्वजनिक क्षेत्र, जरूरी दस्तावेज व अन्य सुविधाओं के प्रबन्धन की व्यवस्था आदि करनी होगी।
रेरा के तहत रियल स्टेट अभिकर्ताओं का न केवल पंजीकरण किये जाने का प्रावधान है वरन उन्हें बिना पंजीकृत जमीन जायदाद की खरीद बेचने के काम को नहीं करने का भी स्पष्ट निर्देश हैं। उनसे यह भी अपेक्षा इस कानून के तहत है कि वे जमीन इमारतों के साथ मिलने वाली सुविधाओं या सेवाओं का गलत आख्यान नहीं करेंगे। रियल एस्टेट सेक्टर में एक अनुमान के अनुसार करीब 5 लाख से 10 लाख अभिकर्ता काम करते हैं, विदेशों में यह एजेंट पंजीकृत होते हैं पर भारत में इन असंगठित अभिकर्ताओं को अभी तक किसी नियमन में बाँधा नहीं जा सका था। पंजीकृत अभिकर्ता से काफी हद तक धोखाधड़ी, झूठे दावों पर बिक्री आदि की समस्या से निपटा जा सकेगा, इससे निवेशकों में सेक्टर के प्रति विश्वास बढ़ेगा जिससे भवन निर्माता और अभिकर्ता दोनों को ही फायदा मिलेगा। कुछ मानक और मूलभूत जानकारियों के साथ ही भविष्य में अभिकर्ताओं का पंजीकरण हो सकेगा यह बिल्कुल आईआरडीए द्वारा बीमा अभिकर्ताओं जैसा ही हो जाएगा।
31 जुलाई तक के आँकड़ों के अनुसार अभिकर्ताओं ने पंजीयन को गम्भीरता से नहीं लिया है, लाखों की संख्या वाले असंगठित अभिकर्ताओं में से मात्र 70 अभिकर्ताओं ने ही अभी तक पंजीयन कराया है। वैसे अभिकर्ताओं को इससे समस्या नहीं हो, ऐसा भी नहीं है, ज्यादातर अभिकर्ता बिक्री का 1 से 2 प्रतिशत मेहनताना पाते हैं जबकि किसी प्रकार के जोखिम पर उन पर कड़ा हर्जाना लगाने का प्रावधान है। अभिकर्ताओं को अभी स्पष्ट पंजीयन की जानकारी भी नहीं है मगर उनके व्यवसाय को वे रोक नहीं सकते ऐसे में अभिकर्ताओं तक पहुँचने के लिये सरकार को विशेष प्रयत्न करने होंगे।
ऐसा नहीं है कि रेरा के विषय में सब पक्षों में सहमति है, मुम्बई के भवन निर्माताओं ने इसके कुछ प्रावधानों के खिलाफ कोर्ट का रुख किया है। यह भवन निर्माता मौजूदा भवन निर्माण परियोजनाओं के पंजीयन और उन पर रेरा के तहत लागू किये जा रहे नए प्रावधानों के खिलाफ हैं। उनके अनुसार 95 प्रतिशत तक पूर्ण हो चुकी भवन निर्माण परियोजना में नई शर्तें लगाना पूर्ववर्ती किये गए बिक्री समझौते का हनन है। भवन निर्माता इसमें आपराधिक प्रावधान लगाने के भी खिलाफ हैं, साथ ही हर परियोजना के 70 फीसद भुगतान को रेरा की निगरानी वाले खाते में जमा करने के प्रावधान को भी अव्यावहारिक मानते हैं। वे कभी-कभी होने वाले विलम्ब को इसमें शामिल नहीं करने के भी खिलाफ हैं, कई बार मजदूर या माल की कमी या अन्य कारणों से भी परियोजना प्रभावित होती है जहाँ भवन निर्माता का वश नहीं होता परन्तु रेरा सिर्फ एक वर्ष का अतिरिक्त समय सिर्फ-और-सिर्फ फोर्स मेजियोर (प्राकृतिक आपदा, न्यायिक प्रतिबन्ध, सरकारी रोक आदि) की स्थिति में ही देता है। भवन निर्माताओं को विलम्ब की स्थिति में उपभोक्ताओं, निवेशकों को भारतीय स्टेट बैंक की ऋण की देने की सबसे कम ब्याज दर में 2 प्रतिशत अतिरिक्त ब्याज जोड़कर ब्याज के रूप में उपभोक्ता को 45 दिन के भीतर देना होगा।
जहाँ एक तरफ रेरा और जीएसटी की वजह से रियल एस्टेट असंगठित क्षेत्र से संगठित होने की तरफ कदम बढ़ाएगा वहीं पहले से ही मन्दी झेल रहे रियल एस्टेट सेक्टर में जीएसटी की वजह से सर्विस टैक्स 5 से 7 प्रतिशत की दर से बढ़कर 12 प्रतिशत होने की वजह से जमीन या भवनों की कीमतों में इजाफा हो जाएगा।
भवन निर्माण में आवश्यक वस्तुएँ जैसे सीमेंट पेंट, प्लास्टर, टाइल्स, वाल फिटिंग सब पर टैक्स बढ़कर 28 प्रतिशत हो गए हैं तो वहीं ईंटों, सरियों पर टैक्स आंशिक रूप से कम हुआ है इसके साथ ही माल ढुलाई में भी सर्विस टैक्स कम हुआ है जिसके परिणाम दूरगामी होंगे। रियल एस्टेट सेक्टर में टैक्स बढ़ोत्तरी और रेरा की शर्तों पर होने वाले अतिरिक्त खर्च को भी अब आवंटियों को ही देना पड़ेगा जिसका निवेशकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। रेरा के आने पर अन्य पड़ने वाले असर में से एक यह भी हैं कि छोटे भवन निर्माताओं का आपस में गठजोड़ या अधिग्रहण होना शुरू हो गया है, इसी प्रकार कुछ छोटे भवन निर्माताओं ने बड़े भवन निर्माताओं को अपनी परियोजनाओं को सौंपने का विचार किया है। इससे इस सेक्टर में एकत्रीकरण की सम्भावनाएँ बढ़ गई हैं जिससे आने वाले दिनों में नियमन और सुचारू ढंग से हो पाएगा।
कुल मिलाकर रियल एस्टेट सेक्टर में रेरा की वजह से अच्छे बदलाव होंगे पर कुछ बातों पर रेरा अन्य भी स्पष्ट नहीं है जिन पर आने वाले दिनों में काम किया जाना बाकी है। आवंटियों की सबसे महत्त्वपूर्ण शिकायत रहती है कि बिक्री अनुबन्ध के दस्तावेज पूरी तरह से भवन निर्माता अपने पक्ष में रखते हैं, रेरा के प्रावधान इस पर स्पष्ट नहीं है। रेरा के तहत भवन निर्माता छोटे-मोटे बदलाव कर सकते हैं, इसमें ‘छोटे-मोटे’ को परिभाषित करने में दिक्कत आएगी।
इसी प्रकार 5 साल तक भवन में कोई कमी ती हैं तो आवंटी इसकी शिकायत कर सकता है पर ऐसे में यह कौन तय करेगा कि शिकायतकर्ता के रख-रखाव की कमी से समस्या तैयार हुई हैं या निर्माण की प्रक्रिया में दोष की वजह से समस्या तैयार हुई है? जमीन या भवन को बेचने की गरज से उसमें निवेश करने वाला निवेशक मन्दी के समय चाहता है कि वह पंजीयन से बच जाये क्योंकि पहला टाइटिल ट्रांसफर मुफ्त या कम दर वाला होता है। इसके चलते वो किसी ग्राहक को बेचकर मुनाफा कमाना चाहे तो ऐसे में भवन निर्माता कैसे उस निवेशक पर पूर्णता प्रमाण-पत्र मिलने के मात्र 2 महीनों में जमीन-जायदाद का पंजीयन करने के लिये बाध्य करेगा? अगर भवन निर्माता से विज्ञापन के माध्यमों अथवा अन्य संचार सेवाओं के जरिए भेजे गए किसी विषय पर त्रुटिपूर्ण जानकारी चली गई हो तो भवन निर्मता कैसे उस त्रुटि पर विवाद या पेनल्टी से बच पाएँगे? ऐसे अनेक प्रश्न हैं जो आने वाले दिनों में राज्यों की रेरा इकाइयों को देखने-सुनने को मिलेंगे इन सबके बावजूद रेरा का आगमन रियल एस्टेट के लिये शुभकर होगा ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
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Post By: Editorial Team