1. बिना जन सुनवाई के जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण कार्य आरम्भ।
2. निर्माण कर रही कम्पनीयों की कालोनियाँ तक स्थापित।
3. अब तक सिर्फ चार लोगों को निर्माण कम्पनी ने रोजगार के नाम पर बनाया पेटी ठेकेदार।
जलविद्युत परियोजनाओं को लेकर राज्य में ना तो विरोध थम रहा है और ना ही सरकार जल विद्युत निर्माण को लेकर पुनर्विचार कर रही है। हालात इस कदर हो चुके हैं कि जलविद्युत परियोजना पर बिना जन सुनवाई के निर्माण कार्य आरम्भ कर दिया जाता है तो उसका विरोध होना भी स्वाभाविक है। ऐसा ही मामला मोरी-हनोल 63 मेगावाट जलविद्युत परियोजना का प्रकाश में आया है।
ज्ञात हो कि यमुना और टौंस नदी पर लगभग दो दर्जन से भी अधिक बाँध बन रहे हैं जो भविष्य में लगभग दो हजार मेगावाट विद्युत का उत्पादन करेंगे। इनमें से हनोल-त्यूणी 60 मेगावाट निर्माणाधीन है जबकि जखोल-सांकरी 35 मेगावाट, मोरी-हनोल 63 मेगावाट की परियोजनाओं की निर्माण बाबत टेस्टिंग चल रही है और इस परियोजना के लिये 4.505 हे. कृषि भूमि भी अधिग्रहित की गई है।
ग्रामीणों की यही मात्र कृषि योग्य भूमि थी जो अब बाँध निर्माण की भेंट चढ़ चुकी है। सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत माँगी गई सूचना से मालूम हुआ कि परियोजनाओं की जन सुनवाई तो अब तक नहीं हो पाई परन्तु टेस्टिंग से लेकर के निर्माण कम्पनियों की कालोनियाँ तक टौंस घाटी में जरूर स्थापित हो रही है।
मोरी स्थित से 10 किमी के फासले पर हनोल-त्यूणी 60 मेगावाट की परियोजना पर निर्माण कार्य प्रगति पर है। इस जलविद्युत परियोजना से उत्तरकाशी के कुकरेड़ा, भंकवाड़, बेगल तथा देहरादून के चातरा व कूणा गाँव बाँध प्रभावित हैं। जहाँ इन गाँवों की कृषि भूमि है वहाँ परियोजना के लिये डम्पिंग यार्ड बनाया गया है।
ग्रामीणों को अब तक भूमि का कोई मुआवजा भी नहीं मिल पाया है और ना ही पुनर्वास की कोई कार्यवाही हो पाई है। रोजगार के नाम पर निर्माण कम्पनी ने अपना पल्ला छुड़ाते हुए इस परियोजना में स्थानीय चार लोगों को अस्थायी पेटी ठेकेदार के रूप में तैनात जरूर किया गया। बताया गया कि अकेले हनोल-त्यूणी जलविद्युत परियोजना के लिये 4.426 हे. कृषि भूमि एवं 34.858 हे. वन भूमि अधिग्रहित की गई है।
यह कृषि भूमि बैनोल, मौताड़, सल्ला, मोरा, मांदल, ओगमेर, विजोती, बिन्द्री, शकरियान गाँव की सिंचित भूमि है। बाँध निर्माण के बाद ये गाँव एकदम भूमिहीन हो जाएँगे और मुआवजा की सूक्ष्म राशि भी एक समय बाद समाप्त हो जाएगी। यह स्थिति इसलिये आएगी कि बिना लोगों के मन्तव्य को जाने बिना परियोजना आरम्भ की जा रही है।
ऐसा कहना है बैनोल गाँव के नरेन्द्र सिंह रावत का। वे कहते हैं कि जब 2007 में पर्यावरण की स्वीकृति बाबत लोगों के मन्तव्य को जानने के लिये हनोल में एक लोक सुनवाई हुई थी तो तत्काल उन्हें परियोजना से जुड़े सरकारी एवं निर्माण करने वाली कम्पनी के अधिकारियों ने बुरी तरह फटकार लगाई है। उधर लोक सुनवाई की कार्यवाही को सफल करार दिया गया।
उनकी माँग थी कि परियोजना की सम्पूर्ण जानकारी से प्रभावित ग्रामीणों को अवगत करवाया जाये, प्रभावितों को विद्युत परियोजना से होने वाले लाभ का हिस्सेदार बनाया जाये। वे यह भी जानना चाह रहे थे कि पुर्नवास व विस्थापन को लेकर सरकार की नीति क्या है? इससे सम्बन्धित सूचना उन्हें उक्त लोक सुनवाई में नही दी गई। उनका यहाँ तक आरोप है कि लोक सुनवाई की सूचना अंग्रेजी के ऐसे दैनिक अखबार में छपवाई गई जो अखबार पहाड़ में पहुँचता ही नहीं है।
गौरतलब हो कि जब पर्यावरण स्वीकृति के लिये लोगों के मन्तव्य को दरकिनार किया जा रहा है तो परियोजना की जन सुनवाई के लिये लोगों की उपस्थिति महज कागजी खानापूर्ति ही साबित हो रही है क्योंकि हनोल-त्यूणी व मोरी-हनोल जलविद्युत परियोजना पर जनसुनवाई से पहले ही निर्माण कार्य आरम्भ कर दिया है। ग्रामीण बार-बार यह माँग कर रहे हैं कि उनके आवासीय भवन, कृषि भूमि आदि के लिये सरकार के पास कोई नीति नहीं है और ना ही उनकी सुरक्षा की कोई गारंटी है। लोगों का कहना है कि निर्माण क्षेत्र में कम्पनी का आतंक बदस्तूर जारी है।
उधर ऊर्जा विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक मोरी-हनोल जलविद्युत परियोजना के लिये जो कृषि भूमि अधिग्रहण की गई है वह अधिकांश अनुसूचित जनजाति की है जिन्हें उचित मुआवजा दिया जा रहा है तथा निर्माण कम्पनीयाँ प्रभावित क्षेत्र में विकास कार्यों को प्रमुखता से क्रियान्वित करेगी। जबकि बाँध निर्माण कर रही कृष्णा निटवेयर टेक्नोलॉजी कम्पनी के पवन शर्मा ने बताया कि अब तक मोरी-हनोल जलविद्युत परियोजना की तकनीकी स्वीकृति नहीं मिली है। जैसे कम्पनी को तकनीकी स्वीकृति मिल जाएगी उसके पश्चात वे गाँव में कुछ जनहित के कार्य कर पाएँगे। कहा कि परियोजना निर्माण के लिये ना तो पर्यावरण की स्वीकृति मिल पाई है और ना ही अब तक परियोजना बाबत जन सुनवाई हो पाई है।
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