फ्लोराइड, टूथपेस्ट और एटम बम

कुछ वर्षों पूर्व तक इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि टूथपेस्ट और एटम बम में इतना नजदीकी संबंध हो सकता है। लेकिन पिछली आधी शताब्दी के संघर्ष ने एक बार पुनः सिद्ध कर दिया है कि मानव विनाश के लिए निर्मित पदार्थों का कितनी चतुराई से हमारे दैनिक जीवन में इस्तेमाल किया जा रहा है। अगर अमेरिकी जैसे तकनीक प्रशिक्षित और विज्ञान को लेकर जागरूक कहे जाने वाले समाज के साथ वहां की निर्माता कंपनियां इतना खतरनाक खेल, खेल सकती हैं तो वे भारत या एशिया एवं अफ्रीका के तीसरी दुनिया के देशों के साथ वैसा व्यवहार कर रही होंगी। परमाणु तकनीक की अमानवीयता को उजागर करता महत्वपूर्ण आलेख।

‘प्रदूषण, प्रदूषण! आप नवीनतम टूथ पेस्ट इस्तेमाल कीजिए और इसके बाद अपने मुंह को औद्योगिक अपशिष्ट से धो डालिए।’ हावर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और व्यंग्यकार टॉम लेहर ने सन् 1965 में जब इन पंक्तियों को लिखा होगा तब संभवतः उन्हें इस बात का अंदाजा ही नहीं होगा कि ‘नवीनतम टूथपेस्ट’ का एक महत्वपूर्ण अवयव औद्योगिक अपशिष्ट ही है। फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट में सोडियम मोनोफ्लोरोफास्फेट होता है जिसे एक समय रासायनिक अस्त्र माना जाता था। इसके अलावा फ्लूरोसिलिसिक एसिड, जिसका 90 प्रतिशत इस्तेमाल स्थानीय स्वशासी संस्थाएं पेयजल आपूर्ति किए जाने वाले पानी की सफाई में करती हैं, वास्तव में रासायनिक खाद संयंत्रों की सफाई में निकला ‘प्रदूषित सत’ ही तो है। यह भी एक सच्चाई है कि हम स्वयं को ब्रश से लेकर फ्लश तक अनेक प्रकार की विचित्रताओं से घिरा हुआ पाते हैं। अनेक वर्षों से वैज्ञानिक और दंत चिकित्सक यह मांग करते रहे हैं टूथपेस्ट और पीने के पानी में फ्लोराइड का उपयोग प्रतिबंधित कर दिया जाए। अंततः 7 जनवरी 2011 को अमेरिका के खाद्य एवं मानव सेवा विभाग ने (डी.एच.एच.एस.) ने इस समस्या पर अपना रुख स्पष्ट किया।

दांतों में दाग लगाने वाली दंत फ्लोरोसिस नामक महामारी का उदाहरण देते हुए विभाग ने कहा है कि अमेरिका के 12 से 15 वर्ष के मध्य अनुमानतः 41 प्रतिशत बच्चे दंत फ्लोरोसिस नामक महामारी से पीडि़त हैं और विभाग ने अनुशंसा की है कि पानी में फ्लोराइड की मात्रा तकरीबन आधी यानि 1.2 भाग प्रति दस लाख (पीपीएम) से घटाकर 0.7 प्रति दस लाख भाग कर दिया जाए। वैसे इस प्रक्रिया में इतना लंबा समय नहीं लगना चाहिए था। सन् 1991 में अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने टूथपेस्ट टयूब पर यह चेतावनी लिख दी थी- ‘इसे निगलें नहीं और 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए केवल मटर के दाने के बराबर पेस्ट इस्तेमाल करें।’ इसके परे कुछ भी होने पर पालकों को निकटतम विष नियंत्रण केंद्र से संपर्क की सलाह दी गई थी। मटर के बराबर के पेस्ट में 1000 भाग प्रति दस लाख फ्लोराइड होता था अतएव निर्माताओं को दवाई के स्वाद की तरह लगने वाला टूथपेस्ट बनना चाहिए था। परंतु निर्माताओं ने इसके बजाए बच्चों के नाम के हिसाब से ऐसे ट्यूब बनाए जिनका स्वाद स्ट्राबेरी की तरह था।

परंतु टूथपेस्ट के इस्तेमाल करते या इसके इस्तेमाल से परहेज करके भी आप स्वयं को फ्लोराइड के संपर्क में आने से बचा नहीं सकते। क्योंकि यह रसायन तो नलों के माध्यम से आपके घरों में भी आ रहा है और अमेरिका के दो-तिहाई घर ऐसा ही पानी प्रयोग में ला रहे हैं। इस कार्य के प्रवर्तक दावा करते हैं कि फ्लोरीडेशन (फ्लोरिकरण) सुरक्षित व प्रभावकारी है। परंतु प्रमाण बताते हैं दोनों ही दावे शंकास्पद हैं। इसके अलावा आलोचकों का यह भी कहना है कि फ्लोरिकरण मानक स्वास्थ्य प्रक्रियाओं का भी उल्लंघन करता है। किसी एक व्यक्ति को खुराक देने की बजाए व्यापक स्तर पर सामूहिक औषधि खुराक देने से जवान, बूढ़े, स्वस्थ व रोगी सभी प्रभावित होते हैं।

जरा इस तरह सोचिए यदि फ्लोराइडयुक्त पानी पीने से आपके दांत सुरक्षित होते हैं तो क्या शैम्पू पीने से आपके बाल चमकने लगेंगे। (वैसे इस तर्क को ध्यान में रखते हुए नोवारटीज कंपनी ने अंगूठे की फफूंद (फंगस) के उपचार हेतु लोगों को प्रोत्साहित किया कि लेमिसिल की गोलियां खाएं। पता चला कि ये गोलियां किडनी को भी नुकसान पहुंचा रही हैं।) वैसे डीएचएचएस की घोषणा से फ्लोरिकरण की प्रक्रिया को सन् 1962 के बाद पहली बार धक्का लगा है जबकि उसकी मात्रा 1.2 पीपीएम तय कर दी गई थी। इसी के साथ बीबीसी के संवाददाता क्रिस्टोफर ब्रायसन ने कहा कि तब (1962 में) पेंटागन (अमेरिकी रक्षा मुख्यालय) के एक अधिकारी रिप्पर ने पूरे अमेरिका में घूमकर फ्लोराइड के दुर्गुणों की बात फैलाई थी। ब्रायसन एवं एक चिकित्सा लेखक जोएल ग्रिफिथ ने ‘क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर’ में अपने एक लेख में एक गोपनीय दस्तावेज के हवाले से लिखा है कि किस तरह फ्लोराइड को ‘बदबू दूर करने वाले पदार्थ’ के रूप में प्रोत्साहित करने को पेंटागन द्वारा परमाणु बम को प्रोत्साहित करने के शुरुआती कार्यक्रमों से जोड़ा जा सकता है। जब मॉनिटर ने उनकी खोज को छापने से मना कर दिया तो ग्रिफिथ और ब्रायसन ने अपनी यह रिपोर्ट ‘अर्थ आइलैण्ड जर्नल’ को दे दी, जिन्होंने इसे अपने 97-98 के अंक में मुख्य लेख ‘अमेरिका में फ्लोरिकरण के पीछे: ड्यूपोंट, पेंटागन और एटम बम’ शीर्षक से छापा और इसे प्रोजेक्ट सेंसर्ड अवार्ड भी मिला।

इसके पीछे की कहानी को संक्षिप्त में जानना जरुरी है। पेंटागन के बम निर्माताओं को यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड बनाने के लिए फ्लोरिन की जरुरत थी। सन् 1946 में न्यूजर्सी के डीप वाटर में स्थित ड्यूपोंट के गोपनीय अस्त्र कारखाने में हुई दुर्घटना के परिणामस्वरूप कुछ कृषक उनके खेतों के प्रदूषित हो जाने के खिलाफ कानूनी कार्यवाही हेतु उद्धत हुए। इस कानूनी दावे को मुकाबला करने (और बम कार्यक्रम की गोपनीयता बनाए रखने हेतु) पेंटागन ने फ्लोराइड रिसन को षड़यंत्रपूर्वक ‘हितैषी’ या मानव अनुकूल पुर्नपरिभाषित कर दिया। पुराने वर्गीकृत दस्तावेज साफ-साफ दर्शाते हैं कि स्थानीय लोगों को फ्लोराइड के डर से उबारने के लिए दांतों के स्वास्थ्य में फ्लोराइड की उपयोगिता विषय पर व्याख्यानों का आयोजन भी किया गया था। यह मेनहटन परियोजना के फ्लोराइड विषविज्ञानी हेराल्ड सी.हाज की दिमागी उपज थी।

फ्लोरिकरण की प्रक्रिया के स्तर को आधे पर लाने में आधी शताब्दी का समय लगा। परंतु समीक्षकों का मत है कि ये भी तब तक अनुशंसाएं ही रहेगी जब तक कि पेयजल का राष्ट्रीय विभाग इसे स्वीकार नहीं कर लेता। यदि ऐसा हो भी जाता है तो नए मानक स्थापित होने के बावजूद अमेरिका में प्रति दो सौ बच्चों में से एक दंत फ्लोरोसिस से प्रभावित तो रहेगा। वहीं राष्ट्रीय शोध परिषद (एनआरसी) ने फ्लोराइड से संपर्क को ‘हड्डियों के टूटने और हड्डियों का टेढ़ा-मेढ़ा होना से जोड़ा है, जिसे सामान्यतया त्रुटिवश ‘गठिया’ के रूप में पहचान लिया जाता है।

डी.एच.एच.एस. के ऐतिहासिक फैसले के बाद फ्लोराइड एक्शन नेटवर्क के निदेशक और ‘द केस अगेंस्ट’ फ्लोराइड (फ्लोराइड के विरुद्ध मामला) नामक पुस्तक के लेखक पॉल कनेक्ट को उम्मीद है कि फ्लोराइड के अब गिने-चुने दिन ही बचे हैं। उनका कहना है अब हमें पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के जल विभाग की ओर अपना ध्यान लगाना चाहिए जिससे कि वे अपना कार्य ईमानदारी से कर सके और हमें परमाणु हथियारों जिन्हें इसी फ्लोराइड ने संभव बनाया था, को भी समाप्त कर देना चाहिए।

गॉर स्मिथ अर्थ आइलैण्ड जर्नल के मानद सम्पादक और फ्लोराइड एक्शन नेटवर्क सलाहकार बोर्ड के एक सदस्य है।

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