प्रदूषण को रोकने के लिए देश को एक व्यापक नीति की आवश्यकता

दिल्ली के वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति
दिल्ली के वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति

दिल्ली के वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसे जनता की सेहत के लिए एक खतरनाक मुद्दा बताया और राज्य सरकारों को फटकारते हुए कहा कि वे एक-दूसरे को दोषी ठहराने की बजाय पराली जलाने पर तुरंत प्रतिबंध लगाएं। सुप्रीम कोर्ट ने 1986 में वकील महेश चंद्र मेहता की जनहित याचिका के आधार पर दिल्ली में प्रदूषण की समस्या का निरीक्षण करना आरंभ किया था। तब से लेकर अब तक सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को ईंट भट्ठों पर पाबंदी, बसों और आटो रिक्शाओं को डीजल के बदले गैस पर चलाने और दिन में ट्रकों को शहर में प्रवेश न करने के लिए मजबूर किया, जिससे वायु प्रदूषण में कुछ सालों के लिए कमी आई, लेकिन वह फिर बढ़ने लगा। वायु प्रदूषण का स्तर जानने के लिए हवा की गुणवत्ता सूचकांक या एक्यूआइ की एक सारणी होती है, जिसमें कार्बन, सल्फर और नाइट्रोजन आक्साइड जैसी गैसें और जमीनी ओजोन शामिल होते हैं। पांचवा प्रदूषक वे नुकसानदायक कण हैं, जो हमारे बालों से पांच से 28 गुना छोटे होते हैं और नंगी आंख से दिखाई नहीं देते। इन कणों का आकार 10 से 2.5 माइक्रोमीटर तक होता है और इन्हें पीएम 10 और पीएम 2.5 कहा जाता है। पीएम 2.5 कण अधिकतर डीजल और अन्य जीवाश्म ईंधनों के धुएं से निकलते हैं। पीएम 10 कण मुख्य रूप से पराली और जलावन के धुएं और धूल से बनते हैं।

वायु प्रदूषण के कारण जो जहरीले कण हवा में फैलते हैं, वे बहुत ही नुकसानदायक होते हैं, क्योंकि वे नाक और गले को छोड़कर सीधे फेफड़ों में घुस जाते हैं और खून में मिल जाते हैं। इन कणों से दूषित हवा को लम्बे समय तक सांस के रूप में लेने से फेफड़ों के रोग के साथ-साथ कैंसर और दिल के रोग जैसी गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हवा में पीएम 2.5 कणों का स्तर पांच माइक्रोग्राम प्रति वर्गमीटर से अधिक नहीं होना चाहिए, लेकिन हाल ही में दिल्ली के आनंद विहार में पीएम 2.5 का घनत्व 290 प्रति वर्गमीटर तक पहुंच गया था, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से 58 गुना अधिक होने के कारण बेहद खतरनाक है। पीएम 10 कणों का स्तर 15 माइक्रोग्राम प्रति वर्गमीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए, परंतु आनंद विहार में यह 999 ग्राम तक बढ़ गया था, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से 66 गुना ज्यादा होने के कारण भयंकर है।

वायु प्रदूषण सिर्फ दिल्ली-एनसीआर की ही नहीं, बल्कि उत्तर भारत के अनेक छोटे-बड़े शहरों की भी एक बड़ी समस्या बन गई है। वैज्ञानिक पत्रिका द लांसेट के एक शोध के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण भारत में हर साल 16.7 लाख लोगों की मौत हो रही है, जो कोविड महामारी के तीन साल में हुई मौतों से तीन गुना अधिक है, लेकिन वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों पर लोग एक-दूसरे को दोष देते रहते हैं। कभी-कभार दिल्ली और उत्तर भारत की भौगोलिक स्थिति को भी इसका जिम्मेदार बताया जाता है, जिससे सर्दियों के शुरुआत में ठंडी हवा हिमालय की तरफ चली जाती है और प्रदूषण का धुंध शहरों को ढक लेता है, पर हम भौगोलिक स्थिति को तो बदल नहीं सकते। हमें तो अपने जीवन शैली को भौगोलिक स्थिति के अनुकूल बनाने का प्रयास करना चाहिए।दिल्ली जैसे और भी उत्तर और मध्य भारत के बड़े शहरों में पीएम 2.5 और पीएम 10 कणों का प्रदूषण सबसे ज्यादा है, जिसका मुख्य कारण खराब डीजल और गंदे जीवाश्म ईंधन का उपयोग खुले में निर्माण, मलबे और कचरे को फेंकना, कूड़ा जलाना आदि हैं।

पेट्रोल और अन्य जीवाश्म ईंधनों से तुलना में डीजल के धुएं में ज्यादा पीएम 2.5 कण होते हैं, जो बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। भारत में सरकारों ने डीजल की कीमतें पेट्रोल से कम रखीं, ताकि किसानों और माल वाहनों को फायदा हो, जबकि दूसरे देशों में डीजल महंगा होता है। इसके कारण डीजल कारें ज्यादा बिकने लगीं। बिजली की कमी के समय लोगों ने पंखे और एसी चलाने के लिए डीजल जेनरेटरों का इस्तेमाल बढ़ा दिया। अब डीजल इतना सस्ता नहीं रहा, लेकिन जो वाहन और जेनरेटर बाजार में हैं, उनसे निकलने वाले पीएम 2.5 प्रदूषण को कम करने के लिए देशभर में एक सख्त नीति बनाने की आवश्यकता है।

वाहनों का बढ़ता प्रयोग देखते हुए दिल्ली सहित अन्य शहरों में उन्हें बिजली से चलने वाले बनाने का समय आ गया है। इसका प्रारंभ सरकारी और विदेशी दूतावासों के वाहनों से होना चाहिए। बिजली पैदा करने के लिए कोयले के धुएं से प्रदूषित होने वाले सिंगरौली जैसे इलाकों की जगह सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना चाहिए। वोट पाने के लिए ( लोगों को कोयले से बनी बिजली मुफ्त देने के बदले सौर पैनल लगाने की सहायता करनी चाहिए, जिससे उन्हें उतनी ही बिजली मुफ्त मिल सके। इससे वातावरण को भी बचाया जा सके और वोट भी मिलें। इसके साथ ही शहरों के सभी बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, हवाईअड्डे और स्टेडियम को भी सौर ऊर्जा से चलाने की जरूरत है।

दिल्ली के चारों ओर के राज्यों में दलहन-तिलहन की खरीदारी को बढ़ावा देकर धान की खरीदारी को कम करना चाहिए। इससे वे हर साल खाद्य तेल को आयात करने में लगने वाले लाखों करोड़ रुपये बचा सकते हैं। इसके साथ ही धान की सिंचाई से बिगड़ रही जमीन की उपजाऊता भी बढ़ेगी। किसानों को यह बताने की भी जरूरत है कि वे पराली जलाकर जो पैसा बचाते हैं, उससे अधिक पैसा वे पराली के धुएं से होने वाले जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली अनियमित बारिश और सूखे से खोते हैं। यह एक ऐसा खेल है, जिसमें किसान के साथ-साथ सबकी हार पक्की है। लोग जो प्रदूषण फैलाने वाले कामों जैसे डीजल, मिलावटी तेल और पराली जलाकर और पुराने वाहन, निर्माण और धूल-धक्कड़ खुदाई में लगाकर पैसा बचाते हैं, उन्हें उससे कई गुना ज्यादा पैसा जहरीली हवा के कारण होने वाले बीमारियों का इलाज करवाने में खर्च करना पड़ता है। अपने प्रचार के पोस्टरों से शहरों को गंदा करने के बजाय प्रदूषण और मौसम के बीच का संबंध और प्रदूषण और स्वास्थ्य के बीच का प्रभाव समझाकर लोगों को सचेत करने और उनका साथ लेने की जरूरत है, क्योंकि बिना इसके कोई सुधार संभव नहीं है।
 

स्रोत- नवभारत टाइम्स 

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Post By: Shivendra
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