रेगिस्तान क्या हैं?

”रेगिस्तान का अर्थ ऐसी दृश्यावली प्रस्तुत करता है जहां रेत के आधारहीन गुबार एक ओर से दूसरी ओर उड़ते व लुढ़कते रहते हैं और जहां का वातावरण शुष्क होता है और भीषण गर्मी होती है। उपयुक्त स्थितियां अनेक स्थानों पर हो सकती हैं किंतु संसार के रेगिस्तानों में विभिन्नता होती है जैसे कि रेगिस्तान में कहीं ऊंची समतल भूमि पर चट्टानों के दृश्य तो कहीं पर नमक की झीलों की भरमार है।“ ‘अर्थ’, जेम्स एफ लुर, डोर्लिंग किंडरस्ले लि. (2003)

वैसे तो रेगिस्तान से हम सभी परिचित हैं किंतु वैज्ञानिक रूप से इसे परिभाषित करना आसान नहीं है। इसका कारण यह है कि वैज्ञानिकों ने भी इसकी अनेक परिभाषाएं प्रस्तुत की हैं। रेगिस्तान शब्द स्थलाकृति की विभिन्न विविधिताओं को समेटे हुए है। यहां हम पर्यावरण की विभिन्न स्थितियों को देख सकते हैं।

भुगोलशास्त्र में रेगिस्तान को ऐसी स्थलाकृति के रूप में परिभाषित किया गया है जहां वर्षा (बौछार, हिम, बर्फ आदि रूपों में) बहुत कम लगभग 250 मि.मी. होती हो। एक मान्य परिभाषा के अनुसार रेगिस्तान एक बंजर, शुष्क क्षेत्र है जहां वनस्पति नहीं के बराबर होती है, यहां केवल वही पौधे पनप सकते हैं जिनमें जल संचय करने की अथवा धरती के बहुत नीचे से जल प्राप्त करने की अदभुत क्षमता हो। मिट्टी की पतली चादर जो वायु के तीव्र वेग से पलटती रहती है और जिसमें कि खाद-मिट्टी (हयूमस) का अभाव हो, वह उपजाऊ नहीं होती। इन क्षेत्रों में वाष्पीकरण की क्रिया से वाष्पित जल, वर्षा से प्राप्त कुल जल से अधिक हो जाता है, तथा यहां वर्षा बहुत कम और कहीं-कहीं ही हो पाती है। अंटार्कटिका क्षेत्र को छोड़कर अन्य स्थानों पर सूखे की अवधि एक साल या अधिक भी हो सकती है। इस क्षेत्र में बेहद शुष्क व गर्म स्थिति किसी भी पैदावार के लिए उपयुक्त नहीं होती है।
 

गर्म रेगिस्तान व ठंडे रेगिस्तान


विश्व में जितने प्रकार के रेगिस्तान हैं लगभग उतने ही प्रकार की उनकी वर्गीकरण पद्धतियां प्रचलित हैं। रेगिस्तान ठंडे व गर्म होते हैं।नेवाडा के लुनर क्रेटर के समीप स्थित ग्रेट बेसिन नामक ठंडा रेगिस्ताननेवाडा के लुनर क्रेटर के समीप स्थित ग्रेट बेसिन नामक ठंडा रेगिस्तान धरती पर तरह-तरह के गर्म व ठंडे रेगिस्तान हैं। जिस क्षेत्र का औसत तापमान तीस डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है, उन्हें गर्म रेगिस्तान कहा जाता है। प्रायः अध्रुवीय क्षेत्रों के रेगिस्तान गर्म होते हैं। अध्रुवीय रेगिस्तानों में पानी बहुत ही कम होता है इसलिए ये क्षेत्र गर्म होते हैं।

प्रायः शुष्क और अत्यधिक शुष्क भूमि वास्तव में रेगिस्तान को और अर्धशुष्क भूमि घास के मैदानों को दर्शाती हैं।

जिन क्षेत्रों में शीत ऋतु का औसत तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से कम होता है वे इलाके ठंडे रेगिस्तान या शीत रेगिस्तान कहलाते हैं। ध्रुवीय क्षेत्र के रेगिस्तान ठंडे होते हैं तथा वर्ष भर बर्फ से ढके रहते हैं। यहां वर्षा नगण्य होती है तथा धरती की सतह पर सदैव बर्फ की चादर सी बिछी रहती है। जिन क्षेत्रों में जमाव बिंदु (फ्रीजिंग) एक विशेष मौसम में ही होता है, उन ठंडे रेगिस्तानों को ‘टुंड्रा’ कहते हैं। जहां पूरे वर्ष तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से कम रहता है, ऐसे स्थान सदैव बर्फ आच्छादित रहते हैं। ध्रुवीय प्रदेश के अलावा अन्य क्षेत्रों में जल की उपस्थिति बहुत कम होने के कारण रेगिस्तान गर्म होते हैं।

 

 

रेगिस्तान में बारिश


प्रायः रेगिस्तान का निर्धारण वार्षिक वर्षा की मात्रा, वर्षा के कुल दिनों, तापमान, नमी आदि कारकों के द्वारा किया जाता है। इस संबंध में सन् 1953 में यूनेस्को के लिए पेवरिल मीग्स द्वारा किया गया वर्गीकरण लगभग सर्वमान्य है। उन्होंने वार्षिक वर्षा के आधार पर विश्व के रेगिस्तानों को 3 विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया है।

1. अति शुष्क भूमि जहां लगातार 12 महीनों तक वर्षा न होती हो तथा कुल वार्षिक वर्षा का औसत 25 मि.मी. से कम हो।

2. शुष्क भूमि जहां पर वर्षा 250 मि.मी. प्रति वर्ष से कम हो।

3. अर्धशुष्क भूमि जहां पर औसत वार्षिक वर्षा 250 से 500 मि.मी. से कम हो।

फिर भी केवल वर्षा की कमी ही किसी क्षेत्र को रेगिस्तान के रूप में निर्धारित नहीं कर सकती है। उदाहरण के लिए फोनिक्स व एरीजोना क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा का स्तर 250 मि.मी. से कम होता है लेकिन उन क्षेत्रों को रेगिस्तान की मान्यता प्राप्त है। दूसरी ओर अलास्का ब्रोक रेंज के उत्तरी ढलान, में भी वार्षिक वर्षा का स्तर भी 250 मि.मी. से कम होता है, परंतु इन क्षेत्रों को रेगिस्तान नहीं माना जाता है।

 

 

 

 

कोप्पेन जलवायु वर्गीकरण प्रणाली और रेगिस्तान


कोप्पेन जलवायु वर्गीकरण प्रणाली विश्व की सामान्य जलवायु परिस्थितियों को दर्शाती है। इस प्रणाली को जर्मन जलवायु विज्ञानी ब्लादीमीर कोप्पेन (1846-1940) ने विकसित किया था। उन्होंने इस प्रणाली को सन् 1928 में उनके विद्यार्थी रूडोल्फ गाइजर के साथ सुव्यस्थित मानचित्र द्वारा प्रस्तुत किया। कोप्पेन तंत्र द्वारा जलवायु के वर्गीकरण में रेगिस्तान को वनस्पति और जीवों के संदर्भ में परिभाषित किया गया है इसके अनुसार रेगिस्तान में वाष्पीकरण द्वारा जल की हानि कुल वर्षा से अधिक होती है।

रेगिस्तान का वर्गीकरण तापमान को मापदंड मानकर भी किया जाता है। जिसमें 300 सेल्सियस औसत तापमान वाले क्षेत्र गर्म रेगिस्तान तथा शून्य डिग्री सेल्सियस से कम तापमान वाले क्षेत्र ठंडे रेगिस्तान के रूप में वर्गीक्त किए गए हैं। एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी के कुल रेगिस्तानी क्षेत्र का 43 प्रतिशत हिस्सा गर्म रेगिस्तान तथा 24 प्रतिशत हिस्सा ठंडे रेगिस्तान के अंतर्गत आता है।

 

 

 

 

रेगिस्तान का मौसम और भौगोलिक वितरण


भूमंडलीय स्थिति तथा मौसम के प्रभाव के आधार पर भी रेगिस्तान को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है:
1. व्यापारिक पवन (ट्रेड विंड) रेगिस्तान
2. मध्य अक्षांश (मिड लेटीट्यूड) रेगिस्तान
3. वर्षावृष्टि (रेन शैडो) रेगिस्तान
4. तटीय रेगिस्तान
5. मानसूनी रेगिस्तान
6. ध्रुवीय रेगिस्तान

 

 

 

 

रेगिस्तान और मुख्य स्थलाकृति


रेगिस्तानी भूमि को किसी विशेष रेगिस्तान प्रारूप के आधार पर भी वर्गीकृत किया जाता है - सामान्यतः इस वर्गीकरण के अनुसार रेगिस्तान 6 प्रकार के होते हैं।

1. पर्वतीय और द्रोणी (बेसिन) रेगिस्तान
2. शैली (हैमाडा) रेगिस्तान - जो पठार जैसी स्थलाकृति रखता है
3. रेग्स - चट्टानी क्षेत्र
4. अर्गस - जो रेत के अथाह समुद्र से निर्मित होते हैं
5. अंतरापर्वतीय द्रोणियां (इंटरमाउंटेन बेसिन)
6. उत्खात भूमि (बैडलेंड)

 

 

 

 

पर्वत और द्रोणी रेगिस्तान


पर्वतीय रेगिस्तान बहुत शुष्क होने के साथ ऊंचाई पर स्थित होते हैं। इनके महत्वपूर्ण उदाहरण के रूप में हिमालय के उत्तरी क्षेत्र, पश्चिमी चीन के कुनलुन पर्वत के कुछ क्षेत्र (तिब्बत तथा जिनज्यांग राज्य के मध्य) तथा तिब्बत का पठार आदि क्षेत्रों को लिया जा सकता है। इनमें से अनेक क्षेत्र 3,000 मीटर अथवा 9,843 फीट से भी ऊंचे होते हैं। 40 मि.मी. से भी कम वार्षिक वर्षा वाले ये सभी क्षेत्र शुष्क होते हैं तथा जल के किसी भी स्रोत से कहीं अधिक दूर स्थित होते हैं।

 

 

 

 

शैली (हैमाडा) रेगिस्तान


हैमाडा शब्द से आश्रय पथरीले रेगिस्तान से है। हैमाडा रेगिस्तान तेज हवाओं से प्रभावित पथरीला व चट्टानी पठार है जहां की धरती पर रेत की पतली तह तथा छोटे-छोटे गोलाकार पत्थर होते हैं। सबसे बड़ा हैमाडा क्षेत्र उत्तर-पश्चिमी सहारा रेगिस्तान का डू ड्रा क्षेत्र है।

 

 

 

 

रेग्स


वह रेगिस्तान जिनकी धरती की सतह पर पत्थर जड़े हुए से प्रतीत होते हैं (पेवमेंटस्) तथा उस सतह के नीचे महीन बालू होती है, उसे ‘रेग्स’ कहते हैं। किसी भी उर्वर और शुष्क भूमि पर जहां मिट्टी का काफी क्षरण हो चुका हो और नीचे की पथरीली सतह वायु के प्रवाह के कारण उभर कर स्पष्ट हो जाए, तब रेग्स का निर्माण होता है। जहां केवल बजरी और पत्थर (जिन्हें चर्ट और फ्लिंट कहते हैं) लगभग समतल भूभाग निर्मित करें और यह पत्थर एक-दूसरे से भली-भांति जुड़े हुए से हों, तब ये रेग्स की रचना करते हैं। रेग्स एक कठोर आवरण के रूप में, मरुभूमि की रक्षा करने में सक्षम होते हैं।

 

 

 

 

अर्गस्


रेगिस्तान में अर्ग वात मार्जित बालू से घिरा ऐसा क्षेत्र होता है जहां वनस्पतियां बहुत ही कम होती हैं। अर्ग शब्द अरबी भाषा से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘टिब्बा (कनदम) या रेतीला टीला’ है। उत्तरी तथा दक्षिणी अफ्रीका, मध्य और पश्चिमी अफ्रीका एवं मध्य आस्ट्रेलिया में विश्व के कुछ विशाल अर्ग स्थित हैं।

 

 

 

 

अंतरापर्वतीय द्रोणियां


पर्वतीय श्रृंखलाओं के बीच स्थित रेगिस्तान को अंतरापर्वतीय द्रोणियां कहते हैं।

 

 

 

 

उत्खात भूमि (बैडलैंड)


उत्खात भूमि चिकनी मिट्टी से भरपूर रूक्ष क्षेत्र होता है। उत्खात भूमि में सामान्य रूप से गंभीर खड्ड (केनियन), अवनालिकाएं और खड्ड एवं अन्य प्रकार की स्थलाकृतियां मिलती हैं। इन क्षेत्रों में सीधी ढालें, शिथिल शुष्क भूमि, चिकनी मिट्टी और गहरी बालू स्थानांतरित होती रहती है जिससे इनके चारों ओर का वातावरण अन्य उपयोगों के लिए अनुपयुक्त हो जाता है। वैसे तो उत्खात भूमि रूक्ष क्षेत्र है लेकिन बारिश की तेज फुहार, वनस्पतियों की विरलता और मृदु अवसाद इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर क्षरण का सिद्ध होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में उत्खात भूमि देखी जा सकती है।

 

 

 

 

रेगिस्तान के अन्य प्रकार


रेगिस्तान के अन्य प्रकार भी हैं। यह क्षेत्र वनस्पतियों के स्थिरीकरण के कारण असक्रिय होकर रेतीले क्षेत्र में बदल गये हैं। वनस्पतियों के स्थिरीकरण से बना रेगिस्तानवनस्पतियों के स्थिरीकरण से बना रेगिस्तानइसी प्रकार के कुछ रेतीले और असक्रिय क्षेत्र पीलोडेजर्ट कहलाते हैं। कुछ पीलोडेजर्ट अब के कोर रेगिस्तानों के किनारों से अधिक फैले हुए हैं जैसे सहारा रेगिस्तान। आज का सहारा रेगिस्तान उर्वर सवाना और रेगिस्तान के बीच परिवर्तन से बना है।

अन्य ग्रहों पर स्थित रेगिस्तानों को भौमेतर (एक्सट्राटेरिस्ट्रियल) रेगिस्तान कहते हैं।

 

 

 

 

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