इस जल नीति को वेबसाइट से किसान कैसे पढे़गा जिससे कि वह अपने सुझाव दे सके, यह एक यक्ष प्रश्न है जबकि जल नीति से किसान का ही सर्वाधिक मतलब हो सकता है। क्योंकि आज भी करीब 85 प्रतिशत भूजल सिंचाई में इस्तेमाल होता है। इसी प्रकार से समाज के अन्य वर्ग के लोगों तक इस नीति की पोथी में लिखी लीपियों का अर्थ समाज तक कैसे पहुंचे? प्रथम दृष्टया जब इस नीति को पढ़ा जा रहा है तो यह नीति प्रारूप किसान और समाज को ठेंगा दिखाता लग रहा है जबकि पानी को बाजार बनाने वालों के लिए यह एक सुखद स्वप्न की तरह है।
भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय जल नीति का प्रारूप तैयार किया गया है। इसको भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय ने तैयार किया है। इस प्रारूप को मंत्रालय की वेबसाइट पर यह कहते हुए डाल दिया गया है कि देश भर के लोग इस प्रारूप को पढ़ें और इस पर अपनी प्रतिक्रिया 27 फरवरी, 2012 तक मंत्रालय को भेज दें, जो सुझाव या सलाह लोगों द्वारा दी जाएगी उस पर विचार भी किया जाएगा तथा उचित विचारों को प्रारूप में शामिल किया जाएगा, ऐसा मंत्रालय का कहना है। इसी के आधार पर देश को एक नई जल नीति मिलेगी।नीर फाउंडेशन द्वारा इस नीति को मथने के उद्देश्य से देश भर के विषय विशेषज्ञों व किसानों के साथ एक दिवसीय परिचर्चा आयोजित की गई। यह परिचर्चा होटल क्रिस्टल पैलेस, मेरठ में आयोजित हुई।
परिचर्चा प्रारम्भ करते हुए नीर फाउंडेशन के निदेशक रमन त्यागी ने बताया कि भारत सरकार द्वारा जल के सही प्रबंधन और उसके उचित देख-रेख के लिए वर्ष 1986 से लेकर तीसरी बार जल नीति प्रारूप 2012 तैयार किया है। सरकार के अनुसार इस प्रारूप को विषय विशेषज्ञों के साथ गहन विचार-विमर्श करके तैयार किया गया है। देश की पहली जल नीति वर्ष 1986 में तथा दूसरी वर्ष 2002 में लागू की गई थी। इन जल नीतियों की कुछ खामियों के चलते ही वर्तमान में भूजल का अत्यधिक दोहन बढ़ा जिसके कारण भूजल स्तर लगातार नीचे खिसकता रहा और बरसाती नदियों के हल्क और उनका बिछोना सूख गया। दूसरे जल प्रदूषण इतना बढ़ा कि देश में जगह-जगह भूजल प्रदूषित होता रहा, परिणाम स्वरूप बरसाती नदियां तो नाला नजर आने लगीं और पहाड़ी नदियां प्रदूषण ढोने का साधन बन गईं। उपरोक्त चन्द कारणों को देखते हुए देश में एक ऐसी जलनीति की मांग की जा रही थी जोकि इन दोनों श्राप से मुक्ति का मार्ग प्रसस्त कर सके। देश की इसी मांग को ध्यान में रखकर ही भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय ने यह जल नीति तैयार की है। जिसे जल नीति 2012 का नाम दिया गया है। वर्तमान में इस जल नीति को मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर डाला हुआ है और देश के सभी नागरिकों से इस पर सुझाव आमंत्रित किए हैं। सरकार को इसके लिए धन्यवाद कि वह एक नई जल नीति बनाने के लिए प्रयासरत है।
इस जल नीति को वेबसाइट से किसान कैसे पढे़गा जिससे कि वह अपने सुझाव दे सके, यह एक यक्ष प्रश्न है जबकि जल नीति से किसान का ही सर्वाधिक मतलब हो सकता है। क्योंकि आज भी करीब 85 प्रतिशत भूजल सिंचाई में इस्तेमाल होता है। इसी प्रकार से समाज के अन्य वर्ग के लोगों तक इस नीति की पोथी में लिखी लीपियों का अर्थ समाज तक कैसे पहुंचे? प्रथम दृष्टया जब इस नीति को पढ़ा जा रहा है तो यह नीति प्रारूप किसान और समाज को ठेंगा दिखाता लग रहा है जबकि पानी को बाजार बनाने वालों के लिए यह एक सुखद स्वप्न की तरह है। ऐसा इस प्रारूप से लगता है कि इसे पानी के बाजारीकरण के लिए ही लिखा गया है, न तो किसानों की कहीं भलाई नजर आती है और न ही आम समाज की। इस प्याऊ लगाकर पानी पिलाने वाले देश में यह जलनीति प्रारूप एक धोखा सा नजर आता है।
नीति प्रारूप का अध्ययन करने के बाद संस्था द्वारा तय किया गया कि इस पर किसानों व समाज के अन्य वर्गों के लोगों के साथ एक स्वस्थ बहस होनी चाहिए। इसी को ध्यान में रखकर परिचर्चा आयोजित की गई।
परिचर्चा में इण्डिया वाटर पार्टनरशिप की एग्जेक्यूटिव सचिव डा0 वीना खण्डूरी ने कहा कि इस नीति प्रारूप को तैयार करने में बहुत अधिक मेहनत की गई है। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में नीति से पहले विषय विशेषज्ञों व अन्य संबंधित लोगों के साथ चर्चा की गई है। ऐसे में इस नीति प्रारूप पर चर्चा करने के लिए तथा इसको और अधिक प्रभावी बनाने के लिए मंत्रालय द्वारा समय दिया गया है। इस पर देश भर में चर्चाएं भी की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि पानी का अत्यधिक दोहन व उसका प्रदूषण एक गंभीर समस्या है तथा साथ ही पानी को रिचार्ज न करना उससे भी अधिक गंभीर चिंता का विषय है। बढ़ता शहरीकरण और बदलता मौसम भी समस्या को अधिक बढ़ा रहा है।
परिचर्चा में वाटर कीपर एलाइंस की डा0 मिनाक्षी अरोड़ा ने नीति प्रारूप पर अपना प्रस्तुतिकरण देते हुए कहा कि वर्तमान में पानी की उपलब्धता का संकट नहीं है बल्कि जरूरत सही प्रबंधन की है, पानी के दुरूपयोग को रोकने की है। स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता का संकट है। मांग बढ़ रही है और सप्लाई नहीं हो पा रही है। यह आवश्यक है कि पानी का उतना इस्तेमाल किया जाए जितनी जरूरत है। यह भी जरूरी है कि नदियों के इको सिस्टम को बनाए रखा जाए। पानी का या उसके स्रोतों का निजिकरण न किया जाए। इस नीति से तो यही लगता है कि पानी का निजीकरण व बाजारीकरण होने वाला है। यहां एक अहम मुददा यह भी है कि जब स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता होना मानवाधिकार की श्रेणी में आता है तो उसको कमोडिटी कैसे कहा जा सकता है, जबकि नीति में यही कहा गया है। इस नीति को बनाने में एक तो जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए और अधिक समय सुझावों के लिए देना चाहिए जिससे कि देश के अधिक से अधिक लोग इस पर बहस कर सकें। जल नीति का निर्णय उन लोगों के बीच से होना चाहिए जिनके लिए इसको बनाया जाना है या जो इससे सर्वाधिक सरोकार रखते हैं अर्थात निर्णय जमीनी स्तर से होना चाहिए। नदियों के बेसिन मैनेजमेंट की बात भी की जानी चाहिए। पानी हमारी मूलभूत जरूरत है अर्थात इससे हमारी खाध सुरक्षा भी जुड़ी हुई है। अतः हमें एक लोकजलनीति चाहिए।
परिरचर्चा में पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री सोमपाल शास्त्री ने बताया कि वर्तमान नीति प्रारूप को देखकर लगता है कि हमेशा की तरह इस नीति में भी सरकार की नियमन की प्रवृति झलक रही है जिससे कि उसका हस्तक्षेप बना रहे। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अत्यधिक हस्तक्षेप से भ्रष्टाचार बढ़ता है। आज नहर प्रणाली में पहले के मुकाबले अधिक मानव शक्ति कार्य कर रही है लेकिन प्रबंधन गरीब हो चला है जबकि जब संसाधन नहीं थे और मानव शक्ति का भी अभाव था तब प्रबंधन बेहतर होता था। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के सिद्धांत पर भी हमें पुनः विचार करना चाहिए। पहले मुनादी से वारबंदी होती थी, नालियां स्वयं साफ हो जाती थीं तथा चैनल भी वी के आकार में होते थे जिससे कि पानी का उलटना-पलटना जारी रहता था। इस नीति के पीछे सीधे-सीधे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का खेल लगता है। सरकार की पानी के प्रति उदासीनता आज भी बनी हुई है। बजट का मात्र एक चौथाई समय खेती और जल के लिए होता है पूरे बजट का मात्र एक प्रतिशत। जबकि खेती से 62-65 प्रतिशत लोग आधारित है। भारत की कुल आय का करीब 16-22 प्रतिशत खेती से आता है। बजट में सिंचाई व बाढ़ के लिए मात्र 411 करोड़ का प्रावधान रहा जबकि उसमें भी 40 प्रतिशत बाढ़ नियंत्रण के लिए था।
नीति में एक बहुत ही खतरनाक बिन्दु यह है कि जो पानी को प्रदूषित करेगा उसे उस प्रदूषण को कम करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतू छूट दी जाएगी। अर्थात प्रदूषण फैलाने वाले को बढ़ावा मिलेगा। इससे अपराधियों को दण्डित करने के बजाए उन्हें पारितोषिक दिए जाने की बात इस नीति में कही गई है। आज के समय में जल संसाधनों के विकास की आवश्यकता है। इस पर कहीं भी बल नहीं दिया गया है। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अगर किसान के लिए सिंचाई की व्यवस्था हो जाती है तो उसकी पेयजल की व्यवस्था स्वयं ही हो जाएगी। इंटरलिंकिंग ऑफ रिवर्स का कार्य भी पूरी तरह से अव्यवहारिक है क्योंकि मात्र ब्रह्मपुत्र नदी में ही थोड़ा बहुत अतिरिक्त पानी है जबकि सभी नदियों में पर्याप्त जल ही मौजूद नहीं है। वर्तमान नीति में कहा गया है कि अंतरराज्यीय विवाद माननीय उच्चतम न्यायालय में निपटेगा जबकि आरटिकिल 56 के अनुसार जल राज्यों का विषय है। ऐसे में हम नीति को तो समाज के अनुरूप करें ही साथ ही जल जागृति करें। प्रदूषण करने वाले को दण्डित करने तथा उसकी भरपाई करने की व्यवस्था करें। हम कैसे किसान विरोधी नीति तय कर सकते हैं जबकि किसान ही एक ऐसा समूह है जोकि अपनी ऋण अदायगी में आगे रहता है अर्थात 98.6 प्रतिशत किसान अपना ऋण समय पर चुकाते हैं। पूरी नीति का प्रस्ताव व्यवहारिक होना चाहिए।
परिचर्चा में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने नीति पर कहा कि इसमें किसानों की बात को सुना जाना चाहिए। इसके लिए सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि किसान अपनी बात सरकार तक पहुंचा सकें। बरसाती नदियों पर छोटे-छोटे चेक डैम बनाने चाहिए। नीति तब ही अच्छी होगी जब उसमें सबका समान ख्याल रखा जाएगा। जल प्रदूषण गांव-गांव फैल रहा है ऐसे में इस पर भी अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। भूगर्भ जल विभाग के वैज्ञानिक डा0 सुकेश साहनी ने नीति प्रारूप पर अपने सुझाव देते हुए बताया कि एक तो नीति प्रारूप में अमीर गरीब के लिए एक ही नियमावली न हो तथा दूसरे अनसाइंटिफिक तथा गैर-कानूनी नदियों से होने वाले खनन पर सख्ती बरती जानी चाहिए। नदियों का इकोलोजिकल सिस्टम बनाए रखना चाहिए। वर्षाजल संरक्षण पर भी सख्ति होनी चाहिए तथा तालाबों को पुनः खोदा जाना चाहिए।
केंद्रीय भूजल बोर्ड के वैज्ञानिक डा0 पी एन सिंह ने नीति को साधारण करने का सुझाव प्रस्तुत किया। नीति जितनी सरल होगी उतना ही उसको अमलीजामा पहनाने में सुविधा होगी। यह आवश्यक है कि नीति के प्रावधानों को सीधी और सरल भाषा में कहा जाए जिसके कि दो अर्थ न हों।
उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के सेवानिर्वित्त अभियंता डा0 एस के कुमार ने नीति में नहरी सिस्टम को अधिक मजबूत करने पर बल दिया। नहरों से जहां सिंचाई होती है वहीं भूजल स्तर भी बढ़ता है। सिंचाई में कम पानी इस्तेमाल करने पर भी बल दिया जाना चाहिए। हमें पानी के दाम तय करने में कुछ भी बुराई नजर नहीं आती है क्योंकि जो भी वस्तु मुफ्त में दी जाएगी उसकी बर्बादी अधिक होगी। हमें वर्ष 1947 में करीब 6000 लीटर पानी प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति उपलब्ध था। जबकि आज मात्र यह आंकड़ा 2000 लीटर से भी कम हो गया है। हमें भी संभलना होगा अलग हम इसी प्रकार से पानी की बर्बादी करते रहे तो उपलब्धता और कम होती चली जाएगी। हमें पश्चिमी देशों की तर्ज पर भी आगे नहीं बढ़ना है। अगर आज अमेरिका की जीवन शैली पर पूरी दुनिया जीने लगे तो हमे करीब 4.6 पृथ्वी और चाहिए। फसल चक्र का भी ध्यान रखना है।
इस अवसर पर खटकी, खंदरावली, कौल, भटीपुरा, पूठी, अतराड़ा व नंगलामल आदि गांवों के वीरेन्द्र सिंह, कांती त्यागी, अतुल कुमार, ओमबीर सिंह, अमर सिंह, विनय त्यागी, जितेन्द्र कुमार, पप्पु सिंह, खजान सिंह, कर्मवीर व ललित त्यागी आदि किसान मौजूद थे जिन्होंने अपने दैनिक जीवन में पानी से संबंधित अनुभव तथा अपनी जरूरतों के अनुसार बातें रखीं। अन्त में यह तय किया गया कि इस परिचर्चा से निकले परिणामों को संकलित कर भारत सरकार को सौंपा जाएगा।
किसानों के विचार
• किसानों को उनकी फसलों के लिए समय पर पानी मिलना चाहिए - कांती त्यागी
• जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात भी की जावे क्योंकि जैविक फसल में पानी की कम जरूरत होती है - अमर सिंह
• पानी के प्रदूषण के लिए फैक्ट्रियों पर जुर्माना लगे - ओमबीर सिंह
• पानी के लिए ऐसी ही व्यवस्था हो जैसे कोपरेटिव चलता है - विनय त्यागी
• सरकारी टयूबवेल तो बंद पड़े हैं उनको भी चलाना चाहिए इससे निजी टयूबवेल कम लगेंगे - विरेन्द्र सिंह
• नहरों को पक्का न किया जाए इससे भूजल स्तर कम हो रहा है - अतुल कुमार
Name | Organisation | Address | Phone |
Ramesh Kumar | Hindi India Water Portal (ARGHYAM) | 47, IIIrd Floo, Pratap Nagar, Mayur Vihar Phase I, New Delhi. | 09811236709 ramesh@indiawaterportal.org |
Minakshi Arora | Water Keeper Alliance | Mayur Vihar Phase I, New Delhi | 09250725116 |
S K Sahini | Ground Water Department | 35 U/4A, Rampur Garden, Barreilly | 09335280003 |
S K Kumar | Retired Chief Engineer Irrigation | 53A, Saket, Meerut | 09719075326 |
Ramveer Singh Tomar | Farmer | Village – Maukhas, Meerut | 09719739363 |
Virendra Singh | Farmer | Village – Bhatipura, Meerut | 09457030316 |
Om Veer Singh | Farmer | Village – Naglamal, Meerut | 09557985537 |
Vinay Tyagi | Farmer | Village – Atrada, Meerut | 09368746097 |
Pawan Tyagi | Farmer | Village – Atrada, Meerut | 09868734473, 0975686826 |
Amar Singh | Farmer | Village – Khatki, Meerut | 08006170000 |
K H Zuberi | UNI | Kotla Street, Meerut City | 09837066966, 0121-2422255, 2422266 |
Srikrishna Mittal | Farmer | Village – Maukhas, Meerut | 09456638235 |
Atul Tyagi | Farmer | Village – Kaul, Meerut | 09719129134 |
Kanti Prasad | Farmer | Village – Khandrawali, Meerut | 09027169173 |
Ajay Kumar Sharma | Farmer | Village – Khandrawali, Meerut | 09536780436 |
Vikas Bhalsona | Farmer | Village – Bhalsona, Meerut | 09410276694, 09927286523 |
Ajay Kumar | Farmer | Meerut | 09368266430 |
Amit Deshwal | Narayan Foundation | Boundry Road, Meerut | 09568339904 |
A K Saxena | Director, BDS Institute | BDS Institute, Meerut | 9837246366 |
D K Sharma | Chairman, BDS Institute | BDS Institute, Meerut | 09412204965 |
P N Singh | CGWB | Dehradun | 09868524760 |
S K Mohiddin | MoWR | New Delhi | 09560599977 |
Veena Khanduri | Executive Secretory, IWP | New Delhi | 09891195806 |
Rakesh Tikait | BKU | A-23, Kisan Bhawan, Circular Road, Muzaffarnagar | 09219666799, 0131-2621168 |
Raman Tyagi | NEER Foundation | Meerut | 09411676951 |
Sanjay Rastogi | Lions Club, Meerut | Krishna Jewellers, Begum Bridge, Meerut | 09548919866 |
Rohit Chaudhary | Farmer | Village – Jaisinghpur, Meerut | 9927142768 |
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