पृथ्वी पानी का देश है

पृथ्वी के तीन हिस्से से अधिक में
पानी की बसाहट (है)
कितने-कितने तो ढंग की-
कितने-कितने तो रंग की

पृथ्वी के भीतर-बाहर
पानी की कितनी चहल-पहल
जिसमें हलचल नहीं
वह पानी कहाँ हुआ
पानी की पद्धति से ही
हल हो रहा जीवन का गणित
प्यार की कितनी भाषाएँ हैं
पानी के पास
बारिश एक भाषा ही तो है
कई तरह के एहसास की

बूँद-बूँद में रस-राग
घूँट-घूँट में हरियाली

बादलों के विमान से
पानी उड़ेल देता है रस-धार
धरती भीजती है हुलस से-ललक से
और यह निहार-निहार
ललचते हैं ग्रह-उपग्रह

पृथ्वी पानी का देश है
पृथ्वी के बाहर और कहीं भी है पानी
तो वह केवल पर्यटक हैं!

(दो)
हर कुआँ तीरथ है
हर कुण्ड मोक्ष
हर जुबान की अपनी जलगाथा है
हर नदी जि़न्दगी की तरफ़दारी है

पानी की मानकारी है जहाँ
परिप्रेक्ष्य निर्मल-धवल हैं

प्यास पानी का श्लेष है
पृथ्वी पानी का देश है!

(तीन)
पृथ्वी पानी का देश है
फिर भी ‘सूखा’
कितना बड़ा क्लेश है!!

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