फिर सवालों में नदी जोड़ो परियोजना

अरसे से ठंडे बस्ते में पड़ी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की महत्वाकांक्षी ‘नदी जोड़ो परियोजना’ को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। मोदी सरकार ने भरे ही आनन-फानन में इस परियोजना को साकार करने के लिए कमर कस ली हो लेकिन उस पर पराए-तो-पराए अपने भी सवाल उठा रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की महत्वाकांक्षी ‘नदी जोड़ो योजना’ को पूरा करने के लिए मोदी सरकार पूरी शिद्दत से जुट गई है। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी नदियों के जोड़ने की योजना जल्द तैयार किए जाने के संकेत दिए हैं, जबकि वित्त मंत्री अरुण जेटली अपने पहले बजट में इस परियोजना के लिए 100 करोड़ रुपए आवंटित कर चुके हैं।

गौरतलब है कि 2002 में राजग सरकार के समय अटल बिहारी वाजपेयी ने इस परियोजना के जरिए जल संसाधन और प्रबंधन के असंतुलन को दूर करने का दावा किया था लेकिन कानूनी पचड़े में फंसने के बाद यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई थी।

2004 में कांग्रेसनीत सरकार ने भी इस योजना के भारी-भरकम खर्च को देखते हुए इससे मुंह मोड़ लिया था। वहीं पर्यावरणविद् शुरू से ही नदियों को आपस में जोड़ने या उसके प्राकृतिक बहाव में किसी तरह के कृत्रिम व्यवधान को भविष्य के लिहाज से खतरनाक मानते रहे हैं।

बहरहाल, मोदी सरकार द्वारा सक्रियता दिखाए जाने के बाद यह परियोजना एक बार फिर विवादों में है।

नदी जोड़ो परियोजना को लेकर तमाम राज्य सरकारें विरोध में खड़ी हो गई हैं। केरल के मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने कहा है कि उनकी सरकार पाम्बा-अछानकोविल नदियों को तमिलनाडु की वाइपर नदी से जोड़ने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगी क्योंकि इस परियोजना से न सिर्फ नदियां सूख जाएंगी बल्कि बड़े पैमाने पर पर्यावरण संबंधी तबाही भी होगी। ओडीशा सरकार भी महानदी गोदावरी लिंक परियोजना पर सहमत नहीं है। मोदी सरकार की इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश ने भी चिंता जताई है।

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने जल संसाधन मंत्रालय को इस परियोजना की वास्तविक स्थिति का पता लगाने के लिए भारत से संपर्क करने को कहा है।

गौरतलब है कि बांग्लादेश में तकरीबन 230 नदियों में से 54 भारत से होकर गुजरती हैं। निश्चित तौर पर भारत में यदि नदियों को जोड़ने की बात होती है तो नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे पहाड़ियों की निगाह हम पर रहेगी। हालांकि आंध्र के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने देश में कृषि क्षेत्र में उन्नति और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए नदियों को आपस में जोड़े जाने की वकालत की है।

इसी तरह नेत्रावती हेमावती लिंक परियोजना पर कर्नाटक सरकार ने अपनी योजना के तहत नेत्रावती नदी के जल का इस्तेमाल किए जाने की इच्छा जाहिर की है।

भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना साकार करने की इच्छा रखते हों लेकिन इस मुद्दे पर पार्टी के भीतर ही एक राय नहीं बन पा रही है। नदियों को जोड़ने की योजना खतरनाक बताते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने दावा किया है कि उन्होंने ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को इस परियोजना पर आगे बढ़ने से रोका था। उनका तर्क है कि प्रत्येक नदी की अपनी पारिस्थितिकी (ईको सिस्टम) होती है, जिसके आस-पास वनस्पतियां, जलीय जीव आदि रहते हैं। इसी तरह प्रत्येक नदी के पानी की अपनी पीएच वैल्यू होती है। उसी के आधार पर उसके पानी का उपयोग होता है।

ऐसे में यदि अलग-अलग किस्म की नदियों को मिलाया जाता है तो दोनों ही नदियां खत्म हो जाएंगी। नदी जोड़ो परियोजना के लिए भूमि उपलब्धता को लेकर भी मेनका गांधी सवाल उठाती हैं। निश्चित तौर पर नदियों को जोड़ने के लिए भूमि अधिग्रहण का काम मोदी सरकार के लिए आसान नहीं होगा। साथ ही सरकार को पर्यावरण संबंधी तमाम सवालों के जवाब ढूंढने होंगे।

एनजीबीआरए के सदस्य प्रो. बी.डी. त्रिपाठी के अनुसार भविष्य में नदी जोड़ो परियोजना बेहतर साबित होगी या फिर नुकसानदायक होगी, इसका निर्णय बगैर किसी अध्ययन के नहीं लिया जा सकता है। सभी नदियों के अपने गुण होते हैं और उसी गुण के कारण उससे संबंधित जीव-जगत और वनस्पतियां वहां पाई जाती हैं।

ऐसे में जब नदियों को जोड़ने की बात करते हैं तो जहां पानी नहीं होगा, वहां भले ही पानी पहुंच जाए लेकिन ऐसा भी हो सकता है जहां पर पानी था, वहां पर पानी खत्म हो जाए, इसलिए इस संबंध में एक विशेष अध्ययन होना चाहिए। बगैर किसी अध्ययन के इतने वृहद् स्तर पर इस परियोजना को लागू करना हितकर नहीं होगा।

नदी जोड़ो परियोजना पर उठते सवालों और राज्यों का रुख भांपते हुए केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह बगैर उनकी सहमति के आगे कदम नहीं बढ़ाएगी। तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों की आपत्तियों के बीच जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने साफ कर दिया है कि अब पर्यावरण के साथ की छेड़छाड़ नहीं की जाएगी और इससे संबंधित राज्यों की सहमति के बिना किसी भी नदी को दूसरी नदी से नहीं जोड़ा जाएगा।

उमा के अनुसार, ‘पानी को लेकर विभिन्न राज्यों के बीच मुद्दे तो हो सकते हैं लेकिन विवाद नहीं होना चाहिए। पानी प्यार के लिए हो न कि तकरार के लिए।’

बहरहाल, ‘राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना’ (एनपीपी) के तहत अंतरराज्यीय नदियों को जोड़ने के लिए चिन्हित किए गए 30 ऐसे संपर्कों में से राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (एलड्ब्ल्यूडीए) द्वारा तीन संपर्कों पर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करने की प्रक्रिया शुरू की गई है जिनमें केन-बेतवा संपर्क, दमनगंगा-पिंजल संपर्क और पार-तापी नर्मदा संपर्क शामिल हैं। केन-बेतवा लिंक परियोजना तथा दमनगंगा-पिंजल लिंक परियोजना का डीपीआर एनड्ब्लयूडीए ने पूरा कर लिया है और इसे संबंधित राज्यों को सौंप दिया गया है।

डीपीआर के अनुसार मध्य प्रदेश की करीब एक लाख हेक्टेयर कृषि भूमि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के तहत सालाना सिंचाई के दायरे में आ जाएगी। उधर नर्मदा-शिप्रा लिंक के बाद मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने नर्मदा-मालवा-गंभीर लिंक परियोजना को हरी झंडी दिखा दी है। सरकार का दावा है कि 2143 करोड़ 46 लाख रुपए की इस परियोजना से इंदौर और उज्जैन जिले की 7 तहसीलों के 158 गांव में पेयजल और 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो सकेगी।

प्रख्यात पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र सरकार की नदी जोड़ो परियोजना पर सवाल उठते हुए कहते हैं कि दिल्ली जल बोर्ड ने हाल ही में शिकायत की है कि हरियाणा सरकार पानी नहीं दे रही है। आज भले ही दिल्ली में कांग्रेस की सरकार न हो लेकन शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थीं तो उन्होंने पानी के मुद्दे पर हुड्डा द्वारा फोन नहीं उठाए जाने को लेकर सोनिया गांधी से शिकायत करने की बात कही थी। यदि एक ही पार्टी की सरकारें एक-दूसरे को पीने का पानी नहीं दे सकती हैं तो सिंचाई का पानी कैसे आपस में बांटेगीं?

अनुपम मिश्र के मुताबिक भौगोलिक दृष्टि से भी यह उचित नहीं है। उनके अनुसार भारत सरकार जो प्रयोग करने जा रही है उसे खुद नदियां मानेंगी भी या नहीं यह भी तय नहीं है क्योंकि नदी का अपना एक स्वभाव है। इस परियोजना को लेकर अनुपम मिश्र किसी तरह की कोई कटुता या फिर षड्यंत्र नहीं देखते, बल्कि उनका मानना है कि सरकार नादानी में यह कदम उठा रही है। उनके अनुसार यह राजरोग है, जो कि सत्ता में आने से ही होता है, लेकिन इस परियोजना में जो खर्च होगा, उसकी कीमत पर जरूर विचार होना चाहिए।

भले ही मध्य प्रदेश सरकार नर्मदा-क्षिप्रा नदी जोड़ने को लेकर अपनी कामयाबी बता रही हो और उसको खूब प्रचारित-प्रसारित कर रही हो लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि किसी भी चीज को लेकर प्लस-माइनस हमारे बनाए हुए हैं, न कि प्रकृति के बनाए गए। अनुपम मिश्र के अनुसार लोगों को यह नहीं बताया जा रहा है कि नर्मदा के पानी को क्षिप्रा में पहुंचाने के लिए प्रतिदिन 16 लाख रुपए की बिजली खर्च होती है। गौरतलब है कि नर्मदा घाटी में बहती है और क्षिप्रा मालवा के पठार पर बहती है। सरकारी विज्ञापनों में भी बताया जा रहा है कि मालवा सूखा था, अब सुखी हो गया लेकिन नदी सूखी क्यों थी, इस पर सरकार ने चिंतन नहीं किया।

‘अब पर्यावरण के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी और राज्यों की सहमति के बिना किसी भी नदी को दूसरी नदी से नहीं जोड़ा जाएगा।’
- उमा भारती, जल संसाधन मंत्री

‘पाम्बा-अछानकोविल नदियों को तमिलनाडु की वाइपर नदी से जोड़ने का प्रस्ताव स्वीकार नहीं क्योंकि इस परियोजना से न सिर्फ नदियां सूख जाएंगी बल्कि बड़े पैमाने पर पर्यावरण संबंधी तबाही भी होगी।’
- ओमान चांडी, मुख्यमंत्री, केरल

‘प्रत्येक नदी की अपनी पारिस्थितिकी (इको सिस्टम) होती है, जिसके आस-पास वनस्पतियां, जलीय जीव आदि रहते हैं। यदि अलग-अलग किस्म की नदियों को मिलाया जाता है तो दोनों ही नदियां खत्म हो जाएंगी।’
- मेनका गांधी, महिला एवं बाल विकास मंत्री

‘यदि एक ही पार्टी की सरकारें एक-दूसरे को पीने का पानी नहीं दे सकती हैं तो सिंचाई का पानी कैसे आपस में बांटेगीं?’
- अनुपम मिश्र, प्रख्यात पर्यावरणविद्

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Post By: pankajbagwan
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