राजस्थान का बिश्नोई समुदाय जो प्रकृति पूजा और वन्यजीव संरक्षण से जुड़ी अपनी मान्यताओं के लिए जाना जाता है। इस समुदाय की लड़की ने एक बेहतरीन और सराहना करने योग्य पहल की है। इस समुदाय की एक लड़की ने अपनी शादी के विवाह संस्कार से पहले हिरण जैसे पशुओं की प्यास बुझाने के लिए खेत में खोदे गए गढढों को पानी से भर दिया है। पिछले सप्ताह उनकी इस पहल ने इस तपा देने वाली गर्मी का सामना कर रहे जंगली जानवरों को बचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दो साल पहले गांव वालों ने अपने खेतों में छोटे-छोटे कुंड खोदने शुरू किए और सीपेज के माध्यम से पानी के नुकसान को रोकने के लिए उन्हें प्लास्टिक की चादर से ढक दिया। ये कुंड अभी भी पानी से भरे हुए हैं और हर 10 दिनों में ये फिर से भर दिए जाते हैं। पर्यावरण कार्यकर्ता अनिल बिश्नोई की 23 साल की बेटी शैलजा, पीलीबंगा में अपनी शादी से पहले अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ खेतों में गई और कई कुंडों को पानी से भर दिया।
उत्तरी राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों में बिश्नोई किसानों ने लगभग 70 कुंड खोद दिए हैं। जिनमें से कई लोगों ने अपने ही खेत के 60 वर्ग किमी. भूमि के इलाके में गढढे खोदकर उनको पानी से भर दिया है। पशु पहले इस इलाके की दो प्रमुख नहरों में पानी पीने की कोशिश में डूब कर अपनी जान गंवा रहे थे। अब खेतों में कई कुंड में पानी होने से उन पशुओं को अपनी जान नहीं गंवानी पड़ेगी।
इंदिरा गांधी नहर और भाखड़ा नहर दो जिलों के सूखे इलाकों में खेतों की सिंचाई करती हैं। हिरण और बाकी पशुओं को जब प्यास लगती थी तो वे नहर के किनारों पर चढ़कर बहते पानी को पीने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन नहर के किनारों में 45 डिग्री की ढलान है। जिसकी वजह से पशुओं का वापस आना मुश्किल होता है इसी कोशिश में बहुत सारे जानवर उसी नहर में डूबकर मर जाते हैं।
आवारा कुत्तों का डर
नहर का पानी पीने की कोशिश में हर साल लगभग 30 हिरण अपनी जान गंवा देते हैं। अगर हिरण जैसे पशु गांवों के जल स्रोतों के पास जाते हैं तो आवारा कुत्ते उन पर टूट पड़ते हैं। 40-45 डिग्री के तापमान और इस संकट की वजह से लगभग 10,000 हिरणों की आबादी को प्रभावित किया है।
इस समस्या से निपटने के लिए दो साल पहले गांव वालों ने अपने खेतों में छोटे-छोटे कुंड खोदने शुरू किए और सीपेज के माध्यम से पानी के नुकसान को रोकने के लिए उन्हें प्लास्टिक की चादर से ढक दिया। ये कुंड अभी भी पानी से भरे हुए हैं और हर 10 दिनों में ये फिर से भर दिए जाते हैं। पर्यावरण कार्यकर्ता अनिल बिश्नोई की 23 साल की बेटी शैलजा, पीलीबंगा में अपनी शादी से पहले अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ खेतों में गई और कई कुंडों को पानी से भर दिया। शैलजा ने गांव वालों से जंगली जानवरों का ध्यान रखने और पक्षियों के लिए छतों पर पानी से भरे कंटेनरों को रखने की भी अपील की।
दुल्हन ने अपनी शादी में मेहमानों को पौधे भेंट किए और उन पौधों को अपने घरों में लगाने को कहा। शैलजा अपने पर्यावरण संरक्षण के काम में अपने पिता की मदद कर रही हैं और उन्होंने कल्याण सीरवी द्वारा निर्देशित हिंदी फिल्म ‘साको- 363 अमृता की खेजड़ी’ में काम किया है। जा लीजेंड अमृता देवी की कहानी पर आधारित है, जिन्होंने गांव में पेड़ों को बचाने के लिए संघर्ष किया था।
इस मौके पर श्री जम्भेश्वर पर्यावरण इवूम जीवक्षेत्र प्रदेश संस्था के सदस्यों ने जंगली जानवरों को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए शैलजा की पहल की सराहना की। 2009 में राज्य स्तरीय अमृता देवी पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित श्री बिश्नोई ने कहा कि उन्होंने क्षेत्र के किसानों को पानी के गढढे खोदने के लिए विश्वास में लिया था और इस काम के लिए पैसों को इकट्ठा किया था। गांव के नजदीक में जो कुंड बनाये गये है, उन्हें पानी से भर दिया जाता है। जिसे नहरों या गांव की जलापूर्ति योजना के अंतर्गत में लाया जाता है। श्रीगंगानगर जिले की तहसील पदमपुरा, रायसिंहनगर तहसील और हनुमानगढ़ जिले की पीलीबंगा और सूरतगढ़ तहसील में पड़ने वाले गांव इस पहल का हिस्सा रहे हैं।
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