पूरब के घन पश्चिम चलै


पूरब के घन पश्चिम चलै। राँड़ बतकही हँसि हँसि करै।। ऊ बरसै ऊ करै भतार। भड्डर के मन यही विचार।।

भावार्थ- यदि पूर्व दिशा के बादल पश्चिम की ओर जा रहे हों और विधवा स्त्री पर-पुरुष से हँस-हँस कर बात कर रही हो तो भड्डरी का मानना है कि बादल बिना बरसे नहीं जायेगा औऱ विधवा स्त्री दूसरा पति कर लेगी।

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Post By: tridmin
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