पुराना मनाली

देवदार के पेड़ अभी जागे नहीं
छतें चमकती हैं व्यास के पार
बर्फीली चोटियों की तरह

जुट गए मजदूर सुबह ही
काम पर पत्थरों को तराशने
नदी की तरह,
बादल अभी पीछे ही है
चोटियों से फिसलती है ओस
तंबू पर वनस्पतियों पर पहली रोशनी-सी गिरती
झरती देवदार की शाखाओं से

अपने बारे में देखा था कोई सपना
रात में जो याद नहीं अब
पर मैंने देखा था सपना,
नदी की कई धाराएं हैं
और किनारे भी।

2.6.1989, पुराना मनाली

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