समाज-सरकार-बाजार तीनों की सहभागी ताकत के माध्यम से देश के एक बड़े तबके की पानी समस्या को हल करने की दिशा में की गई एक कोशिश का नाम है ‘फॉरवाटर’। लगभग 1 साल पहले जुलाई-2019 में समाज-सरकार-बाजार तीनों प्रमुख बड़ी संस्थाओं के प्रतिनिधि इकट्ठा हुए। इकट्ठा होने के पीछे मकसद यह था कि कुछ ऐसे तरीके खोजे जाएं कि भारत के जलसंकट का प्रभावी और व्यापक तौर पर समाधान दे सकें। इरादा यह था कि सरकार के साथ समाज की ताकत को जोड़ कर और बाजार को भी साथ लेकर, तीनों की सहभागिता से व्यापक स्तर पर यानि लगभग 10 करोड़ लोगों की जल-सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।
10 करोड़ लोगों को जल-सुरक्षा देने के बड़े लक्ष्य पाने के लिए ऐसे तरीके खोजने थे कि कुछ सालों के अंदर ही समाज-सरकार-बाजार की तीनों की सहभागिता से लक्ष्य को पाया जा सके। इन सब में भूजल, जल-गुणवत्ता जैसे पानी के मुद्दों को प्राथमिक माना गया। सोच यह बनी कि यदि हम भूजल समृद्ध कर सके और लोगों को साफ-सुथरा गैर प्रदूषित पीने का पानी पहुंचा सके तो लक्ष्य के काफी करीब तक पहुंच जाएंगे। क्योंकि इतना बड़ा लक्ष्य सामूहिक सहभागिता के बिना संभव नहीं हो सकता। इसलिए सहभागिता के बड़े स्तर के लिए और सहभागिता को बड़े स्तर तक ले जाने के लिए डिजिटल माध्यमों की भूमिका पर विचार किया गया। पिछले कुछ सालों से उदाहरण के तौर पर हमने यह देखा है कि किस तरह से डिजिटल तकनीकी मॉनिटरिंग क्षमताओं को काफी दूर तक ले जाने में मददगार साबित हुई है।
देख गया है कि ऐसे बहुत सारे ऐप्स हैं, जो लोगों से डाटा इकट्ठा कर रहे हैं, जो लोगों की रियल टाइम मॉनिटरिंग में मदद कर रहे हैं और जो लोगों को रीयलटाइम ट्रेनिंग देने का भी काम कर रहे हैं। यह एक तरह से पुरानी मॉनिटरिंग सिस्टम में एक व्यापक और अहम सुधार की प्रक्रिया है।
इसी सिलसिले में 10 सितंबर 2020 को फॉरवाटर के लिए एक ऑनलाइन-वर्कशाप का आयोजन किया गया। इस ऑनलाइन-वर्कशाप का मकसद था अपने लक्ष्य को पाने के लिए डिजिटल सिस्टम को आगे बढ़ाने के लिए किस तरीके से इस्तेमाल किया जाए। विभिन्न समुदाय और जमीनी काम करने वाले फ्रंटलाइन वर्कर सही मायने में फॉरवाटर जैसे प्लेटफार्म का इस्तेमाल कर सकें। साथ ही फॉरवाटर से प्राप्त ज्ञान को अपने क्षेत्र में लेकर कैसे जाएं। फॉरवाटर के प्लेटफार्म पर सामग्री का प्रारूप ऐसा हो ताकि जमीनी काम करने वाले लोगों को बेहतर ज्ञान मिल सके और उसके जरिए वह अपनी आजीविका को भी बेहतर बना सकें। फॉरवाटर के प्लेटफार्म से ज्ञान और सामग्री प्राप्त करने के बाद वे भरोसे के साथ अपने अनुभव को लोगों के साथ साझा कर सकते हैं और उनके अनुभवों को इस क्षेत्र में काम करने वाले अन्य लोग भी महत्व भी देंगे।
हालांकि काम बहुत था, राह आसान नहीं थी और मंजिल अभी दूर थी फिर भी 1 साल बाद सभी प्रतिनिधि फिर से इकट्ठा हुए। जानने की कोशिश की कि मिलकर क्या किया जा सकता है और आगे क्या रणनीति बनाई जानी चाहिए यह ऑनलाइन-वर्कशाप का खास मकसद था। साथ ही यह उद्देश्य था कि जमीन से कुछ सफल अनुभवों और उदाहरणों पर चर्चा की जाए और उनसे कुछ सीखा जाए। विभिन्न सरकारी योजनाएं जैसे ‘अटल भूजल योजना’, ‘जल जीवन मिशन’ और अन्य बहुत सी राज्य स्तरीय योजनाओं में सहभागिता आधारित प्रबंधन को कैसे बढ़ाया जाए।
ऑनलाइन-वर्कशाप में यह भी चर्चा हुई कि समय, रुचियां और मांग सभी बदल रहे हैं इसलिये इन बदलावों पर भी ध्यान दिया गया और चर्चा हुई, ये बदलाव इस प्रकार नजर आए-
भाषा संबंधी: सभी वक्ताओं ने भाषा को अहम बताया। सभी का मानना था कि अभी तक नीतिगत जो भी निर्णय लिये जाते हैं या जमीनी काम के लिये योजना बनती है उसमें अंतिम व्यक्ति जिस तक उनका लाभ पहुँचना है, उसका कहीं भी ध्यान नहीं रखा जाता। जब तक उस अंतिम व्यक्ति की भाषा में बात नहीं होगी, कार्यक्रम नहीं बनेंगे, तब तक सहभागिता आधारित जल प्रबंधन जैसे कार्यक्रम सफल नहीं हो सकते।
ज्ञानः इस बात को भी अहमियत दी गई कि कैसे आज के दौर में मास्टर ट्रेनर और समुदाय के बीच, समुदायों और पंचायती राज संस्थाओं के बीच किस तरह से संवाद बदला है। ज्ञानेच्छुओं को सीखने की प्रवृत्ति बढ़ाने के लिये उन्हें नियम रूप से प्रशिक्षकों के संपर्क में रहना होगा और यह सानिध्य और संपर्क इस बात को भी प्रभावित करेंगे कि उनके लिये क्या और किस प्रकार की सामग्री तैयार की जाए।
डाटाः चर्चा में यह भी मुद्दा उठाया गया कि जिस तरह अभी डाटा बनता है उसका इस्तेमाल केवल नीतिगत निर्णयों में ही हो पा रहा है अगर समुदाय के साथ प्रत्यक्ष संवाद करने वाले इन फ्रेटलाइन वर्कर्स को ही यह काम सौंप दिया जाए तो वह उसका इस्तेमाल जमीनी स्तर पर भी कर पाएंगे। लेकिन उसके लिये जरूरी है कि उनका सर्टिफिकेशन किया जाए।
इसके अतिरिक्त यह भी महसूस किया गया कि सभी प्रकार की सामग्री अब बहुत तेजी से रीडिजाइन हो रही है, पाठकों की रुचि बदल रही है। इसलिये अब सभी संस्थाएं खुलकर सामग्री तैयार कर रही हैं ताकि एक ही चीज का दुहराव ना हो।
पूरी चर्चा और वर्कशाप का निचोड़ यही निकला कि मिलकर ही लक्ष्य को प्राप्त करने में सफलता मिल सकती है। लक्ष्य बड़ा है 10 करोड़ यानी 100 मिलियन को जल-सुरक्षा, पर यह भी सही है कि एक से एक मिले तो कतरा बन जाता है दरिया।
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