राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम, 1981 (National Agricultural and Rural Development Bank Act, 1981)

(1981 का अधिनियम संख्यांक 61)


{30 दिसम्बर, 1981}


1{ समेकित ग्रामीण विकास के संवर्धन और ग्रामीण क्षेत्र की उन्नति को सुनिश्चित करने की दृष्टि से, कृषि, लघु उद्योगों, कुटीर और ग्राम उद्योगों, हस्त-शिल्पों और अन्य ग्रामशिल्पों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य सहबद्ध आर्थिक क्रियाकलापों के संवर्धन और विकास के लिये उधार तथा अन्य सुविधाएँ देने और उनका विनियमन करने के लिये औरउनसे सम्बद्ध या उनके आनुषंगिक विषयों के लिये एक विकास बैंक की, जो राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक के नाम से ज्ञात होगा, स्थापना करने के लिये अधिनियम}

भारत गणराज्य के बत्तीसवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो:-

अध्याय 1


प्रारम्भिक


1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ


(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम, 1981 है।

(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है।

(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे और इस अधिनियम के भिन्न-भिन्न उपबन्धों के लिये भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी तथा इस अधिनियम के प्रारम्भ के प्रति किसी उपबन्ध में किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस उपबन्ध के प्रवृत्त होने के प्रति निर्देश है।

2. परिभाषाएँ


इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(क) “कृषि” के अन्तर्गत बागवानी, पशुपालन, वनोद्योग, दुग्ध उद्योग और कुक्कुट पालन; मत्स्य पालन और अन्य सहबद्ध क्रियाकलाप हैं चाहे उन्हें कृषि के साथ संयुक्त रूप से किया गया है या नहीं और “कृषि संक्रिया” पद का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा।

स्पष्टीकरण


इस खण्ड के प्रयोजनों के लिये “मत्स्य पालन” के अन्तर्गत अन्तर्देशीय और समुद्री, दोनों प्रकार के मीन उद्योग का विकास, मछली पकड़ना और उनसे सम्बद्ध या उनके आनुषंगिक अन्य सब क्रियाकलाप हैं;
(ख) “कृषिक पुनर्वित्त और विकास निगम” से कृषिक पुनर्वित्त और विकास निगम अधिनियम, 1963 (1963 का 10) की धारा 3 के अधीन स्थापित और उस अधिनियम की धारा 3क के अधीन कृषिक पुनर्वित्त और विकास निगम के रूप में पुनः नामित निगम अभिप्रेत है;
(ग) “बोर्ड” से राष्ट्रीय बैंक का निदेशक बोर्ड अभिप्रेत है;
(घ) “केन्द्रीय सहकारी बैंक” से राज्य के जिले में की वह प्रधान सहकारी सोसाइटी अभिप्रेत है जिसका प्राथमिक उद्देश्य उस जिले में अन्य सहकारी सोसाइटियों का वित्तपोषण करना है:

परन्तु जिले की ऐसी प्रधान सोसाइटी के अतिरिक्त या जहाँ जिले में ऐसी प्रधान सोसाइटी नहीं है वहाँ राज्य सरकार उस जिले में अन्य सहकारी सोसाइटियों का वित्तपोषण करने का कारबार करने वाली एक या अधिक सहकारी सोसाइटियों को भी या को इस परिभाषा के अर्थ के अन्तर्गत केन्द्रीय सहकारी बैंक या केन्द्रीय सहकारी बैंकों के रूप में घोषित कर सकेगी;
(ङ) “अध्यक्ष” से धारा 6 के अधीन नियुक्त 2***अध्यक्ष अभिप्रेत है;
(च) “सहकारी सोसाइटी” से सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 1912 (1912 का 2) या किसी राज्य में तत्समय प्रवृत्त सहकारी सोसाइटियों से सम्बन्धित किसी अन्य विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत या रजिस्ट्रीकृत समझी गई कोई सोसाइटी अभिप्रेत है;
(छ) “फसल” के अन्तर्गत कृषि संक्रियाओं के उत्पाद हैं;
(ज) “निदेशक” से धारा 6 के अधीन नियुक्त निदेशक अभिप्रेत है;
(झ) “छोटे और विकेन्द्रित सेक्टर में उद्योग” से छोटे और विकेन्द्रित सेक्टर में औद्योगिक समुत्थान अभिप्रेत है और “छोटे और विकेन्द्रित औद्योगिक समुत्थान” से ऐसा औद्योगिक समुत्थान अभिप्रेत है जिसमें मशीनरी और संयंत्र में विनिधान दो लाख रुपए या ऐसी उच्चतर रकम से अधिक नहीं है जो केन्द्रीय सरकार औद्योगिक विकास का रुख तथा अन्य सुसंगत बातों को ध्यान में रखते हुए इस निमित्त अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे;
(ञ) “प्रबन्ध निदेशक” से धारा 6 के अधीन नियुक्त प्रबन्ध निदेशक अभिप्रेत है;
(ट) “फसलों का विपणन” के अन्तर्गत फसलों का वह प्रसंस्करण है जो कृषि उत्पादकों द्वारा या ऐसे उत्पादकों के किसी संगठन द्वारा विपणन के पूर्व किया जाता है;
(ठ) “राष्ट्रीय बैंक” से धारा 3 के अधीन स्थापित राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अभिप्रेत है;
(ड) “अधिसूचना” से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है;
(ढ) “प्राथमिक ग्रामीण प्रत्यय सोसाइटी” से वह सहकारी सोसाइटी, उसका चाहे जो भी नाम हो, अभिप्रेत है -

(1) जिसका उद्देश्य या कारबार अपने सदस्यों को कृषि या कृषि संक्रियाओं के लिये या फसलों के विपणन के लिये या ग्रामीण विकास के लिये वित्तीय सौकर्य प्रदान करना है; और

(2) जिसकी उप विधियाँ किसी अन्य सहकारी सोसाइटी को सदस्य के रूप में प्रविष्ट करने की अनुज्ञा नहीं देती है:

परन्तु यह उपखण्ड ऐसी सहकारी सोसाइटी को, जो राज्य सहकारी बैंक या केन्द्रीय सहकारी बैंक है, सदस्य के रूप में प्रविष्ट किये जाने को इस कारण ही लागू नहीं होगा कि ऐसे बैंक ने सहकारी सोसाइटी की शेयर पूँजी के लिये उन निधियों में से अभिदाय किया है जो इस प्रयोजन के लिये राज्य सरकार द्वारा उपबन्धित की गई है;
(ण) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए, विनियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(त) “प्रादेशिक ग्रामीण बैंक” से प्रादेशिक ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976 (1976 का 21) की धारा 3 के अधीन स्थापित प्रादेशिक ग्रामीण बैंक अभिप्रेत है;
(थ) “ग्रामीण विकास” से ग्रामीण क्षेत्र का किसी ऐसे क्रियाकलाप के माध्यम से विकास अभिप्रेत है जो ऐसे विकास के लिये सहायक है।

स्पष्टीकरण


इस खण्ड के प्रयोजनों के लिये, -

(क) ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिये सहायक क्रियाकलापों के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्र में माल के उत्पादन या सेवाओं के उपबन्ध से सम्बन्धित क्रियाकलाप तथा कुटीर और ग्राम उद्योगों, छोटे और विकेन्द्रित सेक्टर में उद्योग और लघु उद्योग तथा हस्त-शिल्प और ग्राम शिल्प के संवर्धन के लिये क्रियाकलाप हैं;

(ख) “ग्रामीण क्षेत्र” से किसी ग्राम में समाविष्ट क्षेत्र अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत किसी नगर में समाविष्ट ऐसा क्षेत्र भी है जिसकी जनसंख्या दस हजार से या ऐसी अन्य संख्या से अधिक नहीं है जो रिजर्व बैंक समय-समय पर विनिर्दिष्ट करे;

(द) “रिजर्व बैंक” से भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 3 के अधीन गठित भारतीय रिजर्व बैंक अभिप्रेत है;

(ध) “अनुसूचित बैंक” से भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की द्वितीय अनुसूची में तत्समय सम्मिलित बैंक अभिप्रेत है;

(न) “लघु उद्योग” से लघु सेक्टर के औद्योगिक समुत्थान अभिप्रेत हैं और “लघु सेक्टर के औद्योगिक समुत्थान” से ऐसा औद्योगिक समुत्थान अभिप्रेत है -

(i) जिसमें मशीनरी और संयंत्र में विनिधान बीस लाख रुपए से या ऐसी उच्चतर रकम से अधिक नहीं है जो केन्द्रीय सरकार औद्योगिक विकास के रुख और अन्य सुसंगत बातों को ध्यान में रखते हुए इस निमित्त अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे; और
(ii) जो छोटे और विकेन्द्रित सेक्टर में औद्योगिक समुत्थान नहीं है;
(प) “राज्य सहकारी बैंक” से राज्य में की वह प्रधान सहकारी सोसाइटी अभिप्रेत है जिसका प्राथमिक उद्देश्य उस राज्य में अन्य सहकारी सोसाइटियों का वित्तपोषण करना है:

परन्तु किसी राज्य की ऐसी प्रधान सोसाइटी के अतिरिक्त या जहाँ किसी राज्य में ऐसी प्रधान सोसाइटी नहीं है, वहाँ, राज्य सरकार उस राज्य में कारबार करने वाली एक या एक से अधिक किन्हीं सहकारी सोसाइटियों को भी या इस परिभाषा के अर्थ में राज्य सहकारी बैंक या राज्य सहकारी बैंकों के रूप में घोषित कर सकेगी;

(फ) “राज्य भूमि विकास बैंक” से ऐसी सहकारी सोसाइटी अभिप्रेत है जो किसी राज्य में प्रधान भूमि विकास बैंक (उसका चाहे जो भी नाम हो) है और जिसका प्राथमिक उद्देश्य कृषि विकास के लिये दीर्घकालिक वित्त का उपबन्ध करना है:

परन्तु किसी राज्य के ऐसे प्रधान भूमि विकास बैंक के अतिरिक्त या जहाँ किसी राज्य में ऐसा बैंक नहीं है वहाँ राज्य सरकार उस राज्य में कारबार करने वाली किसी सहकारी सोसाइटी को भी या को जिसे ऐसी सहकारी सोसाइटी की उपविधियों द्वारा कृषि विकास के लिये दीर्घकालिक वित्त का उपबन्ध करने का प्राधिकार दिया गया है इस अधिनियम के अर्थ में राज्य भूमि विकास बैंक के रूप में घोषित कर सकेगी;

(ब) ऐसे शब्दों और पदों के, जिनको इसमें प्रयुक्त किया गया है और परिभाषित नहीं किया गया है किन्तु भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) में परिभाषित किया गया है, वही अर्थ होंगे जो उस अधिनियम में हैं;

(भ) ऐसे शब्दों और पदों के, जिनको इसमें प्रयुक्त किया गया है और इस अधिनियम में या भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) में परिभाषित नहीं किया गया है किन्तु बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (1949 का 10) में परिभाषित किया गया है, वही अर्थ होंगे जो बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 में हैं।

अध्याय 2


राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना और उसकी पूँजी


3. राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना और निगमन


(1) ऐसी तारीख से, जिसे केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये एक बैंक की स्थापना की जाएगी जो राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक के नाम से ज्ञात होगा।

(2) बैंक शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा वाला पूर्वोक्त नाम का एक निगमित निकाय होगा और इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए उसे सम्पत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन करने की तथा संविदा करने की शक्ति होगी और उस नाम से वह वाद ला सकेगा या उस पर वाद लाया जा सकेगा।

(3) राष्ट्रीय बैंक का मुख्य कार्यालय मुम्बई में या अन्य ऐसे स्थान पर होगा जो केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे।

(4) राष्ट्रीय बैंक भारत में किसी स्थान पर और केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से और रिजर्व बैंक से परामर्श करके भारत के बाहर किसी स्थान पर कार्यालय, शाखाएँ या अभिकरण स्थापित कर सकेगा।

4. पूँजी


(1) राष्ट्रीय बैंक की पूँजी एक अरब रुपए होगी :

परन्तु केन्द्रीय सरकार रिजर्व बैंक से परामर्श करके और अधिसूचना द्वारा उक्त पूँजी को बढ़ाकर 1{पचास अरब रुपए} तक कर सकेगी।

1{(2) राष्ट्रीय बैंक की पूँजी का अभिदाय केन्द्रीय सरकार द्वारा और रिजर्व बैंक द्वारा उस सीमा तक और उस अनुपात में किया जाएगा जो रिजर्व बैंक के परामर्श से केन्द्रीय सरकार द्वारा, समय-समय पर, अधिसूचित किया जाये:

परन्तु राष्ट्रीय बैंक ऐसी संस्थाओं और व्यक्तियों को, ऐसी रीति से, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित की जाये, पूँजी निर्गमित कर सकेगा :

परन्तु यह और कि केन्द्रीय सरकार और रिजर्व बैंक की सम्मिलित शेयरधारिता किसी भी समय सकल प्रतिश्रुत पूँजी के इक्यावन प्रतिशत से कम नहीं होगी।}

अध्याय 3


राष्ट्रीय बैंक का प्रबन्ध


5. प्रबन्ध


(1) राष्ट्रीय बैंक के कार्यकलाप और कारबार का साधारण अधीक्षण, निदेशन और प्रबन्ध एक निदेशक बोर्ड में निहित होगा जो उन सब शक्तियों का प्रयोग तथा वे सब कार्य और बातें करेगा जिनका राष्ट्रीय बैंक द्वारा प्रयोग किया जा सकता है या जिन्हें राष्ट्रीय बैंक कर सकता है।

(2) इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, बोर्ड अपने कृत्यों का निर्वहन करने में लोकहित का सम्यक ध्यान रखते हुए, कारबार के सिद्धान्तों के अनुसार कार्य करेगा।

(3) उपधारा (1) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए और इस अधिनियम के अधीन बनाए गए विनियमों में जैसा अन्यथा उपबिन्धत है उसके सिवाय प्रबन्ध निदेशक को भी राष्ट्रीय बैंक के कार्यकलापों और कारबार के साधारण अधीक्षण, निदेशन और प्रबन्ध की शक्तियाँ प्राप्त होंगी और वह उन सभी शक्तियों का प्रयोग तथा वे सब कार्य और बातें भी कर सकेगा। जिनका राष्ट्रीय बैंक द्वारा प्रयोग किया जा सकता है या जिन्हें राष्ट्रीय बैंक कर सकता है:

1{परन्तु प्रबन्ध निदेशक के पद में धारा 11 में निर्दिष्ट प्रकृति की किसी आकस्मिक रिक्ति की अवधि के दौरान, अध्यक्ष भी, प्रबन्ध निदेशक की शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का निर्वहन तब तक कर सकेगा जब तक कि केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रबन्ध निदेशक के रूप में कार्य करने के लिये धारा 11 के अधीन नियुक्त किया गया व्यक्ति अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है।}

(4) धारा 6 की उपधारा (3) के अधीन नियुक्त कोई पूर्णकालिक निदेशक उपधारा (3) के अधीन प्रबन्ध निदेशक के कृत्यों का निर्वहन करने में उसकी सहायता करेगा और ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा जो बोर्ड उसे सौंपे या प्रत्यायोजित करे।

(5) प्रबन्ध निदेशक, उपधारा (3) के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का निर्वहन करने में ऐसे निदेशों का अनुसरण करेगा जो अध्यक्ष दे।

(6) इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का निर्वहन करने में राष्ट्रीय बैंक का लोकहित विषयक नीति के विषय में मार्गदर्शन ऐसे निदेशों से होगा जो केन्द्रीय सरकार, रिजर्व बैंक से परामर्श करके, या रिजर्व बैंक उसे लिखित रूप में दे।

2{6.निदेशक बोर्ड


(1) राष्ट्रीय बैंक का निदेशक बोर्ड निम्नलिखित से मिलकर बनेगा} अर्थात:-

(क) एक अध्यक्ष;
(ख) तीन निदेशक, जो ग्राम अर्थशास्त्र, ग्राम विकास, ग्राम और कुटीर उद्योग, लघु उद्योग के विशेषज्ञों या ऐसे व्यक्तियों में से होंगे, जो सहकारी बैंकों, प्रादेशिक ग्रामीण बैंकों या वाणिज्यिक बैंकों के कार्यकरण का या ऐसे अन्य विषय का, जिसका विशेष ज्ञान या वृत्तिक अनुभव केन्द्रीय सरकार द्वारा राष्ट्रीय बैंक के लिये उपयोगी समझा जाता है, अनुभव रखते हों;
(ग) तीन निदेशक, रिजर्व बैंक के निदेशकों में से होंगे;
(घ) तीन निदेशक, केन्द्रीय सरकार के पदधारियों में से होंगे;
(ङ) चार निदेशक, राज्य सरकारों के पदधारियों में से होंगे;
(च) इतनी संख्या में निदेशक, जो विहित रीति में रिजर्व बैंक, केन्द्रीय सरकार और केन्द्रीय सरकार के स्वामित्वाधीन या उसके द्वारा नियंत्रित अन्य संस्थाओं से भिन्न ऐसे शेयरधारकों द्वारा, जिनके नाम राष्ट्रीय बैंक के शेयरधारकों के रजिस्टर में उस अधिवेशन की तारीख से नब्बे दिन पूर्व प्रविष्ट हों, जिसमें ऐसा निर्वाचन होता है, निम्नलिखित आधार पर निर्वाचित किये गए हों, अर्थात:-

(i) जहाँ ऐसे शेयरधारकों को पुरोधृत साधारण अंश पूँजी की कुल रकम कुल पुरोधृत साधारण अंश पूँजी के दस प्रतिशत से या उससे कम है,दो निदेशक;
(ii) जहाँ ऐसे शेयरधारकों को पुरोधृत साधारण अंश पूँजी की कुल रकम कुल पुरोधृत साधारण अंश पूँजी के दस प्रतिशत से अधिक किन्तु पच्चीस प्रतिशत से कम है, औरतीन निदेशक;
(iii) जहाँ ऐसे शेयरधारकों को पुरोधृत कुल साधारण अंश पूँजी कुल पुरोधृत साधारण पूँजी का पच्चीस प्रतिशत या उससे अधिक है:चार निदेशक;

परन्तु यह कि इस खण्ड के अधीन निर्वाचित निदेशकों द्वारा कार्यभार ग्रहण करने तक केन्द्रीय सरकार किसी भी समय चार से अनधिक उतने निदेशक, ऐसे व्यक्तियों में से नाम-निर्दिष्ट कर सकेगी जो कृषि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अर्थशास्त्र, बैंककारी सहकारिता, विधि, ग्राम वित्त, विनिधान, लेखाकर्म, विपणन का विशेष ज्ञान या वृत्तिक अनुभव या किसी अन्य ऐसे विषय का विशेष ज्ञान या वृत्तिक अनुभव रखते हों, जो केन्द्रीय सरकार की राय में बैंक के लिये उसके कृत्यों को कार्यान्वित करने के लिये उपयोगी होगा; और
(छ) एक प्रंबन्ध निदेशक।

(2) खण्ड (च) में निदिष्ट निदेशकों को छोड़कर, अध्यक्ष और अन्य निदेशक रिजर्व बैंक के परामर्श से केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किये जाएँगे :

परन्तु ऐसा कोई परामर्श उपधारा (1) के खण्ड (घ) के अधीन नियुक्त निदेशकों के मामले में, आवश्यक नहीं होगा।}

(3) जहाँ केन्द्रीय सरकार का रिजर्व बैंक 1***से परामर्श करने पर यह समाधान हो जाता है कि ऐसा करना आवश्यक है वहाँ वह एक या अधिक पूर्णकालिक निदेशक नियुक्त कर सकेगी जिनके पदनाम वे होंगे जो वह सरकार समुचित समझे और इस प्रकार नियुक्त पूर्णकालिक निदेशक भी बोर्ड का सदस्य होगा :

7. अध्यक्ष और अन्य निदेशकों की पदावधि, सेवानिवृत्ति और उनकी फीस का सन्दाय


(1) अध्यक्ष पाँच वर्ष से अनधिक की ऐसी अवधि तक पद धारण करेगा और ऐसे वेतन और भत्ते प्राप्त करेगा जो केन्द्रीय सरकार नियुक्ति के समय विनिर्दिष्ट करे 2{और पुनर्नियुक्ति के लिये पात्र होगा}:

4{(1क) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार को, अध्यक्ष की पदावधि को उस उपधारा के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि के अवसान के पूर्व किसी समय, उसे तीन मास से अन्यून की लिखित सूचना देकर या ऐसी सूचना के बदले में तीन मास का वेतन और भत्ता देकर समाप्त करने का अधिकार होगा।}

2{(1ख) अध्यक्ष का पद रिक्त होने की दशा में, प्रबन्ध निदेशक, ऐसी रिक्ति के दौरान अध्यक्ष के कृत्यों और दायित्वों का निर्वहन करेगा।}

5{(2) उपधारा (5) में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अधीन रहते हुए, धारा 6 की उपधारा (1) के खण्ड (ख) या खण्ड (ग) के अधीन नियुक्त किया गया कोई निदेशक ऐसी अवधि तक जो तीन वर्ष से अधिक नहीं होगी, जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे 6***पद धारण करेगा और वह पुनर्नियुक्ति के लिये पात्र होगा :

परन्तु कोई ऐसा निदेशक छह वर्ष से अधिक की अवधि तक निरन्तर पद धारण नहीं करेगा।}

(3) केन्द्रीय सरकार, रिजर्व बैंक से परामर्श करके अध्यक्ष 7***को उसकी पदावधि के अवसान के पूर्व किसी भी समय, उसे उसके प्रस्तावित हटाए जाने के विरुद्ध कारण दर्शित करने का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात, हटा सकेगी।

8{(4) अध्यक्ष और किसी अन्य निदेशक को, जो केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार का कोई अधिकारी या रिजर्व बैंक का अथवा केन्द्रीय अधिनियम या किसी राज्य अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित और ऐसी सरकार के स्वामित्वाधीन या उसके द्वारा नियंत्रित किसी निकाय या निगम का कोई अधिकारी नहीं है, बोर्ड के या उसकी किसी समिति के अधिवेशनों में उपस्थित होने के लिये और राष्ट्रीय बैंक के किसी अन्य कार्य को करने के लिये ऐसी फीस और भत्ते सन्दत्त किये जाएँगे जो विहित किये जाएँ।}

9{(5) धारा 6 की उपधारा (1) के खण्ड (ख) से खण्ड (च) तक के अधीन नियुक्त किये गए निदेशक केन्द्रीय सरकार के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करेंगे।}

8. प्रबन्ध निदेशक और पूर्णकालिक निदेशकों की पदावधि, सेवा की शर्तें, आदि


(1) धारा 6 की उपधारा (3) के अधीन नियुक्त प्रबन्ध निदेशक और कोई पूर्णकालिक निदेशक, -

(क) पाँच वर्ष से अनधिक की ऐसी अवधि तक पद धारण करेगा जो केन्द्रीय सरकार नियुक्ति के समय विनिर्दिष्ट करे 10{और पुनर्नियुक्ति के लिये पात्र होगा};

(ख) ऐसा वेतन और भत्ते प्राप्त करेगा और सेवा के ऐसे निबन्धनों और शर्तों द्वारा शासित होगा जो बोर्ड केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से और रिजर्व बैंक से परामर्श करके अवधारित करे :

परन्तु प्रथम बोर्ड के लिये नियुक्त प्रबन्ध निदेशक और ऐसा कोई पूर्णकालिक निदेशक ऐसा वेतन और भत्ते प्राप्त करेंगे और सेवा के ऐसे निबन्धनों और शर्तों द्वारा शासित होंगे जो केन्द्रीय सरकार रिजर्व बैंक से परामर्श करके अवधारित करे।

(2) केन्द्रीय सरकार रिजर्व बैंक से परामर्श करके प्रबन्ध निदेशक या धारा 6 की उपधारा (3) के अधीन नियुक्त किसी पूर्णकालिक निदेशक को उसकी पदावधि के अवसान के पूर्व किसी भी समय उसे उसके प्रस्थापित हटाए जाने के विरुद्ध कारण दर्शित करने का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात, हटा सकेगा।

(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी केन्द्रीय सरकार को प्रबन्ध निदेशक या धारा 6 की उपधारा (3) के अधीन नियुक्त किसी पूर्णकालिक निदेशक की पदावधि को उपधारा (1) के अधीन नियत अवधि के अवसान के पूर्व किसी समय उसे तीन मास से अन्यून की लिखित सूचना देकर या ऐसी सूचना के बदले में तीन मास का वेतन और भत्ते देकर समाप्त करने का अधिकार होगा :

परन्तु केन्द्रीय सरकार प्रबन्ध निदेशक या धारा 6 की उपधारा (3) के अधीन नियुक्त किसी पूर्णकालिक निदेशक की पदावधि का पर्यवसान करने के पूर्व रिजर्व बैंक से परामर्श करेगी।

9.निरर्हताएँ


(1) ऐसा कोई व्यक्ति निदेशक नहीं होगा जो -

(क) विकृत-चित्त है और सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया गया है; या
(ख) ऐसे किसी अपराध के लिये दोषसिद्ध ठहराया गया है या ठहराया जा चुका है जिसमें केन्द्रीय सरकार की राय में नैतिक अधमता अन्तर्वलित है; या
(ग) दिवालिया न्यायनिर्णीत है या किसी समय दिवालिया न्यायनिर्णीत किया गया है या जिसने अपने ऋणों का सन्दाय निलम्बित कर दिया है या अपने लेनदारों के साथ समझौता कर लिया है।

(2) ऐसे किसी व्यक्ति की निदेशक के रूप में नियुक्ति, जो संसद या किसी राज्य के विधान-मण्डल का सदस्य है जब तक कि उसकी नियुक्ति की तारीख से दो मास के भीतर वह ऐसा सदस्य नहीं रह जाता है, उक्त दो मास की अवधि के अवसान पर शून्य हो जाएगी और यदि कोई निदेशक संसद के या किसी राज्य के विधान-मण्डल के सदस्य के रूप में निर्वाचित या नाम-निर्दिष्ट किया जाता है तो वह, यथास्थिति, ऐसे निर्वाचन या नाम-निर्देशन की तारीख से निदेशक नहीं रह जाएगा।

10. निदेशक के पद में रिक्ति और पद त्याग


(1) यदि कोई निदेशक -

(क) धारा 9 में वर्णित किसी निरहर्ता से ग्रस्त हो जाता है; या
(ख) बोर्ड की इजाजत के बिना उसकी लगातार तीन बैठकों से अधिक में अनुपस्थित रहता है,तो ऐसा होने पर उसका स्थान रिक्त हो जाएगा।

(2) कोई निदेशक केन्द्रीय सरकार को लिखित सूचना देकर अपना पद त्याग सकेगा और केन्द्रीय सरकार द्वारा उसका त्यागपत्र स्वीकार कर लिये जाने पर या यदि उसका त्यागपत्र शीघ्र स्वीकार नहीं किया जाता है तो केन्द्रीय सरकार द्वारा त्यागपत्र की प्राप्ति के तीन मास के अवसान पर यह माना जाएगा कि उसने अपना पद रिक्त कर दिया है।

11. प्रबन्ध निदेशक के पद से आकस्मिक रिक्ति


यदि प्रबन्ध निदेशक अंग शैथिल्य के कारण या अन्यथा अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हो जाता है या छुट्टी पर या अन्यथा ऐसी परिस्थितियों में अनुपस्थित है जो उसकी नियुक्ति में रिक्ति अन्तर्वलित नहीं करती है तो केन्द्रीय सरकार, रिजर्व बैंक और बोर्ड से परामर्श करने के पश्चात, उसकी अनुपस्थिति के दौरान उसके स्थान पर प्रबन्ध निदेशक के रूप में कार्य करने के लिये किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त कर सकेगी।

12. बोर्ड के अधिवेशन


(1) बोर्ड के अधिवेशन ऐसे समय और स्थानों पर होंगे और वह अपने अधिवेशनों में कार्य करने के बारे में प्रक्रिया के ऐसे नियमों का पालन करेगा जो विहित किये जाएँ।

(2) बोर्ड का अध्यक्ष, या यदि किसी कारण से वह किसी अधिवेशन में उपस्थित होने में असमर्थ है तो 1{प्रबन्ध निदेशक और अध्यक्ष तथा प्रबन्ध निदेशक, दोनों की अनुपस्थिति में} अध्यक्ष द्वारा इस निमित्त नाम-निर्देशित कोई अन्य निदेशक और ऐसे नाम-निर्देशन के अभाव में बैठक में उपस्थित निदेशकों द्वारा निर्वाचित कोई अन्य निदेशक बोर्ड के अधिवेशन का सभापतित्व करेगा।

(3) बोर्ड के किसी अधिवेशन में उठने वाले सभी प्रश्नों का विनिश्चय उपस्थित और मत देने वाले निदेशकों के बहुमत से किया जाएगा और मत बराबर होने की दशा में अध्यक्ष का या उसकी अनुपस्थिति में पीठासीन व्यक्ति का द्वितीय या निर्णायक मत होगा।

13. राष्ट्रीय बैंक की समितियाँ


(1) बोर्ड एक कार्यपालिका समिति का गठन कर सकेगा जिसमें उतने निदेशक होंगे जितने विहित किये जाएँ।

(2) कार्यपालिका समिति ऐसे कृत्यों का निर्वहन करेगी जो विहित किये जाएँ या जो बोर्ड द्वारा उसे प्रत्यायोजित किये जाएँ।

(3) बोर्ड चाहे तो पूर्णतया निदेशकों से या पूर्णतया अन्य व्यक्तियों से या भागतः निदेशकों से और भागतः अन्य व्यक्तियों से मिलकर बनी ऐसी अन्य समितियाँ, जो वह ठीक समझे ऐसे प्रयोजनों के लिये, जो वह विनिश्चित करे, गठित कर सकेगा और इस प्रकार गठित प्रत्येक समिति ऐसे कृत्यों का निर्वहन करेगी जो बोर्ड द्वारा उसे प्रत्यायोजित किये जाएँ।

(4) कार्यपालिका समिति के अधिवेशन ऐसे समय और स्थानों पर होंगे और वह अपने अधिवेशनों में कार्य करने के बारे में प्रक्रिया के ऐसे नियमों का पालन करेगी जो विहित किये जाएँ।

(5) वह समय और स्थान जिस पर उपधारा (3) के अधीन गठित कोई समिति अपना अधिवेशन करेगी, प्रक्रिया के वे नियम जिनका पालन ऐसी समिति अपने अधिवेशनों में कार्य करने के बारे में करेगी और वे फीसें और भत्ते जो ऐसी समिति के सदस्यों को समिति के अधिवेशनों में हाजिर होने के लिये और राष्ट्रीय बैंक के किसी अन्य कार्य को करने के लिये सन्दत्त किये जा सकेंगे, ऐसे होंगे जो वह बैंक विनिर्दिष्ट करे।

14. सलाहकार परिषद


(1) बोर्ड एक सलाहकार 1{परिषद का गठन कर सकेगा, जिसमें उतने निदेशक और ऐसे अन्य व्यक्ति होंगे जो बोर्ड की राय में कृषि, कृषिक प्रत्यय, सहकारिता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था, लघु उद्योग, ग्राम और कुटीर उद्योग तथा हस्तशिल्प और अन्य ग्राम शिल्प का विशेष ज्ञान रखते हैं या जिन्हें देश की समग्र विकास नीतियों का और विशेषतया समग्र धन सम्बन्धी और प्रत्यय सम्बन्धी नीतियों का विशेष ज्ञान और बोध है, जो बोर्ड द्वारा राष्ट्रीय बैंक के लिये उपयोगी मानी जाती है।

(2) सलाहकार परिषद राष्ट्रीय बैंक को ऐसे विषयों के बारे में सलाह देगी जो राष्ट्रीय बैंक द्वारा सलाहकार परिषद को निर्दिष्ट किये जाएँ और ऐसे अन्य कृत्यों का निर्वहन करेगी जो राष्ट्रीय बैंक द्वारा सलाहकार परिषद को सौंपे या प्रत्यायोजित किये जाएँ।

(3) सलाहकार परिषद का सदस्य पाँच वर्ष से अनधिक की ऐसी अवधि तक पद धारण करेगा जो राष्ट्रीय बैंक नियत करे और सलाहकार परिषद के अधिवेशनों में हाजिर होने के लिये और राष्ट्रीय बैंक के किसी अन्य कार्य को करने के लिये ऐसी फीस और भत्ते प्राप्त करेगा जो विहित किये जाएँ।

(4) सलाहकार परिषद के अधिवेशन ऐसे समय और स्थानों पर होंगे और वह अपने अधिवेशनों में कार्य करने के बारे में प्रक्रिया के ऐसे नियमों का पालन करेगी जो विहित की जाये।

15. बोर्ड या उसकी समिति के सदस्यों का कुछ मामलों में बैठकों में भाग न लेना


बोर्ड का कोई निदेशक या समिति का कोई सदस्य जिसका बोर्ड या उसकी समिति के अधिवेशन में विचार के लिये आने वाले किसी मामले में कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष धन सम्बन्धी हित है, सुसंगत परिस्थितियाँ उसकी जानकारी में आने के पश्चात यथासम्भव शीघ्र ऐसे अधिवेशन में अपने हित का स्वरूप प्रकट करेगा और यह प्रकटीकरण, यथास्थिति, बोर्ड या समिति के कार्यवृत्त में अभिलिखित किया जाएगा और वह निदेशक या सदस्य उस विषय के सम्बन्ध में बोर्ड या समिति के किसी विचार-विमर्श या विनिश्चय में कोई भाग नहीं लेगा।

अध्याय 4


राष्ट्रीय बैंक को कारबार का अन्तरण


16. कृषिक पुनर्वित्त और विकास निगम की आस्तियों और दायित्वों का अन्तरण


(1) ऐसी तारीख को जो केन्द्रीय सरकार रिजर्व बैंक से परामर्श करके अधिसूचना द्वारा नियत करे कृषिक पुनर्वित्त और विकास निगम (जिसे इस अध्याय में इसके पश्चात “निगम” कहा गया है) का सम्पूर्ण उपक्रम, जिसके अन्तर्गत सभी कारबार, सम्पत्ति, आस्तियाँ और दायित्व, अधिकार, हित, विशेषाधिकार और किसी भी प्रकार की बाध्यताएँ हैं, वे चाहे जिस प्रकार की हों, राष्ट्रीय बैंक को अन्तरित और उसमें निहित हो जाएगा।

(2) निगम के उपक्रम के उपधारा (1) के अधीन राष्ट्रीय बैंक को अन्तरण के लिये प्रतिकर के रूप में राष्ट्रीय बैंक उस उपधारा के अधीन नियत तारीख से (जिसे इस धारा में इसके पश्चात नियत तारीख कहा गया है) छह मास के भीतर निगम के शेयर धारकों को, नियत तारीख से ठीक पहले की तारीख को निगम की कुल समादत्त पूँजी के बराबर, राशि सन्दत्त करेगा।

(3) निगम के शेयर धारकों को उपधारा (2) के अधीन सन्देय प्रतिकर की रकम शेयर धारकों के बीच निगम की समादत्त पूँजी में उनके अभिदाय के, जैसे कि वे नियत तारीख के ठीक पहले की तारीख को हो, अनुपात में प्रभाजित की जाएगी।

स्पष्टीकरण


इस उपधारा के प्रयोजनों के लिये “निगम के शेयर धारकों” से निगम के ऐसे शेयर धारक अभिप्रेत हैं जिनके नाम कृषिक पुनर्वित्त और विकास निगम अधिनियम, 1963 (1963 का 10) की धारा 8 के अधीन अनुरक्षित शेयर धारकों के रजिस्टर में नियत तारीख के ठीक पूर्ववर्ती तारीख को हों।

(4) राष्ट्रीय बैंक उपधारा (2) में निर्दिष्ट निगम के शेयर धारकों को ऐसी अवधि के लिये, यदि कोई हो, जो नियत दिन से पूर्व निगम के लेखा वर्ष में व्यतीत हो गई हो, ऐसी दर से संगणित रकम भी सन्दत्त करेगा जिस पर कृषिक पुनर्वित्त और विकास निगम अधिनियम, 1963 (1963 का 10) की धारा 6 के अधीन न्यूनतम लाभांश के सन्दाय के बारे में निगम के शेयरों को प्रत्याभूति दी गई थी और इस रकम को राष्ट्रीय बैंक, उपधारा (2) में निर्दिष्ट निगम के शेयर धारकों में नियत तारीख से ठीक पूर्ववर्ती तारीख को ऐसे शेयर धारकों द्वारा धारित शेयरों के अनुपात में और ऐसी दर पर जिस पर ऐसे शेयरों को न्यूनतम लाभांश के सन्दाय के बारे में प्रत्याभूति दी गई थी, वितरित करेगा।

(5) ऐसी सभी संविदाएँ, विलेख, बन्धपत्र, करार, मुख्तारनामे, विधिक प्रतिनिधित्व के अनुदान और किसी भी प्रकृति की अन्य लिखतें, जो नियत तारीख के ठीक पूर्व विद्यमान या प्रभावी हैं और जिनका निगम एक पक्षकार है या जो निगम के पक्ष में है, यथास्थिति, राष्ट्रीय बैंक के विरुद्ध या उसके पक्ष में वैसे ही पूर्ण बल और प्रभाव की होंगी और वैसे ही पूर्णतः और प्रभावी रूप में प्रवृत्त की जा सकेंगी या उन पर कार्य किया जा सकेगा मानो निगम के स्थान पर राष्ट्रीय बैंक उसका एक पक्षकार रहा था या मानो वे राष्ट्रीय बैंक के पक्ष में रही थीं।

(6) यदि नियत तारीख से ठीक पूर्व निगम द्वारा या उसके विरुद्ध कोई वाद, अपील या किसी भी प्रकार की अन्य विधिक कार्यवाही चाहे वह किसी भी प्रकार की हो लम्बित है तो निगम के उपक्रमों का राष्ट्रीय बैंक को अन्तरण या इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट किसी बात के कारण उसका उपशमन नहीं होगा, वह बन्द नहीं होगी या उस पर किसी भी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा किन्तु वह वाद, अपील या अन्य कार्यवाही राष्ट्रीय बैंक द्वारा या उसके विरुद्ध जारी रखी जा सकेगी, अभियोजित की जा सकेगी और प्रवृत्त की जा सकेगी।

17. निगम का विघटन और 1963 के अधिनियम 10 का निरसन


धारा 16 की उपधारा (1) के अधीन नियत तारीख को, -

(क) निगम विघिटत हो जाएगा; और
(ख) कृषिक पुनर्वित्त और विकास निगम अधिनियम, 1963 निरसित हो जाएगा।

18. रिजर्व बैंक से कारबार का अन्तरण


(1) ऐसी तारीख को जो केन्द्रीय सरकार रिजर्व बैंक से परामर्श करके अधिसूचना द्वारा नियत करे:-

(क) भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 46 क के अधीन स्थापित और अनुरक्षित राष्ट्रीय कृषिक प्रत्यय (दीर्घकालिक प्रवर्तन) निधि, और
(ख) भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 46ख के अधीन स्थापित और अनुरक्षित राष्ट्रीय कृषिक प्रत्यय (स्थिरीकरण) निधि, से सम्बन्धित रिजर्व बैंक की आस्तियाँ और दायित्व राष्ट्रीय बैंकों को अन्तरित हो जाएँगे और क्रमशः धारा 42 में निर्दिष्ट राष्ट्रीय ग्रामीण प्रत्यय (दीर्घकालिक प्रवर्तन) निधि और धारा 43 में निर्दिष्ट राष्ट्रीय ग्रामीण प्रत्यय (स्थिरीकरण) निधि के भाग हो जाएँगे।

(2) ऐसी तारीख से जो केन्द्रीय सरकार रिजर्व बैंक से परामर्श करके अधिसूचना द्वारा नियत करे, ऐसे उधार और अग्रिम जो रिजर्व बैंक ने भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 17 के {सिवाय खण्ड (4) के उपखण्ड (क) के, अधीन राज्य सहकारी बैंकों और प्रादेशिक ग्रामीण बैंकों को दिये हैं और जो रिजर्व बैंक साधारण या विशेष आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे, यथाशक्य, धारा 21 के अधीन राष्ट्रीय बैंक द्वारा दिये गए उधार और अग्रिम हो जाएँगे और समझे जाएँगे और राष्ट्रीय बैंक ऐसे उधारों और अग्रिमों की रकम ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर, जो केन्द्रीय सरकार रिजर्व बैंक से परामर्श करके विनिर्दिष्ट करे, रिजर्व बैंक को प्रतिसन्दत्त करेगा।

(3) उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी आस्ति या दायित्व के सम्बन्ध में या उपधारा (2) में निर्दिष्ट किसी उधार या अग्रिम के सम्बन्ध में रिजर्व बैंक के सभी अधिकार, हित, दायित्व, विशेषाधिकार और बाध्यताएँ, वे चाहे जिस प्रकार की हों, (जिनके अन्तर्गत किन्हीं विनिमय पत्रों और वचन पत्रों के क्रय, विक्रय और मितिकाटा पर पुनः भुगतान के रूप में उद्भूत अधिकार और बाध्यताएँ हैं) उस तारीख को जिसको ऐसी आस्ति या दायित्व उपधारा (1) के अधीन राष्ट्रीय बैंक को अन्तरित हो जाता है या, यथास्थिति, ऐसा उधार या अग्रिम उपधारा (2) के अधीन राष्ट्रीय बैंक द्वारा दिया गया उधार या अग्रिम हो जाता है, राष्ट्रीय बैंक को अन्तरित और उसमें निहित हो जाएँगी।

(4) ऐसी सभी संविदाएँ, विलेख, बन्धपत्र, करार, मुख्तारनामे, विधिक प्रतिनिधित्व के अनुदान और किसी भी प्रकृति की अन्य लिखतें, जो उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी आस्ति या दायित्व से सम्बन्धित हैं और जो उस उपधारा के अधीन नियत तारीख से ठीक पूर्व अस्तित्वशील या प्रभावी हैं, या उपधारा (2) में निर्दिष्ट किसी उधार या अग्रिम से सम्बन्धित हैं और उस उपधारा के अधीन नियत तारीख से ठीक पूर्व अस्तित्वशील या प्रभावी हैं, यथास्थिति, राष्ट्रीय बैंक के विरुद्ध या उसके पक्ष में वैसे ही पूर्ण बल वाली और प्रभावी होंगी और वैसे ही पूर्ण बल और प्रभावी रूप में उन्हें प्रवृत्त और कार्यान्वित किया जा सकेगा मानो रिजर्व बैंक के स्थान पर राष्ट्रीय बैंक उनका पक्षकार रहा है या मानो वे राष्ट्रीय बैंक के पक्ष में रही हैं।

(5) यदि, यथास्थिति, उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन नियत तारीख से ठीक पूर्व उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी आस्ति या दायित्व के सम्बन्ध में या उपधारा (2) में निर्दिष्ट किसी उधार या अग्रिम के सम्बन्ध में रिजर्व बैंक द्वारा या उसके विरुद्ध कोई वाद, अपील या अन्य विधिक कार्यवाही चाहे वह किसी भी प्रकार की हो लम्बित है तो उपधारा (1) के अधीन ऐसी आस्ति या दायित्व के राष्ट्रीय बैंक को अन्तरण के कारण या, यथास्थिति, ऐसे उधार या अग्रिम का उपधारा (2) के अधीन राष्ट्रीय बैंक द्वारा अनुदत्त उधार या अग्रिम हो जाने के कारण या इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट किसी बात के कारण उसका उपशमन नहीं होगा, वह बन्द नहीं होगी या उस पर किसी भी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा, किन्तु वह वाद, अपील या अन्य कार्यवाहियाँ राष्ट्रीय बैंक द्वारा या उसके विरुद्ध जारी रखी जा सकेंगी, अभियोजित की जा सकेंगी और प्रवृत्त की जा सकेंगी।

अध्याय 5


राष्ट्रीय बैंक द्वारा उधार


19. राष्ट्रीय बैंक द्वारा उधार


राष्ट्रीय बैंक इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का पालन करने के प्रयोजन के लिये -

1{(क) केन्द्रीय सरकार की प्रत्याभूति सहित या उसके बिना बन्धपत्र, डिबेंचरों और अन्य वित्तीय लिखतों को, ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर, जो बोर्ड द्वारा अनुमोदित की जाएँ, निर्गमित कर सकेगा और उनका विक्रय कर सकेगा;}

1{(ख) रिजर्व बैंक से ऐसा धन जो माँग किये जाने पर, या अन्यथा प्रतिसन्देय हो, ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर, जिनके अन्तर्गत प्रतिभूति और प्रयोजन से सम्बन्धित निबन्धन भी हैं, जो रिजर्व बैंक विनिर्दिष्ट करे, उधार ले सकेगा;
(ग) केन्द्रीय सरकार से और बोर्ड द्वारा अनुमोदित किसी अन्य प्राधिकारी या संगठन या संस्था से, ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर धन उधार ले सकेगा जो करार पाई जाएँ;
(घ) केन्द्रीय सरकार, किसी राज्य सरकार, किसी स्थानीय प्राधिकरण, किसी राज्य भूमि विकास बैंक, किसी राज्य सहकारी बैंक या किसी अनुसूचित बैंक या किसी व्यक्ति या निकाय से, चाहे निगमित हो या न हो, जो ऐसा निक्षेप, जो ऐसे निबन्धनों पर, जो राष्ट्रीय बैंक, रिजर्व बैंक के अनुमोदन से, नियत करे, प्रतिसन्देय हो, स्वीकार कर सकेगा; और
(ङ) केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी अन्य स्रोत से दान, अनुदान, सन्दान या उपकृतियाँ प्राप्त कर सकेगा।}

2{20. विदेशी करेंसी में उधार


विदेशी मुद्रा प्रबन्ध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) में या विदेशी मुद्रा से सम्बन्धित तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रीय बैंक, केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से और रिजर्व बैंक से परामर्श करके, उधार और अग्रिम मंजूर करने के लिये या इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन विनिर्दिष्ट किसी अन्य प्रयोजन के लिये ऐसी करेंसी का उपयोग करने के लिये भारत में या अन्यत्र किसी बैंक या वित्तीय संस्था से विदेशी करेंसी उधार ले सकेगा।}

अध्याय 6


राष्ट्रीय बैंक के प्रत्यय कृत्य


21. उत्पादन और विपणन प्रत्यय


(1) राष्ट्रीय बैंक, 3{राज्य सहकारी बैंकों, केन्द्रीय सहकारी बैंकों,, प्रादेशिक ग्रामीण बैंकों या ऐसी किसी वित्तीय संस्था या वित्तीय संस्थाओं के किसी वर्ग को जो रिजर्व बैंक द्वारा इस निमित्त अनुमोदित हैं, पुनर्वित्त पूर्ति, उधार और अग्रिमों के रूप में, जो माँग पर या अठारह मास से अनधिक की नियत अवधि के अवसान पर, प्रतिसन्देय हैं, निम्नलिखित के वित्तपोषण के लिये उपबन्ध कर सकेगा -

(i) कृषि संक्रियाएँ या फसलों का विपणन, या
(ii) कृषि या ग्रामीण विकास के लिये आवश्यक निविष्टि का विपणन और वितरण, या
(iii) कृषि या ग्रामीण विकास की उन्नति के लिये या उस क्षेत्र में कोई अन्य क्रियाकलाप,
Path Alias

/articles/raasataraiya-karsai-aura-garaamaina-vaikaasa-baainka-adhainaiyama-1981-national

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