रेनवाटर हार्वेस्टिंग से बदलती गांव की तस्वीर

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छत्तीसगढ़ के कोहका गांव के प्रत्येक घर में रेनवाटर हार्वेस्टिंग लगाने का कार्य सफलतापूर्वक गांव के ही पूर्व सरपंच श्री ‘शिवलाल भास्कर’ जी ने किया है। रेनवाटर हार्वेस्टिंग से गांव की तस्वीर ही बदल गई है। इस कार्य हेतु उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है। वे राष्ट्रीय लायंस क्लब, संपूर्ण साक्षरता अभियान, निशक्त जन, पोलियो, सहेली-हरेली योजना से भी जुड़े हुए हैं। जल के अत्यधिक दोहन से दिन प्रतिदिन जल संकट बढ़ता जा रहा है, और भूजल स्तर गिरता जा रहा है। इस स्तर को बनाए रखने में कृत्रिम तरीकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत में तो प्राचीनकाल से ही जल-संग्रह की परंपरा रही है जिसका उल्लेख पुराणों में तालाबों और कुओं के रूप में मौजूद है। विश्व विरासत की सूची में शामिल जार्डन के पेट्रा में ईसा पूर्व सातवीं सदी में बनाए गए ऐसे हौज खुदाई में प्राप्त हुए हैं, जिनका प्रयोग वर्षा के जल को इकट्ठा करने में किया जाता था। इसी से मिलता-जुलता वर्तमान में “रेनवाटर हार्वेस्टिंग” है जिससे हम भूमि जल का प्रयोग भी करते रहे और वह समाप्त भी न हो, इसके लिए आवश्यक है कि वर्षा का जल जमीन के अंदर पहुंचाया जाए, इस हेतु कई राज्यों की सरकारों ने रेनवाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य कर दिया है।

.बिहार, पंजाब, दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ में नई इमारतों के निर्माण में कानून रेनवाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य बना दिया गया है। लेकिन इसे छत्तीसगढ़ के कोहका गांव के प्रत्येक घर में लगाने का सफलतापूर्वक कार्य गांव के ही पूर्व सरपंच “शिवलाल भास्कर” जी ने किया है। रेनवाटर हार्वेस्टिंग से गांव की तस्वीर ही बदल गई है, इस कार्य हेतु उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है। वे राष्ट्रीय लायंस क्लब, संपूर्ण साक्षरता अभियान निशक्त जन, पोलियो, सहेली-हरेली योजना से भी जुड़े हुए हैं।

छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव जिले के डोंगरगांव तहसील से लगभग छह किमी पर कोहका गांव है, जिसकी जनसंख्या लगभग 1000 (एक हजार) है और 185 घर हैं, जिसमें से 80 प्रतिशत घर खपरे के हैं। इस गांव में पिछड़े वर्ग की बहुलता है एवं अनुसूचित जाति और जनजाति क्रमशः 15 प्रतिशत एवं एक प्रतिशत है।

सन् 2008 में कोहका गांव के डॉ. शिवलाल भास्कर जी ने वर्षा के जल को बहने से रोकने के लिए अपने गांव के लगभग प्रत्येक खपरों वाले घरों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग को लगवाया, इसके लिए उन्होंने (यूएनडीपी) से एक लाख रुपए की सरकारी सहायता राशि भी प्राप्त की। इस राशि से इन्होंने गांव के 175 घरों में रेनवाटर हार्वेंस्टिंग को लगाने का कार्य पूर्ण किया जिसका खर्च उस समय लगभग 700 रुपए आया। रेनवाटर हार्वेस्टिंग को लगाने के लिए खपरों के घरों का ही चयन किया गया था, जिसमें छत के ओरछे से लगभग एक तीन फीट चौड़ी और डेढ़ मीटर लंबी टिन की पटरी लगाई गई है, जिससे वर्षा का पानी इस पटरी से इकट्ठा होकर एक मोटी प्लास्टिक पाईप के माध्यम से जमीन के अंदर चला जाता है, जमीन में लगभग 5 फीट लंबाई एवं चौड़ाई में एक गड्ढ़ा खोदा गया है जिसमें मोटे एवं बारीक कंकड़-पत्थर तथा ऊपर रेत डाली गई है जिससे पानी छनता हुआ जमीन के अंदर पहुंचता है।

.गांव में कच्ची सड़कों पर बहते हुए वर्षा के पानी को संग्रहित करने के लिए एक तालाब है जो रोजगार गारंटी योजना के तहत बनवाया गया है; इस तालाब में पूरे गांव का पानी इकट्ठा हो जाता है जिससे गांव में भूजल स्तर में काफी सुधार हुआ है और वह तालाब का पानी मानव के उपयोग के साथ ही साथ पशुओं और पेड़-पौधों के लिए भी उपयोगी साबित हो रहा है जिससे आसपास हरियाली भी बनी हुई है।

इस गांव में पानी को बचाने हेतु हर संभव प्रयास किया गया है, हैंडपंप के पास “सोख्ता” का निर्माण किया गया है, और एक सीमेंट के पर्दारूपी अहाते का निर्माण भी किया गया है जिसका उपयोग महिलाएं स्नान हेतु कर सकती हैं और व्यर्थ पानी भूमि के अंदर न चला जाए, इस हेतु भी उनके द्वारा यूएनडीपी का सहयोग लिया गया है। इन सब प्रयासों का परिणाम ही है कि गांव में भूजल स्तर में अत्यधिक सुधार हुआ है और किसानों को खेती हेतु हर समय पानी उपलब्ध हो रहा है।

गांव में लगभग 100 एकड़ की खेती होती है जिसमें 40 मोटर पंप एवं 30 घरेलू पंप हैं जिसका प्रयोग सिंचाई हेतु किया जाता है। किसानों को रबी एवं खरीफ दोनों फसलों के लिए पानी उपलब्ध होता है। और ग्रीष्म ऋतु में भी “धान” की खेती की जाती है। गर्मी में धान की खेती के लिए पानी की अत्यधिक आवश्यकता होती है जोकि इन्हें सिंचाई के माध्यम से प्राप्त हो जाता है।

हैंडबोरिंग के माध्यम से पानी प्राप्त होने के कारण ही लगभग सभी घरों में बाड़ी लगाने का प्रचलन है जिसमें साल भर मौसमी सब्जियां लगाई जाती हैं एवं फलों के बगीचे भी उपलब्ध हैं जिससे किसानों को इसके विक्रय से आय प्राप्त होने लगी है।

पानी की उपलब्धता से ही इस गांव में लघु उद्योगों को लगाना संभव हो सका है। गांव में मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं जिसमें पानी भरने के मटके से लेकर भोजन बनाने वाले बर्तन तक शामिल हैं जोकि आसपास के बाजारों में विक्रय हेतु पहुंचते हैं। इस कार्य में महिलाओं का योगदान सराहनीय है, महिलाओं में आत्मनिर्भरता बढ़ी है। बर्तन के अलावा ईंट बनाने का कार्य भी किया जाता है, जिसमें गांव के लगभग 30 से 40 परिवार शामिल हैं, जिन्हें इस लघु उद्योग में रोजगार प्राप्त हो रहा है।

.भूजल स्तर में सुधार से हर्षित होते हुए भास्कर जी का विश्वास है कि अब इस गांव में पानी का स्तर इतना सुधर चुका है कि कभी भी अकाल की स्थिति निर्मित नहीं होगी तथा गांव खुशहाल रहेगा। लोगों को गांव में कृषि, रोजगार उपलब्ध हो जाने के कारण पलायन भी नहीं होगा। अब गांव आत्मनिर्भर हो जाता है।

पानी की महत्ता और उसे बचाने हेतु किए गए प्रयासों की सफलता को आसपास के गांवों में भी ग्रामीण जनों को बताने का उनके द्वारा प्रयास जारी है।

(लेखक डॉ. बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर महाविद्यालय, डोंगरगांव, जिला- राजनांदगांव (छत्तीसगढ़) में सहायक प्राध्यापक (अर्थशास्त्र) हैं), ई-मेल : mmilan1562@yahoo.in
 

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