कई राज्यों को इस वर्ष की असाधारण बारिश के कारण काफी नुकसान हुआ है। प्रबंधन के अभाव में इस वर्ष भी इस पानी का ज्यादातर हिस्सा किसी के काम नहीं आने वाला। भारी बारिश के चलते बाढ़ व नदी जल के प्रबंधन जैसे मसलों पर केंद्रीय जल संसाधन मंत्री पवन कुमार बंसल से रूबरू हुए हिन्दुस्तान के राजनीतिक संपादक निर्मल पाठक :
रिकार्ड तोड़ बारिश के चलते कई राज्यों में काफी नुकसान हुआ है। जल संसाधन मंत्रालय इसे किस नजरिये से देखता है।
जल संसाधन मंत्रालय का संबंध मोटे तौर पर जो बड़े बांध हैं, उनकी मॉनीटरिंग से है। मंत्रालय की भूमिका जरूरत पड़ने पर चेतावनी जारी करने तक सीमित है, ताकि एहतियाती कदम उठाए जा सकें।
नदियों के बेसिन वाले इलाकों में प्रबंधन के लिए मंत्रालय ने एक योजना शुरू की थी। उस पर कितना काम हुआ है।
इस पर काफी काम हुआ है। करीब 4 करोड़ हेक्टेयर जमीन इस तरह की है जिसे बाढ़ प्रभावित कह सकते हैं। इसमें से करीब 1.85 करोड़ हेक्टेयर जमीन को संरक्षित किया जा चुका है। इसकी समीक्षा का काम राज्यों के पास है। वे प्रस्ताव बनाकर भेजते हैं और केंद्र उसी हिसाब से उन्हें पैसा उपलब्ध कराता है।
एनडीए की सरकार के समय नदियों को जोड़ने की योजना बनी थी। उस पर अमल क्यों नहीं हो पा रहा?
यह कहना ठीक नहीं है कि यह योजना एनडीए सरकार के समय बनी। यह प्रस्ताव काफी पहले से था कि नदियों को आपस में जोड़ कर जहां पानी की अधिकता है, वहां से उसे आवश्यकता वाली जगहों पर ले जाया जा सकता है। इसके लिए तीस ऐसे संपर्कों की पहचान भी की गई थी। इसमें से 16 हिमालयी क्षेत्र में हैं, जहां यह संभव नहीं है। बाकी 14 में से पांच व्यावहारिक पाए गए हैं और इनमें से तीन पर संबंधित राज्यों के बीच समझौते हुए हैं। यह काफी पेचीदा मामला है। राज्यों के बीच काफी मतभेद हैं।
पर हर साल बारिश का 85 प्रतिशत पानी बेकार चला जाता है। इसे रोकने के लिए कोई गंभीर उपाय नहीं हो रहे।
कुछ सुझाव आए हैं कि नदियों के पानी को बेकार होने से रोकने के लिए पूरे देश में एक व्यापक केनाल सिस्टम बने। इसके लिए छोटे बांध या बैराज बनाने पड़ेंगे। देश में करीब 14 करोड़ हेक्टेयर रकबा है, जहां सिंचाई के लिए पानी पहुंचाया जा सकता है। इसमें से 10.8 करोड़ हेक्टेयर को कवर किया जा चुका है और 3.2 करोड़ हेक्टेयर अभी बाकी है।
पिछले कुछ वर्षो में भूजल के बेतरतीब दोहन की प्रवृत्ति बढ़ी है। इसके लिए रेगुलेटरी अथॉरिटी बनाने का सुझाव था। क्या उस पर कोई प्रगति हुई है?
इस बारे में केंद्र ने एक मॉडल कानून राज्यों को भेजा है। 11 राज्यों ने इसे स्वीकार किया है। 18 ने कहा है, करेंगे। छह ने कहा है, हमें इसकी जरूरत नहीं। यह गंभीर चिंता का विषय है। औसतन 58 प्रतिशत पानी जमीन से निकाला जाता है। बहुत से इलाके हैं, जहां इससे कहीं ज्यादा दोहन हो रहा है। जैसे हरियाणा या पंजाब में 152 प्रतिशत तक पानी निकाला गया है। इन राज्यों के कुछ इलाकों में तो 400 प्रतिशत तक पानी निकाला गया है। इसकी वजह से उपलब्धता कम हो रही है। हम मानते हैं कि रेगुलेटरी अथॉरिटी बनाने की जरूरत है, लेकिन यह काम राज्यों का है।
क्या केंद्र इसमें कुछ नहीं कर सकता?
पानी राज्यों का विषय है। इसलिए केंद्र की भूमिका केवल उन्हें सहयोग करने भर की है। अपनी नीति हम उन पर थोप नहीं सकते। केंद्र ने अलग अलग जगह के आंकड़े इकट्ठे किए हैं और हम बता रहे हैं कि कहां क्या स्थिति है।
राष्ट्रीय जल नीति 2002 में बनी थी। क्या अब इसकी समीक्षा होनी चाहिए?
समीक्षा का काम चल रहा है। जल नीति में हमारी प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिएं, इसको लेकर मंत्रालय सभी पक्षों से बातचीत कर रहा है। उम्मीद है अगले वर्ष तक नई नीति आ जाएगी।
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