रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए होगी कड़ाई

शहर में अव्यवस्थित रूप से चल रहे उद्योगों चांदी, टोंटी, निकिल, साड़ी, प्रिंटिंग आदि इकाइयों के रसायन तो भूमिगत जल को खराब कर रहे हैं। फसलों में अंधाधुंध प्रयोग होने वाला पेस्टीसाइड भूमिगत जल को जहरीला बना रहा है।

मथुरा (DJ): गिरते भू-गर्भ जलस्तर को थामने के लिए सरकारी कोशिश शुरू हो गई है। मथुरा- वृंदावन विकास प्राधिकरण बड़े भवनों के निर्माण के लिये मानचित्र तभी स्वीकृत करेंगे, जब रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिक्योरिटी मनी जमा करा देंगे।

जल संरक्षण के उपायों की पहल की दिशा में विप्रा के प्रयास को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। हालांकि रेन वाटर हार्वेस्टिंग के बाद संबंधित मकानदार को विप्रा अभियंताओं की रिपोर्ट के बाद जमा धनराशि लौटा दी जायेगी। धार्मिक नगरी में औसत वार्षिक वर्षा करीब 800 मिमी होती है। इसके बाद भी जनपद में नौहझील ब्लॉक डार्क जोन या क्रिटिकल श्रेणी में शामिल है। अन्य नौ ब्लॉकों में मथुरा, छाता, मांट, राया एवं बलदेव ब्लॉक सेमी क्रिटिकल श्रेणी तथा बाकी फरह, गोवर्धन, नंदगांव एवं चौमुंहा ब्लॉक सामान्य श्रेणी के बताये गये हैं। भू-गर्भ जल विभाग के मुताबिक किसी भी जिले में ब्लॉकों की श्रेणी उनमें कृषि एवं अन्य कार्यो के लिए दोहित भू-गर्भ जल तथा रेन वाटर हार्वेस्टिंग या वाटर रिचार्जिंग के माध्यमों से जमीन के अंदर डाले जाने वाले पानी के प्रतिशत पर निर्भर करती है।

नौहझील ब्लाक में भू-गर्भ जलस्तर बढ़ाने के उद्देश्य से विद्युत निगम अफसरों ने यहां नलकूप का कनेक्शन जारी करने पर पिछले साल से ही प्रतिबंध लगा रखा है। अब खास बात यह कि इस दिशा में अब मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण भी पहल कर रहा है। इसके लिये रेन वाटर हार्वेस्टिंग के प्रावधान को कड़ाई से पालन करने का निर्णय लिया गया है। मुख्य अभियंता राकेश भाई के अनुसार, तीन सौ वर्ग गज या इससे अधिक के भू-खंड पर मकान बनवाने वालों से नक्शा स्वीकृति की प्रक्रिया के दौरान ही कुछ धनराशि बतौर सिक्योरिटी मनी जमा करा ली जायेगी। शासन स्तर से मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण कर्मियों को इस साल कम से कम तीन सरकारी भवनों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग का निर्माण कराने का लक्ष्य मिला है। मुख्य अभियंता के अनुसार, विप्रा के अभियंताओं को उनके क्षेत्रों में स्थित कुंड आदि में रेन वाटर हार्वेस्टिंग का निर्माण कराने का भी लक्ष्य दिया जाता है।

ग्रामीण क्षेत्र में मनरेगा के तहत बनाए जाने वाले तालाबों में प्रशासन ने रुचि लेना शुरू कर दिया है। प्रशासन का मानना है कि जल संरक्षण की दिशा में तालाब के अलावा अन्य माध्यमों से भी इस वर्ष जल संचयन के प्रयास किए जाएंगे। इस कार्य में ग्रामीणों की भी मदद ली जाएगी।
 

ब्लॉक और उनमें भू-गर्भ जल स्तर की स्थिति


मथुरा-30 मी.
फरह- 5 से 15 मी.
गोवर्धन- 4 से 7 मी.
नंदगांव- 4 से 7 मी.
छाता- 4 से 5 मी.
चौमुंहा- 5 से 7 मी.
नौहझील-12 से 25 मी.
मांट-आठ से 17 मी.
राया-चार से 14 मी.
बलदेव-35 मी.

 

 

पानी में रसायन की मात्रा


मथुरा (DJ)। गोकुल बैराज बनने के बाद पिछले करीब एक दशक से भूमिगत जल की रिचार्जिग प्रभावित हुई है तो दूसरी ओर यमुना के पानी में पाए जाने वाले केमिकल बैराज के जरिए पेयजल में घुलकर लोगों के स्वास्थ्य को खराब कर रहे हैं। यही स्थिति भूमिगत जल की है। शहर में कई स्थानों पर लाल रंग का पानी निकल चुका है तो लगभग हर एरिया में पानी खारा होता जा रहा है। टीडीएस का स्तर ही दो हजार से लेकर 35 सौ तक पहुंच चुका है। शहर में अव्यवस्थित रूप से चल रहे उद्योगों चांदी, टोंटी, निकिल, साड़ी, प्रिंटिंग आदि इकाइयों के रसायन तो भूमिगत जल को खराब कर रहे हैं। फसलों में अंधाधुंध प्रयोग होने वाला पेस्टीसाइड भूमिगत जल को जहरीला बना रहा है। ब्रज लाइफ लाइन ने यमुना जल की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट भी प्राप्त की है, जिसमें आंकलन किया गया है कि हैवी मेटल्स सर्वाधिक मथुरा-आगरा के पानी पाए जा रहे हैं।

इनमें लैड, क्रोमियम, कैडमियम, आर्सेनिक, अल्फा, बीटा व गामा आइसोमर्स, एल्कली ग्रुप के क्षारीय तत्व समेत बैंजीडिन, बेंजो नाइट्रेट, बायो फिनाइल, क्लोरो फिनाइल, क्लोरो ईथेन एसिड आदि तमाम केमिकल भूमिगत जल में घुलनशील तत्व के रूप में पाए जा रहे हैं।

जल प्रदूषण की इतनी भयावह स्थिति होने के बावजूद न तो पालिका के स्तर पर मानकों के अनुसार पेयजल वितरण हो रहा है और न ही जल निगम जल शोधन में मानक मेंटेन कर रहा है। यमुना कार्ययोजना मथुरा-वृंदावन में लागू होने के बावजूद उद्योगों से निकलने वाले रासायनिक कचरे पर क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कोई नियंत्रण नहीं लगा सका है।

 

 

 

 

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