इसे पूर्वोत्तर का स्काटलैंड भी कहा जाता है। लोग इसे बारिश का स्वर्ग भी कहते हैं। सैलानी यहां सिर्फ बारिश का मजा लेने आते हैं। बारिश के मौसम में तो इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। गहरी घाटियों में गिरते झरनों के शहर का जिक्र हो रहा है। मेघालय की राजधानी शिलांग से 60 किलोमीटर की दूरी पर जिस जगह का जिक्र हो रहा है नाम है चेरापूंजी। बारिश की राजधानी के रूप में चेरापूंजी समुद्र से लगभग 1300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जो शिलांग से 56 किलोमीटर दूर है। चेरापूंजी को अब सोहरा के नाम से भी जाना जाता है। यहां औसत वर्षा 10,000 मिलीमीटर का रिकार्ड है। वर्षा ऋतु में पर्यटक यहां झूमते हुए आते हैं और भीगते हुए जाते हैं। हरियाली से ओतप्रोत चेरापूंजी की पहाड़ियां ध्यान बंटा देती हैं। जब बारिश का बसंत यहाँ पूरे उफान पर होता है।
ऊंचाई से गिरते पानी के फव्वारे, कुहासे के समान मेघों को देखने का अपना अलग ही अनुभव है। यहाँ खासी जनजाति के लोग मानसून का स्वागत पारंपरिक अंदाज में करते हैं। मेघों को लुभाने के लिए लोक गीत और लोक नृत्यों का आयोजन किया जाता है जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र होता है। यह स्थान दुनियाभर में सर्वाधिक बारिश के लिए प्रसिद्ध है। नजदीक ही नोहकालीकाई झरना है, जिसे पर्यटक जरूर देखने जाते हैं। यहां कई गुफा भी हैं, जिनमें से कुछ कई किलोमीटर लम्बी हैं। चेरापूंजी बांगलादेश सीमा से काफी करीब है, इसलिए यहां से बांगलादेश के दर्शन भी होते है। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय का एक शहर दुनिया भर में मशहूर है। हाल ही में इसका नाम चेरापूंजी से बदलकर सोहरा रख दिया गया है। स्थानीय लोग इसे सोहरा नाम से ही जानते हैं।
वर्षा ऋतुएं बीतने के बाद भी चेरापूंजी भीगता रहता है। यहाँ नदी भी है, बारिश की फुहारें भी ।। तेज वर्षा से घबरा जाने वाले भी यहाँ आ कर मस्त हो जाते हैं जब फुहारें मूसलाधार हो कर बरसती हैं। चेरापुंजी सुंदर झरनों और विशिष्ट वनस्पतियों से भरा हुआ है। वर्षा के कारण ही अनेक झरनों नदियों और वनस्पतियों ने इसे खूबसूरत बनाया है। यहां की खासी जाति का मुख्य व्यवसाय इन्हीं जंगलों और नदियों की उपज है। मांस, मछली और वन की उपज नट्स, अनन्नास, बांस, अन्य जड़ी-बूटियां इनकी जीविका हैं। ये सौंदर्य प्रेमी कलात्मक कपड़ों, शालों अन्य सजावटी वस्तुओं का निर्माण करते हैं। इनके घर को वे सजा संवारकर रखते हैं। पक्षी तितली अन्य कीट पतंग इनके सजावटी सामानों में मिल जाते हैं। ये लोग अपनी धरती और रीति-रिवाजों के प्रति ये समर्पित हैं। चेरापूंजी के पास ही सबसे पुराना संस्थान रामकृष्ण मिशन है।
जलवायु परिवर्तन की वजह से यह धरोहर अब धीरे-धीरे उसके हाथों से निकलती जा रही है। दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश का रिकार्ड बनाने वाला चेरापूंजी अब खुद अपनी प्यास बुझाने में भी नाकाम हो जाता है। बारिश पहले के मुकाबले लगभग आधी हो गई है। इलाके में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई हो रही हैं। इस वजह से चेरापूंजी का हरीतिमा युक्त चेहरा बदल रहा है। मौसम विभाग के मुताबिक लगातार भारी बारिश की वजह से इलाके में लाइम स्टोन यानी चूना पत्थर की चट्टानें नंगी हो गई हैं। उन पर कोई पौधा तो उग नहीं सकता लिहाजा इलाके से हरियाली तेजी से खत्म हो रही है।
चेरापूंजी में बादल और बरसात ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे हैं। इसका प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को घंटों बांधे रखने में सक्षम है। यहाँ पत्थरों ने गुफा के अंदर कई आकार लिए हैं। कहीं हाथी, घोड़ा, हिरण तो कहीं किसी फूल पक्षी की आकृति तो कहीं दृष्टि बांध लेती है स्वनिर्मित मूर्तियां। कहीं सहस्त्राफन सर्प बना दिखता है तो कहीं शिवलिंग। गुफा में घुटनों तक पानी भरा होता है। ऊंचाई से गिरता झरना, घने वृक्षों से घिरा जंगल, बादलों के पास बसा बांग्लादेश यहां से दिखाई देता है। यहां सरकार ने सुंदर बाग का निर्माण कर दिया है। गाऊटी, उमगोट, नदियों, मोसमाई, नोहकलिकाई और कई तरह के झरनों से घिरा चेरापूंजी विशिष्ट वनस्पतियों से भरा हुआ स्थान है। शहर में प्रति वर्ष औसत वर्षा 12,000 मिलीमीटर दर्ज की जाती है। वर्ष 1974 में सबसे अधिक 24,555 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई थी। अधिक वर्षा के कारण यहां दुर्लभ वनस्पति उपजते हैं। यही वजह है कि यह शहर पर्यटकों को आकर्षित करता है।
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