संसार की अपेक्षा हमारे देश में सबसे अधिक सिंचाई के संसाधन उपलब्ध हैं। हमारी 22 प्रतिशत भूमि पर सिंचाई होती है और इस समय हमारा पहला स्थान है। यहाँ नहर, ट्यूबवेल, नदी, तालाब कुआँ इत्यादि से सिंचाई होती है। जिन स्थानों पर सिंचाई के लिये बहुत अधिक क्षेत्र होता है और खेत नदी की सतह से नीचे होते हैं वहाँ पर नदी का पानी मुख्य नहर में लाकर फिर हर तरफ नहरें बनाई जाती हैं। मुख्य नहर से रजबहे और रजबहों से अल्पिकाएँ निकाली जाती हैं।
हमारा देश एक खेती का देश है। यहाँ 75-80 प्रतिशत लोग खेती से ही अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं। इनमें वह लोग भी सम्मिलित हैं जो अपनी भूमि के बोने, जोतने के बाद दूसरों के खेती में गाँव में ही मजदूरी भी करते हैं। इसके अलावा वह लोग भी हैं जिनके पास कोई खेत नहीं है मगर वह गाँव में ही रहकर खेती से सम्बन्धित कार्य और मजदूरी का काम करते हैं।पानी की सबसे अधिक खपत, हमारे उपयोग का 85 प्रतिशत फसलों को उगाने में होता है। कुछ जिंसों की फसलों में अधिक पानी की आवश्यकता होती है कुछ में कम। जैसे अरहर और गन्ना। अरहर के लिये बहुत कम पानी जबकि गन्ने में बहुत अधिक पानी की खपत होती है। कुछ फसलें खरीफ में जो अप्रैल से सितम्बर महीने तक रहती हैं और कुछ रबी में बोई जाती हैं जो अक्टूबर से मार्च तक रहती हैं।
बागों में भी पानी दिया जाता है जो कि जिंसों की अपेक्षा में चौथाई से छठवाँ भाग ही पानी लेते हैं। बागों को लगाए जाने में कुछ वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है फिर फसल होने लगती है इसमें भी आम, जामुन, कटहल की एक फसल, मगर अमरूद, अनार, नींबू, संतरे आदि की दो-दो फसलें होती हैं। जब बाग में लगाए गए पेड़ छोटे होते हैं तो उनमें फसल भी बोई जा सकती है।
रबी और खरीफ के अतिरिक्त एक अन्य फसल भी होती है जिसे जायद की फसल कहते हैं यह बरसात के महीने में बोया जाता है जिसमें खासकर मक्का, उर्द, मूँग आदि हैं। मोटे तौर से यह खरीफ की फसल है। रबी की फसल में गेहूँ, जौ, सरसों, तम्बाकू, आलू मुख्य हैं, जबकि खरीफ में धान दोनों तरह के जो बीज से उगते हैं या बीज से पौध बनाई जाती है और फिर पौध की रोपाई की जाती है।
देश में बोई जाने वाली कुछ विशेष फसलों की पैदावार औसत बीज की आवश्यकता और उनकी विशेष रासायनिक खाद का विवरण दिया जा रहा है। यह पैदावार औसत है। अच्छे कृषक इसकी दूगनी फसल ले सकते हैं और कम मेहनत करने, खेती में समय से पानी न देने पर पैदावार और भी कम हो सकती है।
अच्छी फसल के लिये सही समय पर सही मात्रा में पानी दिया जाना चाहिए। फसल की एक विशेष स्थिति हो तो पानी खाद मिलना बहुत आवश्यक होता है। नवीन खेती में जानकारों का कहना है कि यदि दो से तीन दिन पानी के देने में देर हो जाये तो पैदावार 20 प्रतिशत तक घट सकती है। दालों के बोने से धरती की उर्वरा शक्ति बेहतर हो जाती है क्योंकि वह धरती को नाइट्रोजन भी देती है। नाइट्रोजन उपज के लिये लाभकारी है।
मुख्य जिंसों के बोने, काटने का समय और बीज, पानी व पैदावार का विवरण
नाम जिंस | धरती की किस्म | बारम्बारता पानी जिंस पकने तक | कितना गहरा पानी देना है | बोने का वक्त | काटने का समय औसत | प्रति एकड़ बीज | प्रति एकड़ पैदावार औसत | रासायनिक खाद की मात्रा |
ईख, गन्ना | पड़वा मटियार, बलुई, जहाँ पानी न रुके | 3 से 7 बार | 3 से 5 इंच | आखिरी जनवरी से मार्च | नवम्बर- अप्रैल | 1480 से 2220 किलोग्राम | 18.5 से 30 टन तक गन्ना | 45 किलो से 55 किलोग्राम नाइट्रोजन |
गेहूँ, जौ | दुमट औसत, दुमट कछार, | 2 से 4 बार | 3 से साढ़े 3 इंच | अक्टूबर से नवम्बर | मार्च से अप्रैल | 28 से 37.5 किलोग्राम | 1000 से 1200 किलोग्राम तक | 22.5 से 27.5 किलोग्राम नाइट्रोजन |
चना | मटियार दुमट, राकड़ | 1 से 2 बार | 2 से ढाई इंच | सितम्बर से अक्टूबर | मार्च से अप्रैल | 28 से 37.5 किलोग्राम | 650 से 1000 किलोग्राम तक | 18 किलोग्राम नाइट्रोजन या 18 किलोग्राम फास्फोरस |
सरसों लाही | हल्की मटियार, दुमट | 1 से 2 बार | 2 से ढाई इंच | सितम्बर से नवम्बर | फरवरी से मार्च | 2.50 से 3.75 किलोग्राम | 550 से 650 किलोग्राम तक | 5 से 10 किलोग्राम नाइट्रोजन |
मसूर | माट दुमट, मटियार | 1 से 2 बार | 2 से ढाई इंच | सितम्बर से अक्टूबर | मार्च से अप्रैल | 28 किलोग्राम | 200 से 275 किलोग्राम तक | |
आलू मैदानी | दुमट, पड़वा | 10 से 12 बार | 1 से 4 इंच | सितम्बर से जनवरी | नवम्बर से अप्रैल | 375 से 750 किलोग्राम | 7.5 से 11.0 टन तक | 36 से 45 किलोग्राम तक नाइट्रोजन |
आलू पहाड़ी | पहाड़ी भूमि | 10 से 20 बार | 1 इंच | मार्च से अप्रैल | जून से नवम्बर | 370 से 740 किलोग्राम | 7.5 से 11.0 टन तक | 18 किलोग्राम फास्फोरस |
तम्बाकू | हल्की दुमट | 6 से 10 बार | 2 से 3 इंच | सितम्बर से दिसम्बर हुक्का फरवरी मार्च | मार्च से मई | 45 से 55 ग्राम पौध | 55.5 से 74 किलोग्राम बीज | 22.5 से 36 किलोग्राम नाइट्रोजन |
धान जड़हन | मटियार, दुमट,कछार | 1 से 2 बार | 4 से 6 इंच | जुलाई से अगस्त | नवम्बर से दिसम्बर | 5.50 से 9.5 किलोग्राम तक | 925 से 1300 किलोग्राम तक | 22.5 किलोग्राम नाइट्रोजन |
धान भदई | मटियार, दुमट, कछार | पानी से भरा रहे | 4 से 6 इंच | मई से जून | सितम्बर से अक्टूबर | 3 से 4 किलोग्रम लगभग | 550 से 740 किलोग्राम तक | 22.5 किलोग्राम नाइट्रोजन |
कपास | काली या दुमट | 1 से 3 बार | 3 इंच | शुरू जून से बीच जुलाई | अक्टूबर से जनवरी | 4.5 से 6.5 किलोग्राम तक बिनौली | 375 से 450 किलोग्रम तक | 22.5 किलोग्राम नाइट्रोजन |
मूँगफली | अच्छी भूड़ दुमट | 3 से 5 बार | 3 इंच | बीच मई से बीच जून | आखिरी नवम्बर से बीच जनवरी | 20 से 30 किलोग्राम | 650 से 750 किलोग्राम तक | |
उर्द, मूँग | पड़वा | 1 से 2 बार | ढाई से 3 इंच | जून से आखिरी जुलाई | अक्टूबर से नवम्बर | 3.75 से 5.50 किलोग्राम तक | 400 से 750 किलोग्राम तक | |
1000 किलोग्राम = 1 टन |
संसार की अपेक्षा हमारे देश में सबसे अधिक सिंचाई के संसाधन उपलब्ध हैं। हमारी 22 प्रतिशत भूमि पर सिंचाई होती है और इस समय हमारा पहला स्थान है। यहाँ नहर, ट्यूबवेल, नदी, तालाब कुआँ इत्यादि से सिंचाई होती है।
जिन स्थानों पर सिंचाई के लिये बहुत अधिक क्षेत्र होता है और खेत नदी की सतह से नीचे होते हैं वहाँ पर नदी का पानी मुख्य नहर में लाकर फिर हर तरफ नहरें बनाई जाती हैं। मुख्य नहर से रजबहे और रजबहों से अल्पिकाएँ निकाली जाती हैं।
इन सभी नहरों अर्थात रजबहों और अल्पिकाओं में कुलाबे लगे होते हैं जो एक कार्यक्रम के माध्यम से खोले और बन्द किये जा सकते हैं और उनसे पानी लिया जाता है। यदि हर ओर नहर में एक साथ पानी ले जाया जाएगा तो पानी थोड़ी ही दूर में समाप्त हो जाएगा इसलिये नहरों में फाटक लगाए जाते हैं जो कि एक कार्यक्रम के अन्तर्गत खोले और बन्द किये जाते हैं।
जब खेत ऊँचाई पर हो और नदी नीची होती है तो पम्प लगाकर नदी का पानी उठाकर नहरों में डाला जाता है और इन नहरों को लिफ्ट नहर कहा जाता है। पानी देने का बाकी काम उसी तरह होता है।
हमारे देश में स्वतंत्रता के पश्चात सिंचाई की दिशा में सराहनीय कार्य किया गया है। हमने अपनी पैदावार पिछले पचास वर्षों में चार गुनी कर ली है और अब हम स्वावलम्बी ही नहीं थोड़ा बहुत गल्ला दूसरे देशों में भेजते भी हैं। खेती और सिंचाई पर बहुत सी कहावते हैं, मुहावरे हैं त्योहार भी है। पूरे समाज पर खेती और फसल का प्रभाव पड़ता है।
जिस वर्ष उपज अच्छी होती है गाँव में शादियाँ भी अधिक होती हैं मेलों से जानवर भी अधिक खरीदे जाते हैं। जिंसों की कीमतें अधिक पैदावार पर कम और कम पैदावार पर बढ़ जाती हैं। यही हाल सोने, चाँदी के गहनों की कीमतों का है। फसल के अच्छे होने की चाबी पानी पर है यदि सही समय पर पानी मिला या पानी बरस गया तो केवल कृषक ही नहीं प्रसन्न हो जाता बल्कि पूरा भारत हँसने लगता है।
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