प्यासे ड्रैगन को पानी चाहिये

जबकि नयी दिल्ली और बीजिंग के राजनयिक सीमा रेखा मुद्दे पर बातचीत करते है, चीनी इंजीनियरों का ब्रम्हपुत्र नदी के जल को मोड़ने की योजना पर काम जारी है। परियोजना को बंद कर देने के आश्वासनों के बावजूद ऐसा हो रहा है।

हाल ही में भारत ने सीमा मुद्दे पर चीन के साथ 17 दौर की वार्ताएं कीं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विशेष प्रतिनिधि शिवशंकर मेनन और उनके चीनी समकक्ष यांगजीची ने न केवल 4,057 किमी के सीमांत को निश्चित करने की संभावनाओं पर बहस की, बल्कि साझा सामरिक मुद्दों पर भी बात की। दैनिक कवायद के पूर्व विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैय्यद अकबरूदीन ने व्याख्या की कि विशेष प्रतिनिधियों से अपेक्षा है कि वह अपनी बातचीत सीमा समाधान हेतु कार्यतंत्र निर्धारण पर केन्द्रित रखें। उन्होंने आगे कहा दोनों प्रतिनिधि पारस्परिक हित से जुड़े द्विपक्षीय क्षेत्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भी बातचीत करेंगे।

सुनने में अच्छा लगता है कि खास कर जब भारत चीन सीमा मामलों पर परामर्श एवं समन्वय हेतु कार्यशील व्यवस्था की पांचवी बैठक संयुक्त सचिव स्तर पर हुई, अकबरूद्दीन के शब्दों में, भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में हालिया घटनाओं के समीक्षा हेतु खासकर पश्चिमी सेक्टर और सीमा रक्षा सहयोग समझौते के क्रियान्वयन पर।

जबकि नयी दिल्ली और बीजिंग के राजनयिक सीमा रेखा मुद्दे पर बातचीत करते हैं, चीनी इंजीनियर ब्रम्हपुत्र नदी के जल को मोड़ने की योजना पर काम जारी रखते हैं। अक्टूबर 2013 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बीजिंग यात्रा के दौरान, चीनी और भारतीय जल संसाधन मंत्रियों ने सीमा पार नदियों पर सहयोग को मजबूत बनाने को लेकर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। समझौता ज्ञापन में कहा गया कि चीनी पक्ष ब्रम्हपुत्र नदी (यालांग सांगपो) की आंकड़ा प्रावधान अवधि को बढ़ाने पर सहमत हैं। भारतीय पक्ष काफी खुश हो गया, चीन ने उसी वर्ष के लिए ब्रम्हपुत्र नदी पर जल वैज्ञानिक सूचनाएं उपलब्ध कराने के लिए अवधि को 1 जून के बजाय 15 अक्टूबर तक दिल खोलकर बढ़ा दिया। नि:संकोच इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ता जब ब्रम्हपुत्र नदी के जल को मोड़ने के नियोजित कार्यक्रम के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा गया। स्वाभाविक रूप से, दक्षिण व्लॉक कह सकता है कि चीन ने परियोजना से इन्कार किया है।

अक्टूबर 2011 में चीन के जल संसाधन उपमंत्री श्री जियोयोंग ने बीजिंग में एक पत्रकार सम्मेलन को बताया कि यद्यपि चीन में यालांग सांगपो (ब्रम्हपुत्र) के जल का इस्तेमाल करने की मांग है, मगर तकनीकी कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए, जल को मोड़ने की वास्तविक आवश्यकता और पर्यावरण एवं राष्ट्र-राज्य संबधों पर उसके संभावित प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, चीनी सरकार का जल-प्रवाह को मोड़ने का कोई इरादा नहीं है। एक महीने पहले, 27 सितम्बर को संयुक्त राष्ट्र महासभा से वापस लौटते हुए मीडिया के साथ मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री सिंह ने पुष्टि की ‘मैंने चीन के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति दोनों के समक्ष स्वयं ही कई बार यह मुद्दा उठाया है। उन्होंने हमें आश्वासन दिया है कि वो ऐसा कोई काम नहीं करने जा रहे जो भारत के हितों के विरूद्ध हो।’

पहले ही 2006 में जल संसाधन मंत्री श्री वांग सुचेंग ने सार्वजनिक रूप से बयान दिया था कि प्रस्ताव अनावश्यक एवं अवैज्ञानिक है। ऐसी अवैज्ञानिक एवं नाटकीय परियोजनाओं की कोई जरूरत नहीं है।

हाल ही में, मुझे धक्का लगा जब मुझे परियोजना को विवरण पर आधारित एक लेख चीन के उसी जल संसाधन मंत्रालय के येलो रीवर कंजर्वेंसी कमीशन की बेवसाइट पर लेख मिला। उसमें फाओरोनिक ग्रेट वेस्टर्न वाटर डायवर्जन एवं येलो रीवर वाटर वे कॉरीडोर का विस्तृत विवरण है। यह बीजिंग में जल संसाधन मंत्रालय के अधिकारियों ़द्वारा प्राथमिक संम्भावना अध्ययन का उल्लेख है। चीनी इंजीनियरों का 150 अरब क्यूबिक मीटर जल मोड़ने एवं उत्तरी चीन में सिंचाई हेतु इस सूखती एवं मरती हुई यलो नदी में ले जाने का विचार है।

जल प्रवाह मोड़ने की परियोजना तहत छह नदियों का जल एकत्र किया जायेगा, यालांग सांगपो (जिसे असम में ब्रम्हपुत्र और अरूणाचल में सिंयाग कहा जाता है), साल्वीन, मेकांग और यांगटे, यलांग एवं दादू नदियां और वह भी येलो नदी की पहुंच के उचें स्थानों तक पहुंचने से पहले। चीनी मंत्रालय की वेबसाइट पर विवरण दिया गया है। लगभग 50 अरब क्यूबिक मीटर जल ब्रम्हपुत्र से मोड़ा जायेगा। मेरी जानकारी में, ऐसा पहली बार हुआ है कि सरकार की वेबसाइट पर एक प्राथमिक अध्ययन ऐसे विवरणों के साथ उपलब्ध हो।

1990 में ली यांग की एक पुस्तक ‘तिब्बत वाटर्स विल सेव चायना’, को चीन में विशेषज्ञों में वितरित किया गया। श्री ली और उनके सहायक गुओ काई, जो कि एक सेवानिवृत्त पीपुल्स आर्मी जनरल हैं, ने एक शूतियन कैनाल की सलाह दी थी। (शूतियन मध्य तिब्बत में शुआमैतान नामक मेल कैनाल का सिकुड़ा हिस्सा है)। यह परियोजना तिब्बत से उत्तरी चीन को 2996 अरब घन मीटर जल मोड़ देगी। श्री ली के अनुसार, एक ही झटके में, येलो नदी में आने वाली बाढ़ की समस्या खत्म हो जायेगी, उत्तरी चीन में अंत:जलीय मार्ग परिवहन पुनः आरम्भ हो जायेगा, और बांग्लादेश और भारत में बाढ़ को रोका जा सकेगा।

श्री ली द्वारा प्रस्तावित मार्ग, हालांकि, चीनी जल संसाधन की वेबसाइट में उल्लिखित मार्ग से भिन्न है। चीनी इंजीनियर अब यालांग सांगपो की दो धाराओं पर भरोसा कर सकते हैं- यथा पलुंग संगपो और विगोंग सांगपो, जिनके द्वारा यांलांग सांगपो का जल सिचुआन- तिब्बत राजमार्ग पर पूर्व की दिशा में धकेला जा सकता है। चीन-नेपाल सीमा तक लेंगदा, झोंगदा, लंमझेन, जिक्सू, जियाचा और जांगमू में छ: बांधों द्वारा उत्पादित उर्जा का इस्तेमाल मोड़े गये जल को पूर्व की ओर धकेलने में किया जायेगा। मोड़ा गया जल सालवेन में मिलेगा जो कि मेकांग और यांगटे के साथ तीन समानांतर नदियों में से एक है और चाम्दो-तिब्बत राजमार्ग का अनुसरण करते हुये झिआया की ओर बढ़ेगा। संजियांग जल स्थानांतरण देगी और उच्च यांगटेज के साथ संगम में उसके बाद सिचुआन-तिब्बत राजमार्ग का अनुसरण करेगा।

अब चार नदियां सिचुआन- तिब्बत राजमार्ग के साथ पश्चिमी सिचुआन के चोला पहाड़ों से होकर चलेंगी, और गार्जें से हाकर यालांग नदी के साथ संगम तक पहुंचेंगी। अब पांच नदियां ही जायेंगी, यथा यालांग सांगपों, सालवेन, यांगटेज, मीकांग, यालुंग। जल स्थानांतरण फिर लुहुओ प्रांत में दादू से होकर सिचुआन तिब्बत राजमार्ग के साथ चलेगा।

दादू नदी से संगम के बाद, वह अन्ततः राजमार्ग से अलग होकर नगावा प्रशासक प्रान्त के जमतांग से होकर जायेगा और येलो नदी माचू ग्रेट बैंड पर पहुंचने से पहले जहां एक जल भंडारण नदी के प्रवाह को विनियमित करेगा।

येलो नदी का स्थानीय नाम माकू यामचू है। उपरोक्त विवरण दर्शाते हैं कि परियोजना पर गम्भीरतापूर्वक अध्ययन किया गया है। इस विशाल परियोजना को पूरा करना कितना संभव है? यह कहना कठिन है। पहला पाया, हस्तांतरण के सालवेन पहुंचने से पूर्व, असंभव लगता है, लेकिन, तब चीनी इंजीनियर एक विशाल योजना की संभाव्यता पर काम क्यों कर रहें हैं। और भारतीय राजनयिको व प्रधानमंत्री को यह क्यों बताया जाता हैं कि परियोजना बंद कर दी गयी है। समस्या यह है कि चीन प्यासा है। क्या विशेष प्रतिनिधियों ने इस मुद्दे पर बातचीत की? यह संदेह पूर्ण है। संभवतः,वर्तमान सरकार अपनी उत्तराधिकारी सरकार के लिए यह काम छोड़ देना ज्यादा बेहतर समझती है।

टाइपिंग और प्रूफ - नीलम श्रीवास्तव

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Post By: pankajbagwan
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