पुस्तक परिचय : 'बरगी की कहानी'


प्रस्तावना


मध्य प्रदेश उन राज्यों की सूची में शुमार है जिनमें बड़े बाँधों की प्रचुरता है। हालाँकि यह बड़े बाँधों पर अन्तरराष्ट्रीय आयोग, आईकोल्ड (ICOLD) की परिभाषा के मुताबिक है। आईकोल्ड के अनुसार बड़ा बाँध वह है जिसकी सबसे निचली नींव से लेकर शीर्ष तक की ऊँचाई 15 मीटर से अधिक हो । हालाँकि बीसवीं सदी के शुरु में भारत में 42 बड़े बाँध थे । 1950 तक करीब 250 और बन चुके थे । लेकिन पिछली सदी के उत्तरार्द्ध में अधिकांश बाँध बने हैं । देश के लगभग आधे बड़े बाँध दो राज्यों गुजरात और महाराष्ट्र में बने हैं जबकि तीन चौथाई बाँध तीन राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में हैं।

 

बरगी की कहानी

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क्रम

अध्याय

1

बरगी की कहानी पुस्तक की प्रस्तावना

2

बरगी बाँध की मानवीय कीमत

3

कौन तय करेगा इस बलिदान की सीमाएँ

4

सोने के दाँतों को निवाला नहीं

5

विकास के विनाश का टापू

6

काली चाय का गणित

7

हाथ कटाने को तैयार

8

कैसे कहें यह राष्ट्रीय तीर्थ है

9

बरगी के गाँवों में आइसीडीएस और मध्यान्ह भोजन - एक विश्लेषण

 

बड़े बाँधों के नुकसान और फायदों को लेकर एक बड़ी बहस चलती रही है। बड़े बाँधों के समर्थकों की दलील यह है कि इनसे कई फायदे होते हैं कि इनके बगैर खाद्यान्न पानी व उर्जा की बढ़ती जरुरतों की पूर्ति नहीं हो सकती है। इसके विरोध के स्वर भारी विस्थापन और बेहद घटिया पुनर्वास के साथ इस पूरे विकास को विनाश के साथ जोड़ने की कवायद करता है।

यह साल बड़े बाँधों की 50वीं बरसी का साल है। यह 50वाँ साल हमें समीक्षा का अवसर देता है कि हम यह तय कर सकें कि यह नवीन विकास क्या सचमुच अपने साथ विकास को लेकर आ रहा है या इस तरह के विकास के साथ विनाश के आने की खबरें ज्यादा है। इस पूरी बहस में एक सवाल यह भी है कि यह विकास हम मान भी लें तो यह किसकी कीमत पर किसका विकास है? दलित/आदिवासी या हाशिये पर खड़े लोग ही हर बार इस विकास की भेंट क्यों चढ़ें? आखिर क्यों? इस क्यों का जवाब ही तलाश रहे हैं बाँध या इस तरह की अन्य विकास परियोजनाओं के विस्थापित एवं प्रभावित लोग? एक बड़ा वर्ग भी है जो इस तरह के विकास को जायज ठहराने में कहीं कसर नहीं छोड़ता है क्योंकि इसी विकास के दम पर मिलती है उसको बिजली और पानी लेकिन उनके विषय में सोचने को उसके पास समय भी नहीं है और न ही विश्लेषण की क्षमता।

विकास संवाद ने इस बार नर्मदा नदी पर बने पहले बड़े बाँध की बहुत ही उथली परतें कुरेदने की कोशिश की। हम बगैर किसी पूर्वाग्रह के वहाँ पर गये। हमने सोचा था हमें जो दिखेगा, हम वही लिखेंगे। अब वो बाँधों के पक्ष में सकारात्मक होगा या नकारात्मक। हमने इस पूरी यात्रा में खाद्य सुरक्षा से जुड़े मामलों को ज्यादा देखने की कोशिश की। मसलन काम का अधिकार, बच्चों की खाद्य सुरक्षा के सवाल, अस्तित्व का सवाल, जीविका के सवाल आदि।

हमें जो मिला, वह आपके सामने रख रहे हैं।
बड़े बाँधों की 50वीं बरसी पर बरगी बाँध की पड़ताल करती विकास संवाद की एक संक्षिप्त रिपोर्ट।

कहाँ गये चावल गेहूँ, दलहन-तिलहन के दाने ।
कागज का रुपया रोया, सुनना पड़ता है ताने।
हर सीढ़ी छोटी पड़ती है, भाव चढ़े मनमाने।
सबरी कलई उतर गई है, सभी गये पहचाने।
कहाँ गये चावल गेहूँ, दलहन-तिलहन के दाने । - बाबा नागार्जुन


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