पतित पावनी गंगा और काइली का ‘कचराघर’

आस्ट्रेलिया के 2डे एफएम रेडियो की एंकर काइली सैंडिलैंड्स के पिछले दिनों भारत की राष्ट्रीय नदी गंगा को कचराघर कहने से हंगामा मचा गया। मामले की गंभीरतर भांपते हुए सिडनी शहर में स्थित 2डे एफएम रेडियो स्टेशन और काइली ने गंगा को कचराघर कहने के मामले में अपनी गलती स्वीकार करते हुए माफी मांग ली।

आस्ट्रेलिया के 2डे एफएम रेडियो की एंकर काइली सैंडिलैंड्स के पिछले दिनों भारत की राष्ट्रीय नदी गंगा को कचराघर कहने से हंगामा मचा गया। मामले की गंभीरतर भांपते हुए सिडनी शहर में स्थित 2डे एफएम रेडियो स्टेशन और काइली ने गंगा को कचराघर कहने के मामले में अपनी गलती स्वीकार करते हुए माफी मांग ली। जन्म से मरण तक अनेक रूप् में गंगा भारतीय जनमानस से इस तरह जुड़ी हैं कि आदरभाव से उन्हें मैया कहा जाता है।

काइली ने पतित पावनी गंगा को कचराघर कहकर लाखों-करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। ये कड़वी सच्चाई है कि अपनी मूर्तिवत् स्थिति और धार्मिक धरोहर के बावजूद आज गंगा प्रदूशण-संबंधी भारी दबावों का सामना कर रही है और इसकी जैव-विविधता तथा पर्यावरण-संबंधी व्यावहारिकता (सस्टेनबिलिटी) को इनसे पैदा होने वाले खतरों का सामना करना पड़ रहा है। लगातार बढ़ती हुई आबादी, अनियोजित शहरीकरण और उद्योगीकरण की वजह से नदी के जल की गुणवत्ता पर असर पड़ा है। आज गंगा के जल में सीवेज के साथ-साथ सॉलिड वेस्ट और औद्योगिक वेस्ट की भरमार है, जो इसके किनारे रहने वाले लोगों तथा यहां होने वाली आर्थिक गतिविधियों की देन है। आज तो मानवीय दखलंदाजी इतनी बढ़ गई है कि गौमुख में पर्यटकों द्वारा छोड़ा गया प्लास्टिक अटका पड़ा रहता है।

गौरतलब है कि दुनिया भर में बसे हिन्दुओं के लिए गंगा मात्र एक नदी नहीं बल्कि जीवनधारा है। हिन्दुओं के बहुत से पवित्र तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे बसे हुये हैं जिनमें वाराणसी, हरिद्वार सबसे प्रमुख हैं। गंगा में डुबकी लगाने का मतलब पाप से छुटाकारा समझा जाता है। गंगा का उदगम हिमालय से भागीरथी के रुप मे गंगोत्री हिमनद से उत्तरांचल में होता है। इसके विशाल बेसिन में देश के एक-चौथाई जल-संसाधन मौजूद हैं। हिमालय क्षेत्र में स्थित अपने हिमानी-स्रोत से बंगाल की खाड़ी में एक विशाल पंखे जैसे आकार के डेल्टा तक 2507 किमी. की यात्रा के दौरान गंगा की मुख्यधारा भारत के पांच राज्यों से होकर गुजरती है और अपने हरे-भरे मैदानी इलाकों को उपजाऊ बनाने के साथ-साथ किनारों पर बसे कस्बों व शहरों में जीवन का संचार करती है। गंगा जिन क्षेत्रों से गुजरती है उनमें 50 करोड़ से ज्यादा भारतीय रहते हैं। जीवन के लिए भोजन हेतु सिंचाई के मामले गंगा नदी घाटी देश की कुल सिंचित क्षेत्र का 29.5 प्रतिशत है।

गंगा तो अपने उद्गम स्थल से ही प्रदूषित होती हुई अपने किनारे बसे लगभग 115 नगरों की गन्दगी को लेकर चलती है। ये सब गंगाजी को प्रदूषित करने में अपना पूरा योगदान देते हैं । इसे समझने के लिए केवल कानपुर और वाराणसी का मॉडल ही पर्याप्त होगा। गंगा के प्रदूषण के लिए बढ़ती आबादी, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण तथा कृषि के कारण ज्यादा जिम्मेदार है। बढ़ती आबादी और शहरीकरण से गंगा नदी घाटी पर दबाब बढ़ गया जिसके कारण नदी का प्रदूषण स्तर बढ़ता गया और गंगाजल स्नान योग्य तो छोड़िये आचमन के योग्य भी नहीं रहा। वैज्ञानिको के अनुसार जो बैक्टीरिया 500 फैकल प्रति 100 मिली होना चाहिए वह 120 गुना ज्यादा 60,000 फैकल प्रति 100 मिली पाया गया, जिससे गंगा स्नान योग्य भी नहीं रह गई। उत्तर प्रदेश के अन्दर कन्नौज से लेकर पवित्र शहर वाराणसी तक लगभग 450 किमी के बीच गंगा सर्वाधिक प्रदूषित हैं इस क्षेत्र की फैक्ट्रिया इस नदीं को प्रदूषित कर रही है। कानपुर के अधिकतर चर्मोद्योग का प्रदूषण गंगा में जाता है। वाराणसी में जहाँ दशाश्वमेध घाट पर अधजली लाशें गंगाजी में बहती दिखाई देती हैं, वहां तो किसी भी घाट का पानी पीने योग्य नहीं है।
 

एक वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार गंगा में 75 प्रति सीवरेज तथा 25 प्रतिशत औद्योगिक प्रदूषण पाया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार गंगा में लगभग 15 करोड़ लीटर गंदा पानी प्रतिदिन गिरता है किन्तु जल-मल शोधन संयन्त्रों के द्वारा दस करोड़ लीटर पानी ही शोधित हो पाता है। इससे साफ है कि नदी का जल प्रदूषण बरकरार है। धार्मिक विश्वास के अन्तर्गत हरिद्वार तथा वाराणसी (काशी) में प्रतिवर्ष करीब 50 हजार शवों को जलाया जाता है। इन शवों को जलाने में 20 हजार टन लकड़ी और उससे बनने वाली राख करीब दो हजार टन होती है। गंगा किनारे स्थित केमिकल कारखानों से बड़ी मात्रा में अनेक प्रकार के रसायन सीधे गंगा में बहा दिये जाते हैं, फलस्वरूप गंगा में केमिकल प्रदूषण का स्तर लगातर बढ़ रहा है।

एक वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार गंगा में 75 प्रति सीवरेज तथा 25 प्रतिशत औद्योगिक प्रदूषण पाया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार गंगा में लगभग 15 करोड़ लीटर गंदा पानी प्रतिदिन गिरता है किन्तु जल-मल शोधन संयन्त्रों के द्वारा दस करोड़ लीटर पानी ही शोधित हो पाता है। इससे साफ है कि नदी का जल प्रदूषण बरकरार है। धार्मिक विश्वास के अन्तर्गत हरिद्वार तथा वाराणसी (काशी) में प्रतिवर्ष करीब 50 हजार शवों को जलाया जाता है। इन शवों को जलाने में 20 हजार टन लकड़ी और उससे बनने वाली राख करीब दो हजार टन होती है। गंगा किनारे स्थित केमिकल कारखानों से बड़ी मात्रा में अनेक प्रकार के रसायन सीधे गंगा में बहा दिये जाते हैं, फलस्वरूप गंगा में केमिकल प्रदूषण का स्तर लगातर बढ़ रहा है। इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार तत्व अपने द्वारा फैलाये गये प्रदूषण से बेखबर भी नहीं है। हॉ उनको जानकर भी अनजान रहने वाली शासन प्रणाली गंगा की इस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है।

देश में नदी प्रदूषण की समस्या कोई नयी नहीं है। प्रदूषण-संबंधी भारी दबावों से निपटने के लिए जरूरी साधनों की कमी से इंकार नहीं किया जा सकता है। समय-समय पर गंगा को बचाने के लिए सामाजिक संगठनों ने अनेक बार रुचि दिखाई है। गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित करके गंगा नदी प्राधिकरण बनाने का फैसला स्वागत योग्य है, परन्तु क्या इसकी कोई गारन्टी कि इसका वैसा नहीं होगा, जैसा 1985 में शुरू की गई गंगा योजना का हुआ। 1985 में शुरू की गई गंगा कार्य योजना में अब तक दो हजार करोड़ रुपये और 26 साल बीत चुके हैं, परन्तु गंगा नदी वैसे की वैसे ही मैली बनी हुई है। गौरतलब है कि गंगा की सफाई के लिए विश्व बैंक ने हाल ही में एक अरब डॉलर का ऋण मंजूर किया है। भारत सरकार ने गंगा की सफाई करने और इसके संरक्षण के लिए वर्ष 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण नेशनल गंगा रिवर बेसिन ऑथोरिटी (एनजीआरबीए) की स्थापना के साथ की है। एनजीआरबीए को यह सुनिश्चित करने के लिए एक बहु-क्षेत्रीय कार्यक्रम तैयार करने का काम सौंपा गया है कि वर्ष 2020 के बाद नगरपालिका या उद्योगों का अनुपचारित अपशिष्ट जल (वेस्टवाटर गंगा) में नहीं बहने दिया जाएगा। गंगा के निर्मल करने के प्रयासो के तहत उत्तराखण्ड की सरकार ने भी 2010 में ‘स्पर्श गंगा’ अभियान की शुरूआत की है।काइली उस आस्ट्रेलिया की रहने वाली है, जहां दुनिया की अत्यधिक प्रदूषित नदियों में शुमार ‘हडसन’ बहती है। हडसन के बेहद प्रदूषित पानी से दूर रहने के लए आस्ट्रेलिया की सरकार ने नदी के दोनों किनारों पर बोर्ड लगाकर यह चेतावनी लिखी है कि ‘पानी जहरीला है, इसे न छुएं।’ शायद इसलिए गंगा में गिरते सीवेज और गंदगी को बहते देखकर काइली को जहरीली हडसन की याद आयी होगी, और उसने इसलिए गंगा को कचराघर कह दिया होगा। पतित पावनी गंगा को कचराघर कहने पर काइली को भावनात्मक तौर पर तो हम गलत ठहरा सकते है, लेकिन तथ्यात्मक स्तर पर नहीं।
 

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