हमारे आस-पास के पर्यावरण का स्वास्थ्य से सीधा संबंध होता है। स्वस्थ पर्यावरण अच्छे स्वास्थ्य की निशानी होती है । इसलिए अच्छे स्वास्थ्य के लिए पर्यावरण की सुरक्षा भी आवश्यक है। यदि पर्यावरण ही प्रदूषित हो तब फिर अच्छे स्वास्थ्य की उम्मीद नहीं की जा सकती है। निरोगी जीवन के लिए शुद्ध आबोहवा या कहें जलवायु का सर्वाधिक योगदान होता है।
प्रदूषण का मानव के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। प्रदूषण जनित जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ एवं सूखे की स्थिति में विस्थापन के कारण कुपोषण, भुखमरी एवं संक्रामक रोगों का भी खतरा बढ़ जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 1970 के बाद हुए जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप विकासशील देशों में प्रतिवर्ष 1,50,000 लोगों की मृत्यु हो जाती है।
प्रदूषित पर्यावरण करीब एक चौथाई रोगों का कारण बनता है। प्रतिवर्ष घरेलू एवं बाहरी वायु प्रदूषण के कारण लगभग 20 लाख लोग मृत्यु के मुंह में समा जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अकेले भारत में ही हर साल चार लाख से अधिक महिलाएं और बच्चे कार्बन के सांस के द्वारा फेफड़ों में पहुंचने के कारण बीमार होते हैं। पूरी दुनिया में इस प्रकार रोग से प्रभावित होने वालों की संख्या लगभग 10,60,000 है।
पीड़कनाशी एवं अन्य रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल से प्रदूषित हुए जल और मिट्टी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जीवों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। जब ये रासायनिक तत्व पानी के माध्यम से जीवों के शरीर में पहुंचते हैं तो कई बीमारियों का कारण बनते हैं। ऐसे रसायनों के अंश दूध, सब्जियों, फलों और मछलियों से होते हुए हमारे शरीर में प्रवेश करके हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकते हैं। असल में मिट्टी और पानी में किसी भी विषैली पदार्थ की पहुंच पूरी खाद्य श्रृंखला को प्रभावित करती है।
जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य
वैश्विक जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार जलवायु में उष्णता के कारण श्वास तथा हृदय संबंधी बीमारियां, दस्त, पेचिश, हैजा, क्षयरोग, पित ज्वर तथा मियादी बुखार जैसी संक्रामक बीमारियों की बारंबारता में वृद्धि होगी। चुंकि बीमारी फैलाने वाले रोगवाहकों के गुणन एवं विस्तार में तापमान तथा वर्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अतः दक्षिण अमरीका, अफ्रीका तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों जैसे मलेरिया (शीत ज्वर), डेंगू, पीला बुखार तथा जापानी बुखार के प्रकोप में बढ़ोतरी के कारण इन बीमारियों से होने वाली मृत्युदर में इजाफा होगा। इसके अतिरिक्त फाइलेरिया (फीलपांव) तथा चिकनगुनिया का भी प्रकोप बढ़ता है । मच्छरजनित बीमारियों का विस्तार उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप के ठंडे देशों में भी होगा। मानव स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते एक बड़ी आबादी विस्थापित होगी जो 'पर्यावरणीय शरणार्थी कहलाएगी। स्वास्थ्य संबंधी और भी समस्याएं पैदा होंगी।
जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप न सिर्फ रोगाणुओं में बढोतरी होगी अपितु इनकी नयी प्रजातियों की भी उत्पत्ति होगी जिसके परिणामस्वरूप फसलों की उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। फसलों की नाशिजीवों तथा रोगाणुओं से सुरक्षा हेतु नाशीजीवनाशकों के उपयोग की दर में बढोतरी होगी जिससे वातावरण प्रदूषित होगा साथ ही मानव स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ेगा। रोगाणुओं की जनसंख्या में वृद्धि तथा इनकी नयी प्रजातियों की उत्पत्ति का प्रभाव दुधारू पशुओं पर भी पड़ेगा जिससे दुग्ध उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा |
जलवायु में होने वाले बदलावों के कारण डेंगू, मलेरिया और दूसरी बीमारियों के बढ़ने की आशंका है। मलेरिया विश्व जनस्वास्थ्य के लिए एक गंभीर समस्या है जिससे प्रतिवर्ष पूरे विश्व में करीब 50 करोड़ लोग मलेरिया की चपेट में आते हैं। इस रोग के कारण प्रतिवर्ष 27 लाख लोगों की मौत हो जाती है। मलेरिया जलवायु-संवेदी उष्णकटिबंधीय रोग है। मलेरिया फैलाने के लिए जिम्मेदार मच्छरों में क्लोरोक्विन जैसी पारंपरिक दवाओं के विरूद्ध प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो गई है। भारत में पिछले दस सालों में हर साल मलेरिया के लगभग 20 लाख मामले सामने आते हैं। मच्छरों की विकास प्रक्रिया, उनकी उत्तरजीविता तथा रोग संचरण गतिकी में तापमान एवं आर्द्रता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। धरती के गरमाने के कारण ऊंचाई वाले क्षेत्र में तापमान में वृद्धि के कारण मलेरिया का खतरा बढ़ सकता है। इसके अलावा तापमान में वृद्धि के साथ डेंगू की महामारी की संभावना भी बढ़ेंगी।
जलवायु परिवर्तन के कारण रोग उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया, वाइरस आदि सूक्ष्मजीवों की संख्या में तीव्रता से वृद्धि स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करेगी। इसके अलावा गर्म मौसम के कारण मच्छर, चूहों आदि की आबादी बढ़ने की संभावना व्यक्त की जा रही है जिसके परिणामस्वरूप भविष्य में नई-नई बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाएगा।
वर्ष 2009 में कोपेनहेगन में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जलवायु परिवर्तन के जोखिम एवं चुनौतियां विषय पर आयोजित सेमिनार में विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आने वाले दिनों में मौसम परिवर्तन का सबसे ज्यादा कहर गरीबों पर बरपेगा। इसके कारण बाढ़, सूखा, तूफान, के साथ महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाएं आएंगी । असल में यदि जलवायु परिवर्तन की इस समस्या को शीघ्र गंभीरता से नहीं लिया गया तो बहुत देर हो जाएगी और तब तक पर्यावरण संतुलन इतना गड़बड़ा जाएगा कि फिर उसको संभाल पाना किसी के वश में नहीं होगा।
- धरती के गर्माने का स्वास्थ्य पर प्रभाव ताप एवं ठंड से संबंधित बीमारियां फैलेंगी।
- बीमारियों के फैलने से मूलभूत ढांचे को नुकसान होगा।
- संक्रामक रोगों का प्रसार होगा।
- कुपोषण एवं भुखमरी का फैलाव अधिक होगा।
- वायु प्रदूषण से सांस संबंधित रोग बढ़ेंगे।
वाहनों में ईंधन वहन से निकलने वाले प्रदूषकों के द्वारा होने वाली बीमारियां निम्नांकित हैं:-
- कार्बन डाइऑक्साइड के प्रभाव से होने वाली बीमारियां: सांस संबंधी तकलीफ, दमे की समस्या, दिल की धड़कन का तीव्र होना ।
- नाइट्रस ऑक्साइडः आंखों और फेफड़ों में जलन, फेफड़ों में संक्रमण ।
- मीथेन : सांस संबंधी बीमारियां, चिड़िचिड़ाहट, एक्जीमा ।
- कार्बन मोनोऑक्साइड और क्लोरोफ्लोरोकार्बनः सांस संबंधी बीमारियां ।
जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं:-
- डेंगू, मलेरिया तथा अन्य विषाणुजन्य रोग नए क्षेत्रों में फैलेंगे।
- परागकणों में वृद्धि के कारण एलर्जी का दायरा बढ़ेगा।
- कुपोषण एवं भुखमरी जैसी पोषण संबंधी समस्याएं उत्पन्न होंगी।
- बाढ़, तूफान, चक्रवात व सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं के परिणामस्वरूप विस्थापन से संबंधित समस्याएं ।
- कोहरा अथवा धूमकोहरा (स्मोग) की वृद्धि के कारण उत्पन्न होने वाली श्वसनी समस्याएं उत्पन्न होंगी।
- बढ़ते तापमान के कारण भू-स्तरीय ओजोन की मात्रा बढ़ने से सांस संबंधी बीमारियों में वृद्धि होगी।
- समुद्र-सतही तापमान में वृद्धि के कारण प्लैंकटनकी आबादी के बढ़ने से हैजा व अन्य रोगों का प्रकोप बढ़ेगा ।
स्रोत:- प्रदूषण और बदलती आबोहवाः पृथ्वी पर मंडराता संकट, श्री जे.एस. कम्योत्रा, सदस्य सचिव, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली द्वारा प्रकाशित मुद्रण पर्यवेक्षण और डिजाइन : श्रीमती अनामिका सागर एवं सतीश कुमार
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