पश्चिम बंगाल : एक जलजला, मौत और खौफ का सिलसिला

देश के अन्य भागों में भूकम्प के साथ बंगाल में भी भूकम्प के झटके लगे। पश्चिम बंगाल अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण भूकम्प के लिये बेहद खतरनाक है। इसका उत्तरी भाग हिमालय से मिलता है और दक्षिणी भाग बंगाल की खाड़ी से। चिकनी मिट्टी से बनी यहाँ की जमीन पर सुंदर वन का सक्रिय डेल्टा है। 24 अप्रैल और 25 अप्रैल को भूकम्प से उत्तर बंगाल में अधिक तबाही हुई है। रिक्टर पैमाने पर 3.7 तीव्रता के भूकम्प के झटके शाम 6.09 बजे दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, उत्तर दिनाजपुर एवं मालदा जिलों में महसूस किए गए। भूकम्प की वजह से सिलीगुड़ी व आस-पास के इलाकों में मरने वालों की संख्या बढ़ कर पाँच हो गयी है। भूकम्प में भी भगदड़ की वजह से कई लोग घायल हो गये है।

18 सितम्बर, 2011 को इसी प्रकार से जोरदार भूकम्प आने के तीन साल बाद लगातार दो दिनों से सिलीगुड़ी तथा उत्तर बंगाल लगातार भूकम्प से हिल रहा है। वर्ष 2011 के 18 सितम्बर को भी कुछ इसी तरह के भूकम्प का सामना सिलीगुड़ी के लोगों को करना पड़ा था। उस समय सिलीगुड़ी में कम बल्कि सिक्किम में भारी तबाही हुई थी। भूकम्प के बाद उसके व्यापक प्रभाव से निबटने के लिए मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी ने भूकम्प आपदा प्रबन्धन समूह गठन करने की घोषणा की है।

भूकम्प के बाद उत्तर बंगाल के दौरे पर गई मुख्यमन्त्री ने कोस्टल सुरक्षा के पुलिस महानिदेशक की अध्यक्षता में एक आपदा प्रबन्धन समूह का गठन किया है। साथ ही भूकम्प के बाद नुकसान का आकलन के लिए उत्तर बंगाल के सभी पुलों की जाँच करने के लिए सरकार पीडब्ल्यूडी और सिंचाई विभाग को निर्देश दिए हैं। इस समूह में पुलिस व मेडिकल अधिकारी सदस्य के रूप में होंगे। मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी ने भूकम्प से राज्य में जान-माल के हुए नुकसान का विस्तृत आकलन के बाद वित्तीय सहायता के लिए केन्द्र सरकार से मामला उठाने का अश्वासन दिया है।

25 अप्रैल को बंगाल में आये भूकम्प के बाद यहाँ वैज्ञानिकों में बहस छिड़ गयी है कि हिमालयी क्षेत्र में भविष्य में भूकम्प के क्या असर पड़ेंगे। कुछ भू-भौतिकविद का मानना है कि जो हो गया वह हो गया और टेक्टोनिक ऊर्जा खत्म हो गयी अब रिक्टर पैमाने पर 8 जैसा कम्पन कई दशकों तक नहीं आने वाला। लेकिन भूवैज्ञानिकों का एक बड़ा समूह मानता है कि भारतीय परत (इंडियन क्रस्ट) की लगभग 150 किलोमीटर लम्बी पट्टी हिमालयी क्षेत्र की तरफ सरक गयी है इसलिये कुछ ही वर्षों में विनाशकारी तूफान की आशंका बनी हुई है।

बंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के प्रो. कुशाला राजेंद्रन ने कहा है कि 25 अप्रैल को आये भूकम्प के आँकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि 150 किलोमीटर लम्बी प्लेट खिसकने से लगभग 450 किलोमीटर लम्बी भूगर्भीय पट्टियाँ प्रभावित हुई हैं। अब इनसे ऊर्जा का उत्सर्जन कभी भी हो सकता है। इस के कारण वैज्ञानिकों की चिन्ता यह है कि हिमालय के नीचे प्राचीन पट्टियाँ उत्तर की तरफ हैं और ये जो झटके लगे थे वे काठमांडू से 80 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में थे। जबकि वर्तमान में दक्षिणी प्लेटें ज्यादा सक्रिय हैं। यह क्षेत्र बंगाल के करीब है।

अगर कोलकाता में भूकम्प आया


दक्षिणी प्लटों के ज्यादा-ज्यादा सक्रिय होने का मतलब है बंगाल पर व्यापक प्रभाव साथ ही कोलकाता महानगर भी इससे प्रभावित होगा। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के भूभौतिक शास्त्री प्रो. शंकर नाग के अनुसार विगत 1797 से 1993 के बीच कोलकाता और आस-पास के क्षेत्रों में 67 बार धीमे झटके लगे हैं और इसमें से कई बहुत मामूली थे जो महसूस नहीं हुये। अब जबकि दक्षिणी प्लेटें ज्यादा सक्रिय हैं तो कोलकाता अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र हो सकता है। इसके अलावा कोलकाता शहर के तल में दलदल की तरह की मिट्टी है जो भूकम्प के फलस्वरूप चक्रीय गति में घूमती हुई बाहर आयेगी और उस हालत में रिक्टर पैमाने पर पाँच का भूकम्प 9 से ज्यादा का असर पैदा करेगा। यह गौरतलब है कि कोलकाता शहर भूकम्पीय मानिचत्र में अत्यधिक खतरे वाला क्षेत्र माना गया है। (फोटो साभार - प्रभात खबर)

लेखक - सम्पादक, सन्मार्ग, कोलकाता

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