देश के 11 राज्यों के 266 जिलों में सूखा घोषित किया गया है। देश की 33 करोड़ जनता इससे प्रभावित है। इस सभी की आशा की किरण केवल बादलों से आ सकती है। बूँदों के रूप में। मानसून के बदरा राहत का पैगाम ला सकते हैं। हमारे देश के 55 फीसदी खेतों में सिंचाई बारिश पर निर्भर है। यानी कृषि मानसून का जुआ है। आखिरकार हमारा देश दुनिया भर में खाद्यान्नों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता दोनों है। साथ ही 70 फीसदी आबादी कृषि पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से निर्भर है। यही नहीं 58 फीसदी कुल रोजगार भी कृषि सेक्टर से ही उत्पन्न होता है। मानसून ने दक्षिण में दस्तक दे दी है।
15% | पानी शेष, देश के 91 मुख्य जलस्रोतों में जून के दूसरे पखवाड़े में |
09% | ही पानी शेष दक्षिण के जलस्रोतों में, 23 फीसद उत्तरी क्षेत्र में |
10% | कम बुवाई हुई है खरीफ की इस बार पिछले वर्ष की तुलना में |
सरकार सिंचाई के आधारभूत ढाँचे को ठीक-ठाक करने में जुटे होने का दावा कर रही है। लेकिन मानसून इस सरकारी कवायद का इंतजार नहीं करता। चल पड़ा है, लेकिन अपनी ही चाल से। कुछ मंथर..कुछ सुस्ताया सा। मौसम विभाग ने महाराष्ट्र के किसानों को सलाह दी है कि वे अपने खेतों में बुवाई में थोड़ा विलम्ब करें। लेकिन तस्वीर इतनी भी निराशाजनक नहीं है। पिछले लगातार दो साल के कमजोर मानसून के कारण सूखे के साये को धुंधला कर केरल में झमाझम का दौर शूरू हो चुका है। लेकिन देश के अन्य हिस्सों को अब भी मानसून की राहत भरी फुहारों का इंतजार है।
सूखे से कुम्हलाए हुए पेड़-पौधों और तपिश झेलते लोगों को। मौसम विभाग ने इस बार अच्छे मानसून की भविष्यवाणी की है। पिछले साल कमजोर मानसून का बड़ा कारण अलनीनो का प्रभाव था। प्रशांत महासागर में गर्म जलधाराओं के कारण मानसून के बादलों का पानी ‘सूख’ गया था। इस बार मौसम वैज्ञानी प्रशांत महासागर में ला नीना प्रभाव की भविष्यवाणी कर रहे हैं। यानी ठंडी जलधाराएँ प्रशांत के पानपी को शीतलता प्रदान कर रही हैं। इसे बेहतर मानसून से जोड़कर देखा जा रहा है। देश में मानसून सबसे पहले अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में 20 मई के आस-पास आता है। इसके बाद ये दो दिशाओं में विभक्त हो जाता है। उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-पूर्व दिशा में।
मौसमी परिस्थितियाँ अनुकूल रहने पर मानसून जुलाई के मध्य तक पूरे देश में छा जाता है। मौसम विज्ञानियों का अनुमान है कि अगले हफ्ते की शुरुआत तक मानसून मध्य भारत में सक्रिय हो जाएगा। इससे पहले देश में मानसून पूर्व की बारिश भी कुछ भागों में होती है। मार्च से मई के दौरान होने वाली इस बारिश को मैंगो शावर्स भी कहते हैं। बारिश और अंधड़ का ये दौर केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में आम को पकने में सहायक साबित होता है। बहरहाल, देश के एक बड़े भूभाग और करोड़ों लोगों को मानसून की राहत भरी बूँदों का इंतजार है।
अन्नदाता के लिये तो अमृत है बरखा (नीरज ठाकुर)
देश की 40 फीसदी आबादी रोजी-रोटी के लिये कृषि पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर है। ऐसे में अन्नदाताओं के लिये मानसून की बारिश अमृत के समान है। कमजोर मानसून उम्मीदों पर पानी भी फेर देता है। वर्ष 2014 और 2015 में क्रमशः 14 और 12 फीसदी कम बारिश हुई। ऐसे में इस बार मानसून को लेकर देश के किसानों में उत्साह है। मौसम विभाग ने भी अच्छे मानसून की भविष्यवाणी की है। सूखे के कारण वर्ष 2014 और 2015 में देश के 10 हजार से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
कमजोर मानसून के कारण देश के विभिन्न राज्यों से बड़ी संख्या में किसान आजीविका की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं। देश का किसान मजदूर बन रहा है। बड़े शहरों के फुटपाथ और झुग्गियों में अन्नदाता आसरा तलाशते हैं। कमजोर मानसून के कारण खाद्यान्नों के दामों में भी उछाल आता है। दाल, टमाटर और तिलहन के दाम मध्यम वर्ग की पहुँच से बाहर हो जाते हैं। अन्नदाताओं को आस है इस बार के मानसून से।
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