नई दिल्ली : भारत में मलेरिया के मामलों से जुड़ा एक अहम बदलाव देखने को मिल रहा है। पहले की अपेक्षा अब मलेरिया के गम्भीर संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। भारतीय वैज्ञानिकों के एक ताजा अध्ययन में इस बात की पुष्टि हुई है।
मलेरिया के कम आक्रामक रूप के लिये आमतौर पर प्लास्मोडियम विवैक्स परजीवी को जिम्मेदार माना जाता है। अब पता चला है कि मलेरिया के घातक रूप के लिये जिम्मेदार प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम के संक्रमण के मामले भी उल्लेखनीय रूप से बढ़ रहे हैं। कई मामलों में तो मरीजों के एक से अधिक मलेरिया परजीवी से संक्रमित होने की घटनाएँ भी दर्ज की गई हैं।
जबलपुर स्थित राष्ट्रीय जनजातीय स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों और उनके सहयोगियों द्वारा देश भर में विभिन्न मलेरिया संक्रमण के प्रभाव और इससे जुड़े मामलों के वितरण में परिवर्तन को समझने के लिये किए गए अध्ययन में यह बात उभरकर आयी है।
शोध के दौरान 11 अलग-अलग स्थानों से मलेरिया के लक्षणों से ग्रस्त 2,300 मरीजों के रक्त के नमूने एकत्रित किए थे। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में नियमित रूप से उपलब्ध मानक विधि और परजीवी की आनुवंशिक सामग्री की पहचान करने में सक्षम अधिक संवेदनशील पीसीआर विश्लेषण के जरिये इन नमूनों का परीक्षण किया गया है। इसके अलावा पीसीआर निदान परीक्षण पर आधारित विभिन्न मलेरिया परजीवी के संक्रमणों का विश्लेषण करने के लिये पिछले 13 सालों के प्रकाशनों से आंकड़े एकत्र किए गए हैं।
प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर अपरूप दास ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “भारत में वर्ष 2030 तक मलेरिया उन्मूलन की बात हो रही है, पर मलेरिया की घटनाओं में बदलाव होने के कारण इस लक्ष्य को पूरा करना कठिन हो सकता है।”
चार विभिन्न परजीवी प्रजातियों प्लास्मोडियम विवैक्स, प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम, प्लास्मोडियम मलेरिये और प्लास्मोडियम ओवेल को इन्सानों में मलेरिया संक्रमण के लिये जिम्मेदार माना जाता है। इन मलेरिया परजीवियों का वाहक मादा एनाफिलीज मच्छर है। मलेरिया गम्भीर मामलों के लिये प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम और प्लास्मोडियम विवैक्स को इस बीमारी के कम आक्रामक मामलों के लिये जिम्मेदार माना जाता है।
परीक्षण के दौरान मिले मलेरिया संक्रमित नमूनों में से 13 प्रतिशत नमूने प्लास्मोडियम विवैक्स और प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम के मिश्रित संक्रमण से ग्रस्त पाए गए हैं। देश के दक्षिण-पश्चिमी तटीय इलाकों में ऐसे मामले अधिक देखने को मिले हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि मलेरिया के मिश्रित संक्रमण के मामले अधिक आक्रामक हो सकते हैं, जो एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर सकते हैं। मलेरिया के मिश्रित संक्रमण के लिये स्पष्ट उपचार न होने के कारण भी समस्या गम्भीर हो सकती है।
प्रोफेसर दास ने मलेरिया परजीवी की एक अन्य प्रजाति प्लास्मोडियम मलेरिये के उभार को लेकर भी चिंता जतायी है। उनका कहना है कि “कुछ समय पहले तक मलेरिया परजीवी की यह प्रजाति ओडिशा के कुछ हिस्सों तक सीमित थी, पर हमारे अध्ययन से पता चला है कि अब यह प्रजाति देश भर में फैल रही है। यह स्थिति चिंताजनक है क्योंकि प्लास्मोडियम मलेरिये के संक्रमण के निदान और उपचार के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं।”
नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान से जुड़े वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अभिनव सिन्हा, जो इस अध्ययन में शामिल नहीं थे, के अनुसार “इस शोध में मिश्रित मलेरिया के काफी मामले सामने आए हैं। मलेरिया उन्मूलन और इसके उपचार से जुड़े दिशा-निर्देशों का मूल्यांकन अध्ययन से मिली जानकारियों के आधार पर किया जा सकता है और समय रहते परजीवी के अधिक प्रतिरोधी उपभेदों के विकास को रोका या फिर उसे टाला जा सकता है।”
अध्ययनकर्ताओं में राष्ट्रीय जनजातीय स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान से जुड़े प्रोफेसर दास के अलावा निशा सिवाल तथा उपासना श्यामसुंदर सिंह, आईसीएमआर-राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ता मनोस्विनी दास, सोनालिका कार, स्वाति रानी, चारू रावल, राजकुमार सिंह एवं अनूपकुमार आर. अन्विकार और कुआऊं विश्वविद्यालय की वीना पांडेय शामिल थे। इस अध्ययन के नतीजे हाल में शोध पत्रिका प्लॉस वन में प्रकाशित किए गए हैं।
भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र
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