प्रो. जीडी अग्रवाल पिछले चार महीने से अनशन पर हैं। उन्हें जबरन अस्पताल ले जाया गया है। वे गंगा पर हो रही राजनीति से दुखी और निराश हैं। उनका कहना है कि मेरे इस विरोध का कोई मतलब नहीं है। इसके बावजूद गंगापुत्र का अनशन जारी है।
बात 17 अप्रैल, 2012 की है। दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के प्राइवेट वार्ड के अपने कमरे में प्रो. जीडी अग्रवाल अहले सुबह उठ गए थे। अन्य दिनों की अपेक्षा वे खुद को ऊर्जावान महसूस कर रहे है। स्वयं उठकर बाथरूम गए। स्रान किया। अपने गुरू अविमुक्तेश्वरानंद की तस्वीर की पूजा की। फिर तैयार होने लगे। इस दिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ वे गंगा के मुद्दे पर महत्त्वपूर्ण बैठक में भाग लेने वाले थे। प्रो. अग्रवाल बाहर निकलने ही वाले थे कि उनके डॉक्टर अपनी टीम के साथ कमरे में प्रवेश करते हैं। डॉक्टर ने कहा कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है और वे बेहद कमजोर हैं, सो मीटिंग में नहीं जा सकते। जीडी अग्रवाल समझ नहीं पाये कि अचानक क्या हो गया, अभी एक दिन पहले तक उन्हें कहीं भी जाने की अनुमति थी।खैर, उस वक्त जीडी अग्रवाल और उनके सहयोगी, डॉक्टर को समझाने की कोशिश करते रहे कि उन्हें एक महत्त्वपूर्ण बैठक में जाना है, लेकिन सरकार के इशारे पर आई डॉक्टरों की टीम ने प्रो. जीडी अग्रवाल को बेड पर लिटा दिया और ड्रिप चढ़ा दिया गया। प्रो. अग्रवाल प्रधानमंत्री के साथ होने वाली बहुप्रतीक्षित बैठक में नहीं जा पाये। दूसरी तरफ कुछ बाबाओं और पर्यावरणविदों के साथ हुई प्रधानमंत्री की यह बैठक खानापूर्ति साबित हुई। इस बैठक में अविमुक्तेश्वरानंद विशेष रूप से शामिल हुए, जो प्रो. अग्रवाल के गुरू हैं। यह गंगा आन्दोलन की गन्दगी की एक कहानी भर है।
जीडी अग्रवाल गंगा की अविरलता के मुद्दे पर 14 जनवरी, 2012 से अनशन पर थे। 22 मार्च को उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से सूचना दी गई कि सरकार उनकी माँगों पर विचार करने को तैयार है। इसके बाद उन्हें दिल्ली स्थित एम्स लाया गया। 23 मार्च को प्रधानमंत्री का सन्देश लेकर कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल और नारायण सामी ने एम्स पहुँच घोषणा की, कि 17 अप्रैल को होने वाली बैठक में स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद (जीडी अग्रवाल) विशेष आमंत्रित के तौर पर शामिल होंगे। बैठक का एजेंडा भी अग्रवाल ही तय करेंगे। पत्र में यह भी लिखा था कि जीडी अग्रवाल अपने साथ पाँच सन्तों को ला सकते हैं। उन्होंने पाँच सन्तों की सूची में पहला नाम अपने गुरू का लिखा। शेष चार नामों में पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद, रामानंदाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य, प्रमोद कृष्णन और शिवानंद सरस्वती थे। लेकिन इस बैठक के पहले ही इसे असफल करने की तैयारी शुरू हो चुकी थी। बैठक की सुबह जीडी अग्रवाल को एम्स में रोक दिया गया। पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद को 17 की बैठक के लिये 16 को पत्र भेजा गया। रामानंदाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य का नाम भी सूची से हटा दिया गया। इन दोनों के स्थान पर शिया धर्मगुरु कल्बे जब्बार और जैन सन्त लोकेश मुनि को बैठक में शामिल किया गया। जल्दी ही यह साफ हो गया कि प्रधानमंत्री का गंगा पर दिया गया आश्वासन सिर्फ मन बहलावन है। जीडी अग्रवाल गंगा के नाम पर राजनीति चमकाने वाले संगठनों, बाबाओं और शंकराचार्यों की लड़ाई का एक मोहरा बन चुके थे।
अविमुक्तेश्वरानंद के सम्पर्क में आने से पहले 2010 तक सिर्फ भागीरथी की अविरलता की बात करने वाले स्वामी सानंद ने अपने आन्दोलन में अचानक अलकनंदा और मंदाकिनी को भी शामिल कर लिया था। इसके बाद आन्दोलन में त्रिपथ गामिनी की बात होने लगी थी। आन्दोलन में अलकनंदा और मंदाकिनी के शामिल होने के पीछे इन नदियों की चिन्ता नहीं, बल्कि एक साजिश थी। यह बदलाव अग्रवाल ने अपने गुरू के गुरू स्वरूपानंद के कहने पर किया था। हालांकि, स्वरूपानंद के गंगा सेवा अभियान के समर्थकों का कहना है कि ‘त्रिपथ गामिनी’ की बात तब की गई, जब नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ रिवर इंजीनियरिंग (एनआईआरई) की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आये कि अलकनंदा में भी विक्टोरियोफेस (अमृत तत्व) है जो भागीरथी में है। हालांकि इसमें नया कुछ नहीं, यह बात तो हिन्दू दर्शन और शास्त्रों में हजारों साल से माना जाता रहा है। पर, यहाँ मसला नदी का नहीं था। दरअसल, ज्योतिष पीठ की गद्दी को लेकर कांग्रेस समर्थित जगद्गुरू शंकराचार्य स्वरूपानंद और संघ समर्थित शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती के बीच विवाद चल रहा है। स्वरूपानंद द्वारका पीठ के शंकराचार्य हैं और उनका दावा बद्रीनाथ स्थित ज्योतिष पीठ पर भी है। लेकिन सभी 13 अखाड़ों ने वासुदेवानंद सरस्वती को ही ज्योतिष पीठ का शंकराचार्य माना है। फिर भी स्वरूपानंद अड़े हैं।
इसी विवाद को जिन्दा रखने के लिये उन्होंने अलकनंदा को जीडी अग्रवाल के आन्दोलन का मुख्य हिस्सा बना दिया, क्योंकि अलकनंदा ही ज्योतिष पीठ की मुख्य देवी है। अलकनंदा के बहाने ज्योतिष पीठ का विवाद जिन्दा रहेगा और केन्द्र सरकार के समर्थन से स्वरूपानंद का पक्ष मजबूत होगा। ज्योतिष पीठ के पीठाधीश्वर का विवाद कोर्ट में 1974 से ही चल रहा है। यहाँ तक की मई 2012 में दिल्ली में हुई विश्व बैंक की बैठक में जीडी अग्रवाल ज्योतिष पीठ के प्रतिनिधि बनकर शामिल हुए थे। अग्रवाल को इस बात की जानकारी भी नहीं थी। कहा जाता है कि बिना उनकी अनुमति के उन्हें ज्योतिष पीठ का प्रतिनिधि बताने पर अग्रवाल ने अपने गुरू के समक्ष विरोध जताया था। इस पूरे विवाद में सबसे ज्यादा रुचि जीडी अग्रवाल के गुरू अविमुक्तेश्वरानंद की है, क्योंकि स्वरूपानंद के उत्तराधिकारी होने के कारण इस दोनों ही पीठों के अगले शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ही होंगे। एक तरह से लगातार जीडी अग्रवाल को अन्धेरे में रखकर शंकराचार्य के निजी एजेंडा को आगे बढ़ाया गया।
बीच-बीच में जीडी अग्रवाल ने संघ और रामदेव को चिट्ठी लिखकर उनकी कार्यशैली पर विरोध जताया। जब तक जीडी अग्रवाल कुछ समझ पाते वे कांग्रेस के पाले में खड़े हो चुके थे। अविमुक्तेश्वरानंद ने ज्योतिष पीठ विवाद को बढ़ाने की सबसे बड़ी कोशिश इलाहाबाद में महाकुम्भ के दौरान की थी। उन्होंने मेला प्रशासन को प्रस्ताव दिया कि कुम्भ नगरी में मुख्य चौराहे पर शंकर चतुष्पद की स्थापना की जाये। इसका तात्पर्य था कि एक ही चौराहे पर चारों पीठों के शंकराचार्य को जगह दी जाये, ताकि लोग एक साथ चारों शंकराचार्यों के दर्शन कर सकें और फर्जी शंकराचार्य जिनकी संख्या सौ से भी ज्यादा है, उनकी पहचान हो सके। प्रस्ताव सुनने में बहुत अच्छा था और मेला प्रशासन ने उनका प्रस्ताव मान लिया। इस प्रस्ताव के पीछे अविमुक्तेश्वरानंद की सोच यह थी कि सरकार की मदद से चार में से दो कैम्प में उनके गुरू स्वरूपानंद का दावा रहेगा और इस तरह से वासुदेवानंद सरस्वती को वे आराम से किनारे लगा देंगे। कुम्भ आने वाले करोड़ों लोगों को यह सीधा सन्देश जाएगा कि ज्योतिष पीठ के पीठाधीश्वर स्वरूपानंद ही हैं। विवाद बढ़ता देख मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाथ खींच लिये और कुम्भ में आकर घोषणा कर दी कि कोई भी नई परम्परा शुरू नहीं की जाएगी। इससे नाराज स्वरूपानंद ने कुम्भ के बहिष्कार की धमकी दी।
जीडी अग्रवाल को घेरने का काम तब शुरू हुआ, जिस दिन उनके अनशन का सम्मान करते हुए 2010 में तत्कालीन वित्त मंत्री और बाँधों पर गठित मंत्री समूह के अध्यक्ष प्रणब मुखर्जी ने भागीरथी पर बन रही लोहारी नागपाला परियोजना को बन्द करने का निर्णय लिया था। उसी दिन यह साफ हो गया था कि अग्रवाल व्यवस्था के लिये बड़ा खतरा बन सकते हैं। उत्तराखण्ड में गंगा की विभिन्न धाराओं पर 1.30 लाख करोड़ के हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बन रहे हैं। ऐसे समय में सरकार और बाँध कम्पनियों को स्वरूपानंद ने भरोसा दिलाया। इसके बाद जीडी अग्रवाल के अनशन पर अविमुक्तेश्वरानंद का प्रभाव साफ देखा जा सकता था। देखते-ही-देखते जीडी अग्रवाल गंगा आन्दोलन का एक ऐसा चेहरा बन गए, जो विरोध तो करते थे, लेकिन सरकार में उनकी आवाज नहीं सुनी जाती थी। इन पंक्तियों के लेखक से कुछ महीने पहले ही जीडी अग्रवाल ने श्रीनगर परियोजना पर अपनी लाचारी व्यक्त करते हुए कहा था, ‘‘सरकार कुछ भी कहती रहे, श्रीनगर डैम को इसी बारिश से भरा जाएगा और उसकी तैयारी पूरी हो चुकी है। मेरे विरोध का कोई मतलब नहीं है। मैं इसे नहीं रोक पाऊँगा।’’ इसके बाद आई बारिश में केदारनाथ हादसा हुआ और भारी तबाही के बावजूद श्रीनगर डैम को भरा गया। यही नहीं मंदाकिनी-अलकनंदा में आये सैलाब से 19 छोटे-बड़े बाँधों को सीधा नुकसान पहुँचा। सरकार ने मीडिया कर्मियों पर पाबन्दी लगा दी कि वे पहाड़ पर नहीं जा सकते। उधर बाँधों के मरम्मत का काम तत्काल शुरू कर दिया गया जो आज भी तेजी से जारी है। 13 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए 22 बाँधों की समीक्षा करने को सरकार को कहा। सरकार ने इस आदेश के पालन के लिये अब तक समीक्षा समिति नहीं बनाई है। यह भी एक बड़ा कारण है कि सरकार जीडी अग्रवाल से बात नहीं कर रही। उनकी एक मुख्य माँग यह है कि बाँधों पर अन्तिम फैसला होने तक काम रोक देना चाहिए।
जीडी अग्रवाल एक बार फिर अस्पताल में भर्ती हैं, इस बार दून अस्पताल में वे खुद नहीं गए, बल्कि जबरन ले जाये गए हैं। उनका अनशन तुड़वाने के लिये प्रशासन जोर-जबरदस्ती पर उतारू है। अन्देशा है कि जीडी अग्रवाल को लेकर कभी भी बुरी खबर मिल सकती है। दुखद पहलू यह है कि जीडी अग्रवाल की जान को लेकर सरकार की छोड़ें, अब उनके आन्दोलन के साथी भी चिन्तित नहीं दिखलाई पड़ते हैं।
गुरू और शिष्य के बीच दरार तब सामने आई जब अविमुक्तेश्वरानंद ने गंगा सेवा अभियान के राष्ट्रीय संयोजक के पद से जीडी अग्रवाल को यह कहते हुए बर्खास्त कर दिया कि वे मेरा और मेरे गुरू दोनों का अनादर कर रहे हैं। वहीं जीडी अग्रवाल की आस्था अब अपने गुरू पर न होकर मात्र गंगा के प्रति है। इस लेख के लिखे जाने तक जीडी अग्रवाल को अनशन पर बैठे 119 दिन हो चुके हैं। उनके पक्ष में उनके गुरू का कोई बयान नहीं आया है। उन्होंने अपना अनशन 13 जून, 2013 से हरिद्वार स्थित मातृ सदन आश्रम से शुरू किया था। यह तारीख निगमानंद की दूसरी पुण्यतिथि थी। गंगा को लेकर हो रही इस पूरी राजनीति से दुखी लेकिन अविचलित स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद गंगा पर जारी अपने अनशन को तपस्या कहते हैं।
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