हवा के रंगहीन और पारदर्शी होने के कारण हम हवा के बहाव को देख नहीं सकते हैं। लेकिन यह हम जानते हैं कि हवा की शक्ति बहुत व्यापक भी हो सकती है। साफ मौसम में मंद-मंद बहती हवा के बहाव को अनुभव किया जा सकता है। जब हवा बहुत हल्की भी बह रही हो तब हम चेहरे और बालों पर उसका अनुभव कर सकते हैं। हवा के बहने से हमारे बाल उड़ते रहते हैं। लेकिन कभी-कभी हवा बहुत ही तेज गति से बहती हुई चक्रवात और तूफान का कारण बनती है जो पेड़ों को उखाड़ने के साथ कारों और इमारतों को नुकसान पहुंचा सकती है।
सामान्यतया जब हम पवनों की बात करते हैं तो हम उसकी क्षितिज गति की ओर ध्यान केंद्रित करते हैं। जिस दिशा से पवन आती है उसके अनुसार ही उसकी दिशा व्यक्त की जाती है। यदि हम कहते हैं कि पश्चिमी पवनें या वेस्टरलीज़ की गति 10 से 20 किलोमीटर प्रति घंटा है तो इसका मतलब है कि पश्चिम से आने वाली क्षैतिज हवाओं का वेग 10 से 20 किलोमीटर प्रति घंटा है।
जब ये पवनें क्षैतिज से बहती हैं तो इनके बहनें की गति ऊंचाई पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए भूमि के घर्षण के कारण पृष्ठीय पवनों का वेग बादल स्तर की पवनों के वेग की तुलना में कम होता है। क्षैतिज पवनें पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूर्णन करने के कारण उत्पन्न कोरिऑलिस बल के कारण भी प्रभावित होती हैं। इस बल के परिणामस्वरूप भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर बहने वाली पवनें दाहिनी ओर तथा दक्षिण की ओर बहने वाली पवनें बांयी ओर झुक जाती हैं, इसी कारण से सतह के निकट की क्षैतिज पवनें धीमी हो जाती हैं। सागर के ऊपर बहने वाली हवाएं लहरों को जन्म देती हैं। लहरों का आकार पवनों की प्रबलता और सागर में उनके द्वारा तय की गई दूरी पर निर्भर करता है।
कभी-कभार वायुमंडल में पवनें लम्बवत दिशा में भी बहती हैं जिसके परिणामस्वरूप अक्सर गर्जन मेघों में तड़ित झंझा उत्पन्न होती है। घाटियों से पवनें पहाड़ी ढाल की ओर भी बहती हैं। क्षैतिज अवयव की तुलना में पवनों में लंबवत अवयव बहुत कम होते हैं लेकिन फिर भी ये प्रतिदिन के मौसम के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऊपर की ओर उठने वाली लंबवत पवनें ठंडी होने पर जब संतृप्त हो जाती हैं तब ये बादलों का निर्माण करने के साथ बारिश कर सकती हैं। नीचे की ओर घूमती पवनें गर्म होकर बादलों से वाष्पोत्सर्जन का कारण बन साफ मौसम लाती हैं।
वैश्विक पवन तंत्र
यह हम जान चुके हैं कि विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में सूर्य से प्राप्त ऊष्मा की मात्रा में अंतर होता है। ऊष्मा का यह अंतर विश्व भर में पवनों के बहाव के लिए आवश्यक ताप और वायुदाब में अंतर के लिए जिम्मेदार होता है। ये सभी पवनें वैश्विक पवन संचरण तंत्र का हिस्सा होती हैं जो वायुमंडल में ऊष्मा के वितरण वाली कार्यप्रणाली के समान ही व्यवहार दर्शाती हैं। इस प्रकार पवनों की हलचल ऊष्मा के संतुलन में सहायक होती है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सभी पवनें ऊष्मा के वितरण में सहायक होती हैं। पवनें पृथ्वी की सतह (सामान्यतया उष्णकटिबंधी जैसे गर्म क्षेत्र) से जहां सूर्यताप के कारण अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है वहां से ऊष्मा को ठंडे क्षेत्रों (प्रायः अधिक ऊंचाई पर स्थित क्षेत्र) की ओर वितरित करती हैं। इस प्रकार से पवनों की गति भूमंडलीय ताप में संतुलन बनाए रखती हैं। विशिष्ट-उष्णकटिबंधी चक्रवात उष्णकटिबंधी क्षेत्रों से अपने साथ बहुत अधिक ऊष्मा बाहर की ओर लाते हैं जबकि उष्णकटिबंधों में ट्रेड विंड यानी व्यापारिक पवनें, मानसून और हरिकेन ऊष्मा का वितरण करते हैं।
वैश्विक पवन तंत्र विश्व के विभिन्न क्षेत्रों और वायुमंडल की विभिन्न ऊंचाईयों पर हवाओं की गति का कारण बनता है। ध्रुवों से बहती हुई ठंडी हवाएं भूमध्य के निकट सतह के समीप बहने लगती हैं। इसके विपरीत भूमध्य से बहने वाली गर्म हवाएं ध्रुवों के निकट पहुंचकर हल्की होने के कारण वायुमंडल में ऊपर तक बहती है। इस प्रकार से विश्वभर में पवनों का एक चक्र निर्मित होता है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापारिक पवनें प्रमुख पवनें हैं जो भूमध्य रेखा के दोनों और यानी 300 उत्तर और 300 दक्षिण की ओर निम्न दाब के क्षेत्र के आसपास बहती हैं। भूमध्य से उत्तर की ओर बहने वाली व्यापारिक पवनें उत्तर-पूर्व की ओर एवं भूमध्य रेखा से दक्षिण की ओर बहने वाली व्यापारिक पवनें दक्षिण-पूर्व की ओर बहती हैं। इन पवनों का नामकरण अंग्रेजी के ट्रेड शब्द जिसका अर्थ रास्ता या पथ होता है, के अनुसार किया गया है। इस प्रकार व्यापारिक पवनों का अर्थ एक रास्ते या पथ पर बहने वाली पवनों के रूप में किया जाता है। जब दोनों गोलार्द्धों से आने वाली पवनें भूमध्य के निकट मिलती हैं तब हवा के ऊपर उठने और ठंडी होने पर बादल बनते हैं और वर्षा होती है, जो भूमध्य रेखा के समीप उष्णकटिबंधी जलवायु की सूचक है।
300 से 600 अक्षांशों के मध्य स्थित पवनों में पश्चिमी पवन (वेस्टरलीज़) प्रमुख पवन है जो ध्रुवों की ओर उच्च दाब क्षेत्र में बहने वाली पवन है। उत्तर गोलार्द्ध में पश्चिमी पवन दक्षिण-पश्चिम की ओर एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम की ओर बहती है ये पवनें मध्य अक्षांशों से पश्चिम से पूर्व की ओर तूफानों को ले जाती हैं। व्यापारिक पवनें और पश्चिमी पवनें दोनों 300 अक्षांश पट्टी से दूर बहती हैं किंतु 300 अक्षांश के मध्य स्थित विशाल क्षेत्र में ये पृष्ठीय हल्की हो जाती हैं। जब ये हवाएं अपने स्थान से हट कर दूर बहती हैं तब इनके आसपास की हवाएं इनका स्थान ले लेती हैं। यदि नीचे उतरती हवाओं में थोड़ी भी नमी होती है तो वह सतह की गर्मी से वाष्प में बदल जाती हैं और इस प्रकार यहां बारिश की सम्भावना नहीं होती है जिससे यहां रेगिस्तानी जलवायु निर्मित होती है। यही कारण है कि यहां अफ्रीका का सहारा रेगिस्तान और मैक्सिको का सोनारन रेगिस्तान जैसे उष्णकटिबंधीय रेगिस्तानों की रचना हुई है।
शीत ऋतु के दौरान हवाओं में व्यापक बदलाव होता है जिसके कारण हम ठंड का अनुभव करते हैं। ठंड हवाओं के वेग पर भी निर्भर करती है। एक ही तापमान वाली हवाओं के मंद बहने की बजाए तेज बहने से हमें अधिक ठंड का अनुभव होता है। वह प्रभाव जिसके द्वारा हमें हवा के अधिक ठंडे होने का बोध होता है ‘विंड चिल फैक्टर’ यानी ‘पवन शीत कारक’ कहलाता है। हवा की गति तेज होने पर हमारे शरीर से ऊष्मा तेजी से मुक्त होती है। जिसके परिणामस्वरूप शीत ऋतु के समय पवन का ठंडापन इस प्रकार परिवर्तित हो जाता है कि हमें अधिक ठंड लगती है। उदाहरण के लिए यदि किसी दिन तापमान 40 सेल्सियस हो तो हमें अधिक ठंड नहीं लगेगी लेकिन यदि तब 20 किलोमीटर प्रति घंटे की गति वाली हवा भी चल रही हो तब हमें- 50 सेल्सियस की ठंडक महसूस होगी, वहीं यदि हवा 60 किलोमीटर प्रति घंटे की दर से बह रही हो तब हमको -120 सेल्सियस की ठंडक का अहसास होगा। अक्सर पर्वतारोहियों को पवन की ठंडक के कारण शीतदाह या शीतदंश (फ्रॉसब्राइट) का सामना करना पड़ता है।
जेट प्रवाह (जेट स्ट्रीम)
हमने अभी तक क्षोभमंडल में बहने वाली पवनों की बात अधिक की है। ध्यान रहे कि अधिकतर मौसमी घटनाएं इसी क्षेत्र में घटित होती हैं। लेकिन इस क्षेत्र की पवनों के अतिरिक्त अन्य प्रकार की पवनें भी हैं जिनमें से एक संकरे प्रवाह में तेज गति से घूमती हवाओं वाली पवन भी शामिल है जिसे जेट प्रवाह के नाम से जाना जाता है। जेट प्रवाह ऊपरी वायुमंडल में पाए जाते हैं। प्रायः पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर बहने वाली ये प्रबल धाराएं हजारों मीटर लंबी, सैंकड़ों किलोमीटर चौड़ी और कुछ किलोमीटर मोटी होती हैं। प्रायः जेट प्रवाह पृथ्वी की सतह से 10 से 15 किलोमीटर ऊपर स्थित क्षोभसीमा में पाया जाता है। क्षोभसीमा, क्षोभमंडल (जहां ऊंचाई के साथ तापमान घटता है) और समतापमंडल (जहां ऊंचाई के साथ तापमान बढ़ता है) के मध्य की सीमा है। ध्रुवीय क्षेत्र और दक्षिण की गर्म हवाओं के तापमान में अंतर की भांति ये प्रवाह भी निकटवर्ती वायुराशियों के तापमान में पर्याप्त अंतर के कारण बनते हैं।
जेट प्रवाह में पवन की गति तापमान में अंतर के अनुसार बदलती रहती है जो गर्मियों मे 55 किलोमीटर प्रति घंटे और सर्दियों में 120 किलोमीटर प्रति घंटे होती है, हालांकि जेट प्रवाह की गति 400 किलोमीटर प्रति घंटे तक देखी गई है। तकनीकी रूप से 111 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक गति वाली पवन जेट प्रवाह कहलाती है।
वर्ष के अन्य समय की तुलना में सर्दियों के दौरान पृष्ठीय तापमान में अधिक अंतर होने के कारण जेट प्रवाह इस समय अधिक प्रबल होते हैं। पृष्ठीय तापमान में अधिक अंतर होने से जेट प्रवाह भी प्रबल होता है। हालांकि जेट प्रवाह पृष्ठीय तापमान में अंतर होने से अधिक प्रवाहित होता है, इसलिए यह जरूरी नहीं की जेट प्रवाह हमेशा पश्चिम से पूर्व की ओर बहे। अक्सर जेट प्रवाह की दिशा उत्तर की ओर होती हैं एवं यह दक्षिण दिशा की ओर नीचे चाप का निर्माण करते हुए लहरदार पैटर्न का निर्माण करता है। जेट प्रवाह न केवल तूफान का कारण बनता है वरन् यह पृथ्वी की सतह से किसी स्थान पर उच्च और निम्न दाब के क्षेत्र का पता लगाने में भी सहायक होता है।
कभी-कभी दो विभिन्न प्रकार के जेट प्रवाह की बात की जाती है। उनमें से एक प्रधान ध्रुवीय जेट प्रवाह वाताग्र के साथ मध्य या उच्च अक्षांशों से संबंद्ध होता है। दूरा उपोष्ण जेट प्रवाह 200 से 300 अक्षांश में स्थित होता है। जेट प्रवाह टॉरनेडो की रचना करने वाले सुपर-सैल और तूफान तंत्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
जेट प्रवाह की स्थिति वायुयानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा से पूर्व की ओर कोई दूरी चलने में वायुयानों को जेट प्रवाह के दौरान कम समय लगता है। यदि वायुयान जेट प्रवाह के विपरीत यानी पश्चिम दिशा की ओर उड़ान भरते हैं तब इनको समान दूरी को पार करने में अधिक समय लगता है। यही कारण है कि अंतर-महाद्वीपीय उड़ानों के दौरान प्रायः पायलट पूर्व की ओर चलते जेट प्रवाह के साथ उड़ान भरना पसंद करते हैं जबकि जेट प्रवाह के पश्चिम की ओर चलने के दौरान पायलट उड़ान को टालने की कोशिश करते हैं।
मौसम वाताग्र (वेदर फ्रॅन्टस्)
हम जानते हैं कि गर्म हवा ठंडी हवा की तुलना में हल्की होती है। इसलिए जब दो विभिन्न तापमान और घनत्व वाली वायुराशियां मिलती हैं तब क्या होता है? स्पष्ट रूप से अपने-अपने विशिष्ट घनत्व के कारण ये दोनों वायुराशियां शीघ्रता से एक-दूसरे में नहीं मिलती हैं। इसके साथ ही हल्की और गर्म वायुराशी ठंडी और भारी वायुराशि से ऊपर की ओर उठती है। इन दोनों वायुराशियों के मध्य के संक्रमण क्षेत्र को मौसम वाताग्र के रूप में जाना जाता है।
मौसम वाताग्र सदैव सभी प्रकार के बादलों के साथ और अक्सर वर्षण (प्रिसिपिटेशन) के साथ पाया जाता है। किन्तु जब एक मौसम वाताग्र किसी क्षेत्र से गुजरता है तब यह पवन की गति और दिशा, वायुमंडलीय दाब एवं हवा में नमी की मात्रा का भी सूचक होता है। मौसमविज्ञानियों ने वाताग्र के चार प्रकारों को परिभाषिक किया है; ठंडा वाताग्र, गर्म वाताग्र, अवरूद्ध वाताग्र एवं स्थिर वाताग्र। वाताग्र का प्रकार वायुराशि के घूमने की दिशा और वायुराशी के लक्षणों पर आधारित होता है।
ठंडी वायुराशि द्वारा गर्म वायुराशि को स्थानांतरित करने के परिणामस्वरूप ठंडे वाताग्र का निर्माण होता है। क्योंकि ठंडी हवा अधिक घनत्व वाली होती है इसलिए ठंडे वाताग्र में ठंडी हवा, गर्म हवा के पीछे चलती है और ऊपर उठी गर्म हवा, ठंडी होकर बादल की रचना करती है। यद्यपि कम लंबा और कम व्यापक (50 से 70 किलोमीटर) होने के बावजूद ठंडा वाताग्र प्रायः भारी होता है। इस प्रकार से स्तंभाकार बादलों की रचना होती है और वर्षा, ओले, तड़ित झंझा एवं टॉरनेडो की घटनाएं घटित होती हैं। ठंडे वाताग्र के पीछे ठंडी हवा और आगे गर्म हवा को अनुभव किया जा सकता है। ठंडे वाताग्र के गुजरने पर पहले एक घंटे के दौरान ही तापमान में 15 डिग्री सेल्सियस की कमी हो सकती है।
गर्म वायुराशि द्वारा ठंडी वायुराशि तक पहुंचने से गर्म वाताग्र बनता है। गर्म हवा ऊपर की ओर उठती हुई ठंडी हवा के ऊपर की ओर स्थित होने लगती है। प्रायः गर्म वाताग्र ठंडे वाताग्र की तुलना में धीमें गति करता है और ठंडे वाताग्र के ऊपर से गुजरता हुआ अपने रास्ते से दूर गति करता है। यद्यपि गर्म वाताग्र के व्यापक (300 से 400 किलोमीटर) होने के बावजूद ठंडे वाताग्र की तुलना में गर्म वाताग्र से वर्षा कम होती है। वाताग्र के पीछे की हवा गर्म और इसके आगे की हवा आर्द्र होती है। जब इससे गर्म वाताग्र गुजरता है, तब हवा पहले की तुलना में गर्म और अधिक नम हो जाती है।
जब ठंडा वाताग्र गर्म वाताग्र के आगे आ जाता है तब अवरुद्ध वाताग्र का निर्माण होता है। अवरुद्ध वाताग्र के गुजरने पर तापमान, ओसांक और हवा की दिशा में परिवर्तन हो सकता है। जब गर्म या ठंडा वाताग्र गति करना बंद कर देता है तब यह स्थिर वाताग्र कहलाता है। स्थिर वाताग्र के एक तरफ से दूसरी तरफ जाने पर तापमान और पवन की दिशा में परिवर्तन देखा जाता है।
बोफोर्ट मापक्रम
यह हम जान चुके हैं कि पवन का वेग स्थान और मौसम के अनुसार व्यापक रूप से परिवर्तित होता रहता है। पवनों की गति केवल बोधगम्य या पेड़ों को जड़ से उखाड़ फेंकनें और इमारतों को धराशायी करने जितनी प्रबल भी हो सकती है। बोफोर्ट मापक्रम या बोफोर्ट पैमाना मुख्यतः सागरीय दशाओं के अवलोकन के आधार पर पवनों की गति की व्याख्या करता है। इस पैमाने का पूरा नाम बोफोर्ट पवन बल मापक्रम है। इस पैमाने की रचना सन् 1805 में ब्रिटिश एडमिरल सर फ्रांसिस बोफोर्ट ने की थी। उनके अनुसार यह मापक्रम सागर में नाविकों के पवन की गति के अवलोकन पर आधारित था जिसके बाद में भूमि आधारित अवलोकनों को भी शामिल किया गया। इस पैमाने को 0 (शांत) से लेकर 12 (हरिकेन) तक वर्गीकृत किया गया है।
पवन बल पर आधारित बोफोर्ट मापक्रम
बोफोर्ट मापक्रम | पवन की गति (किलोमीटर प्रति घंटा) | व्याख्या | सागर की स्थिति | भूमि की स्थिति |
0 | 0 | शांत | समतल। | शांत, धुंआ क्षैतिज की ओर उठता है |
1 | 1 से 6 | हल्की हवा | बिना शिखर की छोटी लहर। | धुंए की गति से हवा का पता लगता है। |
2 | 7 से 11 | मंद समीर | छोटी तरंगिका, काचाभ आभासी शिखर। | चेहरे पर पवन का अनुभव होता है। |
3 | 12 से 19 | धीर समीर | बड़ी तरंगिका, शिखर, टूटने लगते हैं; झागदार लहरें। | पेड़ों की पत्तियां और छोटी टहनियां हिलने लगती है। |
4 | 20 से 29 | अल्पबल समीर | छोटी लहरें। | धूल और हल्के कागज ऊपर उठते हैं। छोटी शाखाएं उड़ने लगती हैं। |
5 | 30 से 39 | सबल समीर | 1 से 2 मीटर ऊंची लहरें, कुछ झाग और फुहार। | छोटे पेड़ दूर तक जा सकते हैं। |
6 | 40 से 50 | प्रबल समीर | झागमय शिखरों व कुछ फुहार के साथ बड़ी लहरें। | बड़ी शाखाएं उड़ती हैं, छाते को संभालने में मुश्किल होती है। |
7 | 51 से 62 | झंझा सदृश्य | झाग बड़ी तेजी से आते हैं। | पूरा पेड़ गति करने लगता है। हवा के विरुद्ध चलने में परेशानी होती है। |
8 | 63 से 75 | झंझा | प्रायः टूटे हुए शिखर वाली उच्च लहरें, समुद्री फुहार बनती हैं। | पेड़ों से टहनियां टूटटने लगती हैं। सड़क पर कारों की दिशा बदल सकती है। |
9 | 76 ले 87 | प्रबल झंझा | सघन झाग के साथ 6 से 7 मीटर की ऊंची लहरें। लहर शिखर, फुहार। | हल्की संरचनाएं क्षतिग्रस्त होती हैं। |
10 | 88 से 102 | तूफान | बहुत ऊंची लहरें, सागरीय सतह श्वेत व दृश्यता कम हो जाती है। | वृक्ष उखड़ जाते हैं। इमारतों को काफी नुकसान हो सकता है। |
11 | 103 से 119 | प्रचंड तूफान | बहुत ऊंची लहरें। | व्यापक रूप से इमारतों को नुकसान होता है। |
12 | 120 से अधिक | हरीकेन | विशाल लहरें, हवा, झाग व फुहार से भर जाती है। फुहरों की गति से सागर पूरी तरह सफेद हो जाता है। दृश्यता बहुत हद तक कम हो जाती है। | व्यापक स्तर पर काफी अधिक नुकसान होता है। |
विश्व की पवनें
अनेक देशों में विशिष्ट अभिलक्षणों वाली पवनों के लिए स्थानीय नाम प्रचलित हैं। उनमें से कुछ पवनें निम्नांकित हैं।
बर्ग या गर्म उत्तरी हवा
दक्षिण अफ्रीका के आंतरिक भागों में बहने वाली गर्म एवं शुष्क पवन बर्ग कहलाती है।
ब्रिकफील्डर
ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पूर्वी भाम में बहने वाली उत्तर-पूर्वी गर्म हवा जो अपने साथ धूल और रेत लाती है।
बुरान
बुरान बहुत गर्म उत्तर-पूर्वी पवन है जो पूर्वी एशिया विशेषकर सायबेरिया और कजाकिस्तान से बहती हुई दो रूप धारण करती है। गर्मिंयों में ये हवाएं गर्म, शुष्क, धूल भरी और रेतीली होती हैं और ठंड में बहुत ठंडी और अक्सर बर्फीले तूफान लाती हैं।
चिनूक
सर्दियों में बर्फबारी के बाद उत्तरी अमेरिका में रॉकी पर्वत से पूर्व की ओर बहने वाली गर्म और शुष्क हवा। इसका यह नाम अमेरिका की एक स्थानीय जनजाति की भाषा से लिया गया है, चिनूक शब्द का अर्थ ‘बर्फ खाने वाला’ है।
फॉन
यूरोप के एल्प्स पर्वत से बहने वाली गर्म तथा शुष्क हवा, लेकिन आजकल किसी भी पर्वत से मैदानी भागों की ओर बहने वाली हवा के लिए इसी नाम का प्रयोग किया जाता है। पहाड़ों से मैदानी भाग की ओर आने के समय हवा के संपीड़न से यह गर्म हो जाती है। इस पवन को इसके बहाव क्षेत्र के लोगों में सिरदर्द, अवसाद और आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है।
खमसिन
मिस्र देश के ऊपर दक्षिण से आने वाली गर्म एवं शुष्क पवनें जो पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र तक बहती हैं। धूल भरी यह पवन फसलों को तबाह करने के साथ इसके रास्ते में आने वाले लोगों में भय उत्पन्न कर देती है। आमतौर से यह पवनें वसंत ऋतु के आखिर में और गर्मियों के आरंभ में चलती है।
लू
गर्मियों के दौरान भारत के राजस्थान में स्थित रेगिस्तान से बहने वाली पश्चिमी रेगिस्तानी शुष्क पवन। लू के विषय में यह कहा जाता है कि यदि लू अधिक गर्म हो तब दिल्ली में यमुना नदी में उगाए जाने वाले तरबूज मीठे होंगे।
मेरिन
जब सिरोक्को पवन सागर से ऊपर से गुजरती है तब वह बहुत सारी नमी अवशोषित करती है। यह फ्रांस के दक्षिणी तट से बहती हुई गर्म और नम हवा होती है।
मिस्ट्रल
मिस्ट्रल सामान्यतः फ्रांस में उत्तरी या उत्तर-पश्चिम से आने वाली ठंडी, सूखी, अत्यंत प्रबल पवनें हैं। यह फ्रांस के रिविर और ल्यान की खाड़ी में 150 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से पहुंच सकती है। मिस्ट्रल साधारणतया शुष्क किन्तु ठंडी होने के साथ धूपवाला मौसम लाती है।
उत्तरपश्चिमी या कालबैखासी
उत्तर-पश्चिम से बहने वाली पवन जो उत्तरी एवं पूर्वी भारत व बांग्लादेश में बहती है। यह पवन वसंत के आखिर में तथा गर्मियों के आरंभ में धूल भरे तूफान और ठंडा झंझावात लाती है।
पैम्परो
अत्यधिक ठंडी पवन जो दक्षिण अमेरिका में एंडीज पर्वत से दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती हुई अर्जेन्टाइना के घास के मैदानों और उरुग्वे तक पहुंचती है। यह पवन तापमान में भारी गिरावट लाने के साथ तूफान भी लाती है।
सीस्टन
पूर्वी ईरान के उत्तरी भाग से बहने वाली बहुत गर्म पवन जिसे 120 दिन की हवा भी कहते है। क्योंकि यह चार महीने बहती है। ये पवनें प्रभंजन यानी हरिकेन को प्रभावित कर सकती हैं और अपने साथ धूल को लाती हैं।
शमल
ग्रीष्म ऋतु में ईरान और पर्सियन की खाड़ी में बहने वाली उत्तर-पश्चिमी पवन, यह गर्म और शुष्क पवन सामान्यतः रात में विरल हो जाती है। इन पवनों को रेत उड़ाने के साथ कुछ मीटर तक दृश्यता क्षमता को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है।
सिरोक्को या सिरोकी
सिरोक्को या सिरोकी पवन दक्षिणी हवाएं है जो बहुत गर्म एवं शुष्क होती हैं। ये पवनें उत्तरी अफ्रीका के मध्य भूमध्यसागरीय क्षेत्र में विकसित होती हैं। अनुकूल स्थिति होने पर यह पवन भूमध्यसागर को पार कर सागरीय नमी को सोखकर यूरोप तक पहुंच कर उष्ण, आर्द्र हवा को लाने के साथ निम्न स्तर के बादलों के निर्माण में सहायक होती हैं।
वेंडावेल्स
जब अटलांटिक क्षेत्र का कम दबाव भूमध्यसागर के पश्चिम की ओर स्थानांतरित होता है तब शरद ऋतु से शीत ऋतु तक जिब्राल्टर की खाड़ी की ओर बहने वाली तेज दक्षिण-पश्चिमी हवा वेंडावेल्स पवन कहलाती है वेंडावेल्स कहलाने वाली यह पवन तूफानी मौसम और झंझावतों से जुड़ी होती है।
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