स्वतंत्रता के बाद राजस्थान ने जहाँ एक ओर विकास के लिये कीर्तिमान स्थापित किए हैं, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण प्रदूषण की अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। विकास के हर सोपान के साथ प्रदूषण के नए आयाम जुड़ते रहे हैं। आर्थिक विकास की कीमत पर्यावरण प्रदूषण के रूप में राज्य बराबर चुकाता आया है और यह प्रक्रिया आज भी जारी है। विकास के नाम पर खड़ी की गई गगनचुम्बी इमारतें, विशाल कारखाने और सड़कों पर तेज गति से दौड़ते वाहनों में मनुष्य शुद्ध वायु और निर्मल जल को तरसने लगा है।
जिस गति से राज्य में विकास हुआ है, उसी गति से वाहनों की संख्या भी बढ़ी है। एक अनुमान के अनुसार राज्य में इस समय लगभग 13 लाख वाहन हैं। अकेले जयपुर शहर में 3 लाख से अधिक वाहन हैं। राज्य में लगभग 1.25 लाख वाहन प्रतिवर्ष बढ़ते रहे हैं।
तालिका-1 राज्य में वाहनों की संख्या | ||
लाख में | ||
वर्ष | नये वाहनों की संख्या | वाहनों की कुल संख्या |
1887-88 | .92 | 7.43 |
1988-89 | 1.01 | 8.44 |
1989-90 | 1.16 | 9.61 |
1990-91 | 1.21 | 10.82 |
1991-92 | 1.23 | 12.04 |
प्रतिकूल प्रभाव
वाहनों द्वारा किए जा रहे घातक वायु प्रदूषण से सभी परेशान हैं, परन्तु अब इनके द्वारा प्रदूषण के नए आयामों को भी जन्म दिया जाने लगा है। विभिन्न स्थानों पर वाहनों की सफाई-धुलाई के कारण राज्य में वाहनों से प्रदूषण की अनोखी समस्या उत्पन्न हो गयी है। औद्योगीकरण के साथ-साथ भार ढोने वाले वाहनों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। वाणिज्यिक ढुलाई के काम में आने वाले ये वाहन निरंतर सड़कों पर गतिशील रहते हैं। वाहन चालक बीच-बीच में विश्राम हेतु विभिन्न स्थानों पर रुकते हैं और वहीं वाहनों की धुलाई व सफाई की जाती है। सफाई के फलस्वरूप, ग्रीस, तेल एवं कास्टिक सोडा निरन्तर उस क्षेत्र में इकट्ठा होता रहता है तथा जल व मृदा प्रदूषण को जन्म देता है।
इस तरह का प्रदूषण राजमार्गों पर सर्वाधिक पाया जाता है। राजस्थान से होकर सात राष्ट्रीय राजमार्ग निकलते हैं जिनकी कुल लम्बाई 2888.38 किलोमीटर है। इनमें सबसे लम्बा राष्ट्रीय राज्य मार्ग संख्या 15 है जो राज्य में 875 किलोमीटर लम्बा है। यह पंजाब में सूदीवाला क्षेत्र से प्रारम्भ होकर राजस्थान के बाड़मेर बार्डर तक जाता है। सबसे छोटा राजमार्ग संख्या 3 है जो आगरा के पास राजस्थान बार्डर से निकलकर धौलपुर तक राजस्थान से गुजरता है। इसकी राज्य में कुल लम्बाई 28.23 किलोमीटर है। सभी राजमार्गों पर कम या अधिक मात्रा में वाहनों की धुलाई के केन्द्र कार्य कर रहे हैं। इन स्थलों पर निरन्तर खनिज तेल, ग्रीस और कास्टिक सोड़ा की परतें जमीन पर बनती जा रही हैं। ऐसे स्थलों के आस-पास कृषि भूमि भी प्रभावित हो रही है। क्योंकि भूमि में जल के साथ कास्टिक सोडा, ग्रीस और खनिज तेल भी मिलते जा रहे हैं जिससे भूमिगत जल के दूषित होने का खतरा भी बना हुआ है। भूमि की उर्वराशक्ति धीरे-धीरे नष्ट हो रही है।
प्रदूषण केन्द्र
इन सभी क्षेत्रों को 3 मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है। प्रथम श्रेणी में ऐसे स्थलों की संख्या प्रतिकिलोमीटर 4 से अधिक है। दूसरी श्रेणी के क्षेत्र में वाहनों की धुलाई के स्थलों की संख्या प्रतिकिलोमीटर 3 से अधिक है तथा तीसरी श्रेणी में ऐसे स्थलों की संख्या एक किलोमीटर क्षेत्र में 2 से अधिक है।
तालिका-2 राज्य में विभिन्न राष्ट्रीय राजमार्गों की दूरी, तेल प्रदूषण क्षेत्र एवं प्रति किलोमीटर अनुपात | |||||
क्रं.सं. | राजमार्ग सं. | राजस्थान में से निकलने वाली दूरी (कि.मी.में) | प्रदूषण केन्द्रों की संख्या | अनुपात (प्रति कि.मी.) | श्रेणी |
1. | 3 | 28.23 | 6.0 | 4.7 | पहली |
2. | 8 | 684.00 | 235 | 2.9 | तीसरी |
3. | 11 | 520.60 | 198 | 2.6 | तीसरी |
4. | 11ए | 64.00 | 15 | 4.2 | पहली |
5. | 12 | 411.50 | 106 | 3.8 | दूसरी |
6. | 14 | 305.00 | 102 | 2.9 | तीसरी |
7. | 15 | 875.05 | 222 | 3.9 | दूसरी |
तालिका-2 को देखने से स्पष्ट है कि राज्य में वाहनों की धुलाई के केन्द्र बड़ी संख्या में कार्य कर रहे हैं। इन केन्द्रों में वाहनों की सफाई और धुलाई के लिये जेट प्रेसर पम्पों का प्रयोग किया जाता है। एक स्थान के खराब होने पर इन्हें दूसरे पास के स्थान पर स्थानान्तरित कर लिया जाता है। इस तरह उद्योग के रूप में विकसित होते हुए यह प्रदूषण पट्टी का विस्तार कर रहे हैं। अगर समय रहते इस प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं लगाया गया तथा समस्या की गम्भीरता को समझकर कारगर उपाय नहीं अपनाए गए तो यह समस्या व्यापक रूप में हमारे सामने आ सकती है।
राज्य में हो रहे किसी भी तरह के प्रदूषण को रोकने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से राजस्थान प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण मण्डल की है। अतः प्रदूषण मण्डल को चाहिए कि इस तरह के केन्द्रों की स्थापना पर तत्काल रोक लगाए। इसके लिये जल प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 में संशोधन करके इस कार्य को उद्योग घोषित किया जा सकता है और मण्डल की पूर्व स्वीकृति लेनी अनिवार्य की जा सकती है। वर्तमान में कार्यरत इन केन्द्रों को उपचार संयंत्र लगाने को बाध्य किया जाना चाहिए। इसके लिये सस्ते और आसानी से सुलभ उपचार संयंत्रों का निर्माण अति आवश्यक है। विभिन्न स्थानों पर क्रियाशील इन केन्द्रों को एक स्थान पर स्थानान्तरित कर संयुक्त उपचार संयंत्र की व्यवस्था भी की जा सकती है। इस व्यवस्था के कुकुरमुत्तों की तरह फैले सफाई-धुलाई केन्द्रों को प्रदूषण मुक्त किया जा सकेगा और भूमि क्षरण की समस्या पर प्रभावी नियंत्रण सम्भव हो सकेगा।
13, अरविन्द पार्क, टौंक फाटक, जयपुर-302015
Path Alias
/articles/raajasathaana-maen-vaahana-paradauusana
Post By: Hindi