पुस्तक: नदियां और हम

रामेश्वर मिश्र पंकज द्वारा लिखी ‘नदियां और हम’ पुस्तिका की मूल प्रति यहां पीडीएफ के रूप में संलग्न है। पूरी किताब पढ़ने के लिए इसे डाउनलोड कर सकते हैं।

पुस्तक अंश


नदियां तीर्थ हैं। इनके तट पर विशिष्ट तीर्थ भी हैं। स्कंदपुराण के काशीखंड के अनुसार तीर्थ दो प्रकार के हैं : मानस तीर्थ और भौम तीर्थ। मानस तीर्थ कहते हैं उन तपस्वी, ज्ञानी जनों को, जिनके मन शुद्ध हैं और आचरण ऊंचा है, जो समाज की भलाई के लिए ही काम करते हैं। भौम तीर्थ चार तरह के होते हैं : अर्थ तीर्थ, काम तीर्थ, धर्म तीर्थ और मुक्ति तीर्थ।

नदियों के तट और संगम पर बने बड़े व्यापारिक केंद्र ‘अर्थ तीर्थ’ कहे जाते हैं। कलाओं और सौंदर्य के साधना केंद्रों को ‘काम तीर्थ’ कहते हैं। जहां विद्या और धर्म के केंद्र हों, वे ‘धर्म तीर्थ’ होते हैं। जहां मुख्यतः पराविद्या एवं साधना के, मोक्ष साधना के केंद्र हों, वे मोक्ष तीर्थ होते हैं। जहां चारों का संगम हो वह है महापुरी। भारतीय राजधानी को अर्थ, काम एवं धर्म तीर्थ बनना चाहिए। तभी वह सच्चे अर्थों में भारतीय राष्ट्र की राजधानी होगी।

सभी नदियों के तट पर अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष तीर्थ रहे हैं। हरिद्वार, प्रयाग, बनारस, उज्जैन, नासिक जैसे तीर्थ महापुरियां रहे हैं। इसी तरह समुद्र तटवर्ती जगन्नाथपुरी, द्वारिका, रामेश्वरम् आदि भी हैं। प्रयाग, काशी और गया को त्रिस्थली कहा गया है। प्रथम दो गंगा-तट और अंतिम फल्गु नदी के तट पर हैं। यदि सिर्फ प्रख्यात धर्मशास्त्रों तक ही दृष्टी रखें तब भी भारत के प्रायः हर क्षेत्र की मुख्य नदियां तीर्थमय हैं। काबुल और कश्मीर की सुवास्तु, गौरी, कुहू, कुभा (काबुल नदी), क्रमु (कुर्रम), वर्णु नदियां तथा कश्मीर-पंजाब की सिंधु, असिक्नी (चिनाव), परुष्णी (रावी), विपाशा (व्यास), अश्मन्वती, शतद्रु या शुतुद्रि (सतलुज), दृषद्वती, वितस्ता (झेलम) नदियां तो वैदिक साहित्य में गरिमा-मंडित हैं ही, बाद के धर्मशास्त्रों में भी सुपूजित हैं। धर्मशास्त्रों, पुराणों में बाद में चिनाव को चंद्रभागा और रावी को इरावती कहा है। इसके साथ ही अचला, देविका, आपगा, कनकवाहिनी, कालोदका, मधुमती, विशोका आदि पवित्र नदियां और अक्षवाल, अच्छोदक, चंद्रपुर, अनंतहृद, गोपाद्रि, जयवन, जयपुर (अंदरकोट), ज्येष्ठेश्वर, तक्षकनाग, नंदिकुंड, नंदिक्षेत्र, नंदीश, मार्तण्ड, नरसिंहाश्रम, नीलनाग, वितस्तात्र आदि पवित्र जलस्रोत और उनसे जुड़े तीर्थ धर्मशास्त्रों में वर्णित हैं। यों तो सम्पूर्ण कश्मीर ही उमा का देश कहा गया है और स्वर्गिक वितस्ता उनका सीमंत (सिर की मांग) है। प्रसंगवश यह भी स्मरमीय है कि कश्मीर के बारहवीं शताब्दी के महान कवि कल्हण ने अपनी अमर कृति राजतरंगिणी की तुलना दक्षिण भारतीय पवित्र सरिता गोदावरी की तीव्र धारा से की है।

ब्रह्मपुत्र, गंगा और यमुना के क्षेत्र की तो बात ही क्या की जाए। यहां कि लगभग प्रत्येक छोटी-बड़ी नदी और हजारों पवित्र स्थलों का पुराणों-धर्मशास्त्रों में गौरवगान है। स्पष्ट है कि इन नदियों और स्थलों को स्वच्छ, सुंदर और जीवंत रखने को उनके तट के वासी, देशवासी सदा सजग-सक्रिय रहते थे। लेकिन जब स्वयं लोगों का ही जीवन आक्रमणों और पराजयों से जर्जर-विखंडित और करुण हो जाए, तब उनसे नदी की रक्षा की अपेक्षा तो क्रूरता ही होगी। तब भी इस दौर में भी वे जितना करते रहे हैं, वह आश्चर्यप्रद ही है।

गंगा और यमुना तथा लौहित्य (ब्रह्मपुत्र) के प्रति पुराणों एवं महाभारत में गहरा श्रद्धा-भाव है। महान कवियों ने इनकी महिमा कही है। गंगा-यमुना के संगम का वेद-पुराण, ब्राह्मण-ग्रंथ, रामायण, महाभारत और समस्त धर्मशास्त्रों में बखान है। गंगा और यमुना की सभी प्रमुख सहायक उपसहायक नदियों- सरयू यानी घाघरा, गोमती, सदानीरा इक्षुमती, कोसी, गंडकी, चर्मण्वती (चम्बल), काली सिंधु, महान शोणभद्र, तमसा, वेत्रवती (बेतवा), दशार्णा (बेतवा की सहायक धसान नदी) आदि की पवित्रता का जो गहरा बोध इस क्षेत्र के लोगों में रहा है, वहीं धर्मशास्त्रों में प्रतिसंवेदित है। असम, उत्तराखंड, हरियाणा, उत्तर-प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल का क्षेत्र इस ब्रह्मपुत्र-गंगा-यमुना क्षेत्र में आता है। इसके साथ ही राजस्थान की पर्णाशा (बनास), विंध्य क्षेत्र की पार्वती, सुरसा, माही, बिहार की पुनपुन, फल्गु, कनकंदा, उड़ीसा की सुवर्णरेखा जैसी नदियां भी धर्मशास्त्रों में परम पवित्र कही गई हैं। सरयू नदी का तो इतना महत्व रहा है कि उसके जल को एक विशेष नाम ही दिया गया-‘सारव’। सरयू तट पर अनेक बौद्ध तीर्थ भी है। गंडकी के उद्गमस्थल शालिग्राम की महत्ता भी सुविदित है। यहां के शालिग्राम पत्थर, विष्णु की मूर्ति कहे गए हैं।

मानसरोवर, गंगोत्री, यमनोत्री, बदरिकाश्रम, ब्रह्मकपाल, केदारधाम, देवप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, विष्णुप्रयाग, ऋषिकेश, हरिद्वार, साकेत (अयोध्या), कुरुक्षेत्र, श्रृंगवेरपुर, मथुरा-वृन्दावन-राजापुर, सूकरतीर्थ, नैमिष, प्रयाग, काशी आदि धर्मतीर्थ एवं मोक्षतीर्थ तथा देहरादून, प्रयागज्योतिषपुर, पानीपत, इंद्रप्रस्थ, आगरा, कानपुर, इलाहाबाद (प्रयाग), पाटलिपुत्र एवं बनारस (काशी), हस्तिनापुर आदि कामतीर्थ एवं अर्थतीर्थ इन नदियों के तट पर हैं। अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्ष की सतत साधना देशवासी इन क्षेत्रों में करते रहे हैं।

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