सितंबर के शुरुआत में जब जम्मू कश्मीर में बारिश शुरु हुई तो किसी ने यह अंदाजा भी नहीं लगाया होगा कि चंद दिनों में ही यह पूरा राज्य उस स्थिति का गवाह बनेगा जो पिछले 6 दशकों में किसी भी पीढ़ी ने नहीं देखा। जम्मू कश्मीर में आई बाढ़ अपने साथ तबाही और बर्बादी का वह मजंर लेकर आई है जिसके निशान शायद दशकों तक न तो जमीन से मिटेंगे और न तो लोगों के दिलों से। इस बाढ़ की तीव्रता इस कदर थी कि बाढ़ के शुरुआती 36 घंटों में ही मृतकों की संख्या 12 हो गई थी। 4 सितंबर की सुबह हुए भू-स्खलन की वजह से जम्मू-श्रीनगर और बटोट-डोडा राष्ट्रीय राजमार्ग बंद हो गए। उसके बाद से तो जैसे तबाही का सिलसिला सा शुरु हो गया।
समूचे जम्मू कश्मीर क्षेत्र, फिर वह चाहे घाटी हो, लद्दाख का ठंडा रेगिस्तान हो या फिर जम्मू की पीर-पंजाल श्रृंख्ला, को बाढ़ ने बुरी तरह से तोड़ कर रख दिया। जान-माल के नुकसान के साथ-साथ राज्य के व्यापार को भी बहुत बड़ा झटका लगा है। जम्मू कश्मीर की इस बाढ़ से भले ही भौतिक रूप से केवल वहां के स्थानीय लोग ही प्रभवित हुए हैं किंतु व्यापार को हुए नुकसान ने राज्य से बाहर भी लोगों पर असर डाला हैै। श्रीनगर में रुके कृत्रिम आभूषणों के व्यापार ने दिल्ली के किनारी बजार में बैठे एक छोटे से कारीगर का धंधा बुरी तरह से चौपट कर दिया।
इस बाढ़ की विभिषका से प्रभावित सभी जगहों में जम्मू के पुंछ जिले का नम्बर सबसे आगे है। भारत पाकिस्तान की नियंत्रण रेखा पर स्थित जिला पुंछ पहले ही विकास और बुनिायदी सुविधाअों के मामले में पिछड़ा हुआ है। सरकारी योजनाओं तक पहुंच न बन पाने और उपर से सीमा पर समय-समय होने वाली गोलीबारी की वजह से बर्बाद हुए पुंछ निवासियों ने इस बार जो त्रासदी देखी है वह शायद पुश्तों तक याद रखी जाएगी। पुंछ की हालत तब सबसे ज्यादा खराब हुई जब शहर को अन्य जगहों से जोड़ने वाली पुंछ की जीवन रेखा, शेरे-ए-कश्मीर पुल, दोनों तरफ के जोड़ों से टूट कर बह गया। इसके बाद पुंछ का अन्य जगहों से संपर्क पूरी तरह से खत्म हो गया।
बाढ़ की वजह से पुंछ में अब 27 मौते हो चुकी हैं, 21 मृतकों के पार्थिव शरीर प्राप्त किए गए हैं और 65 घायल हैं। बाढ़ ने लगभग 604 पक्के घरों को पूरी तरह से तोड़ दिया जबकि 584 घरों को आंशिक रूप से क्षति पहुंची हैं। वहीं 1,975 कच्चे घर पूरी तरह से जबकि 4,705 कच्चे घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए। अपने घरों से बेघर हुए पुंछ निवासियों को शहर में बने अलग-अलग राहत शिविरों में रखा गया। शहर में बने 6 अलग-अलग कैम्पों गुज्जर एवं बकरवाल होस्टल, ईदगाह, जिया-उल-उलूम मदरसा, दशनामी अखाड़ा तथा ब्लूमिंग एकेडमी, में लगभग 1,371 बाढ़ पीड़ितों को शरण दी गई। लोगों ने अपनी आंखों के आगे अपनी पूरी दुनिया उजड़ते हुए देखा। बरसों की मेहनत से बनाए गए घर पानी में पत्तों की तरह बह रहे थे और देखने वालों की आंखों से आंसू भी नहीं आ पा रहे थे।
इस बाढ़ ने न सिर्फ वहां के निवासियों का जीवन तबाह किया है बल्कि क्षेत्र को संरचनागत तौर पर भी तहस-नहस कर दिया है। जल आपूर्ती से लेकर बिजली, दूरसंचार और सड़क संपर्क सब कुछ तबाह और बर्बाद हो गया है। पुंछ जिले के जन स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग (पीएचई) के अनुसार जिले में चल रही 90 जल आपूर्ती योजनाएं बाधित हो गई हैं। पुरानी पुंछ, मेज़ फार्म, कलई और चंडक मे चल रहे 4 ट्यूब वैल क्षतिग्रस्त हो गए हैं। इसी विभाग के अनुसार बिजली के 21 सब स्टेशन क्षतिग्रस्त हो गए थे जिनमें से अभी तक 14 सब स्टेशनों की बहाली का काम पूरा कर लिया गया है। मदाना-दराबा क्षेत्र में बिजली के कम से कम 15 खंबे क्षतिग्रस्त हुए हैं जिनमें से 12 पूरी तरह से टूट चुके हैं और 3 बह गए हैं। 1168 हाई टेंशन पुल क्षतिग्रस्त हो गए जबकि 725 टेढ़े हो गए या उखड़ गए।
शेरे-ए-कश्मीर पुल के अलावा दो अन्य महत्वपूर्ण पुल डुंडक और पमरोट भी प्रभावित हुए हैं। शेरे-ए-कश्मीर पुल के लिए जिला प्रशासन ने पूर्ण मरम्मत से पूर्व धातु की सीढ़ी लगवाकर संपर्क को पुनः कायम करने का प्रयास किया है। लोक निर्माण विभाग के आंकड़ों के अनुसार 121 सड़कें प्रभावित हुई हैं जिनमें से 95 सड़कों की मरम्मत का काम पूरा कर लिया गया है। वहीं सुरनकोट तथा मंडी क्षेत्र में 18 पैदल-पार पुल क्षतिग्रस्त हो गए हैं।
पहले से ही बदहाल शिक्षा व्यवस्था के लिए जाना जाने वाले पुंछ में विद्यालयों पर भी बाढ़ का कहर बहुत बुरी तरह से बरपा है। समूचे जिले में लगभग 198 विद्यालय प्रभावित हुए हैं। इन प्रभावित विद्यालयों में 46 को फिर से बहाल किया गया है। 11 विद्यालयों को एक साथ जोड़कर चलाया जा रहा है जबिक 33 इमारतों को किराए पर लेकर उनमें विद्यालय चलाया जा रहा है। कुछ स्कूलों को चलाने के लिए प्रशान की तरफ से 10 टेंट दिए गए हैं लेकिन अभी भी 27 और टेंटों की जरूरत है ताकि शिक्षा के काम को अस्थाई रूप से सुचारू रूप से चलाय जा सके।
संरचनागत नुकसानों के इधर एक जो बड़ा नुकसान राज्य को हुआ है वह है आंतरिक सुरक्षा को नुकसान। भारत को पाकिस्तान से अलग करती 40 किमी लंबी त्रि-स्तरीय बाढ़ पूरी तरह से ढह गई। इस बाढ़ को ठीक करने के लिए भारतीय सेना के जवान तुरंत लग गए। पूरे बाढ़ की अवधि के दौरान सीमा पर बहुत से मिलिटेंट्स मारे गए जो बाढ़ की स्थिति का फायदा उठाकर घुसपैठ की कोशिश कर रहे थे। अभी भी संभावना बनी हुई है कि यदि मरम्मत का काम जल्द पूरा न हो पाया तो और भी घुसपैठ होने की संभावना है।
हालांकि यह तबाही बहुत भयंकर है फिर भी प्रशासनिक विभागों, सामाजिक संस्थाओं तथा देश भर से आए स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं द्वारा मिलकर राहत के कार्य को अंजाम दिया जा रहा है। पुंछ शहर से 10 किमी दूर खनेतर में रह रहे सामाजिक कार्यकर्ता अनीस-उल-हक ने अपने क्षेत्र में आयुर्वेदिक दवा विभाग के साथ मिलकर एक मेडिकल कैम्प का आयोजन किया। अनीस का मानना है कि इस मेडिकल कैम्प का उद्देश्य बाढ़ की वजह से फैल रहे संक्रमण तथा विभिन्न जल-जनित बिमारियों से लोगों की रक्षा के लिए उन्हें दवाएं उपलब्ध करवाना है।
प्रशासन द्वारा राहत कैम्पों में राशन बांटा जा रहा है। पुंछ प्रशासन ने अब तक सभी कैम्पों में लगभग 60.95 क्विंटल चावल, 5.54 क्विंटल चीनी और 6.20 क्विंटल आटा वितरित किया है जिसके द्वारा इन कैम्पों में रह रहे लोगों के खाने-पीने का इतंजाम किया जा रहा है। लोगों के रहने तथा सोने के लिए 419 टेंट, 1,243 कंबल और 933 गद्दे बांटे गए हैं। इसके अलावा बच्चों की पढ़ाई को हुए नुकसान की भरपाई जल्द से जल्द किए जाने के प्रयास में विभिन्न कैम्पों में एल.के.जी से आठवीं तक तथा 11 वीं और 12वीं की किताबें भी बांटी जा रही हैं।
इन सभी राहत कार्यों के बावजूद बाढ़ द्वारा हुए नुकसान की भरपाई जल्द होती नजर नहीं आ रही है। केंद्र तथा राज्य सरकार द्वारा दिए गए अनुदान राज्य के पुनर्वास और पुनर्निमाण के लिए पूरे पड़ते नज़र नहीं आ रहे हैं। इस काम में सबसे बड़ी चुनौती है अगले मोड़ पर दिखता ठंड का मौसम। दो महीने में सर्दियां शुरु हो जाएंगी और लोगों के सभी गर्म कपड़े बाढ़ में बह गए हैं। ऐसे में हर व्यक्ति को इतनी मात्रा में गर्म कपड़े दिया जाना इस समय प्रशासन के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है। न सिर्फ लोगों के लिए बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से भी आने वाला जाड़ा खतरे वाला सिद्ध हो रहा है। सर्दियां आते ही इस इलाके में बर्फबारी शुरु हो जाएगी जिससे की नियंत्रण रेखा पर लगी बाढ़ की मरम्मत का काम अवरुद्ध हो जाएगा और जो आगे मिलिटेंट्स के घुसपैठ का कारण बन सकता है। इसलिए सेना के पास इस समय सबसे बड़ी चुनौती बर्फबारी शुरु होने से पहले बाढ़ को फिर से खड़ा करना है।
इसके अलावा एक अन्य चुनौती है लोगों का मानसिक स्वास्थ्य। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह की किसी भी त्रासदी के बाद लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है। त्रासदी के उपरांत होने वाले तनाव (पोस्ट ट्राॅमेटिक स्ट्रैस डिसआॅर्डर) की वजह से मनोरोगियों के बढ़ने की संभावना बहुत ज्यादा होती है। राज्य में विभिन्न तनावों की वजह से पहले ही मनोरोगियों की संख्या में मात्रात्मक वृद्धि हुई है। एक शोध के अनुसार 1990 तक जहां इस राज्य में 2000-3000 तक मनोरोगी थे वहीं मौजूदा समय में मनोरोगियों की संख्या बढ़कर 1,20,000 हो गई है। ऐसे में बाढ़ के बाद लोगों का मानसिक स्वास्थ्य अब एक चिंता का विषय बन सकता है।
मौजूदा समय में शेष भारत में जम्मू कश्मीर में आई बाढ़ अब एक पुरानी बात सी होती नज़र आ रही है। लोगों तथा मीडिया दोनों के दिमागों से अब बाढ़ हटने लगी है। परंतु राज्य के हालात कुछ और ही कह रहे हैं। पानी भले ही अब धीरे-धीरे करके उतर रहा हो लेकिन इस पानी से तबाह होती जिंदगियां दूर-दूर तक सामान्य ढर्रे पर आती नजर नहीं आ रही हैं। मलबों के नीचे दबे माल-मवेशी अब सड़ रहे हैं जिससे तरह-तरह की बिमारियां पैदा होने का अंदेशा है। धीरे-धीरे करके नजदीक सरकती सर्दियां अपने साथ और जटिलताएं लेकर आ रही हैं। ऐसे जम्मू कश्मीर को शेष भारत के सहयोग और प्रेम की आवश्यकता है। और शेष भारत का इस समय दायित्व बनता है कि वह जम्मू कश्मीर की इस त्रासदी को एक अन्य सामान्य घटना मानकर भूलने के बजाए उनके पुनर्निमाण में उनका सहयोग करें।
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