भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों में आपदाएँ आती रहती हैं। भू-स्खलन और अन्य आपदाओं के साथ बाढ़ आदि के दौरान खासतौर पर मानसून में काफी दिक्कतें आती हैं, ऐसे में जल परिवहन ही एकमात्र रास्ता बचता है। देश के अन्य हिस्सों से माल परिवहन का एकमात्र साधन नदियाँ ही होती है। यहीं से अनिवार्य वस्तुओं की आपूर्ति की जाती है। इसके साथ ही ईन्धन की कम खपत, पर्यावरण अनुकूलता तथा प्रभावी लागत आदि कारणों से रेल और सड़क परिवहन के मुकाबले यह क्षेत्र काफी उपयोगी बन सकता है।अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, सिक्किम और त्रिपुरा जैसे भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों को प्रकृति का प्रचुर वरदान प्राप्त है। प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर इन राज्यों में सांस्कृतिक सम्पन्नता भी खूब है। पूर्वोत्तर के राज्यों का दायरा 2,55,083 वर्ग किलोमीटर के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। इसी इलाके में दार्जिलिंग तथा शिलाँग जैसे विश्वविख्यात पर्यटन स्थल और काजीरंगा तथा मानस जैसे राष्ट्रीय अभयारण्य भी हैं। गुवाहाटी, जोरहाट, शिवसागर, बोमडिला, गंगटोक, हाफलंग, औरंग, जाटिंगा, तवांग तथा चेरापूंजी जैसे इलाके पर्यटकों की खास पसन्द भी हैं। यही नहीं जगह-जगह यहाँ पर्यटक स्थलों की भरमार तो है ही वन्य जन्तु तथा समृद्ध हस्तशिल्प भी यहाँ देश-दुनिया को अपनी ओर खींचती हैं।
साथ ही चीन, बर्मा, भूटान तथा बांग्लादेश की सीमाएँ भी पूर्वोत्तर के राज्यों से लगती हैं, लिहाजा इन इलाकों का सामरिक महत्व भी है। लेकिन विकास के तमाम सोपानों तथा नयी योजनाओं और संसाधनों के आवण्टन के बाद भी देश के कई क्षेत्रों की तुलना में अभी भी पूर्वोत्तर का इलाका पिछड़ा हुआ है। लेकिन धीरे-धीरे इन इलाकों में परिवहन साधनों का जाल मजबूती से फैल रहा है। खासतौर पर वर्ष 2004 के बाद पूर्वोत्तर के विकास को पंख लग गए हैं। यहाँ रेल सुविधाओं का विकास हो रहा है तथा राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-2 भी विकसित हो रहा है। कठिन पहाड़ी भूभाग होने के कारण खासतौर पर रेल और सड़क सुविधाओं के विस्तार में यहाँ काफी लागत आती है। इसके साथ ही बाढ़, भू-स्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के साथ कई क्षेत्रों में उग्रवाद की समस्या के चलते भी विकास परियोजनाएँ बाधित होती हैं।
अभी पूर्वोत्तर के राज्य मुख्यतया सड़क परिवहन पर ही निर्भर हैं। इन इलाकों में करीब 82,000 किलोमीटर से अधिक सड़कों का जाल बिछा है। पर इनमें से 56,000 किलोमीटर सड़कें कच्ची हैं। इन पर बड़ा माल परिवहन नहीं चलाया जा सकता। इन सड़कों में भी 35,000 किलोमीटर से अधिक सड़कें असम में और करीब 15,000 किलोमीटर सड़कें अरुणाचल प्रदेश में पड़ती हैं। इसी तरह रेल नेटवर्क भी असम को छोड़कर अन्य राज्यों में विकसित नहीं हो सका है। ऐसी स्थिति में पूर्वोत्तर के राज्यों में जल परिवहन तन्त्र के विकास को और ठोस दिशा देने की दिशा में पहल करना अपेक्षित है।
आजादी के पूर्व पूर्वोत्तर की धमनी जल परिवहन तन्त्र ही हुआ करता था। इसके माध्यम से न केवल बड़ी संख्या में यात्री गन्तव्य तक पहुँचते थे, बल्कि काफी मात्रा में माल ढुलाई भी होती थी। इसी तरह सेनाओं के संचालन के लिए भी अन्तर्देशीय जल परिवहन पर ही मुख्य निर्भरता थी। वर्ष 1842 से ब्रह्मपुत्र नदी पर भाप से चलने वाले स्टीमरों की शुरुआत के बाद यहाँ आवागमन की गति और तेज हो गई थी। इसी दौरान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई तमाम तरक्की ने अन्तर्देशीय जल परिवहन तन्त्र को प्रभावित करना शुरू किया और सड़क एवं रेलों का वर्चस्व होता गया। हालाँकि यूरोप, अमेरिका, चीन तथा पड़ोसी बांग्लादेश में अभी भी काफी मात्रा में ढुलाई अन्तर्देशीय जल परिवहन तन्त्र से हो रही है। भारत के पूर्वोत्तर इलाकों में इसकी प्रचुर सम्भावनाएँ बनी हुई हैं।
बीते कुछ सालों से जल परिवहन क्षेत्र की दिशा में केन्द्र और पूर्वोत्तर की राज्य सरकारों ने ध्यान देना शुरू किया है। पूर्वोत्तर भारत में कई छोटी-बड़ी नदियाँ हैं। इनमें कई ऐसी हैं जिनका नौवहन में महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है।बीते कुछ सालों से जल परिवहन क्षेत्र की दिशा में केन्द्र और पूर्वोत्तर की राज्य सरकारों ने ध्यान देना शुरू किया है। पूर्वोत्तर भारत में कई छोटी-बड़ी नदियाँ हैं। इनमें कई ऐसी हैं जिनका नौवहन में महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है। ये नदियाँ आदिकाल से पूर्वोत्तर की जीवनरेखा रही हैं। खासतौर पर ब्रह्मपुत्र तो अंग्रेजी राज में रेलों के विकास के बाद भी महत्त्वपूर्ण परिवहन का साधन रही थी। इसी के माध्यम से प्रमुख माल की ढुलाई कोलकाता तक होती थी और बाहर से यहाँ माल पहुँचता था। अगर राज्य सरकारों की ओर से थोड़ा गम्भीर प्रयास किया जाए तो करीब 4,000 किलोमीटर मार्गों पर फेरी सेवाएँ चलाई जा सकती हैं और इसके मार्फत सड़कों और रेलों पर दबाव कम किया जा सकता है। इसके साथ ही इनमें से करीब 1,800 किलोमीटर जलमार्ग पर स्टीमर और बड़ी देसी नावें चलाई जा सकती हैं और काफी बड़ी मात्रा में माल परिवहन सम्भव हो सकता है। अभी इन व्यापक सम्भावनाओं का दोहन बहुत सीमित मात्रा में किया जा सका है।
इस क्षेत्र में राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-2 धीरे-धीरे विकास की नयी गाथा लिख रहा है। असम में ब्रह्मपुत्र नदी, सादिया और धुबरी के मध्य करीब 891 किलोमीटर के लम्बे दायरे में इस राष्ट्रीय जलमार्ग का विस्तार है। इसे 26 दिसम्बर, 1988 को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया था। इसका प्रबन्धन भारतीय अन्तर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के अधीन है जिसने बीते सालों में यहाँ आधारभूत सुविधाओं के विकास के लिए काफी कार्य किया है। इसी तरह बराक नदी को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने सम्बन्धी बिल भी संसद में पेश किया जा चुका है। इसके साथ ही विकास का एक नया दौर शुरू होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।
लेकिन राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-2 को छोड़कर बाकी जलमार्गों पर आधारभूत सुविधाओं की कमी है। इस क्षेत्र का अगर सलीके से और विकास हो जाए तथा जलमार्गों के आधुनिकीकरण के साथ सभी सुविधाओं से सम्पन्न कर दिया जाए तो काफी संख्या में रोजगार की सम्भावनाएँ भी विकसित हो सकती हैं और कुल माल और यात्री परिवहन में इसकी हिस्सेदारी बहुत अधिक बढ़ सकती है। इतना ही नहीं इसकी मदद से पूर्वोत्तर की पर्यटक सम्भावनाओं को पंख लग सकते हैं, क्योंकि क्रूज नदी के माध्यम से भी बड़ी संख्या में पर्यटकों को इस तरफ खींचा जा सकता है। पूर्वोत्तर क्षेत्र में नौवहन योग्य नदियाँ निम्न हैं :
इन आँकड़ों से साफ है कि पूर्वोत्तर भारत में जल परिवहन की असीम सम्भावनाएँ हैं। इनमें माल परिवहन, रात्रि नौका, नदी पोत विहार, जल क्रीड़ा तथा पर्यटन सम्बन्धी कार्यकलापों को और गति दी जा सकती है। बराक नदी के बारे में तो सम्भाव्यता अध्ययन भी कराए जा चुके हैं। मिजोरम में भी इसकी व्यापक सम्भावनाएँ हैं। आजादी के पहले चटगाँव और देमागिरी के बीच बहुत सुन्दर सम्पर्क कर्णफूली नदी के माध्यम से जलमार्ग द्वारा बना हुआ था। इसी तरह से ब्रह्मपुत्र की सहायक लोहित, धनश्री और सुबनसिरी, त्रिपुरा की गुमटी और हौरा, नागालैण्ड की तिजू और मिजोरम की कोलोडीन नदियाँ भी माल और यात्री यातायात में प्रमुख भूमिका निभाने की सम्भावनाएँ रखती हैं। पूर्वोत्तर परिषद के तीसरे क्षेत्रीय सम्मेलन (गुवाहाटी, 9 से 11 मार्च, 2007) में भी अन्तर्देशीय जल परिवहन पर विशेष चर्चा की गई थी और इसके कार्यकरण की समीक्षा के साथ केन्द्र सरकार से अनुरोध किया गया था कि बराक नदी को भी राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने की प्रक्रिया तेज की जाए।
जहाँ तक असम का सवाल है तो जल परिवहन के क्षेत्र में यह राज्य आज भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और केन्द्र सरकार के प्रयासों के साथ असम सरकार का अन्तर्देशीय जल परिवहन निदेशालय भी काफी कार्य कर रहा है। असम पूर्वोत्तर के राज्यों का प्रवेशद्वार होने के साथ ही इन इलाकों के लिए काफी समय से संचार और परिवहन का केन्द्र बना रहा है। असम के विभिन्न इलाके रेल सेवा से भी जुड़े हुए हैं। यहाँ ब्रह्मपुत्र और बराक दो बेहद महत्त्वपूर्ण नदियाँ हैं। इन पर केन्द्रीय अन्तर्देशीय जलमार्ग निगम और अन्तर्देशीय जलमार्ग निदेशालय वाणिज्यिक आधार पर जल परिवहन सेवाएँ संचालित करता है। इन सेवाओं का उपयोग यात्रियों और वस्तुओं के परिवहन में किया जाता है। यहाँ से कोयला, उर्वरक, वनोत्पाद, कृषि उत्पादों और मशीनरी आदि की आवाजाही होती है। यहाँ से चटगाँव बन्दरगाह (बांग्लादेश) तथा कोलकाता और हल्दिया बन्दरगाह के मध्य भी सीधा सम्पर्क है।
असम में भी कई दुर्गम इलाकों में परिवहन का सबसे उपयुक्त साधन जल यातायात ही है। असम सरकार के अन्तर्देशीय जल परिवहन निदेशालय की ओर से ब्रह्मपुत्र में 50 तथा बराक नदी पर 24 फेरी सेवाएँ चलाई जाती हैं। इससे बड़ी संख्या में यात्रियों और माल की ढुलाई की जाती है। इस समय इसके द्वारा करीब 10 हजार मीट्रिक टन माल ढुलाई की जा रही है। इन इलाकों में आपदाएँ आती रहती हैं। भू-स्खलन और अन्य आपदाओं के साथ बाढ़ आदि के दौरान खासतौर पर मानसून में काफी दिक्कतें आती हैं, ऐसे में जल परिवहन ही एकमात्र रास्ता बचता है। देश के अन्य हिस्सों से माल परिवहन का एकमात्र साधन नदियाँ ही होती है। यहीं से अनिवार्य वस्तुओं की आपूर्ति की जाती है। इसके साथ ही ईन्धन की कम खपत, पर्यावरण अनुकूलता तथा प्रभावी लागत आदि कारणों से रेल और सड़क परिवहन के मुकाबले यह क्षेत्र काफी उपयोगी बन सकता है। इस दिशा में जागरुकता भी अपेक्षित है। असम में भी कई दुर्गम इलाकों में परिवहन का सबसे उपयुक्त साधन जल यातायात ही है। असम सरकार के अन्तर्देशीय जल परिवहन निदेशालय की ओर से ब्रह्मपुत्र में 50 तथा बराक नदी पर 24 फेरी सेवाएँ चलाई जाती हैं। इससे बड़ी संख्या में यात्रियों और माल की ढुलाई की जाती है। इस समय इसके द्वारा करीब 10 हजार मीट्रिक टन माल ढुलाई की जा रही है।
बराक नदी के तट पर करीमगंज, बदरपुर और सिलचर जैसे प्रसिद्ध घाट अवस्थित हैं और ये आवागमन के बड़े केन्द्र बने हुए हैं। बराक नदी के करीमगंज-लखीपुर खण्ड के विकास के लिए तकनीकी आर्थिक व्यवहार्यता अध्ययन किया गया है। यह नदी बांग्लादेश के जलमार्गों के जरिये हल्दिया पत्तन के साथ जुड़ी हुई है।
पूरे भारत में 14,500 कि.मी. लम्बे नौका चालन योग्य जलमार्ग हैं। इनमें सर्वाधिक पूर्वोत्तर में हैं। इनमें से राष्ट्रीय जलमार्ग 1 और 2 को जोड़ने वाली बांग्लादेश की नदियों में भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल व्यवस्था के तहत नौवहन सम्भव है। राष्ट्रीय जलमार्ग-2 (सादिया से धुबरी तक) काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इसमें धुबरी-डिब्रूगढ़ के मध्य 2 मीटर तथा डिब्रूगढ़-सादिया के बीच 1.5 मीटर न्यूनतम गहराई वाला नौका चालन योग्य जलमार्ग है। साल में 330 दिन यहाँ काम जारी रहता है। इसके तहत पाण्डु में कण्टेनर वहन सुविधायुक्त स्थायी टर्मिनल की व्यवस्था है, जबकि जोगीघोपा, तेजपुर, सिलघाट, सैखोवा और सादिया में स्थायी टर्मिनल हैं। वहीं धुबरी, नियामाती, जामूगुड़ी तथा डिब्रूगढ़ में फ्लोटिंग टर्मिनल हैं।
पूरे जलमार्ग में दिन में नौका चालन सुविधा के साथ धुबरी-सिलघाट के मध्य 24 घण्टे नौका चालन की सुविधा है। इस खण्ड पर 30 जोड़ी से अधिक फेरी घाट भी हैं जहाँ से लोगों के आवागमन के साथ सामानों की ढुलाई की जाती है। इस खण्ड के विकास के लिए केन्द्र सरकार की कार्य योजना भी जल्दी ही साकार होने जा रही है। इस जलमार्ग पर सालाना कार्गो सम्भाव्यता 1.2 लाख टन आँकी गई है। इसमें सीमेण्ट, कोयला, डीएपी, डोलोमाइट, जूट, संगमरमर, मेघालय कोयला, चाय और नमक आदि का परिवहन शामिल है।
दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में गिनी जाने वाली ब्रह्मपुत्र चीन से चलकर अरुणाचल प्रदेश से भारत में प्रवेश करती है। भारत में 918 किलोमीटर का सफर करती हुई यह नदी बांग्लादेश में प्रवेश करती है। भारत में सुबनसिरी, मानस, धनसिरी, कोपिली, तिस्ता, जलढाका और तोरसा समेत 39 नदियाँ इसमें मिलती हैं। यह बाढ़ का प्रकोप भी फैलाती है। पाँच साल में एक बार तो इसका प्रकोप विकराल होता रहा है। फिर भी यह नदी जल परिवहन का मुख्य साधन है और बुरे दिनों में भी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में यही सबसे अधिक मददगार होती है।
भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय जलमार्ग-2 के विकास के लिए काफी योजनाबद्ध प्रयास किया जा रहा है और धीरे-धीरे इसका असर भी दिखने लगा है। खासतौर पर लम्बी दूरी के माल परिवहन को लेकर काफी उत्साहजनक सम्भावनाएँ दिखने लगी हैं। इस क्षेत्र में भारत सरकार ने गम्भीर पहल की है और ऐसा माना जा रहा है कि आगामी 8-10 सालों में राष्ट्रीय जलमार्ग-2 का कायापलट हो सकता है। ऐसी परिकल्पना की जा रही है कि इसके द्वारा वर्ष 2020 तक करीब 6 लाख टन सालाना माल ढोया जा सकेगा और बड़ी संख्या में रोजगार तथा पर्यटन की सम्भावनाएँ भी पैदा होंगी। कोलकाता-पांडु के बीच में कोयला, लोहा और इस्पात, पांडु से कोलकाता के बीच जिप्सम, चाय और कोयला, जोगीघोपा-कोलकाता के बीच मेघालय कोयला, तेजपुर तथा डिब्रूगढ़ से कोलकाता के बीच चाय, सिलघाट से पेट्रोलियम पदार्थ तथा नामरू से यूरिया आदि का परिवहन बड़ी मात्रा में किया जा रहा है। यही नहीं, राष्ट्रीय जलमार्ग 2 पर कई जगहों पर फेरी सेवाएँ भी काफी लोकप्रिय हो चुकी हैं। ऐसे करीब 15 खण्डों पर तो काफी व्यवस्थित तन्त्र विकसित हो चुका है।
केन्द्र सरकार की ओर से इस क्षेत्र के लिए काफी समर्थन प्रदान किया जा रहा है। पर सम्बन्धित राज्यों को अन्य जलमार्गों के विकास की दिशा में भी ठोस पहल करनी होगी। इसके तहत अन्तर्देशीय जल परिवहन को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र प्रायोजित योजना भी चल रही है जिसमें पूर्वोत्तर राज्यों के लिए शत-प्रतिशत सहायता अनुदान की व्यवस्था है। योजना आयोग ने यह योजना वर्ष 2007-08 से पूर्वोत्तर को छोड़कर अन्य राज्यों के लिए बन्द कर दी है।
पूरे भारत में 14,500 कि.मी. लम्बे नौका चालन योग्य जलमार्ग हैं। इनमें सर्वाधिक पूर्वोत्तर में हैं। इनमें से राष्ट्रीय जलमार्ग 1 और 2 को जोड़ने वाली बांग्लादेश की नदियों में भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल व्यवस्था के तहत नौवहन सम्भव है।फिर भी इस क्षेत्र में अभी कई तरह की बाधाएँ हैं। इनमें तकनीकी के साथ संस्थागत समर्थन का तत्व भी अहम है। इस क्षेत्र में अन्तर्देशीय जल परिवहन के प्राधिकार वाली कोई एक संस्था काम नहीं कर रही है। जहाँ राष्ट्रीय जलमार्ग से सम्बन्धित दायित्व केन्द्र सरकार की संख्या भारतीय अन्तर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण का है, वहीं सहायक नदियों के प्रबन्धन का दायित्व असम तथा पूर्वोत्तर की अन्य राज्य सरकारों का है। निजी क्षेत्र की ओर से जो उत्साह दिखाया जाना चाहिए था, इस क्षेत्र में दिखाया नहीं जा रहा है। इस दिशा में भी खास ध्यान देना जरूरी है। इस क्षेत्र पर अभी और गम्भीर अध्ययन अपेक्षित है और परिवहन में अहम योगदान करने वाली छोटी नावों के आधारभूत आँकड़ों को जुटाना भी जरूरी है। इसी तरह बहुत से जीर्णोद्धार के कार्य भी करने हैं और रात्रि नौवहन की व्यवस्थाओं को भी गति देनी है। साथ ही सुरक्षा तन्त्र भी एक अहम सवाल है, क्योंकि पूर्वोत्तर में उग्रवाद भी एक समस्या है।
हालाँकि जल परिवहन क्षेत्र अभी इस समस्या से बचा हुआ है पर मौन साधे बैठे रहना उचित नहीं होगा। पूर्वोत्तर के राज्यों से वाया सुन्दरबन और बांग्लादेश काफी सामानों की ढुलाई की जा सकती है। इस बाबत भारत सरकार और बांग्लादेश के बीच जल परिवहन और व्यापार के बारे में सन्धि भी हुई है। इसके तहत एक देश के जहाज निर्धारित जलमार्गों से दूसरे देश जा सकते हैं। सन्धि के तहत कोलकाता-पाण्डु-कोलकाता, कोलकाता-करीमगंज-कोलकाता, राजशाही-धुलियान-राजशाही, पाण्डु-करीमगंज-पाण्डु खण्ड पर सन्धि मार्ग शामिल हैं। अन्तर्देशीय व्यापार के लिए दोनों देशों में से प्रत्येक में चार बन्दरगाह निर्धारित किए गए हैं। भारत के बन्दरगाह हैं— हल्दिया, कोलकाता, पाण्डु और करीमगंज। लेकिन इस व्यवस्था के तहत अभी काफी कुछ विकास कार्य किया जाना है। खासतौर पर बांग्लादेश की ओर से इस मामले में सक्रिय पहल अपेक्षित है।
(लेखक भारतीय रेल परामर्शदाता में हैं और परिवहन एवं संचार सम्बन्धी मामलों के जानकार हैं)
ई-मेल : arvindksingh@gmail.com
साथ ही चीन, बर्मा, भूटान तथा बांग्लादेश की सीमाएँ भी पूर्वोत्तर के राज्यों से लगती हैं, लिहाजा इन इलाकों का सामरिक महत्व भी है। लेकिन विकास के तमाम सोपानों तथा नयी योजनाओं और संसाधनों के आवण्टन के बाद भी देश के कई क्षेत्रों की तुलना में अभी भी पूर्वोत्तर का इलाका पिछड़ा हुआ है। लेकिन धीरे-धीरे इन इलाकों में परिवहन साधनों का जाल मजबूती से फैल रहा है। खासतौर पर वर्ष 2004 के बाद पूर्वोत्तर के विकास को पंख लग गए हैं। यहाँ रेल सुविधाओं का विकास हो रहा है तथा राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-2 भी विकसित हो रहा है। कठिन पहाड़ी भूभाग होने के कारण खासतौर पर रेल और सड़क सुविधाओं के विस्तार में यहाँ काफी लागत आती है। इसके साथ ही बाढ़, भू-स्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के साथ कई क्षेत्रों में उग्रवाद की समस्या के चलते भी विकास परियोजनाएँ बाधित होती हैं।
अभी पूर्वोत्तर के राज्य मुख्यतया सड़क परिवहन पर ही निर्भर हैं। इन इलाकों में करीब 82,000 किलोमीटर से अधिक सड़कों का जाल बिछा है। पर इनमें से 56,000 किलोमीटर सड़कें कच्ची हैं। इन पर बड़ा माल परिवहन नहीं चलाया जा सकता। इन सड़कों में भी 35,000 किलोमीटर से अधिक सड़कें असम में और करीब 15,000 किलोमीटर सड़कें अरुणाचल प्रदेश में पड़ती हैं। इसी तरह रेल नेटवर्क भी असम को छोड़कर अन्य राज्यों में विकसित नहीं हो सका है। ऐसी स्थिति में पूर्वोत्तर के राज्यों में जल परिवहन तन्त्र के विकास को और ठोस दिशा देने की दिशा में पहल करना अपेक्षित है।
आजादी के पूर्व पूर्वोत्तर की धमनी जल परिवहन तन्त्र ही हुआ करता था। इसके माध्यम से न केवल बड़ी संख्या में यात्री गन्तव्य तक पहुँचते थे, बल्कि काफी मात्रा में माल ढुलाई भी होती थी। इसी तरह सेनाओं के संचालन के लिए भी अन्तर्देशीय जल परिवहन पर ही मुख्य निर्भरता थी। वर्ष 1842 से ब्रह्मपुत्र नदी पर भाप से चलने वाले स्टीमरों की शुरुआत के बाद यहाँ आवागमन की गति और तेज हो गई थी। इसी दौरान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई तमाम तरक्की ने अन्तर्देशीय जल परिवहन तन्त्र को प्रभावित करना शुरू किया और सड़क एवं रेलों का वर्चस्व होता गया। हालाँकि यूरोप, अमेरिका, चीन तथा पड़ोसी बांग्लादेश में अभी भी काफी मात्रा में ढुलाई अन्तर्देशीय जल परिवहन तन्त्र से हो रही है। भारत के पूर्वोत्तर इलाकों में इसकी प्रचुर सम्भावनाएँ बनी हुई हैं।
बीते कुछ सालों से जल परिवहन क्षेत्र की दिशा में केन्द्र और पूर्वोत्तर की राज्य सरकारों ने ध्यान देना शुरू किया है। पूर्वोत्तर भारत में कई छोटी-बड़ी नदियाँ हैं। इनमें कई ऐसी हैं जिनका नौवहन में महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है।बीते कुछ सालों से जल परिवहन क्षेत्र की दिशा में केन्द्र और पूर्वोत्तर की राज्य सरकारों ने ध्यान देना शुरू किया है। पूर्वोत्तर भारत में कई छोटी-बड़ी नदियाँ हैं। इनमें कई ऐसी हैं जिनका नौवहन में महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है। ये नदियाँ आदिकाल से पूर्वोत्तर की जीवनरेखा रही हैं। खासतौर पर ब्रह्मपुत्र तो अंग्रेजी राज में रेलों के विकास के बाद भी महत्त्वपूर्ण परिवहन का साधन रही थी। इसी के माध्यम से प्रमुख माल की ढुलाई कोलकाता तक होती थी और बाहर से यहाँ माल पहुँचता था। अगर राज्य सरकारों की ओर से थोड़ा गम्भीर प्रयास किया जाए तो करीब 4,000 किलोमीटर मार्गों पर फेरी सेवाएँ चलाई जा सकती हैं और इसके मार्फत सड़कों और रेलों पर दबाव कम किया जा सकता है। इसके साथ ही इनमें से करीब 1,800 किलोमीटर जलमार्ग पर स्टीमर और बड़ी देसी नावें चलाई जा सकती हैं और काफी बड़ी मात्रा में माल परिवहन सम्भव हो सकता है। अभी इन व्यापक सम्भावनाओं का दोहन बहुत सीमित मात्रा में किया जा सका है।
इस क्षेत्र में राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-2 धीरे-धीरे विकास की नयी गाथा लिख रहा है। असम में ब्रह्मपुत्र नदी, सादिया और धुबरी के मध्य करीब 891 किलोमीटर के लम्बे दायरे में इस राष्ट्रीय जलमार्ग का विस्तार है। इसे 26 दिसम्बर, 1988 को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया था। इसका प्रबन्धन भारतीय अन्तर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के अधीन है जिसने बीते सालों में यहाँ आधारभूत सुविधाओं के विकास के लिए काफी कार्य किया है। इसी तरह बराक नदी को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने सम्बन्धी बिल भी संसद में पेश किया जा चुका है। इसके साथ ही विकास का एक नया दौर शुरू होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।
पूर्वोत्तर में नौवहन योग्य नदियाँ | |
नदियों का नाम | नौवहन योग्य नदियों की लम्बाई (कि.मी. में) |
ब्रह्मपुत्र | 891 |
बरीढींग | 161 |
कटकहल | 161 |
सुबनसिरी | 143 |
बराक | 140 |
दिहांग | 129 |
कोलोंग | 121 |
गंगाधर | 113 |
कोलोडीने | 112 |
पांछर | 105 |
कपाली | 103 |
अन्य नदियाँ | 2,012 |
कुल लम्बाई | 4,191 |
लेकिन राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-2 को छोड़कर बाकी जलमार्गों पर आधारभूत सुविधाओं की कमी है। इस क्षेत्र का अगर सलीके से और विकास हो जाए तथा जलमार्गों के आधुनिकीकरण के साथ सभी सुविधाओं से सम्पन्न कर दिया जाए तो काफी संख्या में रोजगार की सम्भावनाएँ भी विकसित हो सकती हैं और कुल माल और यात्री परिवहन में इसकी हिस्सेदारी बहुत अधिक बढ़ सकती है। इतना ही नहीं इसकी मदद से पूर्वोत्तर की पर्यटक सम्भावनाओं को पंख लग सकते हैं, क्योंकि क्रूज नदी के माध्यम से भी बड़ी संख्या में पर्यटकों को इस तरफ खींचा जा सकता है। पूर्वोत्तर क्षेत्र में नौवहन योग्य नदियाँ निम्न हैं :
इन आँकड़ों से साफ है कि पूर्वोत्तर भारत में जल परिवहन की असीम सम्भावनाएँ हैं। इनमें माल परिवहन, रात्रि नौका, नदी पोत विहार, जल क्रीड़ा तथा पर्यटन सम्बन्धी कार्यकलापों को और गति दी जा सकती है। बराक नदी के बारे में तो सम्भाव्यता अध्ययन भी कराए जा चुके हैं। मिजोरम में भी इसकी व्यापक सम्भावनाएँ हैं। आजादी के पहले चटगाँव और देमागिरी के बीच बहुत सुन्दर सम्पर्क कर्णफूली नदी के माध्यम से जलमार्ग द्वारा बना हुआ था। इसी तरह से ब्रह्मपुत्र की सहायक लोहित, धनश्री और सुबनसिरी, त्रिपुरा की गुमटी और हौरा, नागालैण्ड की तिजू और मिजोरम की कोलोडीन नदियाँ भी माल और यात्री यातायात में प्रमुख भूमिका निभाने की सम्भावनाएँ रखती हैं। पूर्वोत्तर परिषद के तीसरे क्षेत्रीय सम्मेलन (गुवाहाटी, 9 से 11 मार्च, 2007) में भी अन्तर्देशीय जल परिवहन पर विशेष चर्चा की गई थी और इसके कार्यकरण की समीक्षा के साथ केन्द्र सरकार से अनुरोध किया गया था कि बराक नदी को भी राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने की प्रक्रिया तेज की जाए।
जहाँ तक असम का सवाल है तो जल परिवहन के क्षेत्र में यह राज्य आज भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और केन्द्र सरकार के प्रयासों के साथ असम सरकार का अन्तर्देशीय जल परिवहन निदेशालय भी काफी कार्य कर रहा है। असम पूर्वोत्तर के राज्यों का प्रवेशद्वार होने के साथ ही इन इलाकों के लिए काफी समय से संचार और परिवहन का केन्द्र बना रहा है। असम के विभिन्न इलाके रेल सेवा से भी जुड़े हुए हैं। यहाँ ब्रह्मपुत्र और बराक दो बेहद महत्त्वपूर्ण नदियाँ हैं। इन पर केन्द्रीय अन्तर्देशीय जलमार्ग निगम और अन्तर्देशीय जलमार्ग निदेशालय वाणिज्यिक आधार पर जल परिवहन सेवाएँ संचालित करता है। इन सेवाओं का उपयोग यात्रियों और वस्तुओं के परिवहन में किया जाता है। यहाँ से कोयला, उर्वरक, वनोत्पाद, कृषि उत्पादों और मशीनरी आदि की आवाजाही होती है। यहाँ से चटगाँव बन्दरगाह (बांग्लादेश) तथा कोलकाता और हल्दिया बन्दरगाह के मध्य भी सीधा सम्पर्क है।
असम में भी कई दुर्गम इलाकों में परिवहन का सबसे उपयुक्त साधन जल यातायात ही है। असम सरकार के अन्तर्देशीय जल परिवहन निदेशालय की ओर से ब्रह्मपुत्र में 50 तथा बराक नदी पर 24 फेरी सेवाएँ चलाई जाती हैं। इससे बड़ी संख्या में यात्रियों और माल की ढुलाई की जाती है। इस समय इसके द्वारा करीब 10 हजार मीट्रिक टन माल ढुलाई की जा रही है। इन इलाकों में आपदाएँ आती रहती हैं। भू-स्खलन और अन्य आपदाओं के साथ बाढ़ आदि के दौरान खासतौर पर मानसून में काफी दिक्कतें आती हैं, ऐसे में जल परिवहन ही एकमात्र रास्ता बचता है। देश के अन्य हिस्सों से माल परिवहन का एकमात्र साधन नदियाँ ही होती है। यहीं से अनिवार्य वस्तुओं की आपूर्ति की जाती है। इसके साथ ही ईन्धन की कम खपत, पर्यावरण अनुकूलता तथा प्रभावी लागत आदि कारणों से रेल और सड़क परिवहन के मुकाबले यह क्षेत्र काफी उपयोगी बन सकता है। इस दिशा में जागरुकता भी अपेक्षित है। असम में भी कई दुर्गम इलाकों में परिवहन का सबसे उपयुक्त साधन जल यातायात ही है। असम सरकार के अन्तर्देशीय जल परिवहन निदेशालय की ओर से ब्रह्मपुत्र में 50 तथा बराक नदी पर 24 फेरी सेवाएँ चलाई जाती हैं। इससे बड़ी संख्या में यात्रियों और माल की ढुलाई की जाती है। इस समय इसके द्वारा करीब 10 हजार मीट्रिक टन माल ढुलाई की जा रही है।
बराक नदी के तट पर करीमगंज, बदरपुर और सिलचर जैसे प्रसिद्ध घाट अवस्थित हैं और ये आवागमन के बड़े केन्द्र बने हुए हैं। बराक नदी के करीमगंज-लखीपुर खण्ड के विकास के लिए तकनीकी आर्थिक व्यवहार्यता अध्ययन किया गया है। यह नदी बांग्लादेश के जलमार्गों के जरिये हल्दिया पत्तन के साथ जुड़ी हुई है।
पूरे भारत में 14,500 कि.मी. लम्बे नौका चालन योग्य जलमार्ग हैं। इनमें सर्वाधिक पूर्वोत्तर में हैं। इनमें से राष्ट्रीय जलमार्ग 1 और 2 को जोड़ने वाली बांग्लादेश की नदियों में भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल व्यवस्था के तहत नौवहन सम्भव है। राष्ट्रीय जलमार्ग-2 (सादिया से धुबरी तक) काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इसमें धुबरी-डिब्रूगढ़ के मध्य 2 मीटर तथा डिब्रूगढ़-सादिया के बीच 1.5 मीटर न्यूनतम गहराई वाला नौका चालन योग्य जलमार्ग है। साल में 330 दिन यहाँ काम जारी रहता है। इसके तहत पाण्डु में कण्टेनर वहन सुविधायुक्त स्थायी टर्मिनल की व्यवस्था है, जबकि जोगीघोपा, तेजपुर, सिलघाट, सैखोवा और सादिया में स्थायी टर्मिनल हैं। वहीं धुबरी, नियामाती, जामूगुड़ी तथा डिब्रूगढ़ में फ्लोटिंग टर्मिनल हैं।
पूरे जलमार्ग में दिन में नौका चालन सुविधा के साथ धुबरी-सिलघाट के मध्य 24 घण्टे नौका चालन की सुविधा है। इस खण्ड पर 30 जोड़ी से अधिक फेरी घाट भी हैं जहाँ से लोगों के आवागमन के साथ सामानों की ढुलाई की जाती है। इस खण्ड के विकास के लिए केन्द्र सरकार की कार्य योजना भी जल्दी ही साकार होने जा रही है। इस जलमार्ग पर सालाना कार्गो सम्भाव्यता 1.2 लाख टन आँकी गई है। इसमें सीमेण्ट, कोयला, डीएपी, डोलोमाइट, जूट, संगमरमर, मेघालय कोयला, चाय और नमक आदि का परिवहन शामिल है।
दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में गिनी जाने वाली ब्रह्मपुत्र चीन से चलकर अरुणाचल प्रदेश से भारत में प्रवेश करती है। भारत में 918 किलोमीटर का सफर करती हुई यह नदी बांग्लादेश में प्रवेश करती है। भारत में सुबनसिरी, मानस, धनसिरी, कोपिली, तिस्ता, जलढाका और तोरसा समेत 39 नदियाँ इसमें मिलती हैं। यह बाढ़ का प्रकोप भी फैलाती है। पाँच साल में एक बार तो इसका प्रकोप विकराल होता रहा है। फिर भी यह नदी जल परिवहन का मुख्य साधन है और बुरे दिनों में भी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में यही सबसे अधिक मददगार होती है।
भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय जलमार्ग-2 के विकास के लिए काफी योजनाबद्ध प्रयास किया जा रहा है और धीरे-धीरे इसका असर भी दिखने लगा है। खासतौर पर लम्बी दूरी के माल परिवहन को लेकर काफी उत्साहजनक सम्भावनाएँ दिखने लगी हैं। इस क्षेत्र में भारत सरकार ने गम्भीर पहल की है और ऐसा माना जा रहा है कि आगामी 8-10 सालों में राष्ट्रीय जलमार्ग-2 का कायापलट हो सकता है। ऐसी परिकल्पना की जा रही है कि इसके द्वारा वर्ष 2020 तक करीब 6 लाख टन सालाना माल ढोया जा सकेगा और बड़ी संख्या में रोजगार तथा पर्यटन की सम्भावनाएँ भी पैदा होंगी। कोलकाता-पांडु के बीच में कोयला, लोहा और इस्पात, पांडु से कोलकाता के बीच जिप्सम, चाय और कोयला, जोगीघोपा-कोलकाता के बीच मेघालय कोयला, तेजपुर तथा डिब्रूगढ़ से कोलकाता के बीच चाय, सिलघाट से पेट्रोलियम पदार्थ तथा नामरू से यूरिया आदि का परिवहन बड़ी मात्रा में किया जा रहा है। यही नहीं, राष्ट्रीय जलमार्ग 2 पर कई जगहों पर फेरी सेवाएँ भी काफी लोकप्रिय हो चुकी हैं। ऐसे करीब 15 खण्डों पर तो काफी व्यवस्थित तन्त्र विकसित हो चुका है।
केन्द्र सरकार की ओर से इस क्षेत्र के लिए काफी समर्थन प्रदान किया जा रहा है। पर सम्बन्धित राज्यों को अन्य जलमार्गों के विकास की दिशा में भी ठोस पहल करनी होगी। इसके तहत अन्तर्देशीय जल परिवहन को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र प्रायोजित योजना भी चल रही है जिसमें पूर्वोत्तर राज्यों के लिए शत-प्रतिशत सहायता अनुदान की व्यवस्था है। योजना आयोग ने यह योजना वर्ष 2007-08 से पूर्वोत्तर को छोड़कर अन्य राज्यों के लिए बन्द कर दी है।
पूरे भारत में 14,500 कि.मी. लम्बे नौका चालन योग्य जलमार्ग हैं। इनमें सर्वाधिक पूर्वोत्तर में हैं। इनमें से राष्ट्रीय जलमार्ग 1 और 2 को जोड़ने वाली बांग्लादेश की नदियों में भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल व्यवस्था के तहत नौवहन सम्भव है।फिर भी इस क्षेत्र में अभी कई तरह की बाधाएँ हैं। इनमें तकनीकी के साथ संस्थागत समर्थन का तत्व भी अहम है। इस क्षेत्र में अन्तर्देशीय जल परिवहन के प्राधिकार वाली कोई एक संस्था काम नहीं कर रही है। जहाँ राष्ट्रीय जलमार्ग से सम्बन्धित दायित्व केन्द्र सरकार की संख्या भारतीय अन्तर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण का है, वहीं सहायक नदियों के प्रबन्धन का दायित्व असम तथा पूर्वोत्तर की अन्य राज्य सरकारों का है। निजी क्षेत्र की ओर से जो उत्साह दिखाया जाना चाहिए था, इस क्षेत्र में दिखाया नहीं जा रहा है। इस दिशा में भी खास ध्यान देना जरूरी है। इस क्षेत्र पर अभी और गम्भीर अध्ययन अपेक्षित है और परिवहन में अहम योगदान करने वाली छोटी नावों के आधारभूत आँकड़ों को जुटाना भी जरूरी है। इसी तरह बहुत से जीर्णोद्धार के कार्य भी करने हैं और रात्रि नौवहन की व्यवस्थाओं को भी गति देनी है। साथ ही सुरक्षा तन्त्र भी एक अहम सवाल है, क्योंकि पूर्वोत्तर में उग्रवाद भी एक समस्या है।
हालाँकि जल परिवहन क्षेत्र अभी इस समस्या से बचा हुआ है पर मौन साधे बैठे रहना उचित नहीं होगा। पूर्वोत्तर के राज्यों से वाया सुन्दरबन और बांग्लादेश काफी सामानों की ढुलाई की जा सकती है। इस बाबत भारत सरकार और बांग्लादेश के बीच जल परिवहन और व्यापार के बारे में सन्धि भी हुई है। इसके तहत एक देश के जहाज निर्धारित जलमार्गों से दूसरे देश जा सकते हैं। सन्धि के तहत कोलकाता-पाण्डु-कोलकाता, कोलकाता-करीमगंज-कोलकाता, राजशाही-धुलियान-राजशाही, पाण्डु-करीमगंज-पाण्डु खण्ड पर सन्धि मार्ग शामिल हैं। अन्तर्देशीय व्यापार के लिए दोनों देशों में से प्रत्येक में चार बन्दरगाह निर्धारित किए गए हैं। भारत के बन्दरगाह हैं— हल्दिया, कोलकाता, पाण्डु और करीमगंज। लेकिन इस व्यवस्था के तहत अभी काफी कुछ विकास कार्य किया जाना है। खासतौर पर बांग्लादेश की ओर से इस मामले में सक्रिय पहल अपेक्षित है।
(लेखक भारतीय रेल परामर्शदाता में हैं और परिवहन एवं संचार सम्बन्धी मामलों के जानकार हैं)
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