एक सपना कमानवेल्थ खेलों के पहले दिखाया गया था कि अक्टूबर, 2010 तक लंदन की टेम्स नदी की ही तरह देश की राजधानी दिल्ली में वजीराबाद से लेकर ओखला तक शानदार लैंडस्केप, बगीचे होंगे, नीला जल कल-कल कर बहता होगा, पक्षियों और मछलियों की रिहाईश होगी। लेकिन कॉमनवेल्थ खेल तो बदबू मारती, कचरे व सीवर के पानी से लबरेज यमुना के तट पर ही हुए।उत्तर प्रदेश सरकार ने दिल्ली को पत्र लिखकर धमका दिया है कि यदि यमुना में गंदगी घोलना बंद नहीं किया तो राजधानी का गंगाजल रोक देंगे। हालांकि दिल्ली सरकार ने इस पत्र को कतई गंभीरता से नहीं लिया है, न ही इस पर कोई प्रतिक्रिया दी है। लेकिन यह तय है कि जब कभी यमुना का मसला उठता है तो सरकार बड़े-बड़े वायदे करती है पर क्रियान्वयन के स्तर पर कुछ नहीं होता है।
सफाई के नाम पर
इसी साल फरवरी के अंतिम हफ्ते में शरद यादव की अगुवाई वाली संसदीय समिति ने कहा कि यमुना सफाई के नाम पर व्यय हुए 6500 करोड़ रूपए बेकार ही गए हैं क्योंकि नदी पहले से भी ज्यादा गंदी हो चुकी है। समिति ने यह भी कहा कि दिल्ली के तीन नालों पर इंटरसेप्टर सीवर लगाने का काम अधूरा है। गंदा पानी नदी में सीधे गिरकर उसे जहर बना रहा है। विडंबना तो यह है कि इस तरह की चेतावनियां, रपटें न तो सरकार के और न ही समाज को जागरूक कर पा रही हैं।
टेम्स बनाने का सपना
एक सपना कमानवेल्थ खेलों के पहले दिखाया गया था कि अक्टूबर, 2010 तक लंदन की टेम्स नदी की ही तरह देश की राजधानी दिल्ली में वजीराबाद से लेकर ओखला तक शानदार लैंडस्केप, बगीचे होंगे, नीला जल कल-कल कर बहता होगा, पक्षियों और मछलियों की रिहाईश होगी। लेकिन कॉमनवेल्थ खेल तो बदबू मारती, कचरे व सीवर के पानी से लबरेज यमुना के तट पर ही हुए। 10 अप्रैल 2001 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 31 मार्च 2003 तक यमुना को दिल्ली में न्यूनतम जल गुणवत्ता प्राप्त कर ली जानी चाहिए, ताकि यमुना को ‘मैली’ न कहा जा सके। उस समय सीमा को बीते ग्यारह सालों के बाद भी दिल्ली क्षेत्र में बहने वाली नदी में ऑक्सीजन का बस नामो-निशान भर रह गया है यानी पूरा पानी जहरीला हो चुका है और यमुना मर चुकी है।
नदी को बचाने का संघर्ष पिछले साल मार्च के पहले सप्ताह में मथुरा से कई हजार लोग यमुना बचाव मुहिम के तहत दिल्ली के लिए पैदल रवाना हुए थे। उस समय भी केंद्र सरकार ने फरीदाबाद से पहले लोगों को रोककर यमुना के उद्धार का आश्वासन दिया था। भीड़ छटी और सरकार वायदे भूल गई।
नदी और जीवन का साझा
जहां-जहां से नदियां निकलीं, वहां-वहां बस्तियां बसती गई और इस तरह विविध संस्कृतियों, भाषाओं, जाति-धर्मों का भारत बसता चला गया। नदियां पवित्र मानी जाने लगीं तो केवल इसलिए नहीं कि इनसे जीवनदायी जल मिल रहा था, बल्कि इसलिए भी कि इन्हीं की छत्रछाया में मानव सभ्यता पुष्पित-पल्लवित होती रही।
गंगा और यमुना को भारत की अस्मिता का प्रतीक माना जाता रहा है। लेकिन विडंबना है कि विकास की बुलंदियों की ओर उछलते देश में अमृत बांटने वाली दोनों नदियां आज खुद जहर पीने का अभिशप्त हैं। यमुना की दुर्दशा तो और भी अधिक विचारणीय है क्योंकि यह देश के शक्ति-केंद्र दिल्ली में ही सबसे अधिक दूषित होती है।
यमुना की पावन धारा दिल्ली में आकर एक नाला बन जाती है। आंकड़ों और कागजों पर तो इस नदी की हालत सुधारने को इतना पैसा खर्च हो चुका है कि यदि उसका ईमानदारी से इस्तेमाल किया जाता तो उससे एक समानांतर धारा की खुदाई हो सकती थी।
बीओडी स्तर 40-48 गुना
ओखला में तो यमुना नदी में बीओडी स्तर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय स्तर से 40-48 गुना ज्यादा है। पेस्टीसाइड्स और लोहा, जिंक आदि धातुएं भी नदी में पाई गई हैं। एम्स के फोरेंसिक विभाग के अनुसार, 2004 में 0.08 मिग्रा. आर्सेनिक की मात्रा पाई गई, जो अधिकतम 0.01 मिग्रा होनी चाहिए। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने यमुना का सर्वे करते हुए आर्सेनिक की मात्रा को नजरअंदाज कर दिया।
पानी में मौजूद फास्फेट और नाइट्रेट का भी कोई जिक्र नहीं किया गया है। ऊपरी यमुना का पानी तो किसी लायक नहीं रहा। लेकिन यह विडंबना ही है कि यमुना की निचली धारा जहां बहती है, वहां के लोग (मथुरा, आगरा, इलाहाबाद आदि) पेयजल के लिए यमुना पर ही निर्भर हैं।
फैजाबाद में तुगलकी नहर
यमुना जब देहरादून की घाटी में पहुँचती है तो वहां कालसी-हरिपुर के पास उसमें टौस (तमसा) आ मिलती है। शिवालिक के पहाड़ों में तेजी से घूमते-घामते यमुना फैजाबाद में मैदानी इलाके में आज जाती है। फिर इससे कई नहरें निकलती हैं। पहले-पहल जिन नदियों पर नहरें बनीं, उनमें यमुना एक है। 600 साल पहले दिल्ली के शासक फिरोजशाह तुगलक ने फैजाबाद के पास यमुना में एक नहर खुदवाई थी। पश्चिमी यमुना नहर के नाम से मशहूर यह नहर अंबाला, हिसार, करनाल आदि जिलों के खेतों को सिंचती है। यह नहर कुछ सालों बाद बंद हो गई। 200 साल बाद अकबर ने इसे ठीक कराया, क्योंकि उससे हांसी-हिसार के शिकारगाहों को पानी पहुंचाना था।
शाहजहां इसकी एक शाखा दिल्ली तक ले गए थे। करीब 50 साल बाद इसमें फिर खराबी आ गई थी। 1818 में लार्ड हेस्टिंगस के निर्देश पर कप्तान क्लेन ने इसे फिर शुरू करवाया था।
दो सौ साल पहले दोआब
कोई 200 साल पहले इससे दोआब नहर भी निकाली गई थी। इससे सहारनपुर, मुज़फ़्फरनगर, मेरठ जिलों को पानी मिलता है। यह भी दिल्ली के करीब यमुना में आकर मिलती है। यह नहर भी बार-बार बिगड़ती और सुधरती रही। इसे पूर्वी यमुना नहर भी कहते हैं। नहरों के कारण यमुना का बहाव धीमा हो जाता है। बहुत दूर तक यह हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा निर्धारित करती है। एक ओर पानीपत, रोहतक जिले हैं तो दूसरी ओर मेरठ, मुज़फ़्फरनगर आदि। इससे आगे फिर यमुना आती है दिल्ली में। यह इस नगर के कई बार उजड़ने-बसने, मुल्क का आजादी की जंग और विकास की मूक साक्षी बनती है। यहां से ओखला होते हुए यमुना आगे बढ़ती है तो दनकौर में हिंडन नदी इसके साथ हो लेती है। हिंडन भी गाज़ियाबाद से उपजे प्रदूषण से हलकान है और इसके पानी में अब मछलियाँ पैदा होनी भी बंद हो गई है। एक बार फिर हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा बनी इस नदी के एक तरफ फरीदाबाद है तो दूसरी ओर बुलंदशहर और नोएडा।
विफल रही पीएम की पहल
दो साल पहले एक बार फिर यमुना को अपने जीवन के लिए सरकार से उम्मीद बंधी थी जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निर्देश पर यमुना नदी विकास प्राधिकरण (वाईआरडीए) का गठन किया गया था। दिल्ली के उपराज्यपाल की अध्यक्षता में दिल्ली जल बोर्ड, प्रदूषण बोर्ड सहित कई सरकारी व गैर सरकारी संगठनों को साथ लेकर एक तकनीकी सलाहकार समूह का गठन हुआ था।
उस समय सरकार की मंशा थी कि एक कानून बनाकर यमुना में प्रदूषण को अपराध घोषित कर राज्यों व स्थानीय निकायों को इसका जिम्मेदार बना दिया जाए। लेकिन वह सब कागज़ों से आगे बढ़ा ही नहीं।
दिल्ली ने नहीं लगाया दिल से
यमुना के संघर्ष भरे सफर का सबसे दर्दनाक हिस्सा इसकी दिल्ली यात्रा है। यमुना नदी दिल्ली में 48 किलोमीटर बहती है। यह नदी की कुल लंबाई का महज 2 फीसदी है जबकि इसे प्रदूषित करने वाले कुल गंदे पानी का 71 प्रतिशत और बॉयोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी बीओडी का 55 प्रतिशत यहीं से इसमें घुलता है।
प्रदूषण स्तर ‘ए’ से ‘ई’ तक
अनुमान है कि दिल्ली में हर रोज 3297 एमएलडी गंदा पानी और 132 टन बीओडी यमुना में घुलता है। दिल्ली की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर कही जाने वाली यमुना का राजधानी में प्रवेश उत्तर में बसे पल्ला गांव से होता है। पल्ला में नदी का प्रदूषण का स्तर ‘ए’ होता है। लेकिन यही उच्च गुणवत्ता का पानी जब दूसरे छोर जैतपुर पहुँचता है तो ‘ई’ श्रेणी का हो जाता है। ग़ौरतलब है कि स्तर का पानी मवेशियों के लिए अनुपयुक्त है।
हिमालय के यमनोत्री ग्लेशियर से निर्मल जल के साथ आने वाली यमुना की असली दुर्गति दिल्ली में वजीराबाद बांध को पार करते ही होने लगती है। इसका पहला सामना होता है नजफगढ़ नाले से, जो कि 38 शहरी व चार देहाती नालों की गंदगी अपने में समेटे वजीराबाद पुल के पास यमुना में मिलता है।
21 नालों की गंदगी
इसके अलावा दिल्ली महानगर की कोई डेढ़ करोड़ आबादी का मल-मूत्र व अन्य गंदगी लिए 21 नाले यमुना में मिलते हैं, उनमें प्रमुख हैं- मैगजीन रोड, स्वीयर कालोनी, खबैर पास, मेटकॉफ हाउस, कुदेसिया बाग, यमुनापार नगर निगम नाला, मोरीगेट, सिविल मिल, पावर हाउस, सैनी नर्सिंग होम, नाला नंबर-14, बारापुला नाला, महारानी बाग, कालकाजी और तुगलकाबाद नाला। इसके बाद आगरा के चमड़ा कारखाने व मथुरा के रंगाई कारखानों का जहर भी इसमें घुलता है।
सफाई की कोशिश 40 साल से
दिल्ली में यमुना को साफ-सुथरा बनाने की कागजी कवायद कोई 40 सालों से चल रही है। 1980 में एक योजना नौ सौ करोड़ की बनाई गई थी। दिसंबर, 1990 में भारत सरकार ने यमुना को बचाने के लिए जापान सरकार के सामने हाथ फैलाए थे। जापानी संस्था ओवरसीज इकोनोमिक कारपोरेशन फंड ऑफ जापान का एक सर्वे दल जनवरी, 1992 में भारत आया था। जापान ने 403 करोड़ की मदद देकर 1997 तक कार्य पूरा करने का लक्ष्य रखा था। लेकिन यमुना का मर्ज बढ़ता गया और कागजी लहरें उफनती रहीं। अभी तक कोई 1800 करोड़ रुपए यमुना की सफाई के नाम पर साफ हो चुके हैं। इतना धन खर्च होने के बावजूद भी केवल मानसून में ही यमुना में ऑक्सीजन का बुनियादी स्तर देखा जा सकता है। इसमें से अधिकांश राशि सीवेज और औद्योगिक कचरे को पानी से साफ करने पर ही लगाई गई।
यमुनानामा
उद्गम |
यमुनोत्री ग्लेशियर |
संगम |
प्रयागराज (इलाहाबाद) |
कुल लंबाई |
1376 किमी., यमुनोत्री से हथिनीकुंड-172 किमी., हथिनीकुंड से वजीराबाद-224 किमी., वजीराबाद से ओखला-22 किमी., ओखला से चंबल संगम, इटावा 490 किमी., चंबल संगम से गंगा संगम तक-468 किमी. |
घाटी राज्य |
उत्तराखंड, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश |
सहायक नदियां |
कमला, गिरि, टोंस, असान, सोम, छोटी यमुना, हिंडन, चंबल, काली, सिंध, केन और बेतवा |
मुख्य नाले |
26 (नाला नंबर-2.8, भूरिया नाला, मथुरा-वृंदावन नाला, आगरा नाला दिल्ली के 22 नाले। दिल्ली नालों के नाम - नजफगढ़ मैगजीन रोड, स्वीपर कॉलोनी, खैबरपास, मैटकॉफ, कुदसिया बाग, मोट, यमुनापार नगर निगम, मोरी गेट, सिविल मिल, पावर हाउस, मेन नर्सिंग होम, नंबर 14, बारापुला, महारानी बाग, कालकाजी, ओखला, तुगलकाबाद, शाहदरा, सरिता विहार, एल पी जी बॉटलिंग प्लांट और तेहखंड) |
नहरें |
06 (डाकपत्थर, असान, पश्चिमी यमुना, पूर्वी यमुना, आगरा और गुड़गांव नहर) |
बांध/बैराज |
06 (उद्देश्य : डाकपत्थर और असान से बिजली, हथिनीकुंड से सिंचाई, वजीराबाद से पेयजल, आईटीओ से पावर हास और ओखला से आगरा नहर को आपूर्ति) |
प्रस्तावित बांध |
03 |
वर्षा |
130 से 1600 मिमी. तक। |
वार्षिक जल बहाव |
0.3 मिलियन क्यूबिक मीटर से 100 बिलियन क्यूबिकमीटर तक। |
गुणवत्ता की श्रेणी |
यमुनोत्री से आगरा के बीच‘ए’से‘ई’ तक। |
प्रदूषण के कारण |
नाइट्रोजन, पोटैशियम, फास्फोरस और बायोमाइडस जैसे कृषि रसायन की मौजूदगी में पिछले 25 वर्षों में चार गुना वृद्धि। |
संबंधित एजेंसियां
घाटी प्रदेशों की सरकारें, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा अन्य संबंधित विभाग; जैसे दिल्ली सरकार का दिल्ली जल बोर्ड, पर्यावरण विभाग, भूमि एवं भवन विभाग, नगर विकास विभाग, सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण विभाग। भारत सरकार का केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण एवं वन, नगर विकास एवं जल संसाधन मंत्रालय। केंद्रीय भूजल बोर्ड, केंद्रीय जल आयोग, ऊपरी यमुना नदी बोर्ड और दिल्ली विकास प्राधिकरण।
चेते नहीं तो बढ़ेगे खतरे
मनोज मिश्र, संयोजक, यमुना जिए अभियान
यमुना के रेतीले स्पंज आज भी ढेर सारा पानी संजोकर रखने की कोशिश में लगे रहते हैं ताकि राजधानीवासी प्यासे न रहें। इस दृष्टि से यमुना दिल्ली की लाइफलाइन है, बावजूद इसके दिल्ली अपनी एहसान-फरामोशी से बाज नहीं आ रही। यमुना को धमकाते दिल्ली को कई बरस बीत गए। दिल्ली से गुजरती यमुना की 50 किमी लंबाई में से 22 किमी. को हर रोज शहरी सीमाएं धमकाती हैं। वजीराबाद पुल से ओखला बैराज के बीच की यह दूरी दुनिया में किसी भी नदी की तुलना में यमुना के लिए सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। इसी हिस्से में यमुना सबसे ज्यादा प्रदूषित है। इसी हिस्से में आकर यमुना सिकुड़कर डेढ़ से तीन किमी चौड़ी रह जाती है। इस हिस्से को सबसे ज्यादा धमकी सरकारी एजेंसियों ने ही दी है - 100 एकड़ पर शास्त्री पार्क मेट्रो, 100 एकड़ में यमुना खादर आईटीओ मेट्रो, 100 एकड़ में खेलगांव व उससे जुड़े दूसरे निर्माण, 61 एकड़ में इंद्रप्रस्थ बस डिपो। एक निजी ट्रस्ट द्वारा 100 एकड़ में बनाया अक्षरधाम भी सरकारी सहमति का नतीजा है। म्यूनसिपलिटी के नाले यमुना में गिरकर सांस रोकने की धमकी रोज दे रहे हैं, सो अलग।
धमकियां देने को विवश यमुना भी है महरौली, वसंत विहार से लेकर द्वारका तक की हरियाणा से सटी पट्टी त्राहि-त्राहि कर रही है। शेष दिल्लीवासियों को अब भी पीने का पानी सीमित ही मिलता है। हमारे नलों में भेजे जा रहे पेयजल के स्वच्छ होने की गारंटी दिल्ली जलबोर्ड कभी नहीं दे पाया। यमुना के अस्तित्व से और खिलवाड़ हुआ तो पेयजल की दुर्दशा और गहराएगी। यही वह हिस्सा है, जिसने 1947 से 2013 के मध्य नौ बार बाढ़ का संकट झेला है। आगे यमुना कब दिल्ली को 2005 की मुंबई याद दिला देगी, कहना मुश्किल है।
लापरवाही का उत्तर प्रदेश
यमुना की सफाई के दावों में उत्तर प्रदेश सरकार भी कभी पीछे नहीं रही। 1983 में राज्य सरकार ने यमुना सफाई की एक कार्ययोजना बनाई। 26 अक्टूबर 1983 को मथुरा में उ.प्र. जल निगम के तत्कालीन प्रमुख आरके भार्गव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय बैठक हुई थी। इसमें मथुरा के 17 नालों का पानी परिशोधित कर यमुना में मिलाने की 27 लाख रुपए की योजना को इस विश्वास के साथ मंजूरी दी गई थी कि काम 1985 तक पूरा हो जाएगा। न तो उस योजना पर कोई काम हुआ और न ही अब उसका कोई रिकार्ड है।
उसके बाद तो करोड़ों के खेल हुए, लेकिन यमुना दिन-दुगनी, रात चौगुनी मैली होती रही। आगरा में कहने को तीन सीवर शोधन संयंत्र काम कर रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी 110 एमएलडी सीवरयुक्त पानी हर रोज नदी में मिल रहा है। आगरा में यमुना के पानी को पीने के लायक बनाने के लिए 80 पीपीएम क्लोरीन देनी होती है। दिल्ली में यह मात्रा आठ-दस पीपीएम है।
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