प्यासे शहर, प्यासे लोग

water crisis
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धरती का कटोरा खाली हो रहा है। हम लगातार जमीन से पानी खींच रहे हैं और जमीन के अंदर पानी को रिचार्ज करने का कोई व्यवस्थित तरीका हमने नहीं अपनाया। रिपोर्ट है कि देश के कई महानगरों, दर्जनों शहरों और गांवों में पानी नहीं है। न इंसान के लिए जानवरों के लिए और अभी तो गर्मी और बढ़ने वाली है।

कुछ ही दिन पहले की घटना है। एक शख्स ने अपने ही भाई की हत्या कर दी वजह थी, पानी। घटना बिहार के जुमई की है। वैसे पानी को लेकर हाहाकार की यह कोई पहली घटना नहीं है। आए दिन ऐसी ह्रदय विदारक घटनाएं हमें सुनने को मिलती हैं। विकास की दौड़ में हमें सब कुछ याद रहा है, लेकिन पानी को भूलते जा रहे हैं। हाल ही में यूनेस्को ने संयुक्त राष्ट्र विश्व जल रिपोर्ट 2019 पेश की। इस रिपोर्ट का शीर्षक ‘कोई पीछे न रह जाए’ और सार है, ‘जल संसाधन प्रबंधन तथा जल आपूर्ति में सुधार तथा स्वच्छता सेवाओं की उपलब्धता विभिन्न सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को दूर करने के लिए बेहद जरूरी है, ताकि जब कभी पानी के अनगिनत अवसरों का लाभ उठाने की बात हो, तो कोई पीछे न रह जाए’।

रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के दस में से तीन लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है। 2 अरब लोग ऐसे देशों में रहते हैं, जहां पानी की भारी तंगी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जल की आपूर्ति के तमाम आधार हैं, लेकिन गरीबी इनमें सबसे बड़ा कारण है। रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया भर में 80 फीसदी खेती पारंपरिक और पारिवारिक व्यवसाय के तौर पर की जाती है और ज्यादातर लोगों के पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन है। इसके अलावा दुनिया में 60 फीसदी खेती वर्षा जल पर आधारित है। इसके अलावा दुनिया भर में उपयोग के बाद 80 फीसदी गंदा पानी बिना शोधन के ही पर्यावरण में शामिल हो जाता है, जो कई तरह की समस्याएं पैदा करता है। वहीं रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दुनिया की 90 फीसदी आपदाएं पानी से संबंधित होती है। रिपोर्ट आखिर में हमें इस नतीजे पर ले जाती है कि दुनिया में जल संकट के लिए जल की कमी से ज्यादा कमी जल प्रबंधन और वितरण के प्रभावी तंत्र नहीं होने की है।

इस संकट का भयावह पहलू यह है कि करीब दो लाख लोग साफ और पर्याप्त पानी की उपलब्धता नहीं होने की वजह से हर साल जान गंवा रहे हैं। वहीं देश की राजधानी की बात करें, जो यमुना नदी के किनारे बसी है और गंगा तक पसरी हुई है। पीने को पानी को लेकर यहां भी हालात खराब ही हैं। भले ही दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में हालात केपटाउन या बेंगलुरु जैसे न हो, लेकिन सच यह है कि कमोबेश यही हाल देश के हर बड़े शहर का है।

वहीं विश्व बैंक की एक रिपोर्ट भारत के 21 शहरों में 2020-30 के दशक तक जमीन के अंदर पूरी तरह से जल के खत्म होने की चेतावनी देती नजर आती है। इन चेतावनियों को अगर अनसुना किया तो हाल वही होगा, जो समुद्र के किनारे बसे केपटाउन शहर को हुआ। केपटाउन पिछले तीन साल से पानी की तंगी झेल रहा है। वहां हाइजीन के स्टैंडर्ड फोलो करने वाली काॅरपोरेट कंपनियों को डर्टी शर्ट अभियान चलाना पड़ा। भले ही केपटाउन का डे जीरो टल गया हो, लेकिन दुनिया अभी भी प्यासी है। अफ्रीका से पानी के लिए जूझते लोगों को विचलित करने वाली तस्वीरें सामने आती है। हालांकि अफ्रीका की बात तो अपनी जगह है, हमारे ही देश में हर रोज करोड़ों लोग पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। गांव-देहात की बात छोड़ें, देश की चमक के नगीने माने-जाने वाले शहरों को रंगत भी बिना पानी सूखने की कगार पर है। 

भारत सरकार के लिए सलाहकारी निकाय के तौर पर काम करने वाले नीति आयोग ने कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स विकसित किया है, जो देश में पानी के इष्टतम उपयोग को बढ़ावा देने के उपाय सुझाएगा और पानी के संकट के लिए समय रहते चेताएगा। गंगा, यमुना, नर्मदा, कृष्णा और कावेरी जैसी सदा बहने वाली नदियों के देश में भी पानी का संकट हो सकता है। यह हमारे लिए सोचना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि अक्सर हमें जरूरत से ज्यादा पानी मिल रहा होता है। लेकिन, विश्व बैंक की रिपोर्ट ने हमारी आंखों पर पड़े इस भ्रम के पर्दे को उतारते हुए बताया है कि 2020-30 के दशक में भारत के 21 बड़े शहरों में, जमीन के अंदर का पानी खत्म हो जाएगा।

इस त्रासदी के लक्षण वर्षों पहले दिखने लग गए थे और आज भी साफ-साफ दिख रहे हैं। भारत की सिलकाॅन वैली के नाम से मशहूर बेंगलुरु में लाखों-करोड़ों रुपए कमाने वाले लोग पानी के लिए टैंकर वालों के सामने घुटने टेके हुए नजर आते हैं। इस शहर में कितनी ही ऐसी कहानियां मिलेंगी जहां 6 अंकों की सैलरी पानी से हार गई और कितने ही युवा इस शहर को अलविदा कह गए। आने वाली त्रासदी का यह तो महज एक नमूना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत में हर वक्त करीब 60 करोड़ लोग साफ और सुरक्षित पीने के पानी के लिए जूझ रहे होते हैं। इनमें कुछ के सामने कम संकट है, कुछ के सामन ज्यादा।

इस संकट का भयावह पहलू यह है कि करीब दो लाख लोग साफ और पर्याप्त पानी की उपलब्धता नहीं होने की वजह से हर साल जान गंवा रहे हैं। वहीं देश की राजधानी की बात करें, जो यमुना नदी के किनारे बसी है और गंगा तक पसरी हुई है। पीने को पानी को लेकर यहां भी हालात खराब ही हैं। भले ही दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में हालात केपटाउन या बेंगलुरु जैसे न हो, लेकिन सच यह है कि कमोबेश यही हाल देश के हर बड़े शहर का है।

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