ब्लैक कार्बन श्वेत धवल हिमालय की चमक को भी धुंधला करने में लगा है। डीजल और लकड़ी जलाने से पैदा धुएं से निकला ब्लैक कार्बन हिमालयी ग्लेशियरों पर जमा होकर काले धब्बे बना रहा है। वायुमंडल में बनी ब्लैक कार्बन की परत जलवायु के लिए बड़ा खतरा साबित हो रही है।
ये नतीजे भारतीय संस्थानों के हैं, लेकिन ब्लैक कार्बन को लेकर भारत आज भी मुख्यतः पश्चिमी देशों के अनुसंधान पर निर्भर है। इसलिए केंद्र सरकार ने अब ब्लैक कार्बन का अध्ययन करने के लिए राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम और नेटवर्क का ऐलान किया है। केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय की इस पहल में इसरो और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय भी शामिल हैं। ब्लैक कार्बन का अध्ययन करने के लिए अब देश के विभिन्न क्षेत्रों में 65 निगरानी केंद्र खुलेंगे।
केंद्रीय पर्यावरण व वन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जयराम रमेश के मंगलवार को राष्ट्रीय कार्बनकेयस एरोसोल्स कार्यक्रम की घोषणा करते हुए कहा कि इस नेटवर्क में 101 प्रमुख संस्थान भी जुड़ेंगे। जयराम ने कहा कि देश में धरती, ब्लैक कार्बन, ग्लेशियर, पर्यावरण, जलवायु आदि मामलों में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए यह कार्यक्रम शुरू किया जा रहा है क्योंकि पश्चिमी देशों में ग्लेशियरों के अध्ययन को लेकर खुली दुकानें हिमालय को लेकर आए दिन गलत रिपोर्ट जारी करती रहती हैं। इसलिए जलवायु परिवर्तन को लेकर भारत में अपना अनुसंधान जरूरी है।
इस कार्यक्रम की कमान भारतीय विज्ञान संस्थान बंगलूरू के प्रो. जे श्रीनिवासन को सौंपी गई है। इस मौके पर विभिन्न वक्ताओं ने कहा कि आज भी दुनिया को यह मालूम नहीं है कि लकड़ी जलाने से निकला धुआं ज्यादा खतरनाक है कि डीजल से निकला धुआं। देश के ज्यादातर बड़े शहर अब ब्लैक कार्बन के बादलों से घिरे हैं। इस मामले में गंगा घाटी में कानपुर सबसे आगे और फिर दिल्ली है। ब्लैक कार्बन की परतें कई बार इतनी ऊंची हो जा रही हैं कि मानसूनी बादल भी उनसे नीचे हो जाते हैं।
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