पवन ऊर्जा उत्पादन के मामले में भारत तेज रफ्तार से तरक्की कर रहा है। अगर वर्तमान योजनाएँ समय से पूरी हो गईं तो चालू कैलेण्डर वर्ष के अन्त तक पवन ऊर्जा उत्पादन की स्थापित क्षमता 10,000 मेगावाट को पार कर जाएगी। पवन ऊर्जा उत्पादन के मामले में जारी सकारात्मक रुझान को देखकर ऐसा लगता है कि आने वाले कुछ वर्षों में भारत में ऊर्जा खपत का महत्वपूर्ण हिस्सा इससे पूरा होने लगेगा।
पवन ऊर्जा उत्पादन के मामले में भारत तेज रफ्तार से तरक्की कर रहा है। अगर वर्तमान योजनाएँ समय से पूरी हो गईं तो चालू कैलेण्डर वर्ष के अन्त तक पवन ऊर्जा उत्पादन की स्थापित क्षमता 10,000 मेगावाट को पार कर जाएगी।वर्ष 2007 में देश में पवन ऊर्जा उत्पादन संयन्त्रों की क्षमता 7,850 मेगावाट थी जो 2008 में बढ़कर 9,587 मेगावाट हो गई। बावजूद इसके देश इस मामले में दुनिया में पाँचवें स्थान पर खिसक गया है क्योंकि चीन ने 2008 में इन संयन्त्रों के मामले में 106 फीसदी का विकास दर्ज किया। 2007 में चीन में पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता 5,912 मेगावाट थी लेकिन अगले वर्ष यह आँकड़ा बढ़कर 12,210 मेगावाट हो गया।
पवन ऊर्जा के मामले में अमेरिका ने जर्मनी को पीछे छोड़कर पहला स्थान हासिल कर लिया है। अगर 2008 की बात करें तो विण्ड टर्बाइन बिक्री के मामले में अमेरिका और चीन का हिस्सा 50.8 फीसदी तक रहा। दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान ने पहली बार 2008 में पवन ऊर्जा उत्पादन के लिए 6 मेगावाट क्षमता का संयन्त्र लगाया और अब वह ऐसे संयन्त्र लगाने वाले देशों की सूची में क्षमता के हिसाब से 57वें पायदान पर पहुँच गया है।
वर्ल्ड विण्ड पावर एनर्जी एसोसिएशन ने हाल में प्रकाशित वर्ल्ड विण्ड पावर एनर्जी रिपोर्ट 2008 में उम्मीद जाहिर की है कि वर्ष 2020 तक दुनिया भर में पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता 15,00,000 मेगावाट तक पहुँच जाएगी। विण्ड टर्बाइन बाजार के मामले में एशिया और अमेरिका सबसे बड़े बाजार के रूप में उभर रहे हैं और यूरोप से यह दर्जा छिन चुका है।
वर्ल्ड विण्ड पावर एनर्जी एसोसिएशन ने हाल में प्रकाशित वर्ल्ड विण्ड पावर एनर्जी रिपोर्ट 2008 में उम्मीद जाहिर की है कि वर्ष 2020 तक दुनिया भर में पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता 15,00,000 मेगावाट तक पहुँच जाएगी।इस समय अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता 1,21,188 मेगावाट तक पहुँच चुकी है, जिसमें 2008 में 27,261 मेगावाट क्षमता जुड़ी है। यहाँ यह बताना जरूरी है कि पवन ऊर्जा उत्पादन का जनक डेनमार्क इस सूची में फिसल कर नौवें स्थान पर आ गया है। चार साल पहले तक डेनमार्क चौथे स्थान पर था, लेकिन 2008 तक कुल क्षमता के आधार पर वह नीचे फिसल गया।
डब्ल्यूडब्ल्यूईए के चेयरमैन अनिल काणे के अनुसार, 'पवन ऊर्जा का भविष्य काफी उज्ज्वल है और वर्तमान आँकड़ों को देखते हुए कहा जा सकता है कि तमाम देश इसे गम्भीरता से ले रहे हैं। चीन की इस क्षेत्र में काफी रुचि होने की वजह से कहा जा सकता है कि वह जल्द ही स्पेन को पछाड़ कर तीसरे पायदान पर पहुँच सकता है। इस समय पवन ऊर्जा क्षेत्र जर्मनी में ऑटोमोबाइल सेक्टर से अधिक लोगों को नौकरी दे रहा है।' उन्होंने कहा कि विण्ड टर्बाइन और उससे सम्बन्धित उपकरण बनाने के मामले में भारत और चीन दुनिया के सबसे बड़े केन्द्र के रूप में उभर रहे हैं।
इस समय 100 मेगावाट से अधिक क्षमता का पवन ऊर्जा उत्पादन संयन्त्र लगाने वाले देशों की संख्या 32 तक पहुँच चुकी है, जबकि तीन साल पहले यह संख्या 24 थी। भारत और चीन में कुल मिलाकर 24,439 मेगावाट के संयन्त्र लगाए जा चुके हैं और इस तरह एशिया अन्तरराष्ट्रीय पवन ऊर्जा उद्योग का अग्रणी केन्द्र बनने की कतार में शामिल हो गया है। चीन ने अपनी क्षमता में दोगुना इजाफा कर लिया है और अब पहली बार चीन के विण्ड टर्बाइन निर्माता इससे सम्बन्धित उपकरणों का निर्यात करने लगे हैं। उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय में भारत और चीन दुनिया में पवन ऊर्जा संयन्त्रों के शीर्ष आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरेंगे।
पवन ऊर्जा उत्पादन के मामले में भारत तेज रफ्तार से तरक्की कर रहा है। अगर वर्तमान योजनाएँ समय से पूरी हो गईं तो चालू कैलेण्डर वर्ष के अन्त तक पवन ऊर्जा उत्पादन की स्थापित क्षमता 10,000 मेगावाट को पार कर जाएगी।वर्ष 2007 में देश में पवन ऊर्जा उत्पादन संयन्त्रों की क्षमता 7,850 मेगावाट थी जो 2008 में बढ़कर 9,587 मेगावाट हो गई। बावजूद इसके देश इस मामले में दुनिया में पाँचवें स्थान पर खिसक गया है क्योंकि चीन ने 2008 में इन संयन्त्रों के मामले में 106 फीसदी का विकास दर्ज किया। 2007 में चीन में पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता 5,912 मेगावाट थी लेकिन अगले वर्ष यह आँकड़ा बढ़कर 12,210 मेगावाट हो गया।
पवन ऊर्जा के मामले में अमेरिका ने जर्मनी को पीछे छोड़कर पहला स्थान हासिल कर लिया है। अगर 2008 की बात करें तो विण्ड टर्बाइन बिक्री के मामले में अमेरिका और चीन का हिस्सा 50.8 फीसदी तक रहा। दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान ने पहली बार 2008 में पवन ऊर्जा उत्पादन के लिए 6 मेगावाट क्षमता का संयन्त्र लगाया और अब वह ऐसे संयन्त्र लगाने वाले देशों की सूची में क्षमता के हिसाब से 57वें पायदान पर पहुँच गया है।
वर्ल्ड विण्ड पावर एनर्जी एसोसिएशन ने हाल में प्रकाशित वर्ल्ड विण्ड पावर एनर्जी रिपोर्ट 2008 में उम्मीद जाहिर की है कि वर्ष 2020 तक दुनिया भर में पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता 15,00,000 मेगावाट तक पहुँच जाएगी। विण्ड टर्बाइन बाजार के मामले में एशिया और अमेरिका सबसे बड़े बाजार के रूप में उभर रहे हैं और यूरोप से यह दर्जा छिन चुका है।
वर्ल्ड विण्ड पावर एनर्जी एसोसिएशन ने हाल में प्रकाशित वर्ल्ड विण्ड पावर एनर्जी रिपोर्ट 2008 में उम्मीद जाहिर की है कि वर्ष 2020 तक दुनिया भर में पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता 15,00,000 मेगावाट तक पहुँच जाएगी।इस समय अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता 1,21,188 मेगावाट तक पहुँच चुकी है, जिसमें 2008 में 27,261 मेगावाट क्षमता जुड़ी है। यहाँ यह बताना जरूरी है कि पवन ऊर्जा उत्पादन का जनक डेनमार्क इस सूची में फिसल कर नौवें स्थान पर आ गया है। चार साल पहले तक डेनमार्क चौथे स्थान पर था, लेकिन 2008 तक कुल क्षमता के आधार पर वह नीचे फिसल गया।
डब्ल्यूडब्ल्यूईए के चेयरमैन अनिल काणे के अनुसार, 'पवन ऊर्जा का भविष्य काफी उज्ज्वल है और वर्तमान आँकड़ों को देखते हुए कहा जा सकता है कि तमाम देश इसे गम्भीरता से ले रहे हैं। चीन की इस क्षेत्र में काफी रुचि होने की वजह से कहा जा सकता है कि वह जल्द ही स्पेन को पछाड़ कर तीसरे पायदान पर पहुँच सकता है। इस समय पवन ऊर्जा क्षेत्र जर्मनी में ऑटोमोबाइल सेक्टर से अधिक लोगों को नौकरी दे रहा है।' उन्होंने कहा कि विण्ड टर्बाइन और उससे सम्बन्धित उपकरण बनाने के मामले में भारत और चीन दुनिया के सबसे बड़े केन्द्र के रूप में उभर रहे हैं।
इस समय 100 मेगावाट से अधिक क्षमता का पवन ऊर्जा उत्पादन संयन्त्र लगाने वाले देशों की संख्या 32 तक पहुँच चुकी है, जबकि तीन साल पहले यह संख्या 24 थी। भारत और चीन में कुल मिलाकर 24,439 मेगावाट के संयन्त्र लगाए जा चुके हैं और इस तरह एशिया अन्तरराष्ट्रीय पवन ऊर्जा उद्योग का अग्रणी केन्द्र बनने की कतार में शामिल हो गया है। चीन ने अपनी क्षमता में दोगुना इजाफा कर लिया है और अब पहली बार चीन के विण्ड टर्बाइन निर्माता इससे सम्बन्धित उपकरणों का निर्यात करने लगे हैं। उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय में भारत और चीन दुनिया में पवन ऊर्जा संयन्त्रों के शीर्ष आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरेंगे।
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Post By: birendrakrgupta