यदि हम प्रकृति के साथ अपने संबंधों की गहराई में झांकें, तो पाएंगे कि तालाब हमारे पर्यावरणीय तंत्र का एक अनिवार्य अंग हैं। ये सिर्फ जल के भंडार नहीं हैं, बल्कि जैव- विविधता के संरक्षण के लिए भी अत्यंत आवश्यक हैं। इनका महत्व पानी के संरक्षण से कहीं अधिक है। तालाब हमारे पर्यावरण के संतुलन में एक महत्वपूर्ण कड़ी की भूमिका निभाते हैं। प्राचीनकाल से ही तालाबों का उपयोग मानव समाज द्वारा किया जा रहा है। ये प्रकृति की अनुपम देन हैं जो वर्षा जल को संचित कर हमें निरंतर जल प्रदान करते है
इनका अस्तित्व न केवल मनुष्यों के लिए, बल्कि जलीय जीवों, पक्षियों और अन्य जीव-जंतुओं के लिए भी अत्यावश्यक है। ये तालाब जैव- विविधता के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल का काम करते हैं। हालांकि, आधुनिकीकरण और शहरीकरण की दौड़ में हमने इन तालाबों की उपेक्षा की है। अनियोजित निर्माण और औद्योगिक प्रदूषण ने इनके अस्तित्व को गंभीर रूप से खतरे में डाल दिया है। आज समाज और सरकार की अनदेखी के चलते वही तालाब इतिहास की वस्तु बनते जा रहे हैं। इसका अहम कारण व्यक्ति के स्वार्थ परक सोच और आधुनिक जीवनशैली है जिसने तालाबों की विलुप्ति में प्रमुख भूमिका निभाई है। ऐसे में, हमें इनके संरक्षण और पुनर्जीवन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
तालाबों के विलुप्त होने के कारण हजारों जीवों की प्रजातियां समाप्त हुई। और हजारों पर विलुप्ति के संकट मंडरा रहा है। यदि हम आजादी के समय और उसके बाद के दौर में तालाबों की स्थिति पर नजर दौड़ाएं तो पाते हैं कि आजादी के वक्त देश में तकरीबन चौबीस लाख तालाब थे जो आज सिमट कर केवल लगभग दो लाख सात सौ पन्द्रह ही रह गए हैं। गैर सरकारी सूत्र के अनुसार यह संख्या देश में अब मात्र एक डेढ़ लाख से ज्यादा नही रह गई है। हर वर्ष एक हजार जलश्रोत अपना वजूद खो रहे हैं। बीते दशकों से सूखे की मार झेलता बुंदेलखंड भी इससे अछूता नहीं है। वहां 9000 से भी अधिक तालाब थे। बीते 30-40 सालों में बचे 3294 तालाबों में से 02 हजार से ज्यादा तालाबों का तो अस्तित्व ही मिटगया है। यही हाल पटना जिले का है। यहां कुल मिलाकर 1007 तालाब थे, लेकिन आज उनमें से 342 का तो अस्तित्व ही नहीं है। तालाबों पर वहां अतिक्रमण हो चुके हैं। तालाबों पर दुकानें, मकान वगैरह बन गए हैं। तालाबों से अतिक्रमण हटाना एवं उनके जीणोद्धार करना बहुत आवश्यक है।
वर्तमान समय में, तालाबों का महत्व और भी बढ़ गया है। जलवायु परिवर्तन के इस युग में जहां एक ओर अत्यधिक वर्षा और बाढ़ की समस्याएं हैं, वहीं दूसरी ओर सूखे और जल की कमी की चुनौतियां भी हैं। इस परिस्थिति में, तालाब जल संरक्षण के लिए एक प्राकृतिक और प्रभावी समाधान प्रस्तुत करते हैं। ये वर्षा जल को संग्रहित कर भूजल स्तर को बढ़ाने में सहायक होते हैं। इसके अतिरिक्त, तालाब पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में भी एक महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। वे गर्मी के मौसम में आसपास के क्षेत्रों को ठंडा रखते हैं, और वायुमंडलीय आर्द्रता को संतुलित रखने में सहायक होते हैं। तालाबों के आसपास का क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य और शांति का एक अद्भुत स्रोत भी होता है।
समग्र रूप से, तालाब हमारे पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने में निहित एक अमूल्य निधि हैं। इनका संरक्षण और सम्मान हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। आइए, हम सब मिलकर इन जलाशयों की रक्षा करें और प्रकृति के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें। तालाब न केवल हमें जीवन देते हैं, बल्कि हमारे पर्यावरण के संतुलन को भी स्थापित करते हैं। इनकी रक्षा और संवर्धन हमारे स्वयं के भविष्य की रक्षा और संवर्धन है।
स्रोत :- समता न्यूज व्यूज फीचर्स
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