पुनर्जीवित होती 'एक नदी' | River rejuvenation

पुनर्जीवित होती 'एक नदी'
पुनर्जीवित होती 'एक नदी'

हमारे देश में एनजीओ और आम जनता द्वारा छोटी-छोटी नदियों को बचाने के प्रयास बहुत कम हुए हैं। इस वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस के अवसर पर ऐसे प्रयासों की चर्चा हमें एक प्रेरणा दे सकती है। दरअसल नदियों के किनारे अनेक सभ्यताएं विकसित हुई है। नदियां जहां एक और हमारी आस्था से जुड़ी हुई हैं वहीं दूसरी ओर हमारी अनेक मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पुराने जमाने में हमरे गांवों और कस्बों में गृहस्थी की शुरूआत नदियों के माध्यम से ही होती थी। शादी-ब्याह में नदियों का जल घर पर लाया जाता था और इस जलसे पूजा-पाठ  कर नवयुगल के सफल जीवन की कामना की जाती थी। इस तरह समाज में बचपन से ही नदियों को सम्मान देने और साफ-सुथरा रखने को सीख दी जतो थी। यही कारण था कि नदियां हमारी संस्कृति और सभ्यता की पहचान का आधार बनीं।

धीरे-धीरे समय बदला और विकास की चकाचौंध में अच्छी परम्पराओं को भी तिलांजलि दे दी गई। विकास के नाम पर हुए औद्योगिकीकरण ने स्थिति को भयावह बना दिया और नदियां अपने अस्तित्व के लिए जूझने लगीं। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि स्थिति की भयावहता को देखते हुए हमारा ध्यान बड़ी नदियों पर ही केन्द्रित रहा। छोटी नदियों को बचाने के लिए न तो कोई बड़ा आंदोलन हुआ और न ही सरकार ने छोटी नदियों के लिए कोई ठोस नीति बनाई। यही कारण है कि आज देश की अनेक छोटी नदियां या तो मर चुकी हैं या फिर मरने के कगार पर हैं। 

इस दौर में हमारे देश में अनेक छोटी-छोटी नदियों का अस्तित्व समाप्त हो रहा है। ऐसी ही एक नदी है- पूर्वी काली नदी । पश्चिमी उत्तर प्रदेश स्थित पूर्वी काली नदी पिछले कई वर्षों से अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है। हालांकि अब 'नीर फाऊंडेशन' नामक एन.जी.ओ. द्वारा काली नदी को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह जरूर है कि इस नदी को पूरी तरह से पुनर्जीवित होने में काफी समय लगेगा। अभी इस राह में बहुत सारी चुनौतियां हैं। सुखद यह है कि इन चुनौतियों के बीच नीर फाऊंडेशन के निदेशक रमन त्यागी के प्रयास रंग ला रहे हैं।  सरकार भी इस पहल में योगदान कर रही है।

नीर फाऊंडेशन के प्रयास से काली नदी के उद्गम स्थल पर जलधारा पुनः निकलने लगी है। काली नदी को नया जीवन मिलने के बाद इस बात पर विचार- विमर्श किया जा रहा है कि इसमें कैसे सालभर पानी बहता रहे और औद्योगिक कचरा इसमें न फेंका जाए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रत्येक जिले में एक समिति बनाने की जरूरत महसूस की जा रही है। जलस्तर बनाए रखने के लिए काली नदी के किनारे 12 जलाशय बनाए जाने की योजना है। जलाशय खोदने का काम शुरू हो चुका है। जलाशयों में खेत और गांव के घरों से निकलने वाले पानी को एकत्र किया जाएगा।

इस पानी का शोधन करके नदी में पहुंचाने के लिए हर 30 फीट की दूरी पर वाटर रिचार्ज पिट खोदे जाएंगे। एक जलाशय में 13 लाख लीटरपानी का भंडारण किए जाने की योजना है। इस तरह कुल 12 जलाशयों में काफी मात्रा में पानी का भंडारण किया जाएगा। इससे नदी का जलस्तर बनाए रखने में काफी मदद मिलेगी। किसानों ने काली नदी को पुनर्जीवित करने के लिए करीब 145 बीघा जमीन खाली कर दी है। इसके साथ ही नदी के किनारे की जमीन कब्जा मुक्त कराने के प्रयास भी किए जा रहे हैं।

इस प्रक्रिया से काफी जमीन सरकार के पास आ सकती है। कई जगहों पर इस जमीन पर मकान और फैक्टरियां तक बना ली गई हैं। कुछ जगहों पर नदी की जमीन पर खेती भी की जा रही है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एन.जी.टी.) ने अपने एक आदेश में काली नदी की जमीन खाली कराकर उसकी सीमाबंदी करने और सीमा पर पिल्लर गाड़ने के निर्देश दिए हैं। इस सम्बन्ध में सिंचाई विभाग ने आई.आई.टी. रुड़की से तकनीकी सहयोग मांगा है। काली नदी को पुराने स्वरूप में लौटाने के लिए किसान और ग्रामीण भी लगातार श्रमदान कर रहे हैं। काली नदी के उद्गम स्थल को देखने के लिए लोग लगातार अंतवाड़ा गांव पहुंच रहे हैं। इस पहल के माध्यम से देश के विभिन्न हिस्सों में मर रही छोटी नदियों को बचाने के लिए अन्य लोगों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 'काली नदी' नाम की दो नदियां स्थित हैं। एक है पूर्वी काली नदी और दूसरी है पश्चिमी काली नदी। पूर्वी काली नदी का उद्गम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद के अंतवाड़ा गांव से होता है और यह मेरठ, गाजियाबाद, बुलन्दशहर, अलीगढ़, एटा व फर्रुखाबाद होते हुए कन्नौज के निकटगंगा में मिल जाती है।कन्नौज में इस नदी का पानी काफी साफ है। इसके उद्गम स्थल पर इसे 'नागिन' और कन्नौज के आसपास इस नदी को 'कालिन्दी' नाम से भी जाना जाता है। आज प्रदूषण के कारण पूर्वी काली नदी की हालत दयनीय है। दूसरी ओर पश्चिमी काली नदी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जनपद में शिवालिक से 25 कि.मी. दक्षिण से निकलकर सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत और मेरठ जनपद में बहती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि पूर्वी काली नदी का प्रदूषित जल अन्ततः गंगा में गिर रहा है। इसलिए पूर्वी काली नदी के कारण गंगा भी प्रदूषित हो रही है। गौरतलब है कि इस समय नमामि नंगे परियोजना के तहत गंगा को स्वच्छ करने का अभियान चल रहा है। सवाल यह है कि छोटी नदियों को स्वच्छ किए बिना गंगा कैसे स्वच्छ हो पाएगी ?

अब हमें कोशिश करनी होगी कि इस नदी को साफ करने की योजना में अन्त तक आम आदमी की सहभागिता बनी रहे तभी यह प्रयास पूर्ण रूप से सफल हो पाएगा। अब समय आ गया है कि हम सब मिलकर काली नदी के उद्धार और हजारों गांवों के लोगों का जीवन बचाने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य करें। 22 मार्च, विश्व जल दिवस के अवसर पर नीर फाऊंडेशन की इस पहल से प्रेरणा लेकर देश के अन्य भागों में भी छोटी-छोटी नदियों को बचाने के प्रयास किए जाने चाहिएं। rohitkaushikmzm@gmail.com

स्रोत- पंजाब केसरी ,22 मार्च 2020 

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Post By: Shivendra
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