पेड़ -पौधे एवं मनुष्य एक दूसरे पर आधारित है। एक के अभाव में दूसरे के सद्भाव की कल्पना कभी स्वप्न में भी नहीं की जा सकती। पेड़ - पौधे मनुष्य के भीतर और बाहर एक सांस्कृतिक पर्यावरण की रचना करते हैं। दोनों का सृजन एक प्रकार का पर्यावरण है।
प्राचीनकाल में सांस्कृतिक व्यक्ति पेड़ पौधों को आत्मीयता और अंतरंगता से देखता था और उसका रस ग्रहण करने की अभिलाषा मानस पटल पर रखता था। पेड़ों से खिलवाड़ करना या उसको विध्वंस करना उसे कभी रास नहीं आता था। उस काल में उनकी आँखों में आज की भाँति पेड़ों को व्यापारिक दृष्टि की अभिवृत्ति थी । प्राचीनकाल मेंमनुष्य की नित्य क्रियाएँ, संस्कार, अनुष्ठान, व्रत, त्यौहार, पूजा पद्धति सभी में पेड़ पौधे परोक्ष व अपरोक्ष रुप में समाहित रहते थे ।
अथर्ववेद में तो पेड़ - पौधों के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रदर्शित किए गए है। जिस धरती पर वृक्ष, वनस्पति, औषधियाँ है। जहाँ स्थिरता व चंचलता का निवास है। उस वसुंधरा धरती मातृभूमि के प्रति हम कृतज्ञ है। हम उसकी स्वतंत्रता की प्राण प्रण से रक्षा करेंगे। प्राचीन परम्परा के अनुरुप मंदिरो, ऐतिहासिक भवनों एवं भव्य इमारतों के आस- पास सुन्दर वृक्षों को लगाया जाता है। वराह पुराण में तो पेड़-पौधों और वनस्पतियों के रोपण, पोषण और संवर्द्धन को पुण्य कर्म माना जाता है। ऐसा कार्य करने वाला व्यक्ति प्रकृति का वरदान पाने का हकदार है। धर्म में व्यवस्था है कि जो व्यक्ति अपने जीवन में एक पीपल, एक नीम और बड़ का पेड़ लगाए तथा दस फूलों वाले वृक्षों और लताओं का रोपण कर अनार - नारंगी व आम के दो - दो वृक्ष लगाये तो वह कभी नर्क में नहीं जाता। यहाँ नर्क व स्वर्ग पारभौमिक कल्पनाएँ नहीं होकर सजीव सांसारिक स्थितियाँ भी मानी जा सकती है। इतने वृक्षों के कारण जो स्वस्थ पर्यावरण बनता हैं क्या वह नर्क का दृश्य उपस्थित कर सकता है? पेड़ पौधों को धर्म के पीछे जोड़ने से आशय यही है। कि व्यक्ति श्रद्धा के साथ ऐसा कार्य करे - इसमें बेकार का तर्क न करें और ईश्वर की इच्छा मानकर इस कार्य में लग जाए। इस तथ्य को ओर महत्व स्कन्ध पुराण में दिया गया है, सभी प्रकार के पेड़ पौधों को काटना निन्दनीय है। यज्ञ आदि के कारण के अतिरिक्त ऐसा कभी नहीं किया जाना चाहिए। विशेषकर वर्षा ऋतु में ऐसा करना सर्वथा वर्जित है।
उपभोक्तावाद एवं भौतिकवाद जीवन पद्धति की तृष्णा वृत्ति मनुष्य को कहाँ ले जाएगी ? मनुष्य की लिप्सा के कारण पेड़ पौधों का विनाश हो रहा है। जो पर्यावरण के लिए भयावह स्थिति पैदा कर रहा है। चरक संहिता के अध्याय 3 श्लोक 2 में इस विनाश लीला का सजीव वर्णन मिलता है। पेड़ पौधों का विनाश अपने आप में एक महान खतरा है। यह खतरा केवल मनुष्यों तक सीमित नहीं है। बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए खतरा है। पेड़ पौधों का समाज के कल्याण से सीधा संबंध होता है। प्राकृतिक प्रदूषण और पेड़ - पौधों के विनाश के कारण कई व्याधियाँ उठ खड़ी हो रही है। उनका निवारण औषधि पेड़ पौधों के माध्यम से संभव होता है। ये वायुमण्डल की कार्बन डाई आक्साइड तथा सल्फर डाइ आक्साइड जैसी विषैली गैस का सेवन कर बदले में हमें प्राण वायु ऑक्सीजन प्रदान करते हैं।
अतः वर्तमान समाज में लोगों को यह संकल्प लेना चाहिए कि वे पेड़ - पौधों का विनाश किसी भी स्थिति में नहीं होने देंगे। इनके रक्षण से मानवता का रक्षण स्वतः ही संभव हो जाएगा। यह हमारे लिए सबसे अधिक उपयोगी एवं जीवनाधार है। ये ऑक्सीजन देकर जीवमात्र को स्वस्थ रखते हैं। वायु प्रदूषण रोकना वर्षा जल का संग्रहण, वायु में आर्द्रता का संचार, भूमि अपरदन को रोकना, बांध, जलाशयों, नदियों व नहरों को गाद से बचाना, पशु पक्षियों को आश्रय देना तथा पत्तियों से जानवरों को प्रोटीन सुलभ करवाना आदि से मानव समाज की सेवा करना इस योगी. वृक्ष) का कर्तव्य है। ईश्वर ने इस पृथ्वी पर जीवन हरे भरे पेड़-पौधों से ही प्रांरभ किया। ईश्वर की इस देन का आनन्द तभी ले पाऐंगे जब हम अपने आपको इसके योग्य सिद्ध करने का सफल प्रयत्न करेंगे। यदि हम इसके योग्य हो जाते हैं तो वर्तमान एवं भावी पीढ़ी का उद्धार करने में भी सफल हो सकते हैं। शिव पुराण उमा संहिता में लिखा है जो वीरान एवं दुर्गम स्थानों पर वृक्ष लगाते हैं। वे अपनी बीती व आनेवाली पीढ़ियों को तार देते हैं। यह छाया, आश्रय, शोभा एवं पर्यावरण को संतुलित बनाये रखने हेतु जीवन भर एक स्थान पर योगी की भाँति तपस्या एवं साधना करते हैं। मनुष्य तो इस पृथ्वी पर इनका मेहमान बनकर आया है। मेहमान को कभी अधिकार नहीं होता कि वे त्यागी एवं उदारता से मेहमानी करने वालों को ही विध्वंश करें।
पेड़ - पौधे हमारे लिए त्याग, पेड़ - पौधे हमारे लिए त्याग, परोपकार, स्वावलंबन, सेवा, सहयोग जैसे अनुकरणीय गुणों का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण इंसान के लिए प्रस्तुत करते हैं। तो आखिर हमें इनके रोपण एवं संरक्षण हेतु दृढ़ प्रतिज्ञा करनी हमारे और पर्यावरण के अस्तित्व के लिए अत्यन्त आवश्यक है। इनके रोपण के लिए जहाँ भी स्थान उपलब्ध होता है, जैसे सड़कों के दोनों ओर, खुले मैदान में, घर या लान में, विद्यालयों महाविद्यालयों में, सार्वजनिक स्थानों एवं कार्यालयों आदि में अधिक से अधिक संख्या में सुन्दर और छायादार वृक्षों जैसे नीम, पीपल, गुलमोहर, कचनार, अशोक, अमलताश, टेसू, कदम्ब, चम्पा, सेमल, अर्जुन, पलाश आदि को लगाने में तत्परता प्रदर्शित करना हमारा कर्तव्य है क्योंकि ये पेड़ सुन्दरता और पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
सुन्दर पेड़ - पौधों को रोपण हेतु बालक - बालिकाओं को भी प्रेरणा दी जानी चाहिए। विशेषकर बंजर क्षेत्र के बालक बालिकाओ को, जिससे भूमि कटाव रुक सके और मिट्टी की उर्वरता में कमी न आने पाए। उन्हें इस तथ्य को हृदय से देखभाल से उत्तरोत्तर श्रीवृद्धि व स्वस्थ रखने की प्रबल संभावनाएँ बन सकेगी ।
स्रोत - पर्यवारण डाइजेस्ट
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