राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का विकास


यह बात सच है कि देश का दिल दिल्ली में धड़कता है। दिल्ली को सुन्दर बनाने के प्रयास पिछले कुछ वर्षों में बड़ी तेजी के साथ किये गये। लेकिन फिर भी बढ़ती भीड़ और प्रदूषण ने दिल्लीवासियों के दिल की धड़कन को बढ़ाया है। सन! 2001 में दिल्ली की दशा क्या होगी? यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन 21वीं सदी शुरू होने तक के विकास पर काबू पाने के लिये राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र नाम की एक बहुत बड़ी योजना शुरू की गई।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिये शुरू की गई ‘क्षेत्रीय योजना 2001’ के अंतर्गत 30 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को शामिल किया गया है जिसमें दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के भी कुछ जिले आते हैं। इस योजना में सर्वाधिक क्षेत्र हरियाणा का है जिसमें पाँच जिलों का 13 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र है। इसके बाद उत्तर प्रदेश का नम्बर है जिसमें 10 हजार किलोमीटर क्षेत्र तीन समीपवर्ती जिलों से शामिल किया गया है। राजस्थान का मात्र एक जिला अलवर, इसमें उप क्षेत्र बनाया गया है जिसका साढ़े चार हजार वर्ग किलोमीटर इलाका आया है। दिल्ली का 1403 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र इस योजना की मुख्य धुरी है।

सन 1985 में नेशनल कैपिटल रीजन प्लान के नाम से एक कानून बनाया गया था, जिसके तहत केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने एक बोर्ड गठित किया था जिसमें 31 सदस्य हैं।

आशा है कि दिल्ली के इर्द-गिर्द 6,677 गाँवों तथा 94 छोटे-बड़े कस्बों का भाग्य अब तेजी के साथ चमकेगा। क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को विकसित करने के लिये पड़ोसी राज्यों के नौ जिले चुने गए थे। हरियाणा के फरीदाबाद, रोहतक, गुड़गाँव, सोनीपत और महेन्द्रगढ़। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, मेरठ और बुलन्दशहर तथा राजस्थान के अलवर जनपद के करीब 29 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को इस योजना परिधि में सम्मिलित किया गया है। ताकि इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में अव्यवस्थित विकास को रोका जा सके। बेहतर भू-उपयोग के लिये नीतियाँ बनाई जा सकें और तेजी के साथ बढ़ रही आबादी से उत्पन्न समस्याओं का हल खोजा जा सके।

यदि मौजूदा स्तर से जनसंख्या बढ़ती रही तो इस सदी के अंत तक दिल्ली की कुल आबादी 132 लाख से भी अधिक हो जाएगी और तब आवश्यक व्यवस्थाओं का प्रबन्ध करना अत्यंत कठिन कार्य हो जाएगा। इसलिये आवश्यकता इस बात की है कि जनसंख्या वृद्धि की दर को कम किया जाए। समीपवर्ती क्षेत्रों में जनाधिक्य को समाहित किया जाए। लेकिन अब तक हो चुकी कोशिशों और प्राप्त उपलब्धियों को देखते हुए क्या यह कहा जा सकता है कि वांछित लक्ष्य को प्राप्त करना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है।

इस योजना के अन्तर्गत तीनों उपक्षेत्रों में आने वाले नौ नगरों की जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिये सन 2001 तक के लिये अनुमान लगाकर जो निर्धारण किया गया है उसमें मेरठ की जनसंख्या 15.5 लाख, हापुड़ की 4.5 लाख तथा बुलंदशहर-खुर्जा, अलवर, पानीपत और रोहतक की पाँच-पाँच लाख। पलवल की 3.0 लाख, रिवाड़ी की 1.15 लाख, दारूहेड़ा की 75 लाख तथा भिवाड़ी की 1.15 लाख है।

जनसंख्या के अतिरिक्त दूसरा प्रमुख बिन्दु है- ग्रामीण विकास। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले देहाती इलाकों में बैंक, सड़क, बाजार और संचार आदि बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिये रणनीति बनाकर प्रयास करना योजना के उद्देश्यों में आता है। इन ग्रामीण क्षेत्रों में जो लोग भूमिहीन श्रमिक तथा कारीगर आदि हैं उनके कौशल का विकास करना तथा उन्हें व्यावसायिक शिक्षा-प्रशिक्षण, उन्नत प्रौद्योगिकी से उनका परिचय कराना भी कार्यनीतियों में शामिल है।

योजना के लिये तैयार आर्थिक रूप रेखा में इस बात पर विशेष जोर दिया गया है कि केवल मंत्रालयों, प्रोटोकॉल और सम्पर्क कार्य के अलावा अन्य सभी सरकारी दफ्तर दिल्ली से बाहर पड़ोसी नगरों में खोले जाएँ। बढ़ते हुए व्यापार को व्यवस्थित किए जाने के लिये दिल्ली की थोक मंडियों को सघन क्षेत्रों से उठाकर बाहर ले जाना चाहिए, ताकि भीड़-भाड़ की अनावश्यक किल्लत से छुटकारा पाया जा सके। अतः दिल्ली से बाहर सरकारी दफ्तर और थोक मंडियों की स्थापना पर प्रोत्साहन दिए जाने का भी प्रस्ताव है।

योजना में इस बात पर बल दिया गया है कि बड़े और मध्यम आकार की औद्योगिक इकाइयों की स्थापना को दिल्ली के स्थान पर अन्य समीपवर्ती क्षेत्रों में लगाने को प्रोत्साहन दिया जाए। परिवहन की भीड़ हल्की करने की दृष्टि से यात्रियों तथा माल ढोने के लिये बेहतर नेटवर्क बनाए जाएँ जोकि दिल्ली से उन क्षेत्रों को सुगमतापूर्वक जोड़ सकें। सन 2001 के लिये बनाई गई परिवहन योजना में कुशल और कारगर परिवहन नेटवर्क बनाने, रेल और सड़क यातायात को व्यवस्थित करने हेतु उसे लघुतम और तीव्रतम बनाने तथा बाइपास ट्रैफिक को परिवर्तित करने जैसे बिन्दुओं को लिया गया है।

इस क्षेत्र का बेहतर विकास करने के लिये दूर संचार व्यवस्था को भी चुस्त करना होगा, ताकि दिल्ली से अलग किन्तु जुड़े हुए क्षेत्रों में विकास प्रक्रिया को बढ़ाने में सफलता मिले। पूर्णतः स्वचालित टेलीफोन सुविधाएँ पुराने एक्सचेंजों का आधुनिकीकरण, नए कनेक्शनों की व्यवस्था, महत्त्वपूर्ण शहरों के साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का केबल अथवा रेडियो संचार माध्यम, सम्बन्ध तार घर तथा नए इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज खोलने के लिये निःसन्देह भारी मात्रा में पूँजी निवेश की आवश्यकता होगी। इसके अलावा सबसे बड़ी और महत्त्वपूर्ण बात है कि इस क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति आवश्यकता से 35 प्रतिशत तक कम रहती है। अतः अतिरिक्त विद्युत की उपलब्धता पर प्राथमिकता से प्रबंध करने होंगे। बिजली के अलावा पानी की समस्या भी कम गम्भीर नहीं है। स्वच्छ पेयजल आपूर्ति के लिये जो मापदंड निर्धारित हैं उनका पालन करने के लिये अतिरिक्त संसाधन जुटाने होंगे जोकि सरल कार्य नहीं है।

जल-आपूर्ति से स्वच्छता का सीधा सम्बन्ध है। यदि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का समस्त विकास सही मायने में किया जाना है तो कीचड़ से भरी नालियों के अलावा वातावरण को दूषित करने वाले अन्य स्थानों को सुधार कर नया रूप देना होगा। एक बड़ी जरूरत यह भी है कि लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरुकता फैलाई जाए, ताकि लोग अनावश्यक रूप से गंदगी न फैलाएँ। दूसरी तरफ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों के अनुसार कूड़ा करकट साफ करने अथवा उसका उपयोग करने के लिये नए प्रयास शुरू किए जाने चाहिए। महानगरों को छोड़कर छोटे नगरों और कस्बों में नालियों आदि की हालत बहुत खस्ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो जो हाल है उसकी अलग ही कहानी है। अतः अगले सात वर्षों में कोई चमत्कार हो जाएगा ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता।

किसी भी क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिये इन तमाम बातों के अलावा सर्व-सुलभ शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधाओं का महत्व सर्वाधिक होता है। इस योजना में जो पिछड़ा क्षेत्र आ रहा है उसकी दशा सुधारने के लिये अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। कृषि भूमि में शहरी उपयोग के लिये जो परिवर्तन हो रहे हैं उन्हें नियंत्रित किया जाना बेहद जरूरी है। यद्यपि भू-उपयोग की मौजूदा स्थिति का विश्लेषण करने के लिये उपग्रह तथा हवाई जहाज से फोटोग्राफी, भारतीय सर्वेक्षण-नक्शों तथा जनसंख्या आंकड़ों को आधार बनाया गया है। महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव किए गए हैं तथा बिहार, ग्वालियर, पटियाला, कोटा तथा बरेली में काउंटर मैग्नेट क्षेत्रों के विकास हेतु संस्तुति की गई है। लेकिन मात्र सात वर्ष में क्या इतना बड़ा सपना सच हो सकेगा? यह प्रश्न इसलिये महत्त्वपूर्ण है कि योजना के आठ वर्ष निकल चुके हैं और आशाएँ आज भी अधूरी हैं।

एच.88 शास्त्री नगर, मेरठ 250005 (उ.प्र.)

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