फिर गहराया चंबल के घड़ियालों पर संकट

लीवर की खराबी से एक सप्ताह में तीन की हो चुकी मौत, कवई मछली को बताया जा रहा है कारण


चंबल के घड़ियाल एक बार फिर संकट में हैं। 2008 और 2010 के बाद एक बार फिर लीवर खराब होने से इनकी मौत हो रही है। लीवर की खराबी का कारण यमुना में पानी जाने वाली जहरीली कवई के सिर मढ़ा जा रहा है।

कहा जा रहा है कि खतरनाक रसायनों वाली इस कवई (टिलैपिया) मछली के खाने से उनकी मौत हो रही है। हालांकि कुछ लोग इसका कारण इस इलाके में अवैध शिकार के चलन को भी बता रहे हैं। घड़ियालों की बढ़ी संख्या के कारण 1979 में चंबल के 400 किलोमीटर इलाके को राष्ट्रीय चंबल सफारी घोषित किया गया। राजस्थान के कोटा से लेकर इटावा-औरैया की सीमा पचनद तक के इलाके के घड़ियालों के संरक्षण के लिए अभ्यारण्य घोषित किया गया है। इस इलाके में घड़ियालों के प्राकृतिक आवास हैं। इन घड़ियालों की 2008, 2010 और 2011 में बड़ी संख्या में मौत हुई। अब इन घड़ियालों पर फिर संकट बना हुआ है।

इससे चंबल सफारी के अफसरों में भी चिंता है। हाल ही में मुरैना जिले के कछपुरा घाट में घड़ियाल के बच्चे की मौत के दो दिन बाद ही 18 फरवरी को इटावा के पथर्रा इलाके में डेढ़ साल का घड़ियाल मृत पाया गया। इससे पहले इसी स्थान पर 3 फरवरी को दो घड़ियाल मरे मिले। इनकी आयु ढाई साल बताई गई। सभी की मौतों के बारे में चंबल सफारी के अफसरों का कहना था कि वह लीवर खराब होने से मरे हैं।

1. कवई मछली से कैडमियम और आर्सेनिक पहुंच रहे चंबल में
2. यमुना नदी का प्रदूषण भी बना जलजीव के जान का दुश्मन

कब-कब हुई घड़ियालों की मौत

2008

चंबल में फरवरी के महीने में करीब 100 घड़ियालों की मौत हो गई। इसके बाद काफी हंगामा मचा। इस पर क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप ने अपनी रिपोर्ट संसद में रखी और मौतों का कारण यमुना के प्रदूषण और कवई मछली को बताया।

2010

चंबल और यमुना के मिलन स्थल से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर चंबल में दिसंबर में बड़ी संख्या में घड़ियालों की मौत हुई।

2011

इटावा और पचनद के बीच ही लगभग 100 घड़ियालों की मौत हो गई। विभाग इस मामले की रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं कर सका है।

2014

3 फरवरी को इटावा जिले के पथर्रा में ढाई साल के दो घड़ियालों की मौत। मौत का कारण लीवर खराब हो जाना बताया गया।

2014

18 फरवरी को डेढ़ साल के एक अन्य घड़ियाल की मौत।

 



क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप की रिपोर्ट में इन हादसों का कारण यमुना में पाई जाने वाली टिलैपिया नाम की मछली मानी जाती है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस मछली के खाने से घड़ियालों के लीवर और किडनी खराब हो जाते हैं। यह मछली यमुना के प्रदूषण के कारण जहरीली हो गई है और इसमें बड़ी मात्रा में कैडमियम, आर्सेनिक, लैड की मात्रा पाई जाती है। चंबल में जहां घड़ियालों की मौत अधिक होती है वहां से लगभग 35 किलोमीटर डाउनस्ट्रीम में चंबल यमुना से मिलती है। कवई मछली चंबल में नहीं पाई जाती है। इससे समझ में आता है कि यह मछली यमुना से चंबल में पहुंची है।

हालांकि इन बातों से वाइल्ड लाइफ नेचर आफ कंजर्वेशन नाम का एनजीओ चलाने वाले राजीव चौहान इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका तर्क है कि कवई मछली को इस इलाके में ग्रामीण खूब खाते हैं, इससे उसके जहरीले होने की बात गले नहीं उतरती है। उनका कहना है कि घड़ियालों की मौत इस इलाके में मछलियों के अवैध शिकार के लिए फैलाए जाने वाले जालों में फंसकर हो रही है। हालांकि इंटरनेशनल जनरल ऑफ करंट रिसर्च की रिपोर्ट यमुना में पाई जाने वाली कवई मछली के जहरीली होने के बाद कह चुकी है और यह रिपोर्ट इस मछली को मनुष्य के लिए खतरनाक मानती है।

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