भारत में करीब 6.2 करोड़ लोग फ्ल्यूरोसिस से पीड़ित हैं, जिनमें से 6 करोड़ से अधिक बच्चे और युवा हैं। इससे पीड़ित युवाओं से करीब २०,००० केवल असम में हैं। अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और घने जंगलों के लिए मशहूर कर्बी एंगलांग में आबादी का दसवां हिस्सा दांत या हड्डी के फ्ल्यूरोसिस से पीड़ित हैं। नवा ठाकुरिया की रिपोर्ट।
09 जनवरी 2007/ मशहूर असमी फिल्मकार मंजू बारो कर्बी एंगलांग के जिला मुख्यालय दिफू आए हैं। वे यहां कर्बी के मशहूर लोगों पर एक डॉक्यु-फीचर फिल्म बनाने आए हैं। पटकथा कर्बी के ही लेखक बसंत दास ने लिखी है। मुख्य भूमिका के लिए कर्बी की ही एक लड़की कदम का चयन किया गया। बारो शूटिंग के लिए लोकेशन पर जाने से कम से कम दो दिन पहले उस लड़की से बात करना चाह रहे थे। बारो ने जब उस लड़की को देखा तो उन्हें धक्का लगा। चरित्र की मांग के मुताबिक वह लड़की उतनी सुंदर नहीं थी और उसके दांत भी बदरंग थे। उसकी गर्दन बेहद सख्त थी और चेहरे पर झुर्रियां थी। बसंत दास आगे बढ़े और अचानक पीछे मुड़कर कहा, लेकिन तीन साल पहले जब मैं कदम से मिला था तो वह वाकई बहुत खूबसूरत थी।
कदम हाइड्रोफ्ल्यूरोसिस (या फ्ल्यूरोसिस ) से पीड़ित है। यह पानी से होने वाला रोग और असम में इससे करीब 100,000 लोग इससे पीड़ित हैं जिनमें से आधी से अधिक महिलाएं हैं। कर्बा एंगलांग, नागांव और कामरूप जिलों की पहचान फ्ल्यूरोसिस बहुल क्षेत्रों के रूप में की गई है। आंकड़ों के मुताबिक भारत में करीब 6.2 करोड़ लोग फ्ल्यूरोसिस से पीड़ित हैं, जिनमें से 6 करोड़ से अधिक बच्चे और युवा हैं। इससे पीड़ित युवाओं से करीब २०,००० केवल असम में हैं। अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और घने जंगलों के लिए मशहूर कर्बी एंगलांग सबसे अधिक प्रभावित है। यहां की 800,000 की आबादी का १० फीसदी हिस्सा दांत या हड्डी के फ्ल्यूरोसिस से पीड़ित हैं। असम के 70 फीसदी फ्ल्यूरोसिस इसी जिले में हैं।
असम या कहें पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में फ्ल्यूरोसिस का पहला मामला कर्बी एंगलांग के टेकलांगजुन इलाके में मई 1999 में राज्य स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग(पीएचईडी) के एक सर्वे के दौरान सामने आया। वहां पानी में फ्लोराइड का स्तर 5-23 मिलीग्राम प्रति लीटर(एमपीएल) मिला जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मान्य सीमा 1.5 एमपीएल है।
तत्कालीन राज्य पीएचईडी के अतिरिक्त मुख्य इंजीनियर अमलेंदु बिकास पौल कहते हैं, “अत्यधिक रक्त की कमी, जोड़ों में सख़्ती, चलने-फिरने में दर्द, गंदे दांत, ढीली मांस-पेशियां, गुर्दों का काम करना बंद कर देना, असामयिक मौत और शारीरिक अपंगता आदि फ्ल्यूरोसिस के नतीजे हैं।” महिलाएं और बच्चे इस रोग के अधिक शिकार बनते हैं क्योंकि ज़्यादातर वे घरों में रहते हैं। इससे वे प्रदूषित पानी के संपर्क में अधिक आते हैं। दूसरी ओर बचपन में कुपोषण से महिलाओं को अधिक खतरा रहता है।
फ्ल्यूरोसिस भारत के कम से कम २० राज्यों में महामारी और दर्जनों अन्य देशों में इस रोग के शिकार मिले हैं। फ्ल्यूरोसिस का कोई इलाज नहीं है: अगर शुरुआती चरण में इसका पता चल जाए तो महज इसे भयानक रूप ले लेने से रोका जा सकता है। टेकलांगजुन (दिंफू से करीब 90 किमी दूर) की रहने वाली 49 साल की गीता देव से मिलिए जो 1995 से ही इस रोग से पीड़ित हैं। उन्हें अब लकवा मार गया है और पिछले तीन सालों से वह बिस्तर पर पड़ी हैं। गीता को कमर, पैरों, हाथों और उंगलियों के जोड़ों में भयानक दर्द होता है। पहले वह लकड़ी के सहारे थोड़ा बहुत चल फिर लेती थीं लेकिन अब बिस्तर पर बमुश्किलन आधे घंटे बैठ पाती हैं।
पास के सरकारी स्वास्थ्य केंद्र से उसे कोई दवा नहीं मिलती। बागपानी बाज़ार में एक छोटी सी दुकान चलाने वाला उसका पति ही गीता की देखरेख करने वाला है। बिस्तर पर लगाए जाने वाले बर्तन के अभाव में गीता का परिवार प्लास्टिक की सीट का इस्तेमाल करता है। इसे महीने में दो बार साफ़ करके दोबारा इस्तेमाल किया जाता है। तभी गीता को बाहर ले जाया जाता है। स्कूल में पढ़ने वाला उनका एक मात्र बेटा भी धीरे-धीरे दांत के फ्ल्यूरोसिस का शिकार बनता जा रहा है। देब की दो शादीशुदा बेटियों को भी जोड़ों के अत्यधिक दर्द की शिकायत होने लगी है और लकवे के भी कुछ लक्षण नज़र आ रहे हैं।
गीता और उसके पति 25 साल पहले त्रिपुरा से कर्बी एंगलांग पलायन करके आए थे। शूरुआती दिनों में गीता और उसके पति झरने के पानी का इस्तेमाल करते थे। 1990 के शुरू में राज्य पीएचईडी ने इलाके में पीने के पानी की आपूर्ति शुरू की। इस परिवार ने इसके बाद भूमिगत जल का इस्तेमाल शुरू किया जो 1999 में फ्ल्यूरोसिस का पता चलने तक जारी रहा। पीएचईडी ने तत्काल पानी की आपूर्ति रोक दी और लोगों को पीने या पकाने के काम में भूमिगत इस्तेमाल पर चेतावनी जारी की। विभाग ने पास की पहाड़ियों से झरने का पानी टैंकरों से लाकर इलाके में पानी की व्यवस्था की। आज बहुत से परिवार १० फिट गहरे कुएं के पानी का इस्तेमाल करने लगे।
आंकड़े बताते हैं कि फ्ल्यूरोसिस भारत के कम से कम 20 राज्यों में महामारी का रूप ले चुका है। दर्जनों अन्य देशों में भी इस रोग के पीड़ित मिले हैं। 1986 में राजीव गांधी राष्ट्रीय पेय जल मिशन शुरू होने के बाद फ्ल्यूरोसिस से निजात पाने की गंभीर कोशिशें शुरू हुईं। कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ने अब फ्ल्यूरोसिस सुधार केंद्र स्थापित करने का फ़ैसला किया है। यहां फ्ल्यूरोसिस से संबंधित आंकड़े इकट्ठे करने के साथ ही उनकी पुष्टि भी की जाएगी। यूनिसेफ और जिरसांग एसांग, द लायंस क्लब जैसे स्थानीय एनजीओ और नेहरू युवा केंद्र प्रभावित इलाकों में जागरुकता अभियान चला रहे हैं।
फ्ल्यूरोसिस और ग़रीबी के संबंध से इनकार नहीं किया जा सकता। असम में प्रभावित 80% वास्तव में ग़रीब, अशिक्षित और सामाजिक रूप से उपेक्षित हैं। फ्ल्यूरोसिस से निपटेने के उपाय करना एक तरह से उनकी सामाजिक आर्थिक उपेक्षा को कम करना है। स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करान इस समस्या का फौरी हल है। जबकि जागरुकता फैलाना मध्यम अवधि का और आर्थिक स्वतंत्रता इस समस्या का दीर्घकालिक हल है।
हड्डी का फ्ल्यूरोसिस किसी भी कामकाज करने वाले व्यक्ति को बेकार कर उसकी रोज़ी रोटी पर सीधा असर डालता है। दांत का फ्ल्यूरोसिस हालांकि रोगी के चलने फिरने पर तो असर नहीं डालता लेकिन चूंकि इससे दांत बदसूरत हो जाते हैं इसलिए लड़के-लड़कियों की शादी पर इसका बुरा असर पड़ता है। शादी के बाद भी मियां-बीवी में होने वाले झगड़ों से उनका वैवाहिक जीवन प्रभावित होने लगता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति के मन में हीन भावना घर कर जाती है। ये तो अच्छा हुआ कि बारो ने जब कदम को बताया कि वह उनकी अगली फ़िल्म में काम कर रही है तो उसका आत्मविश्वास लौट आया। बारो ने कदम से कहा कि तब तक वह उसके इलाज की व्यवस्था कराएंगे। कैसे, यह अलग मसला है।
क्या है फ्लोरोसिस रोग
पानी में फ्लोरीन की अधिक मात्रा के कारण फ्लोरोसिस नामक बीमारी फैलती है। इस रोग से व्यक्ति में स्थायी विकलांगता भी हो सकती है। पेयजल में फ्लोरीन की मात्रा एक मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होनी चाहिए। शरीर में अधिक मात्रा होने के कारण फ्लोरोसिस नामक बीमारी होती है। इन्डेमिक फ्लोरोसिस पानी में 3 से 5 मिलीग्राम प्रति लीटर फ्लोरीन होता है।
इस बीमारी के प्रमुख लक्षण बच्चों में प्रथम सात वर्ष में दांतो की चमक गायब हो जाती है। दांतो पर खड़िया,मिट्टी जैसे धब्बे बड़ जाते है। जो बाद में नीले या काले हो जाते है। दांतो की मजबूती गायब हो जाती है। यह दांतो के ऊपरी टीथ पर होता है। जवान आयु में हड्डियां प्रभावित होती है। यह पेयजल में तीन से छह मिलीग्राम प्रति लीटर फ्लोरीन जीवन में प्रतिदिन प्रयुक्त होती है। इस कारण हड्डियां टेढ़ी हो जाती है, दर्द रहता है और पीठ अकड़ जाती है। दस मिलीग्राम प्रति लीटर फ्लोरीन की मात्रा प्रतिदिन प्रयुक्त होने पर स्थायी विकलांगता आ जाती है। अन्य कारण पैरों में जोनू वैल्गम तथा अन्य हड्डियों में आस्टियोपोरोसिस हो सकती है। हड्डियां विकृत होने के कारण तंत्रिकाए भी दब जाती है तथा मरीज को लकवा होने की संम्भावना रहती है। नवीन अध्ययनों से यह प्रकाश में आया है कि उन व्यक्तियों में फ्लोरोसिस होने की सम्भावना रहती है, जो ज्वार का प्रयोग आहार में अधिक करते है। ऐसा आन्ध्र प्रदेश के कुछ जिलों में देखा गया है।
इससे दाँतों, हड्डियों और शरीर के ढाँचे के साथ-साथ रक्त कोशिकाओं और नासिका तंत्र को नुकसान होता है, जिसके कारण कम उम्र में दाँतों का गिरना, माँस-पेशियों को नुकसान, रक्त कोशिकाओं की कम समय में समाप्ति के कारण खून की कमी से होने वाले रोग तथा मानसिक अवसाद तथा चिड़चिड़ापन आदि रोग हो जाते हैं।
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